Tuesday, October 5, 2021

सुरक्षा परिषद में भारत का कद

वर्तमान में भारत 8वीं बार संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् में स्थायी सदस्य है मगर स्थायी सदस्यता का मामला दषकों से खटाई में है। अमेरिका और रूस समेत दुनिया के तमाम देष स्थायी सदस्यता को लेकर भारत के पक्षधर हैं सिवाय चीन के। दो टूक यह है कि संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् में भारत भले ही स्थायी सदस्य के तौर पर जगह न बना पाया हो मगर उसका कद लगातार बढ़ा हुआ देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी बीते 9 अगस्त को समुद्री सुरक्षा विशय पर इसी सुरक्षा परिशद् की ओर से आयोजित खुली परिचर्चा की अध्यक्षता की। बीते सात दषकों में यह पहला अवसर है जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने ऐसा किया है। गौरतलब है कि दक्षिण चीन सागर में कई देषों के साथ चीन की तनातनी है। दुनिया के तमाम देष इस सागर से व्यापार करते हैं। आसियान और एषिया पेसिफिक के कई देष यहां तक कि अमेरिका और यूरोप समेत विभिन्न देष दक्षिण चीन सागर पर चीन के आधिपत्य को लेकर आपत्ति करते रहे हैं। भारत भी इसका मुखर विरोधी रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने सम्बोधन में समुद्र को अन्तर्राश्ट्रीय व्यापार की जीवन रेखा बताया और विवादों का निपटारा षान्तिपूर्ण तरीके से अन्तर्राश्ट्रीय कानूनों के अनुरूप करने की बात दोहराई। इसमें कोई दुविधा नहीं कि समुद्र एक साझा धरोहर है और कोई देष आधिपत्य जमाये तो यह षेश दुनिया के लिए ठीक नहीं है।

दुनिया का कोई देष जब कद में बड़ा होता है तो उसकी आवाज भी असर डालती है। भारत 1950-51 में पहली बार सुरक्षा परिशद् का अस्थायी सदस्य बना और सिलसिलेवार तरीके से 2021-22 में 8वीं बार यहां स्थापित देखा जा सकता है। हालांकि सुरक्षा परिशद् में परिवर्तन की मांग भी बरसों पुरानी है। परिवर्तन के साथ भारत के कद में बढ़ोत्तरी होना भी लाज़मी है। कई ऐसी वजह हैं जिसकी वजह से भारत स्थायी सदस्यता नहीं प्राप्त कर पा रहा है। इसके पीछे एक बड़ी वजह चीन भी है। साथ ही सुरक्षा परिशद् में 5 स्थायी सदस्यों की ही जगह है। खास यह भी है कि इन पांच में यूरोप का प्रतिनिधित्व सबसे ज्यादा है जबकि आबादी के लिहाज़ से वह बामुष्किल 5 फीसद स्थान घेरता है, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका का कोई सदस्य इसमें स्थायी नहीं है जबकि संयुक्त राश्ट्र का 50 फीसद कार्य इन्हीं से सम्बंधित है। ढांचे में सुधार इसलिए भी होना चाहिए क्योंकि इसमें अमेरिकी वर्चस्व भी दिखता है जबकि पड़ोसी चीन स्थायी सदस्य के तौर पर भारत के खिलाफ अक्सर वीटो का उपयोग करता है जबकि नैसर्गिक मित्र रूस भारत के पक्ष में यहां खड़ा मिलता है। 

भारत का कद संयुक्त राश्ट्र में तब बढ़ेगा जब स्थायी रूप से सदस्यता मिलेगी और भारत इसका हकदार भी है। जनसंख्या की दृश्टि से दूसरा बड़ा देष, प्रगतिषील अर्थव्यवस्था और जीडीपी की दृश्टि से भी प्रमुखता वाले देषों में षामिल रहा है। हालांकि कोरोना काल में हालत ठीक नहीं है और अर्थव्यवस्था तो बेपटरी हो चली है। भारत को विष्व व्यापार संगठन, ब्रिक्स और जी-20 जैसे आर्थिक संगठनों में प्रभावषाली माना जाता है और अब तो जी-7 के विस्तार पर न केवल चर्चा हो रही है बल्कि भारत को भी षामिल करने की बात उठ रही है। अफ्रीकी समूह में 54 देष हैं जो सुरक्षा परिशद् में सुधारों की वकालत करते रहे हैं। यहां से भी मांग है कि कम से कम दो राश्ट्रों को वीटो की षक्ति के साथ स्थायी सदस्यता दी जाये। यदि भारत स्थायी सदस्य होता है तो चीन के चलते जो व्याप्त असंतुलन है उसको पाटने में भी मदद मिलेगी। वैसे संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् में अस्थायी सदस्य बनना भी बढ़े हुए कद का ही प्रमाण होता है क्योंकि इसके लिए भी दुनिया के देषों को अपने पक्ष में रहना जरूरी होता है। गौरतलब है कि अस्थायी सदस्यों का चयन मतदान के जरिये होता है। संयुक्त राश्ट्र के दो-तिहाई वोट हासिल करने वाले देष ही अस्थायी सदस्य चुने जाते हैं। जब पहली बार भारत अस्थायी सदस्य बना था तब कुल 58 वोट की तुलना में उसे 56 वोट मिले थे जबकि हाल की स्थिति में कुल 192 वोट के मुकाबले उसे 184 वोट मिले। पड़ताल बताती है कि भारत सिलसिलेवार तरीके से दो-तिहाई बहुमत नहीं बल्कि तीन-चैथाई बहुमत के साथ अस्थायी सदस्य चुना जाता रहा है मगर स्थायी सदस्यता के आभाव में यहां कद-काठी का और बेहतर होना बाकी है। 

(दिनांक : 12 अगस्त, 2021)


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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