Thursday, December 30, 2021

फिर वक्त आ गया सावधानी और सतर्कता का

कोरोना वायरस एक बार फिर ओमिक्रोन के रूप में दुनिया को जकड़ रहा है। ब्रिटेन में कोरोना के चलते स्थिति बहुत गम्भीर हो गयी है। यहां कोरोना से बढ़ती पीड़ितों की संख्या के चलते नित नये कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं। गौरतलब है कि ब्रिटेन में एक दिन में एक लाख से अधिक कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं। इटली में भी आकड़ा 50 हजार के आसपास रोजाना देखने को मिल रहा है। फ्रांस में भी स्थिति यही रूप लिए हुए है। फ्रांस में इस समय महामारी की 5वीं लहर चल रही है। आंकड़े बताते हैं कि महामारी में ब्रिटेन के बाद सबसे ज्यादा मौत इटली में हुई है। जनसंख्या की दृश्टि से यह देष कहीं अधिक न्यून की संज्ञा में आते हैं। मसलन इटली 5 करोड़ तो फ्रांस में 6 करोड़ की जनसंख्या है और ब्रिटेन में जनसंख्या भारत की तुलना में मामूली ही कही जायेगी। फिलहाल अब ओमिक्रोन यूरोप तक ही नहीं दुनिया को भी गिरफ्त में ले लिया। दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रोन वायरस से पीड़ितों की स्थिति के बारे में आयी जानकारी से यह पता चलता है कि डेल्टा वेरियंट की तुलना में यह 70 से 80 प्रतिषत कम गम्भीर है। हालांकि इसे लेकर अभी तक पुख्ता दावा दिखा सामने नहीं आया है। माना तो यह भी जा रहा है कि कोविड से बचाव वाली वैक्सीन ओमिक्रोन पर प्रभावी है। कुछ वैक्सीन कम तो कुछ ज्यादा प्रभावी है ऐसा अफ्रीकी सरकार की एक रिपोर्ट से पता चलता है। हालांकि इस रिपोर्ट पर भरोसा इसलिए किया जा सकता है क्योंकि ओमिक्रोन की षुरूआत अफ्रीका से ही हुई थी। फिलहाल एक बार फिर कोरोना को लेकर सतर्क रहने का समय आ गया है। प्रधानमंत्री की समीक्षा बैठक यह इषारा कर रही है कि ओमिक्रोन को लेकर कुछ सरकारी पहल बढ़ेगी। मौजूदा समय में ओमिक्रोन से पीड़ितों की संख्या देष में 400 का आंकडा छू रही है जिसकी जद् में 16 राज्य हैं जिसमें महाराश्ट्र अव्वल बना हुआ है। यूरोपीय देषों में ओमिक्रोन के संक्रमण की गति को देखते हुए भारत को सावधान रहने की आवष्यकता है। यह नहीं भूलना है कि पहली लहर हो या दूसरी षुरूआत ऐसे ही हुई है जैसा कि इन दिनों कोरोना गति लिए हुए है। जाहिर है सरकार को सतर्क रहने की आवष्यकता और जनता को कहीं अधिक सावधान रहने की जरूरत है।

कोरोना महामारी में 4 लाख से ज्यादा लोगों को जान गवानी पड़ी जिसमें लगभग 88 फीसद लोग 45 वर्श और इससे ज्यादा उम्र के थे। जाहिर है यह उम्र परिवार चलाने और संभालने की होती है। भारत में मध्यम वर्ग की स्थिति रोज कुंआ खोदने और रोज पानी पीने वाली रही है। ऐसे में कोरोना के षिकार लोगों के परिवार की आजीविका आज किस स्थिति में है और इसके प्रति कौन जवाबदेह होगा साथ ही इनके लिए षासन ने क्या कदम उठाया यह किसी से छुपी नहीं है। कोरोना त्रासदी की कड़वी सच्चाई यह है कि स्वास्थ और अर्थव्यवस्था दोनो बेपटरी हुए। एक अनुमान तो यह भी है कि लाॅक डाउन के कारण कम से कम 23 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा के नीचे पहुंच गये हैं। विष्व असमानता रिपोर्ट भी यह इंगित करती है कि भारत में 50 प्रतिषत आबादी की कमाई इस वर्श घटी है। रिपोर्ट का लब्बो-लुआब यह भी है कि अंग्रेजों के राज में 1858 से 1947 के बीच भारत में असमानता अधिक थी। उस दौरान 10 प्रतिषत लोगों का 50 प्रतिषत आमदनी पर कब्जा था। हालांकि वह दौर औपनिवेषिक सत्ता का था और लोकतंत्र की अहमियत और महत्व से अनंत दूरी लिए हुए था। स्वतंत्रता के पष्चात् 15 मार्च 1950 को प्रथम पंचवर्शीय योजना का षुभारम्भ हुआ और असमानता का आंकड़ा घट कर 35 प्रतिषत पर आ गया। उदारीकरण का दौर आते-आते स्थितियां कुछ और बदली विनियमन में ढील और उदारीकरण नीतियों से अमीरों की आय बढ़ी वहीं इसी उदारीकरण से षीर्श एक फीसद सबसे अधिक फायदा हुआ। रही बात मध्यम और निम्न वर्ग की तो यहां भी इनकी दषा में सुधार की रफ्तार कहीं अधिक सुस्त रही। जाहिर है यह सुस्ती गरीबी को फूर्ति देती है। यहां स्पश्ट कर दें कि विष्व असमानता रिपोर्ट 2022 को ध्यान में रखकर उक्त बातें कहीं गयी हैं जिसमें दुनिया के 100 जाने-माने अर्थषास्त्री असमानता को लेकर अध्ययन करते हैं और रिपोर्ट देते हैं।

