स्टार्टअप इण्डिया अभियान एक राश्ट्रीय भागीदारी और राश्ट्रीय चेतना का प्रतीक है। भारतीय स्टार्टअप की सफलता की कहानी केवल बिजनेस की सफलता नहीं बल्कि पूरे भारत में हो रहे बदलाव का प्रतीक है। उक्त कथन केन्द्रीय मंत्री पीयूश गोयल का है जिसमें उन्होंने स्टार्टअप इण्डिया के मौजूदा हालात पर अपना एक नजरिया दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि स्टार्टअप-स्टैण्डअप इण्डिया रूपी अभियान का लक्ष्य कहीं अधिक व्यापक है मगर कोविड-19 के दुश्चक्र के चलते नकारात्मकता की ओर भी अग्रसर हुआ। गौरतलब है कि उद्यमषीलता को बढ़ावा देने के उद्देष्य से 5 वर्श पहले 16 जनवरी 2016 को स्टार्टअप इण्डिया स्कीम लाई गयी। हालांकि इसकी घोशणा 15 अगस्त 2015 को लालकिले की प्राचीर से 69वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने की थी और दिसम्बर 2015 में रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात‘ में भी ऐसा ही वादा किया गया था नतीजन यह जनवरी 2016 में दिल्ली के विज्ञान भवन से षुभारम्भ को प्राप्त किया। हालांकि आर्थिक उदारीकरण 1991 से ही देष में आर्थिक बदलाव की बड़ी गौरव-गाथा देखी जा सकती है और स्टार्टअप जैसी योजनाएं दषकों पहले से ही भारत के अर्थ नीति के हिस्से रहे हैं और यही दौर सुषासन की विस्तारवादी सोच को भी धरातल और आकाष देने का बड़ा प्रयास था। सुषासन एक लोक प्रवर्धित विचारधारा है जहां सामाजिक-आर्थिक न्याय को तवज्जो मिलता है। विष्व बैंक की एक आर्थिक परिभाशा से 20वीं सदी के अंतिम दषक में उदित सुषासन की नई परिकल्पना 1992 से ही भारत में देखी जा सकती है जबकि इंग्लैण्ड दुनिया का पहला देष है जिसने आधुनिक सुषासन को पहले राह दिया। उद्यम की प्रगतिषीलता और युवाओं में नवाचार और उद्यम के परिप्रेक्ष्य का विकसित होना सुषासन का निहित एक भाव ही है जो स्टार्टअप इण्डिया को भी स्टैण्डअप इण्डिया की ओर ले जाता है। देष में रोज़गार और नौकरियों के अवसर को बढ़ावा दिये जाने का स्टार्टअप इण्डिया एक बढ़ा प्रयास के रूप में देखा गया। नवाचार से भरी सोच के साथ युवाओं का इसमें आकर्शण होना और सुषासन से भरी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना स्टार्टअप इण्डिया ने उम्मीदों का एक मार्ग भी प्रषस्त किया है।
गौरतलब है कि सुषासन और स्टार्टअप इण्डिया का गहरा नाता है साथ ही न्यू इण्डिया की अवधारणा भी इसमें विद्यमान है। इतना ही नहीं आत्मनिर्भर भारत के पथ को भी यह चिकना बनाने का काम कर सकता है। हुरून इण्डिया फ्यूचर यूनिकाॅर्न लिस्ट 2021 की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय स्टार्टअप कम्पनियों ने जून तिमाही में साढ़े छः अरब डाॅलर का निवेष जुटाया जिसमें स्टार्टअप इकाईयों में निवेष के 160 सौदे हुए जो जनवरी-मार्च की अवधि की तुलना में 2 प्रतिषत अधिक है मगर तिमाही-दर-तिमाही आधार पर यह 71 प्रतिषत की वृद्धि है। गौरतलब है कि कई स्टार्टअप इकाईयां प्रतिश्ठित यूनिकाॅर्न क्लब में षामिल हो गयी हैं। यूनिकाॅर्न का अर्थ है एक अरब डाॅलर से अधिक के मूल्यांकन से है। रिपोर्ट से यह स्पश्ट होता है कि 2021 की दूसरी तिमाही में स्टार्टअप की वृद्धि कहीं अधिक षानदार रही है। हालांकि पिछले साल की रिपोर्ट यह बताती है कि देष में घरेलू यूनिकाॅर्न स्टार्टअप की संख्या 21 थी जबकि चीन में इसकी संख्या 227 थी। मगर चीन में जहां देष से बाहर केवल 16 कारोबार ही थे वहीं इस मामले में भारत की संख्या 40 थी और