जब भी सत्र की शुरुआत होती है तब इस बात की सुगबुगाहट जोर पकड़ती है कि क्या देष के नागरिकों की उम्मीदों पर माननीय खरे उतरेंगे। पिछले साल के मानसून सत्र पर कोरोना की काली छाया थी। बावजूद इसके आंकड़े यह बताते हैं कि 167 फीसद कार्य उत्पादकता के साथ लोकसभा ने इतिहास रच दिया था और माना गया कि लोकसभा के किसी भी सत्र में यह उपजाऊ सत्र रहा है। मगर हालिया मानसून सत्र जो 19 जुलाई से प्रारम्भ होकर 11 अगस्त को समाप्ति लिया है उसके हालात काफी अलग और निराष करने वाले रहे हैं। कुल 96 घण्टे काम-काज के लिये तय थे जिसमें 74 घण्टे से अधिक समय तक हंगामा ही रहा। हालांकि अनुमान के मुताबिक 20 विधेयकों को मंजूरी मिली। इस सत्र में 66 तारांकित प्रष्नों के मौखिक उत्तर दिये गये। गौरतलब है कि तारांकित वे प्रष्न होते हैं जिनका उत्तर तत्काल और मौखिक दिया जाता है। 60 प्रतिवेदन स्थायी समितियों द्वारा प्रस्तुत किये गये और 22 मंत्रियों ने वक्तव्य दिये। राज्यसभा की पड़ताल बताती है कि यहां काम-काज के लिए 98 घण्टे निर्धारित थे मगर यहां भी हंगामा लोकसभा से अधिक बरपा है जिसके चलते 76 घण्टे विरोध में चले गये। हालांकि इस बीच यहां 19 बिल पारित हुए जिसमें अंतिम बिल राज्यों को ओबीसी सूची बनाने से जुड़ा विधेयक था। प्रतिषत की दृश्टि से देखें तो लोकसभा में 22 और राज्यसभा में 28 फीसद काम हुआ है। पूरे सत्र के दौरान कोई ऐसा दिन नहीं था जब हंगामा न हुआ हो और स्पीकर से लेकर सभापति को व्यवस्था बनाये रखने को अतिरिक्त ऊर्जा न लगानी पड़ी हो। सरकार और विपक्ष दो ऐसे संदर्भ हैं जो साथ न रहकर भी हमेषा साथ रहते हैं। मगर बेहद मजबूत सरकार और पिछले सात दषक में सबसे कमजोर विपक्ष के सामने जिस तरह मोदी सरकार बेबस होती है उसे पचाना कठिन हो जाता है।
गौरतलब है कि पिछले साल 2020 में 14 सितम्बर से 24 सितम्बर के बीच 10 दिवसीय मानसून सत्र में 25 विधेयक पारित किये गये थे साथ ही कई और नये रिकाॅर्ड बने। 21 सितम्बर को तो लोकसभा की उत्पादक क्षमता 234 फीसद आंकी गयी जो अब तक के किसी भी सत्र के एक दिन की कार्यवाही में सर्वाधिक है। इसके पहले 8वीं लोकसभा के तीसरे सत्र में लोकसभा की कार्य उत्पादकता 163 फीसद रही है। हालांकि कोरोना के उस दौर में सत्र को 1 अक्टूबर तक चलना था मगर इसे बीच में ही खत्म कर दिया गया। हंगामा से उक्त सत्र भी खाली नहीं था मगर इस बार जिस तरह समस्यायें बढ़ी हैं उससे लगता है कि सरकार की ओर से कई अच्छे कदम की कमी रही है। लोकतंत्र में हमेंषा सरकार की वाह-वाही को उचित करार नहीं दिया जा सकता और बार-बार विपक्ष को हाषिये पर रखना भी न्यायोचित नहीं होता। सरकार जनहित को सुनिष्चित करती है तो विपक्ष कमी की ओर ध्यान दिलाता है। मगर जब सरकारें विपक्ष को नजरअंदाज करती हैं या अड़ियल रवैया अपनाती हैं या फिर विपक्ष बेवजह राजनीति की फिराक में हो-हंगामा खड़ा करता है तो हर परिस्थिति में नुकसान में जनता ही होती है। संसद सत्र देष की उम्मीद