Tuesday, October 5, 2021

मोबाइल गवर्नेंस की ताकत

सरकार की क्षमता को बेहतर बनाने हेतु सूचना और संचार तकनीक के उपयोग को ई-गवर्नेंस के नाम से परिभाषित करते हैं। इसी ई-गवर्नेंस का एक उप डोमेन मोबाइल गवर्नेंस (एम-गवर्नेंस) जो समावेशी और सतत विकास का एक महत्वपूर्ण जरिया हो गया है। जिसके चलते सुशासन का मार्ग भी और चैड़ा हो रहा है। समावेशी विकास के लिए किसी कुंजी से कम नहीं मोबाइल गवर्नेंस देश में 136 करोड़ से अधिक की जनसंख्या में 120 करोड़ मोबाइल का उपयोग किया जा रहा है। हालांकि इस बात में पूरी स्पष्टता नहीं है कि कितनों के पास मोबाइल दो या उससे अधिक है लेकिन यह भारी-भरकम आंकड़ा दर्शाता है कि भारत मोबाइल केंद्रित हुआ है। सरकार की योजनाओं की पहुंच का यह एक अच्छा तकनीक व रास्ता भी बना है। गौरतलब है कि ई-गवर्नमेंट के अंतर्गत ही ई-प्रशासन और ई-सेवाएं आती है। इसके अलावा सरकारी सेवाओं के ऑनलाइन प्रावधान ने भी सेवा क्षमता का विकास किया है। जाहिर है यह पारदर्शिता के साथ खुलेपन का पयार्य है। बावजूद इसके भ्रष्टाचार के प्रवेश द्वार पूरी तरह बंद है ऐसा कहना इसलिए कठिन है क्योंकि समावेशी विकास के इस दौर में सभी का सर्वोदय अभी भी संभव नहीं हुआ है जिसके लिए दशकों से प्रयास जारी है। गौरतलब है कि ई-लोकतंत्र समाज के सभी तबकों द्वारा राज्य के अभिशासन में भाग ले सकने की क्षमता के माध्यम से लोकतंत्र के विकास की दिशा में भी सूचना और संचार तकनीक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ई-लोकतंत्र पारदर्शिता, दायित्वशीलता और प्रतिभागिता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता है। मोबाइल शासन के चलते कार्य तेजी से और आसानी से होने लगे है। समावेशी विकास रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा चिकित्सा, बिजली,पानी, रोजगार समेत कई बुनियादी तत्वों से युक्त है जिसकी पहुंच सभी तक हो, ऐसा सुशासन से भरी किसी भी सरकार की यह पहली ड्यूटी है। गौरतलब है कि भारत में साल 2025 तक 90 से अधिक लोग सीधे इंटरनेट से जुड़े जाएंगे जबकि मौजूदा स्थिति में यह आंकड़ा 65 से 70 करोड़ के आसपास है जाहिर है इंटरनेट कनेक्टिविटी मोबाइल गवर्नेंस को और ताकत भरेगा। जिसके चलते सतत और समावेशी विकास के लक्ष्य को आसानी से प्राप्त करना तुलनात्मक आसान होगा।