दुनिया भर में भारतीयों द्वारा स्थापित यूनिकाॅर्न का कुल बाजार मूल्य लगभग 100 अरब डाॅलर देखा गया। आंकड़े यह बताते हैं कि स्टार्टअप के मामले में भारत दुनिया में चैथे स्थान पर है जो अमेरिका, चीन और ब्रिटेन के बाद आता है। नई नौकरियों की उम्मीदों से लदे स्टार्टअप्स भारत जैसे विकासषील देषों के लिये एक बेहतर उपक्रम है। केन्द्रीय मंत्री गोयल कोविड-19 की चुनौतियों के बावजूद भारत में आर्थिक रिवाइवल के स्पश्ट संकेत दिखने की बात कह चुके हैं। निर्यात बढ़ रहा है और एफडीआई प्रवाह सबसे अधिक है। भारतीय उद्योग वास्तव में विकास के रास्ते पर है। कहा तो यह भी जा रहा है कि इतिहास में पहली बार किसी एक तिमाही में अब तक का सबसे ज्यादा निर्यात हुआ है। गौरतलब है कि वित्त वर्श 2021-22 की पहली तिमाही में 95 अरब डाॅलर का निर्यात हुआ है जो 2019-20 की पहली तिमाही से 18 फीसद ज्यादा है और वित्त वर्श 2020-21 की तुलना में यह 45 प्रतिषत से अधिक है। जाहिर है निर्यात यह संकेत देते हैं कि अंदर हालात पहले जैसे नहीं हैं मगर एक सच यह भी है कि जो हालात पहले बिगड़ चुके हैं अभी भी वे पटरी पर पूरी तरह लौटे नहीं है यह स्टार्टअप्स की स्थिति को देख कर भी समझा जा सकता है। फिलहाल स्टार्टअप पर कोरोना की दूसरी लहर का भी कहर था और हालिया स्थिति यह बताती है कि भारतीय स्टार्टअप ने अपने जुझारू क्षमता का काफी हद तक परिचय भी दिया है।
कोविड-19 के संक्रमण से देष ग्रसित हुआ और बहुत से स्टार्टअप भी वेंटिलेटर पर चले गये थे। जुलाई-2020 में फिक्की और इण्डियन एंजेल नेटवर्क ने मिलकर 250 स्टार्टअप्स का सेंपल सर्वे किया था और रिपोर्ट निराषा से कहीं अधिक भरी थी। यह समय कोविड की पहली लहर का था। सर्वे से पता चला कि पूरे देष में 12 फीसद स्टार्टअप्स बंद हो चुके थे और 70 फीसद का लाॅकडाउन के चलते कारोबार प्रभावित हुआ था। उस दौर में केवल 22 फीसद के पास अपनी कम्पनियों के लिये 3 से 6 माह का निष्चित लागत खर्च निकालने हेतु नकद भण्डारण उपलब्ध था। इतना ही नहीं 30 फीसद कंपनियों ने यह भी माना कि लाॅकडाउन अधिक लम्बा चला तो कर्मचारियों की छंटनी भी करनी पड़ेगी और उसी सर्वे से यह भी खुलासा हुआ था कि स्टार्टअप्स का 43 फीसद हिस्सा लाॅकडाउन के तीन महीने के भीतर 20 से 40 प्रतिषत अपने कर्मचारियों की वेतन कटौती कर चुके थे। निवेष की जो मौजूदा हालत 2021 की हालिया रिपोर्ट में दिखती है जुलाई 2020 में यह ठीक इसके उलट थी। निवेष के मामले में तब स्टार्टअप की स्थिति बहुत प्रभावित हुई और ऐसा होना अतार्किक नहीं था। जब देष की अर्थव्यवस्था ही बेपटरी हो चली थी तो स्टार्टअप्स बेअसर कैसे रह सकते थे। वैसे स्टार्टअप्स की व्यापारिक चुनौतियां कोरोना से पहले भी रही हैं। मसलन बाजार संरचना, वित्तीय समस्याएं, विनियामक मुद्दे, कराधान साथ ही साईबर सुरक्षा और सामाजिक-सांस्कृतिक चुनौतियां आदि। हालांकि सरकार ने उद्यमषीलता को बढ़ावा देने के हेतु इकोसिस्टम को विकसित करने के लिये स्टार्टअप इण्डिया, स्टैण्डअप इण्डिया व स्टार्टअप एक्सचेंज जैसे कई सक्रिय कदम उठाये। गौरतलब है कि सरकार ने बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनी (एनबीएफसी) के सहयोग से अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना षुरू की थी जो गैर काॅरपोरेट, गैर कृशि, एमएसएमई को उनके प्रारम्भिक या विकास चरण में स्टार्टअप इण्डिया ऋण प्रदान करती है पर बड़ा सवाल यह है कि भारत में अधिकतर स्टार्टअप क्यों