Sunday, February 28, 2021

एक-दूसरे के धुर विरोधी महंगाई और सुशासन

वास्तव में बाजार हमारी समुची अर्थव्यवस्था का दर्पण है और इस दर्पण में सरकार और जनता का चेहरा होता है। जाहिर है महंगाई बढ़ती है तो दोनों की चमक पर इसका असर पड़ता है। खास यह भी है कि अगर महंगाई और आमदनी के अनुपात में बहुत बड़ा अंतर आ जाये तो जीवन असंतुलित होता है। कोविड-19 के चलते कमाई पर पहले ही असर पड़ चुका है और अब महंगाई किसी दुर्घटना से कम नहीं होगा। वैसे महंगाई को कई समस्याओं की जननी कहा जाये तो अतार्किक न होगा। रिज़र्व बैंक आॅफ इण्डिया का अनुमान है कि जनवरी से मार्च के बीच खुदरा महंगाई दर 6.5 फीसद तक आ सकती है और 1 अप्रैल से षुरू नये वित्त वर्श की पहली छमाही पर 5 से 5.4 के बीच इसके रहने का अनुमान है। गौरतलब है कि रिज़र्व बैंक का यह पूरा प्रयास रहता है कि मुद्रा स्फीति 2 से 6 प्रतिषत के बीच ही रहे ताकि महंगाई काबू में रहे और आर्थिक सुषासन को प्राप्त करना आसान हो। मगर इसे प्राप्त करने की चुनौती हमेषा रही है। गौरतलब है कि सुषासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है और इसका पूरा ताना-बाना लोक सषक्तिकरण से है। महंगाई का मतलब सब्जी, फल, अण्डा, चीनी, दूध समेत तमाम रोज़मर्रा की उपयुक्त वस्तुओं का पहुंच से बाहर होना। हांलाकि अभी असर इतना गहरा नहीं हुआ मगर इसी में षुमार प्याज तो इन दिनों न केवल व्यवस्था को चुनौती दे रही है बल्कि जनमानस को भी रूला रही है।

बेषक देष की सत्ता पुराने डिजाइन से बाहर निकल गयी हो पर महंगाई पर काबू करने वाली यांत्रिक चेतना से अभी भी वह पूरी तरह षायद वाकिफ नहीं है। पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस महंगाई के आसमान में गोते लगा रहे हैं। तेल की महंगाई के लिए प्रधानमंत्री पिछली सरकारों को ऊर्जा आयात पर निर्भरता को कम न करने के चलते मध्यम वर्ग पर बोझ की बात कह रहे हैं। हांलाकि यह पड़ताल का विशय है कि इसकी हकीकत क्या है। तेल ने खेल तो बिगाड़ा है और प्याज ने जबरदस्त उछाल लिया है। यह संकेत है कि सुषासन का दावा कमोबेष यहां खोखला हुआ है। माना जा रहा है कि महाराश्ट्र में बेमौसम बरसात होने और ओले पड़ने के चलते प्याज की फसल खराब हो गयी। अमूमन ऐसा पहली बार नहीं है प्याज की महंगाई के पीछे यह वजह अक्सर सामने आती रही है। एषिया की सबसे बड़ी प्याज मण्डी महाराश्ट्र के नासिक के पास लासलगांव मण्डी है यहां की कहानी यह है कि सप्ताह भर के भीतर प्याज का औसत थोक भाव 970 रूपए कुंतल से 4200 से 4500 प्रति कुंतल के रिकाॅर्ड स्तर पर पहुंच गयी। गौरतलब है कि लासलगांव से देष भर में प्याज भेजा जाता है। अब जब वहीं यह महंगा हो गया तो रसोई पर इसका असर स्वाभाविक है। देष के कई हिस्सों में यह कम ज्यादा उछाल ले चुकी है। जो प्याज कुछ दिन पहले 20 से 30 रूपया प्रति किलो थोक भाव में बिक रही थी अब वह खुदरा बाजार में 50 से 60 रूपया प्रति किलो का स्वरूप ग्रहण कर चुकी है। प्याज के बिना काम चलता नहीं है और प्याज पर सियासत न हो ऐसा होता नहीं और जब तेल ने भी खेल बिगाड़ दिया हो तब तो सरकार के सुषासन पर बड़ा सवाल उठना लाज़मी है। 

महंगाई और सुषासन एक दूसरे के धुर विरोधी हैं। सुषासन जनता को सषक्त बनाती है जबकि महंगाई जनता को जमींदोज करती है। देष की आर्थिक स्थिति कितनी ही व्यापक और सुदृढ़ क्यों न हो। महंगाई से जनता की कमर टूटती ही है। गैरसंवेदनषीलता के कटघरे में भी यह सरकार को खड़ा करती रही है जबकि सुषासन से युक्त सरकारें महंगाई जैसी डायन से हमेषा जान छुड़ाने की फिराक में रहती हैं पर ऐसा हो नहीं पाता है। फिलहाल भोजन महंगा हो गया है और आमदनी अभी बेपटरी ही है। सरकार को तेल के साथ प्याज से भी निपटना होगा। कोरोना की मार झेल चुकी जनता पर कोई और मार न पड़े इसके लिए सरकार को माई-बाप के रूप में काम करना ही होगा। हम लोकतंत्र से बंधे हुए हैं और सरकार में भरपूर आस्था होती है। ऐसे में राहत देना सरकार की जिम्मेदारी है। कुछ आर्थिक विषेशज्ञों की मानें तो आने वाले महीनों में कार, घर या निजी ऋण के ब्याज की दरों में कटौती की जायेगी। असल में देष में कारोबार और बेरोज़गार को व्यापक पैमाने पर काम की आवष्यकता है। सारी फंसाद की जड़ कमाई का कम होना है और महंगाई आ जाये तो यह चैतरफा वार करती है। कोरोना काल में देष का घरेलू व्यापार अपने सबसे खराब दौर से गुजर चुका है और रिटेल व्यापार पर भी चारों तरफ से बुरी मार पड़ी। देष भर में लगभग 20 प्रतिषत दुकानों को बंद करने पर मजबूर होना पड़ा। फलस्वरूप बड़ी संख्या में बेरोज़गाड़ी बढ़ी। सबसे ज्यादा नुकसान अप्रैल 2020 में हुआ था। वैसे 2020 के वित्त वर्श की पहली छमाही में भारतीय खुदरा व्यापार को लगभग 19 लाख करोड़ रूपए के व्यापार घाटे का सामना करना पड़ा था। फिलहाल सबका साथ, सबका विकास और सबका विष्वास कायम रखने के लिए सरकार को महंगाई से मुक्ति और सुषासन से भरी थाली परोसने की कवायद करनी ही होगी। 


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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