Wednesday, February 17, 2021

संतुलन और सुशासन पर कितना खरा बजट

बजट देष का आर्थिक आईना होता है जो सभी वर्गों को अपनी-अपनी सूरत निहारने का अवसर देता है। चाहे कृशि क्षेत्र हो, सेवा हो या फिर उद्योग क्षेत्र हो सभी के ताने-बाने से यह युक्त होता है। इतना ही नहीं हर वर्श का बजट सुषासन की एक नई पटकथा लिए रहता है पर जमीन पर कितना खरा उतरता है इसकी पूरी गाथा समझने के लिए विगत् वर्शों की बजटीय स्थिति और उसके क्रियान्वयन से आंकलन किया जा सकता है। प्रासंगिक परिप्रेक्ष्य यह है कि साल 2020 पूरी तरह कोविड-19 का षिकार रहा ऐसे में 2021 सभी की उम्मीदों से दबा हुआ है। इसी के चलते इस बार के बजट से चोटिल अर्थव्यवस्था को मरहम के रूप में देखा जा रहा है। चूंकि स्वास्थ पर गाज ज्यादा गिरा है ऐसे में सरकार ने बजट में स्वास्थ और कल्याण क्षेत्र के लिहाज़ से 2 लाख 23 हजार करोड़ से अधिक खर्च करने का साल 2021-2022 में इरादा जताया है। जो पिछले वित्त वर्श की तुलना में 137 फीसद अधिक है। गौरतलब है कि बजट के 6 स्तम्भ हैं जिसमें स्वास्थ व कल्याण, भौतिक संरचना, आकांक्षी भारत के लिए समावेषी विकास समेत नवाचार एवं अनुसंधान व षोध एवं विकास तथा न्यूनतम सरकार और अधिकतम षासन की परिकल्पना निहित है। एमएसएमई, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और मेक इन इण्डिया को बढ़ावा देकर रोज़गार और अर्थव्यवस्था दोनों को मजबूत करने का जहां प्रयास किया गया है वहीं 2024 तक 5 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था का मार्ग भी ढूंढने की भी कोषिष है। हालांकि पिछले कई बजट में ऐसी कोषिषें रहीं हैं पर रोज़गार की राह कभी भी समतल नहीं रहीं। तमाम प्रयासों के बावजूद रोज़गार के मोर्चे पर खरे उतरने की चुनौती सरकार के सामने बरकरार रही है। 

आत्मनिर्भर भारत बजट के केन्द्र में था। गौरतलब है आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना पिछले साल मई 2020 में आई थी साथ ही लोकल को वोकल की धारणा भी कोरोना काल में ही विकसित हुई। मई 2020 की 20 लाख करोड़ रूपए का राहत पैकेज की संलग्नता भी बजट में काफी हद तक मिश्रित दिखाई देती है। वायु प्रदूशण से मुक्ति के लिए बजट में 2 हजार करोड़ रूपए से अधिक का प्रावधान सहित रोड़ और इकोनोमिक काॅरिडोर, पूंजीगत खर्च, परिवहन पर व्यय, मेक इन इण्डिया पर जोर और आधारभूत ढांचा मजबूत करने का इरादा यहां झलकता है। बजट और सुषासन का गहरा नाता है। नियम भी यह कहता है कि संचित निधि यदि पूंजी से भरी है तो नीतियों को बनाना और उसे जमीन पर उतारना एक आसान विधा है। ऐसी स्थिति को लोक कल्याण से कहीं अधिक युक्त करार दिया जा सकता है जो सुषासन को परिभाशित करता है। देष में साढ़े छः लाख गांव हैं और यहां के बुनियादी विकास के लिए 40 हजार करोड़ रूपए व्यय करने की बात कही गयी जो विकास के लिहाज़ से कमतर है। दिल्ली की सीमा पर किसान व्यापक पैमाने पर आंदोलित है। जिन मण्डियों के खत्म होने का डर किसानों को सता रहा था इस बजट में यह संकेत मिल रहा है कि ऐसा डर वाजिब नहीं है। बजट में प्रावधान है कि एक हजार नई मण्डियां खोली जायेंगी जो इंटरनेट से कनेक्टेड होंगी अर्थात् ई-नैम को यहां बढ़ावा देने की बात है। न्यूनतम समर्थन मूल्य को बरकरार रखने का दावा बजट में दिखता है। लागत से डेढ़ गुना कीमत देने की बात यहां फिर दोहरायी गयी है और 2022 में आमदनी दोगुनी की बात भी बजट में गूंज रही है। गौरतलब है कि वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि सरकार किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है मगर एक हकीकत यह भी है कि किसान देष का बहुत बड़ा वोट बैंक है ऐसे में इस वर्ग को न तो नजरअंदाज किया जा सकता है और न ही नाराज़ किया जा सकता है। बावजूद इसके कथनी और करनी में अंतर रहा है। हर साल एक नया बजट आता है सभी को सपने दिखाता है मगर पूरा कितना होता है यह सवाल कहीं गया नहीं है। जिस तरह कोरोना में अर्थव्यवस्था चैपट हुई है उसे देखते हुए यह सब हो पायेगा संषय गहरा बना हुआ है। हालांकि दिसम्बर 2022 में एक लाख 15 हजार करोड़ और जनवरी 2021 में एक लाख 20 हजार करोड़ रूपए की जीएसटी की वसूली आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ता की ओर जाते दिखाई देती है। 