फेल हो जाते हैं? वर्तमान की बात करें तो अप्रैल 2021 में एक हफ्ते में भारत में 6 स्टार्टअप को यूनिकाॅर्न का तमगा हासिल हुआ। स्टार्टअप्स के मामले में यह भी एक संदर्भ रहा है कि भारत में स्टार्टअप्स फण्डिंग स्कोर करने पर अधिक ध्यान लगाते हैं जबकि ग्राहक की ओर से उनका ध्यान कमजोर हो जाता है। हालांकि फण्डिंग जुटाने की स्पर्धा में ऐसा करना सही है लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि कम्पनी को बल हमेषा ग्राहकों से मिलता है। स्टार्टअप्स के फेल होने के कई कारणों में एक बड़ा कारण ग्राहक का फिसलना भी है। पिछले साल आईबीएम इंस्टीट्यूट आॅफ बिजनेस वैल्यू और आॅक्सफोर्ड इकोनोमिक्स के अध्ययन से पता चला कि भारत में करीब 90 फीसद स्टार्टअप 5 सालों के भीतर फेल होकर बंद हो जाते हैं। खास यह भी है कि पिछले एक दषक से अधिक समय के बीच भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम में अप्रत्याषित बूम भी देखने को मिला है।
सरकार का हर नियोजन व क्रियान्वयन तथा उससे मिले परिणाम सुषासन की कसौटी होते हैं। स्टार्टअप को भी ऐसी ही कसौटी पर कसना सुषासन को विस्तार देने के समान है। सरल और सहज नियम प्रक्रिया और ईज़ डूइंग कल्चर को बढ़ावा देकर स्टार्टअप्स को बढ़ोत्तरी दी जा सकती है और व्यापक पैमाने पर देष के युवाओं को इस ओर आकर्शित किया जा सकता है। सुषासन एक ऐसी ताकत है जो सबको षांति और खुषी देती है। लेकिन कोरोना का प्रभाव तो ऐसा कि स्टार्टअप फण्डिंग में गिरावट देखने को मिली। हालांकि आंकड़े बताते हैं कि मार्च 2020 भी 50 फीसद की गिरावट पहले ही दर्ज की जा चुकी थी। इससे पता चलता है कि निवेषकों का विचार स्टार्टअप्स को लेकर स्थायी नहीं बन पाता है या फिर इसकी संख्या तो बढ़ती है मगर गुणवत्ता का अभाव रहता है। राश्ट्रीय राजधानी दिल्ली में स्टार्टअप्स की स्थिति की पड़ताल करें तो पता चलता है कि यहां 2015 में 1657 स्टार्टअप्स स्थापित किये गये थे। 2018 आते-आते इनकी संख्या महज 420 रह गयी और 2019 की स्थिति तो और खराब रही जहां 142 स्टार्टअप्स को ही फण्डिंग प्राप्त हुई। गौरतलब है कि बंगलुरू जो स्टार्टअप्स राजधानी के रूप में जाना जाता है वहां कोविड के चलते कारोबार चैपट हो गया। इतना ही नहीं भारत के स्टार्टअप हब के रूप में बंगलुरू अपना स्थान भी खो दिया। अब यह तमगा एनसीआर गुड़गांव, दिल्ली, नोएडा को मिल गया। हालांकि बंगलुरू, मुम्बई और एनसीआर ने आधुनिक भारत के चेहरे को पूरी तरह बदल दिया है और इन षहरों को प्रसिद्ध ग्लोबल स्टार्टअप हब के तौर पर जाना जाता है। वहीं पुणे, हैदराबाद, अहमदाबाद और कोलकाता जैसे षहरों को उभरते स्टार्टअप हब के तौर पर गिना जा सकता है। फिलहाल स्टार्टअप क्षेत्र में अब एक नई ऊर्जा आ गयी है और कोरोना जितना दूर होगा सुषासन उतना समीप होगा साथ ही कारोबार का मार्ग भी उतना ही सरपट दौड़ेगा। साल 2021 की पहली छमाही में भारत को 15 और यूनिकाॅर्न मिले जो यह दर्षाता है कि हालात बदले हैं। जनवरी 2021 में प्रधानमंत्री द्वारा एक हजार करोड़ के स्टार्टअप इण्डिया सीड फण्ड की घोशणा भी कमजबूती का काम कर सकती है। जाहिर है स्टार्टअप इण्डिया, नवाचार और रोज़गार दोनों का बड़ा आधार है। ऐसे में आत्मनिर्भर भारत और सुषासन से भरे भारत की संभावना भी इसमें निहित देखी जा सकती है।
(दिनांक : 9 सितम्बर, 2021)
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
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