प्रत्येक राष्ट्र अपनी जनता और सरकार के साझा मूल्यों द्वारा निर्देशित होता है। राष्ट्रवाद, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, गुटनिरपेक्षता, एवं मिश्रित अर्थव्यवस्था भारत के मूल्यों में निहित है। सभी को ईज आफ लिविंग और गरिमामय जीवन का अधिकार है मगर यह बिना सरकार  के भागीरथ प्रयास के संभव नहीं है। भले ही तकनीक इतनी ही मजबूत क्यों ना हो जाए यदि संसाधन पूरे ना हों उद्देश्य पूरे नहीं हो सकते। समावेशी विकास का एक लक्ष्य 2022 तक दो करोड़ घर देने और किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य है। हालांकि यह लक्ष्य समय पर मिलेगा अभी टेढ़ी खीर लगती है क्योंकि पिछले ढेड साल से देश कोरोना से जूझ रहा है। मार्च 2019 तक सरकार का यह लक्ष्य था कि समावेशी विकास को सुनिश्चित करने हेतु 55 हजार से अधिक गांव में मोबाइल कनेक्टिविटी उपलब्ध कराना और डिजिटलीकरण को बढ़ावा देना जनधन खाते, डेबिट कार्ड, आधार कार्ड, भीम एप्प आदि को जन-जन तक पहुंचाना भी सरकार का ही लक्ष्य था। ताकि लोगों को डिजिटल लेनदेन से जोड़ा जा सके और सारी योजनाओं का सीधा लाभ मिल सके। मोबाइल गवर्नेंस को बाकायदा यहां प्रभावशाली होते देखा जा सकता है। गौरतलब है कि समय समावेशी इंटरनेट सूचकांक 2020 में भारत 46 वें स्थान पर है जिसमें समय के साथ बड़े सुधार की आवश्यकता है ताकि इन गवर्नेंस को और मजबूत किया जा सके। गौरतलब है कि सुशासन के उद्देश्य की पूर्ति में मोबाइल शासन यहां  मात्र एक तकनीक है। भारत के परिप्रेक्ष्य में सुशासन क्या है इसे भी समझना सही रहेगा। दरअसल सुशासन के समक्ष खड़ी केंद्रीय चुनौती का संबंध सामाजिक विकास से है। सुशासन का अपरिहार्य उद्देश्य सामाजिक अवसरों का विस्तार और गरीबी उन्मूलन होना चाहिए। संक्षेप में कहें तो सुशासन का अभिप्राय न्याय, सशक्तिकरण और रोजगार एवं क्षमता पूर्वक सेवा प्रदान सुनिश्चित करने से है। सुशासन अभी विविध प्रकार की चुनौतियों से जकड़ा है मसलन गरीबी, निरक्षरता, पहचान आधारित संघर्ष, क्षेत्रीयता, नक्सलवाद, आतंकवाद इत्यादि कुछ प्रबल चुनौतियां हैं। जो सुशासन को पूरी तरह सक्षम बनने में बाधा उत्पन्न कर रही हैं। इन चुनौतियों के साथ-साथ राजनीति का अपराधीकरण और भ्रष्टाचार भी इसके पथ को खुरदरा बनाए हुए हैं।


भारत सरकार का लक्ष्य मोबाइल फोन की व्यापक पहुंच का उपयोग करना और सार्वजनिक सेवाओं विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में आसान और 24 घंटे पहुंच को सक्षम बनाने व मोबाइल ढांचा के साथ मोबाइल एप्लीकेशन क्षमता का उपयोग बढ़ाकर एम-गवर्नेंस को बड़ा करना।

गौरतलब है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने साल 2012 में मोबाइल गवर्नेंस के लिए रूपरेखा विकसित और अधिसूचित की थी। फिलहाल भारत सरकार के शासन ढांचे का उद्देश्य मोबाइल फोन की विशाल पहुंच का उपयोग करना। जाहिर है मोबाइल गवर्नेंस के कई लाभ हैं, पैसे की बचत, नागरिकों को बेहतर बेहतर सेवाएं, पारदर्शिता, कार्य में शीघ्रता, आसान पहुंच और बातचीत सहित किसी प्रकार का भुगतान व सरकार की योजनाओं की पूरी जानकारी तीव्रता से पहुंच जाती है।  गौरतलब है कि 15 अगस्त 2015 को लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी ने सुशासन के लिए आईटी के व्यापक इस्तेमाल पर जोर दिया था तब उन्होंने कहा था कि ई- गवर्नेंस आसान, प्रभावी और आर्थिक गवर्नेंस भी है और इससे सुशासन का मार्ग प्रशस्त होता है। जाहिर है एम-गवर्नमेंट ई-गवर्नेंस का उप-डोमेन है जो समावेशी विकास का एक महत्वपूर्ण जरिया तो है। जिसके चलते सुशासन आगे बढ़ा और आगे भी व्यापक बनाया ही नहीं जा सकता बल्कि बल्कि समावेशी विकास की चुनौती को देखते हुए नव लोक प्रबंधन की प्रणाली भी विकसित करना भी आसान होगा। लोक चयन उपागम का भी यह एक मजबूत रास्ता है। डिजिटल गवर्नेंस जितना तेजी से आगे बढ़ेगा भ्रष्टाचार को कमजोरी मिलेगी। हालांकि पारदर्शिता और प्रासंगिकता जहां पर है यह जरूरी नहीं कि वहां अनियमितता पूरी तरह खत्म है। मोबाइल गवर्नेंस एक ऐसी विधा है जिसे जेब का शासन भी कह सकते हैं जो शासन के लिए ही नहीं बल्कि जनमानस के लिए भी सरल सुगम और सहज पथ है।


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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