Wednesday, July 25, 2018

स्विस बैंक के काले धन पर सफेद सियासत

जब किसी एक बिन्दु पर संदेह गहराने लगे और सरकार सही जवाब की तलाष में काफी कुछ दांव पर लगा दे तो समझिये मुद्दा गरम हो चला है और मामला काले धन से जुड़ा हो तो गरम ही नहीं मुद्दा उबाल मारने लगता है। इन दिनों भारत की सियासत में सत्ता और विपक्ष के बीच ऐसी ही कुछ स्थिति बनी है। काले धन के मुद्दे को हवा देने में जुटी कांग्रेस को उल्टे सत्ता पक्ष ने ही कुछ इस तरह घेर लिया कि उसकी हवाईयां उड़ने लगी। सरकार का दावा है कि स्विट्जरलैण्ड से आधिकारिक जानकारी मंगा कर 2016 के मुकाबले 2017 में स्विस बैंकों में भारतीयों का राषि जिसमें लोन व डिपोज़िट खाते में 34.5 फीसद की कमी हुई जबकि साल 2013 से 2017 के बीच व्यक्तिगत या काॅरपोरेट खाते के माध्यम से स्विस बैंकों में रखी जाने वाली राषि में 80.2 फीसदी की कमी आयी है। सरकार की ओर से यह बयानबाजी इसलिये गले नहीं उतर रही है क्योंकि बीते जून के आखिर में स्विस नेषनल बैंक के हवाले से यह कहा गया कि 2017 में स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा राषि में 50 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर विपक्ष ने सरकार को घेरने का प्रयास किया था जिस पर सरकार ने ऐसा नहले पर दहला चला है कि सभी के होष पुख्ता हो गये हैं। दो तरह के बयानों के चलते देष में एक भ्रामक स्थिति पैदा हो गयी है। मौजूदा वित्त मंत्री पीयूश गोयल जिस तरह आत्मविष्वास से भर कर विपक्ष को काले धन का चित्र दिखा रहे हैं उससे किसी का भी चष्मा धुंधला हो सकता है। सवाल यह है कि जून में जारी रिपोर्ट सही है या फिर सरकार ने जो अधिकारिक जानकारी मंगाई है वह पुख्ता है। अभी भी स्थिति भ्रम में है। आम तौर पर या तो ऐसे मुद्दे वक्त के साथ अभिरूचि के विशय नहीं रह जाते या फिर लोग इसे झमेला मान कर आगे बढ़ जाते हैं।
इसमें कोई दुविधा नहीं कि 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर सत्ता और विपक्ष सियासी चाल चलने में लग गये हैं। राफेल और काले धन को विपक्ष बड़ा मुद्दा बनाना चाहता है जबकि सरकार दोनों मामले में अपनी नाक ऊंची रखना चाहती है। सरकार यह भी कह रही है कि स्विस बैंक का सारा पैसा काला धन नहीं है पर यह कौन बतायेगा कि कितना काला और कितना सफेद है। इसका आंकड़ा तो सही मायने में सरकार के पास भी नहीं। जब मोदी सरकार सत्ता में आयी थी तो स्विस बैंक में जमा राषि के मामले में भारत 61वें स्थान पर था। 2015 में यह 75वें स्थान पर चला गया, साल 2016 में काला धन जमा की राषि में 44 फीसदी की घटोत्तरी बतायी गयी जिसके परिणामस्वरूप भारत 88वें स्थान पर खिसक गया। परन्तु 2017 में 50 फीसदी बढ़त के साथ अब इसकी पोजिषन 73वें पर है जबकि सरकार मोदी षासनकाल के पूरे अनुपात को 80 फीसदी काले धन की जमा में गिरावट बता रही है। गौरतलब है कि इस मामले में इंग्लैण्ड पहले नम्बर पर और अमेरिका दूसरे नम्बर पर आता है जबकि पड़ोसी पाकिस्तान 72वें स्थान पर है। काला धन विरोधी हो या सत्ताधारी दोनों को षूल की तरह चुभ रहा है पर इससे मुक्ति कैसे मिले राह किसी के पास नहीं है। हालांकि 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री मोदी षपथ लेते ही काले धन पर एक एसआईटी गठित की थी। उसी साल 20 नवम्बर को आॅस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में होने वाले जी-20 सम्मेलन में काले धन का मुद्दा जोर-षोर से उठाया जिस पर अमेरिका, रूस और चीन समेत सभी देषों की रजामंदी भी थी। मोदी का यह प्रयास काफी सराहनीय था। वैष्विक मंच पर काला धन और आतंक के मामले में मोदी ने हर बार बात उठायी है पर अभी उसका पूरा लाभ काले धन के मामले में मिल नहीं पाया। बीते वर्शों तय हुआ था कि जनवरी 2019 से स्विस बैंक जमा धन पर जानकारी आदान-प्रदान करने लगेगा जिसमें अभी थोड़ा वक्त बाकी है। 
