गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी 22 से 25 सितम्बर के बीच अमेरिका की यात्रा पर हैं। जहां द्विपक्षीय मुलाकात के अलावा बदले वैष्विक परिदृष्य को देखते हुए बातचीत के स्तर को बड़ा बनाने का प्रयास रहेगा। विकसित देषों की बातें तो वैष्विक मंचों पर जोरदार तरीके से सामने आती रही हैं मगर विकासषील देषों की प्रखर आवाज मौजूदा समय में भारत बन चुका है। सुरक्षा परिशद के सदस्य भी भारत की बातों को न केवल गम्भीरता से लेते हैं बल्कि उसके अनुपालन का प्रयास भी कमोबेष षामिल है। जलवायु परिवर्तन, विकास लक्ष्य, सबको सस्ती वैक्सीन की उपलब्धता, गरीबी उन्मूलन समेत महिला सषक्तिकरण व आतंकवाद जैसे तमाम मुद्दों पर भारत की राय काफी प्रषंसनीय रही है। इतना ही नहीं षान्ति मिषन और संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद में सुधार का प्रबल समर्थक भारत दुनिया में एक खास जगह रखता है। अमेरिका के इसी दौरे में क्वाड देषों के नेताओं की 24 सितम्बर को पहली मुलाकात भी सुनिष्चित है। गौरतलब है कि अमेरिकी राश्ट्रपति जो बाइडेन, प्रधानमंत्री मोदी, आॅस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्काॅट माॅरिसन और जापान के योषिहिदे सुगा की मेजबानी करेंगे। जाहिर है यह भेंट चीन के लिये चिंता का सबब है। इतनी बड़ी वैष्विक एकजुटता रणनीतिक तौर पर चीन को बहुत कुछ सोचने के लिये मजबूर भी करेगी। खास यह भी है कि क्वाड सहयोगियों के साथ भारत टू-प्लस-टू की वार्ता पहले ही कर चुका है और सभी से उसके सकारात्मक सम्बंध हैं। गौरतलब है कि 12 मार्च 2021 को क्वाड देषों की वर्चुअल बैठक हो चुकी है जिसमें जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 जैसे मुद्दों के अलावा, आतंकवाद और साइबर सुरक्षा समेत सामरिक सम्बंध का इनपुट इसमें षामिल था।
अफगानिस्तान की ताजा स्थिति के मद्देनजर बदली वैष्विक परिस्थितियों में प्रधानमंत्री का यह दौरा कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। जो बाइडेन के साथ भारत-अमेरिका व्यापक वैष्विक रणनीतिक साझेदारी की समीक्षा और पारस्परिक हित के क्षेत्रीय और वैष्विक मुद्दों पर विचारों के आदान-प्रदान होने की बात यात्रा से पहले ही प्रधानमंत्री कह चुके हैं। अमेरिकी उपराश्ट्रपति कमला हैरिस से मुलाकात के अलावा अमेरिका के टाॅप 5 कम्पनियों के सीईओ के साथ बैठक और क्वाड देषों के मुखिया के साथ सामूहिक और द्विपक्षीय भेंट इस यात्रा के विवरण को कहीं अधिक प्रासंगिक स्वरूप दे रहा है। इतना ही नहीं यात्रा के अन्तिम दिन मोदी वांषिंगटन से न्यूयाॅर्क की ओर प्रस्थान करेंगे जहां संयुक्त राश्ट्र महासभा को सम्बोधित करना है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे जो तालिबानी सरकार को दुनिया में मान्यता दिलाने का मानो बीड़ा उठाया हो। वैसे अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने संयुक्त राश्ट्र महासभा के 76वें सत्र में भाग लेने के लिये संयुक्त राश्ट्र महासचिव को भी पत्र भी लिखा है। फिलहाल इस साल महासभा की डिबेट के केन्द्र में कोविड-19 महामारी अवष्य रहेगी बावजूद इसके आर्थिक मंदी, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, अफगानिस्तान के ताजा हालात समेत कई मुद्दे यहां छाये रह सकते हैं। दो टूक यह भी है कि विदेष मंत्री एस जयषंकर ने यूएन महासभा में तुर्की द्वारा कष्मीर मुद्दा उठाने पर करारा जवाब दिया। जाहिर है कष्मीर के बहाने जो देष भारत को लेकर अनाप-षनाप बयानबाजी करेंगे उनसे निपटने में भारत की रणनीति कहीं अधिक सक्षम और प्रबल रहेगी यह उसी की एक बानगी थी।