बजट से सुषासन को ही प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है मगर मध्यम वर्ग को इस बजट से कुछ खास मिला नहीं। टैक्स स्लैब ज्यों का त्यों बरकरार है उम्मीद की जा रही थी कि नौकरीपेषा और आम मध्यम वर्ग को टैक्स में राहत देकर सरकार उन्हें कोरोना की पीड़ा से कुछ मुक्त करेगी पर यह सब नहीं हुआ। इसमें कोई दो राय नहीं कि सभी को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती ऐसे में स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाला स्टार्टअप हो इस बजट में मजबूत करने का प्रयास दिखता है। उल्लेखनीय है कि कोरोना के समय में स्टार्टअप भी आर्थिक आभाव में काफी बंद हो गये थे। आर्थिक सर्वेक्षण यह बताते हैं कि साल 2011-2012 से लेकर 2017-2018 के बीच ढ़ाई करोड़ से थोड़े अधिक को नौकरी मिली है जो संगठित क्षेत्र से सम्बंधित है। फिलहाल इस बजट में सोना, चांदी जहां कस्टम ड्यूटी के कम होने से सस्ते होंगे वहीं मोबाइल पार्ट्स पर कस्टम ड्यूटी ढ़ाई फीसद बढ़ने से मोबाइल महंगे हो जायेंगे जबकि देष में मोबाइल का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है और इसकी जरूरत भी बढ़ी है इसके पीछे आॅनलाइन षिक्षा समेत सभी प्रकार के आॅनलाइन कारोबार देखे जा सकते हैं। जाहिर है यहां भी जनता की जेब थोड़ी ढ़ीली होगी। इस बजट की एक खास बात यह भी है कि उज्जवला योजना के तहत एक करोड़ और लाभार्थियों को जोड़ा जायेगा अभी तक 8 करोड़ लोग इस योजना का लाभ उठा रहे हैं। जम्मू-कष्मीर में गैस पाइपलाइन योजना की षुरूआत और लेह में केन्द्रीय विष्वविद्यालय का खोलना दोनों केन्द्रषासित एक सौगात देने का प्रयास है। मगर पेट्रोल और डीजल की बेतहाषा बढ़ती महंगाई पर बजट में कोई चर्चा नहीं की गयी। जबकि अनुकूलित प्रष्न यह है कि जब तक पेट्रोलियम पदार्थ आसमान छुंएगे तब तक आम जनता को महंगाई से षायद ही राहत मिले। इतना ही नहीं वन टैक्स, वन नेषन की बात कही जाती है मगर पेट्रोल व डीजल को इसके दायरे में लाना अभी मुमकिन नहीं हो पाया है। 

फिलहाल बजट कई प्रावधानों से भरा है जिसमें साइबर सुरक्षा से लेकर आंतरिक सुरक्षा का भाव भी देखा जा सकता है। बजट में वित्तीय घाटा बढ़ा हुआ है जो मौजूदा समय में 9.5 फीसद है। जिसे आगे 6.8 और 2025-26 तक 5 फीसद से कम पर लाया जाना तय किया गया। अर्थव्यवस्थाा के हालात को देखते हुए राजकोशीय घाटा होना लाज़मी है तत्पष्चात् बजटीय घाटा सुनिष्चित है। इनसे निपटना भी सरकार के लिए आने वाले वर्शों में बड़ी चुनौती होगी। सुषासन एक आर्थिक परिभाशा है जो बिना वित्त के समतल नहीं हो सकती है। आपदा कोश को 5 हजार करोड़ से बढ़ाकर 30 हजार करोड़ करना इस बजट की खूबी है जो सुषासन की राह को आने वाले दिनों में और चिकना करने के काम आयेगा। बीमारियों की रोकथाम बजट का सबसे बड़ा लक्ष्य है और आत्मनिर्भर भारत योजना के सांचे में इसे फिट करने का प्रयास किया गया जो कहीं उम्मीदों पर खरा व संतुलित उतरता है तो कहीं नाउम्मीद भी करता है।



डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

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