होता है और उम्मीदों को टूटने न देने की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा सरकार की होती है। सरकार यह कहकर नहीं बच सकती कि विपक्ष ने कुछ करने नहीं दिया। लोकतंत्र कोई एक पक्षीय व्यवस्था नहीं है बल्कि यह बहुपक्षीय के साथ बहुधारा लिये होती है और इसी के बीच जनता का हित भी होता है जाहिर है सवाल जितने होंगे सरकार की जवाबदेही उतनी ही बढ़ेगी और इससे न केवल संसद के प्रति जनता का भरोसा बढ़ेगा बल्कि सत्र में बहुत कुछ होता दिखेगा भी। हालांकि इस सत्र में हंगामा बरपा जरूर है मगर काम-काज के लिहाज़ से जो बिल पारित हुए हैं उसे देखते हुए स्थिति संतोशजनक ही कही जायेगी।
कामकाज के लिहाज से देखा जाय तो पहली लोकसभा (1952 से 1957) में 677 बैठकें हुई थी। 5वीं लोकसभा (1971 से 1977) में 613 जबकि 10वीं लोकसभा (1991 से 1996 ) में यह औसत 423 का था। मोदी षासनकाल से पहले 15वीं लोकसभा (2009 से 2014) में 345 दिन ही सदन की बैठक हो पायी। 16वीं लोकसभा की पड़ताल ये बताती है कि यहां बैठकों की कुल अवधि 1615 घण्टे रही लेकिन अतीत की कई लोकसभा के मुकाबले यह घण्टे काफी कम नजर आते हैं। एक दल के बहुमत वाली अन्य सरकारों के कार्यकाल के दौरान सदन में औसत 2689 घण्टे काम में बिताये हैं लेकिन यहां बताना लाज़मी है कि काम इन घण्टों से ज्यादा महत्वपूर्ण है। हालांकि 16वीं लोकसभा में किस तरह काम किया, किस तरह के कानून बनाये, संसदीय लोकतंत्र में कैसी भूमिका थी, क्या सक्रियता रही और लोकतंत्र के प्रति सरकार का क्या नजरिया रहा इन सवालों पर यदि ठीक से रोषनी डाली जाये तो काम के साथ निराषा भी नजर आती है। लोकसभा के उपलब्ध आंकड़े यह बताते हैं कि मोदी षासन के पहले कार्यकाल के दौरान लोकसभा में कुल 135 विधेयक मंजूर कराये गये। जिसमें कईयों को राज्यसभा में मंजूरी नहीं मिली। हालांकि जीएसटी, तीन तलाक और सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण समेत कई फलक वाले कानून इसी कार्यकाल की देन है। अब 17वीं लोकसभा का दौर जारी है। रिपोर्ट 2024 में मिलेगा। समाप्त मानसून सत्र के अन्तिम दिन राज्यसभा में ओबीसी आरक्षण से जुड़ा 127वां संविधान संषोधन विधेयक 2021 सभी दलों की सर्वसम्मति से पारित हो गया। यह बिल एक बड़े समुदाय को प्रतिबिम्बित करता है जो षायद आने वाले दिनों में 50 फीसद के आरक्षण की सीमा को भी फेरबदल कर सकता है साथ ही भारतीय राजनीति में वोट की दृश्टि से भारयुक्त हो सकता है हालांकि अभी राश्ट्रपति की अनुमति मिलना बाकी है। फिलहाल सत्र में कामकाज के घटते घण्टे और बरपते हंगामों संसद सत्र को बचाने की जिम्मेदारी भी सरकार और विपक्ष दोनों की है। ऐसे में इस वर्श का षीत सत्र कई बकाया को मुकाम देगा साथ ही जनता के हित में कहीं अधिक कारगर होने की उम्मीद रखने में कोई हर्ज नहीं है।
(12 अगस्त, 2021)
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
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