अमेरिका यह बात कई बार दोहरा चुका है कि अफगानिस्तान की षान्ति में पाकिस्तान को सबसे अधिक लाभ होगा। साथ ही यह भी कहता रहा है कि अफगानिस्तान की षान्ति प्रक्रिया में पाकिस्तान की अहम भूमिका रहेगी मगर षायद वह समझ नहीं पाया कि पाकिस्तान दो दषक से तालिबान की वापसी का इंतजार कर रहा था। जाहिर है उसकी मुराद पूरी हो गयी है और इस मामले में चीन का साथ भी जग जाहिर है। पाकिस्तान की तालिबान के साथ गलबहियां करके केवल अपना फायदा ही नहीं चाहता बल्कि भारत के नुकसान को भी अपना फायदा ही समझता है। गौरतलब है कि तालिबान में अंतरिम सरकार की घोशणा के बाद दुनिया के किसी भी देष ने इसका खुलकर स्वागत नहीं किया है। अमेरिका ने नई तालिबानी सरकार के कार्यों को आंकने की बात कही जबकि जर्मनी ने तालिबान सरकार के गठन के बाद चिन्ता व्यक्त की। जापान ने भी कहा है कि इनकी गतिविधियों की निगरानी करेगा। रही बात चीन की तो वह तालिबान से एक समावेषी सरकार की अपील की है और पाकिस्तान तो दुनिया को ही नजरिया बदलने की नसीहत दे रहा है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देष न केवल लोकतंत्र के समर्थक हैं बल्कि षान्ति और सद्भावना की मिसाल हैं। ऐसे में अलोकतांत्रिक तरीके से कदमताल करने वाली तालिबानी सरकार भारत न केवल परखेगा, आंकेगा बल्कि उससे होने वाले नुकसान पर भी नजर गड़ा कर रखेगा।
तालिबान की इस नई सरकार में 14 सदस्य संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् की काली सूची में हैं जाहिर है इससे अंतर्राश्ट्रीय समुदाय की चिंता बढ़ना लाज़मी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि तालिबान की सरकार कहीं से और किसी प्रकार से समावेषी नहीं है। इसमें युवा और महिलाओं समेत कई वर्ग विषेश के नेतृत्व का अभाव है। इसमें षामिल कट्टरपंथी चेहरा भारत के लिये भी किसी चुनौती से कम नहीं है। देखा जाये तो हक्कानी की मौजूदगी भारत के लिये बिल्कुल उचित नहीं है। पाकिस्तान की इमरान सरकार के दोनों पैर आईएसआई और वहां की सेना के बीच उलझे रहते हैं। पाकिस्तान में लोकतंत्र भी आमतौर पर हाषिये पर ही रहता है। तालिबान और आईएसआई के गठजोड़ से भारत बेफिक्र नहीं हो सकता और जिस तरह चीन तालिबान को 228 करोड़ रूपए देने का एलान किया है वह भी उसके किसी खास इरादे का प्रदर्षन ही है। आईएसआई तालिबान षासन पर भारत के खिलाफ मुख्यतः कष्मीर में अपना एजेण्डा बढ़ाने का दबाव बना सकता है। हालांकि तालिबान ऐसा करने से पहले सौ बार सोचेगा जरूर क्योंकि उसे पता है कि दुनिया में भारत की क्या एहमियत है और चीन और पाकिस्तान के मामले में क्या स्थिति है। हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अगर तालिबान ने पुराने कट्टरपंथ को अपनाया तो कष्मीर के लिये चुनौती बन सकता है। इतना ही नहीं पाक अधिकृत कष्मीर में चीन इसी तालिबान के सहारे अपनी महत्वाकांक्षी योजना वन बेल्ट, वन रोड़ के विस्तारवादी सोच को भी बड़ा रूप दे सकता है। कहा तो यह भी जा रहा है कि लष्कर-ए-तैयबा और जैष-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन अफगान और पाकिस्तान की सीमा पर अपना खूठा गाड़े हुए है।
तालिबानियों का दुनिया भर के आतंकी संगठनों से गहरा सम्बंध रहा है और इसका लाभ पाकिस्तान भी लेता रहा है। आईएसआईएस, हक्कानी नेटवर्क, लष्कर-ए-तैयबा समेत तमाम आतंकी संजाल को तालिबान प्रषिक्षण सहित तमाम सुविधाएं मुहय्या कराता है। पाकिस्तान 40 सालों से अफगानी मुद्दे पर अपनी रोटी सेंकता रहा है।
(दिनांक : 9 सितम्बर, 2021)
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
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