सरकार चतुर होती है यह आरोप लगाना कोई दुश्कर कृत्य नहीं है। काला धन को एजेण्डे में षामिल कर मोदी 2014 में सत्ता के गलियारे तक पहुंचे थे कुर्सी भी मिली और सत्ता का अंतिम वर्श भी चल रहा है पर काला धन अभी भी स्याह बना हुआ है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि इस मसले पर भारत के पास ठोस रणनीति का हो सकता है आभाव न रहा हो पर दूसरे देषों के साथ आर्थिक प्रतिपुश्टि व अन्तर्राश्ट्रीय कानून जरूर आड़े आया है। स्विस बैंक ने बाद में स्पश्ट किया कि भारत को 2018 तक सूचनाओं के आदान-प्रदान के मामले में इंतजार करना पड़ेगा। असल में काला धन की वापसी का मामला एक बेहतर सफेद नीति पर निर्भर है परन्तु सियासत में इसकी सम्भावना कम ही रहती है। सरकार ने जो आंकड़े दिये है उस पर पूरा भरोसा करना मुष्किल हो रहा है और राफेल डील के मामले में सरकार की सफाई सुनकर विपक्ष पर भी पूरा भरोसा करना मुमकिन नहीं है। कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि सियासतदान अवसर और दस्तूर देखकर अपनी राजनीति चमकाते हैं और ऐसे भ्रमों का सहारा लेकर जनता से वोट हथियाते हैं। यह बात कितनी वाजिब है कि जिस मोदी सरकार ने सौ दिन के भीतर काला धन लाने का वायदा किया आज चार साल से अधिक सरकार चलाने के बाद काला धन तो लाना छोड़िये उसका ठीक से हिसाब बताना भी मुष्किल हो रहा है। सरकार के कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूश गोयल स्विटजरलैण्ड की आधिकारिक जानकारी का हवाला देकर राहुल गांधी पर देष की छवि धूमिल करने का आरोप लगा रहे हैं जबकि राहुल गांधी स्विस नेषनल बैंक की जून में जारी रिपोर्ट का हवाला देकर ही सरकार को घेर रहे हैं। कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ पता करना इस समय तो मुष्किल है लेकिन भ्रम में सभी फंसे हैं यह साफ दिख रहा है। 
सब कुछ के बाद सवाल उठता है कि क्या सियासत के पथ को चिकना करने की फिराक में आंकड़ों में हेरफेर किया जा सकता है। राहुल गांधी विपक्ष के नेता के रूप में ब्राण्ड बनने की फिराक में है। कांग्रेस भी उन्हें मोदी के मुकाबले इसी रूप में पेष करने की कवायद में आ चुकी है। बीते 20 जुलाई को अविष्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का भाशण और बाद में प्रधानमंत्री मोदी के भाशण को लेकर बड़ी तुलना हो रही है। लगभग यह संकेत मिल चुका है कि 2019 का चुनाव राहुल बनाम मोदी हो सकता है। यदि ऐसा है तो राहुल गांधी मुख्य विपक्षी होने के नाते सरकार पर जो आरोप लगायेंगे उसका जवाब दिये बिना सरकार बच नहीं सकती। षायद यही वजह है कि अविष्वास प्रस्ताव के दिन दर्जनों मुद्दों में से कहीं अधिक संवेदनषील राफेल और काले धन के मुद्दे पर सरकार विपक्ष का मुंह बंद कराना चाहती है। इसीलिए आनन-फानन में कांग्रेस के आरोप के उलट मजबूत जवाब के साथ पीयूश गोयल राहुल पर प्रहार कर रहे हैं। सवाल राहुल तक का नहीं है सवाल उन आर्थिक विषेशज्ञों का भी है जो ऐसे मामलों से ताल्लुकात रखते हैं। भले ही सियासत में तेवर के साथ बात कह कर मुद्दे को रफा-दफा कर दिया जाय पर वोटरों में यदि भ्रम चला गया तो यह किसी के लिये भी बड़ा नुकसान कर सकता है। किसानों की समस्या और युवाओं में व्याप्त बेरोजगारी समेत कई ऐसी प्रमुख आधारभूत समस्याएं उफान मार रही हैं जिसे लेकर जनमानस सरकार से निराष भी हैं। जवाबदेही सरकार की है कि सबके लिये सही रास्ता निकाले यदि भ्रम है तो भी इसको दूर करे। केवल सांख्यिकीय चेतना में उलझाकर बात को इतिश्री नहीं माना जा सकता। इसके लिये अच्छी कोषिष और सुन्दर सरकार का स्वरूप दिखाना होगा। यह तभी होगा जब कम से कम काले धन पर लोगों के स्याह मन को सरकार उजला कर देगी न कि उलझा कर वोट का हथियार बनाती रहेगी।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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