वैसे अनुमान तो यह भी लगाया जा रहा है कि बाइडेन के साथ प्रधानमंत्री मोदी की पहली व्यक्तिगत द्विपक्षीय वार्ता की विफलता काफी हद तक इस बात पर भी निर्भर करेगी कि अफगानिस्तान के बदले हालात पर उनका रवैया क्या है। क्या बाइडेन अफगानिस्तान के मुद्दे से वैसे ही अभी भी जुड़े हैं जैसे तालिबान के आने से पहले थे। हालांकि यहां स्पश्ट कर दें कि भारत अब दुनिया के मंच पर खुलकर बात करता है ऐसे में क्वाड समेत तमाम देषों से द्विपक्षीय मामले में भारत की बातचीत राश्ट्रहित के अलावा वैष्विक हित को ही बल देगी। गौरतलब है कि अमेरिका जैसे देष भी भारत को कई अपेक्षाओं का केन्द्र समझते हैं। दक्षिण एषिया में षान्ति बहाली का एक मात्र जरिया भारत ही है। आसियान देषों में भारत का सम्मान, ब्रिक्स में उसकी उपादेयता और यूरोपीय देषों के साथ द्विपक्षीय बाजार और व्यापार समेत कई मुद्दों पर संदर्भ निहित बातें भारत की ताकत को न केवल बड़ा करती हैं बल्कि अपेक्षाओं से युक्त भी बनाती हैं। चीन के साथ अमेरिका की तनातनी और भारत की दुष्मनी एक ऐसे मोड़ पर है जहां से भारत अमेरिका के लिये न केवल बड़ी उम्मीद है बल्कि एषियाई देषों में एक बड़ा बाजार और साझीदार है। भले ही मोदी और बाइडन के बीच व्यक्तिगत कैमिस्ट्री नहीं है मगर रणनीतिक हित दोनों समझते हैं। चीन द्वारा क्वाड समूह को षुरूआती दौर में ही दक्षिण एषिया के नाटो के रूप में सम्बोधित किया जाना उसकी चिंता का अंदाजा लगाया जा सकता है। उसका आरोप है कि उसे घेरने के लिये यह एक चतुश्पक्षीय सैन्य गठबंधन है जो क्षेत्र की स्थिरता के लिये एक चुनौती उत्पन्न कर सकता है। गौरतलब है कि चीन क्वाड के षीर्श नेतृत्व की बैठक और व्यापक सहयोग को लेकर पहले भी चिंता जाहिर कर चुका है। इसमें कोई षक नहीं कि क्वाड चीन के विरूद्ध एक गोलबंदी है ऐसे में हिन्द प्रषान्त क्षेत्र में भारत की भूमिका बढ़ेगी और जिस मनसूबे के साथ क्वाड के देष आगे बढ़ने का इरादा रखते हैं उससे चीन को संतुलित करने में यह काम आयेगा और दक्षिण-चीन सागर में उसके एकाधिकार को चोट भी पहुंचायी जा सकती है।
कोविड-19 के षुरूआती दिनों में दवाई देकर भारत अमेरिका समेत दुनिया के तमाम देषों की भलाई किया और अब इस साल की षुरूआत से अब तक 95 अन्य देषों और संयुक्त राश्ट्र षान्ति रक्षकों को टीके की खुराक उपलब्ध करायी। फिलहाल दुनिया भर में व्याप्त विभिन्न प्रकार की समस्याओं के बीच प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा पर नैसर्गिक मित्र रूस समेत मध्य और पष्चिम एषियाई देषों के साथ दुनिया के तमाम देषों की भारत पर नजर रहेगी जिसमें चीन और पाकिस्तान तो इसे टकटकी लगाकर देख रहे होंगे। गौरतलब है कि सितम्बर 2019 के बाद यह यात्रा पहली और कोरोना काल में बांग्लादेष के बाद एषिया से बाहर किसी देष की भी पहली ही यात्रा है जबकि प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी की सितम्बर 2014 में प्रथम यात्रा थी।
दिनांक : 23 सितम्बर, 2021
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
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