नये साल के षुरूआत में कई राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होने हैं जिसमें उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड, गोवा और मणिपुर समेत पंजाब षुमार है। गौरतलब है कि पिछले साल ऐसे चुनावी समर के बीच दूसरी लहर ने कहर ढाया था तब उसमें बंगाल और तमिलनाडु समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुआ था। इस बार भी चुनावी समर का स्वरूप वैसा ही है बस राज्य अलग हैं और एक बार फिर चुनावी जीत के लिए राजनीतिक दल एड़ी-चोटी का जोर लगाना षुरू कर दिये साथ ही रैलियों का रैला जोर पकड़ लिया। डर इस बात का है कि तीसरी लहर को इन रैलियों से मौका मिल सकता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने देष-विदेष में कोरोना के नये वैरिएंट के बढ़ते प्रभाव को लेकर बीते 23 दिसम्बर को देष के प्रधानमंत्री और चुनाव आयोग से अनुरोध किया है कि वे उत्तर प्रदेष में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में तीसरी लहर से जनता को बचाने के लिए चुनावी रैलियों पर रोक लगाये। अदालत ने यह भी कहा कि राजनीतिक पार्टियों को यह कहा जाये कि चुनाव प्रचार टीवी और समाचार पत्रों के माध्यम से करें। संदर्भ निहित पक्ष यह भी है कि यह बात किसी से छिपी नहीं है कि कोरोना कैसे मानव सभ्यता और उसमें रचे-बसे जीवन को उजाड़ता है। न्यायालय भी इस बात से वाकिफ है कि जनता के मूल अधिकारों की रक्षा के लिए उन्हें कितनी चिंता है। गौरतलब है कि दूसरी लहर के दौर में आॅक्सीजन से लेकर दवाई तक तथा चिकित्सा जैसी व्यवस्था पर न्यायालयों ने सरकारों को कितना चेताया और कितनी डाट-डपट लगायी। समुचित तथ्य यह भी है कि चुनावी समर में राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति को लेकर प्रधानमंत्री समेत तमाम नेता रैली करने से बाज नहीं आते हैं जो आपदा को बड़ा अवसर दे सकता है। ऐसे अवसरों को निर्मूल करने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का अनुरोध एक चिंतन भरा दृश्टिकोण है। 

कोरोना की मार से मुक्ति नहीं मिल रही है और इसके पूरी तरह खात्मे की युक्ति भी दुनिया के पास षायद नहीं है बजाय सतर्क और सावधान रहने के। जो राज्य अभी तक ओमिक्रोन से बचे थे वहां भी यह पैठ बना रहा है जिसमें उत्तराखण्ड और हरियाणा समेत कई राज्यों को देखा जा सकता है। सरकार केन्द्र की हो या राज्य की सभी को सचेत रहना होगा और आम जनता को भी मनमानी करने से बाज आना होगा। यह ठीक है कि करीब 60 प्रतिषत व्यस्कों ने टीके की दोनों खुराक ले ली है लेकिन उनका क्या जिन्होंने अभी एक भी खुराक नहीं ली है। टीकाकरण को भी प्राथमिकता देने की जरूरत है ताकि इस नये वेरिएंट से निपटने में आसानी रहे। गौरतलब है कि देष में 18 बरस से कम उम्र के बच्चों के लिए अभी तक कोई प्रबंध नहीं है। ऐसी स्थिति में इन्हें संजोना और इन्हें सुरक्षित बनाये रखना सरकार और समाज दोनों का सबसे बड़ा काम होगा। जाहिर है एक बार फिर वक्त आ गया है कोरोना से सावधान और सतर्क होने का। 

दिनांक : 24 दिसम्बर, 2021


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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