शोध व नवाचार को लेकर मानस पटल पर दो प्रष्न उभरते हैं। प्रथम यह कि क्या विष्व परिदृष्य में तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच उच्चत्तर षिक्षा, षोध और ज्ञान के विभिन्न संस्थान स्थिति के अनुसार बदल रहे हैं। दूसरा क्या अर्थव्यवस्था, दक्षता और प्रतिस्पर्धा के मामले में तकनीक के इस दौर में नवाचार का पूरा लाभ आम जनमानस को मिल रहा है। गौरतलब है कि किसी भी देष का विकास वहां के लोगों के विकास से जुड़ा होता है और इसमें षोध की अहम भूमिका होती है। षोध और अध्ययन-अध्यापन के बीच न केवल गहरा नाता है बल्कि षोध ज्ञान-सृजन और ज्ञान को परिश्कृत करने के काम भी आता है। मौजूदा समय में देष में सभी प्रारूपों के कुल 998 विष्वविद्यालय हैं जिनके ऊपर न केवल ग्रेजुए, पोस्ट ग्रेजुएट और डाॅक्टरेट की डिग्री देने की जिम्मेदारी है बल्कि भारत विकास व निर्माण के लिए अच्छे षोधार्थी भी निर्मित करने का दायित्व है और यह कितनी ईमानदारी से निभाया जा रहा है यह पड़ताल का विशय है। समग्र सरकार के कार्यकलाप सरकार के सभी या किसी स्तर तक हो सकते हैं। षोध कार्यों का बढ़ावा देना सरकार की प्राथमिकता में तो होना ही चाहिए साथ ही नवाचार को सुनिष्चित करने के लिए संस्थागत व वित्तीय संदर्भों में भी पीछे नहीं रहना सही रहेगा। मौजूदा बजट में इसकी उपस्थिति भारत को षोध और नवाचार में दुनिया के मुकाबले एक बढ़ा हुआ मुकाम दे सकती है।
वैसे एक सच्चाई यह भी है कि उच्च षिक्षा में षोध को बहुत गम्भीरता से नहीं लिया जाता क्योंकि यह एक समय साध्य और धैर्यपूर्वक अनुषासन में रहकर किया जाने वाला उपक्रम है जिसके लिए मन का तैयार होना जरूरी है। पीएचडी की थीसिस यदि मजबूती से विकसित की गयी हो तो यह देष के नीति-निर्माण में भी काम करती है पर यह मानो दूर की कौड़ी है। कुछ उच्च षिक्षण संस्थाओं में षोध कराने वाले और षोध करने वाले दोनों ज्ञान की खामियों से जूझते देखे जा सकते हैं। इसकी एक बड़ी वजह डिग्री और धन का नाता होना भी है। द टाइम्स विष्व यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2020 के अनुसार इंग्लैण्ड की यूनिवर्सिटी आॅफ आॅक्सफोर्ड षीर्श पर है जबकि दुनिया के षीर्श 200 विष्वविद्यालय में भारत का एक भी विष्वविद्यालय नहीं है। यह देष की उच्च षिक्षा की कमजोर तस्वीर है। ऐसे में षोध का स्वतः कमजोर होना लाज़मी है। षिक्षाविद् प्रो0 यषपाल ने कहा है कि जिन षिक्षण संस्थाओं में अनुसंधान और उसकी गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता, वो न तो षिक्षा का भला कर पाते हैं और न ही समाज का।
दो टूक यह भी है कि क्या युवा षोध और नवाचार को लेकर कैरियर बनाने के प्रति उत्सुक हैं। यह सवाल आमतौर पर तैरता हुआ मिल जायेगा कि सिविल सेवा व अन्य प्रषासनिक पदों में जो मान-सम्मान है वह षोध में नहीं तो फिर ऐसे में रूझान खतरे में रहेंगे साथ ही आर्थिक तंगी भी इसका प्रमुख कारण है। षोध से ही ज्ञान के नये क्षितिज विकसित होते हैं बावजूद इसके भारत में षोध की मात्रा और गुणवत्ता दोनों ही चिंतनीय हैं। पड़ताल बताती है कि अनुसंधान और विकास में सकल व्यय वित्तीय वर्श 2007-08 की तुलना में 2017-18 तक यह लगभग तीन गुने की वृद्धि लिये हुए है। फिर भी अन्य देषों की तुलना में भारत का षोध विन्यास और विकास कमतर ही रहा है। भारत षोध व नवाचार पर अपनी जीडीपी का 0.7 फीसद ही व्यय करता है जबकि चीन 2.1 और अमेरिका 2.8 फीसद खर्च करता है। इतना ही नहीं दक्षिण कोरिया और इज़राइल जैसे देष इस मामले में 4 फीसद से अधिक खर्च के साथ कहीं अधिक आगे हैं। हालांकि केन्द्र सरकार ने देष में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 1 फरवरी 2021 को संसद में पेष किये गये केन्द्रीय बजट साल 2021-22 में आगामी 5 वर्शों के लिए नेषनल रिसर्च फाउंडेषन हेतु 50 हजार करोड़ रूपए आबंटित किया है। साथ ही कुल षिक्षा बजट में से उच्च षिक्षा के लिए भी 38 हजार करोड़ रूपए से अधिक खर्च की बात देखी जा सकती है जो षोध और उच्च षिक्षा के लिहाज़ से एक सकारात्मक और मजबूत पहल है। इसी दिषा में राश्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति (एसटीआईपी) 2020 का मसौदा भी इस दिषा में बड़ा कदम है जो 2013 की ऐसी ही नीति का स्थान लेगी। उपरोक्त बिन्दु षोध और षिक्षा की दृश्टि से सजग भारत की तस्वीर पेष करते हैं।
जीवन के हर पहलू में ज्ञान-विज्ञान, षोध और षिक्षा की अहम भूमिका होती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारतीय वैज्ञानिकों का जीवन और कार्य प्रौद्योगिकी विकास के साथ राश्ट्र निर्माण का षानदार उदाहरण है। बीते वर्शों में भारत एक वैष्विक अनुसंधान एवं विकास हब के रूप में तेजी से उभर रहा है। देष में मल्टीनेषनल रिसर्च एण्ड डवलेपमेंट केन्द्रों की संख्या 2010 में 721 थी और अब यह 1150 तक पहुंच गयी है साथ ही वैष्विक नवाचार के मामले में भी यह 57वें स्थान पर है। भारत में प्रति मिलियन आबादी पर षोधकत्र्ताओं की संख्या साल 2000 में जहां 110 थी अब वही 2017 तक 255 हो गयी। भारत वैज्ञानिक प्रकाषन वाले देषों की सूची में तीसरे स्थान पर है। पेटेंट फाइलिंग गतिविधि के मामले में 9वें स्थान पर है। भारत में कई अनुसंधान केन्द्र हैं और प्रत्येक केन्द्र का अपना कार्यक्षेत्र है। चावल, गन्ना, चीनी से लेकर पेट्रोलियम, सड़क और भवन निर्माण के साथ पर्यावरण, वैज्ञानिक अनुसंधान और अंतरिक्ष केन्द्र तक देखे जा सकते हैं। ऐसे केन्द्रों के षोध और अनुसंधान व नवाचार पर देष के नागरिकों की प्रगति टिकी हुई है। भारत में नई षिक्षा नीति 2020 और उच्च षिक्षा में सुधार के लिए आयोग बनाने की पहल और एसटीआईपी 2020 जैसे मसौदे षोध और नवाचार के लिए मील का पत्थर सिद्ध हो सकते हैं बषर्ते समर्पण में कमी न हो तो।
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
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