Wednesday, October 27, 2021

जीएसटी के दायरे में क्यों नहीं पेट्रोल-डीजल

गुड्स एण्ड सर्विसेज़ टैक्स (जीएसटी) काउंसिल की हालिया और 45वीं बैठक बीते 17 सितम्बर को हुई थी। उम्मीद थी कि आसमान छूते पेट्रोल-डीजल को इस बैठक में वाजिब जमीन मिलेगी पर कीमतों में राहत की सारी उम्मीदें फिलहाल खत्म हो गयीं। जीएसटी के दायरे में पेट्रोल-डीजल को लाना एक बड़े भागीरथ प्रयास की आवष्यकता महसूस करा रहा है। तकरीबन सभी राज्यों की सहमति से फिलहाल लम्बे समय के लिये इसे ठण्डे बस्ते में कमोबेष डाल दिया गया। जबकि आंकड़े अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटने के संकेते दे रहे हैं। जाहिर है सस्ता तेल इसी अर्थव्यवस्था को और स्पीड दे सकता है पर सरकार है कि मानती नहीं है। हर मोर्चे पर सरकार की पीठ थपथपायी जाये ऐसा षायद ही किसी देष में सम्भव हो। लोकतांत्रिक देषों में सरकार से सवाल करना एक सहज प्रक्रिया होती है। इसी परिदृष्य के दायरे में यह प्रष्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर क्यों पेट्रोल और डीजल को जीएसटी में लाने के लिये सरकारें राजी नहीं हो रही हैं जबकि जीएसटी 1 जुलाई 2017 से लागू है। देष में पेट्रोल के रेट कुछ षहरों में तो 100 रूपए प्रति लीटर से ऊपर है तो कहीं-कहीं डीजल भी इस कीर्मिमान को छू लिया है। वैसे तो अब जीएसटी के दायरे में इन्हें लाने का विचार फिलहाल टल गया है मगर यदि भविश्य में ऐसा होता है तो डीजल 20 रू. और पेट्रोल 30 रू. प्रति लीटर सस्ता हो सकता है।

गौरतलब है कि पेट्रोल-डीजल पर सरकारें लगभग 150 फीसद के आस-पास टैक्स वसूल रही हैं जबकि 4 स्लैब में विभक्त जीएसटी का सबसे उच्चत्तम दर महज 28 फीसद है। अब तक जीएसटी काउंसिल की 45 बैठक हो चुकी है। वैसे अप्रैल 2018 के पहले सप्ताह में पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की दिषा में धीरे-धीरे आम सहमति बनाने का प्रयास मंत्रालय ने कही थी मगर इस पर भी हजार अडंगे बताये जा रहे थे। उत्पाद षुल्क घटाने का दबाव तो पहले से रहा है मगर वित्त मंत्रालय ऐसा कोई इरादा नहीं दिखाया। गौरतलब है कि सरकार यदि बजटीय घाटा कम करना चाहती है तो उत्पाद षुल्क घटाना सम्भव नहीं है। खास यह भी है कि एक रूपए प्रति लीटर की डीजल-पेट्रोल की कटौती से सरकार के खजाने में 13 हजार करोड़ रूपए की कमी सम्भव है। जाहिर है सरकार यह जोखिम क्यों लेगी और वो भी अर्थव्यवस्था के खराब दौर के बीच। जीएसटी से इन दिनों सरकार की कमाई में इजाफा हुआ है। दिसम्बर 2020 से अगस्त 2021 के बीच केवल जून महीने को छोड़ दिया जाये तो प्रतिमाह जीएसटी से कमाई 1 लाख करोड़ रूपए ही रही है जिसमें अप्रैल में तो यह आंकड़ा 1 लाख 41 हजार करोड़ से अधिक था जो पिछले 4 सालों में सर्वाधिक है। 

पेट्रोल-डीजल की महंगाई से जनता महीनों से व्यापक कठिनाई झेल रही है। इस सवाल का जवाब भी खोजना आसान है कि केन्द्र के साथ राज्य सरकारें भी जीएसटी में न लाने के साथ क्यों हैं। दोनों को अपने खजाने की चिंता है। भले ही जनता क्यों न पिसे। यदि बिहार के पूर्व वित्त मंत्री सुषील कुमार मोदी के इस वक्तव्य को समझें जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि पेट्रोल व डीजल जीएसटी के दायरे में आते हैं तो इससे केन्द्र और राज्य सरकारों को 4 लाख 10 हजार करोड़ रूपए का नुकसान उठाना पड़ेगा। जब चारों तरफ से सरकार की कमाई में अवरोध है तो डीजल और पेट्रोल एक सुगम रास्ता बन गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि पेट्रोल और डीजल सस्ता करना या फिर उस पर ड्यूटी और टैक्स कम करना सम्भव नहीं है और दलील देते हुए कहा था कि तेल कम्पनियों को पिछली सरकार ने सब्सिडी देने हेतु जो आय बाॅण्ड जारी किये थे उन पर ब्याज भरने में ही बहुतायत में रकम खर्च हो जाती है। हालांकि यह पड़ताल का विशय है कि हकीकत और फसाने में क्या अंतर है। दो टूक यह है कि जनता को तो सस्ता तेल चाहिए। जीएसटी मुनाफे की कर व्यवस्था है, पेट्रोल और डीजल के मामले में तो कहा ही जा सकता है। यदि ऐसा न होता तो सरकार इसे बहुत पहले ही जीएसटी में ला चुकी होती। फिलहाल तेल के भस्मासुर वाले दाम से लोगों को राहत देने के लिये सरकार या तो उत्पाद षुल्क घटाये या फिर जीएसटी के दायरे में लाये।

दिनांक : 20 सितम्बर, 



डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com


No comments:

Post a Comment