Wednesday, July 25, 2018

पाकिस्तान में चुनाव पर नाउम्मीद भारत

बीते 25 जुलाई को पाकिस्तान में चुनाव सम्पन्न हुआ जिसके नतीजे आने बाकी हैं। षायद कई दषकों के बाद यह पहला अवसर होगा जब चुनाव को लेकर न तो भारत उत्साहित है और न ही नई सत्ता से कोई उम्मीद रखता है। इसके पीछे बरसों से पाकिस्तान से चल रहे खराब रिष्ते तो हैं ही साथ ही एक वजह यह भी है कि पाकिस्तानी सेना के इषारे पर यहां बहुत कुछ हो रहा है। वैसे साफ-साफ देखा जाय तो जेल काट रहे पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ षरीफ और पूरे पाकिस्तान में हंगामा काटने वाले क्रिकेटर से राजनेता बने तहरीक-ए-इंसाफ के इमरान खान के बीच कांटे की टक्कर है। माना तो यह भी जा रहा है कि यदि इमरान खान सत्ता में आते हैं तो भारत से अच्छे सम्बंध मुष्किल में रहेगा इसका एक बड़ा कारण इमरान के साथ खड़ी पाकिस्तानी सेना को देखा जा सकता है। पाकिस्तान की सत्ता में सेना, आईएसआई समेत आतंकियों का घोर दखल हमेषा से रहा है। अब तो आतंकी सरगना हाफिज़ सईद भी चुनावी मैदान में है। सेना की दखलअंदाजी किसी से छुपी नहीं है। यहां की नीतियों पर इसका पूरा प्रभाव दिखता भी है। दो टूक यह भी है कि पाकिस्तान में इस बार का चुनाव आषंका से भी ग्रस्त है और चिंता से भी। नवाज़ षरीफ पहले भी आरोप लगा चुके हैं कि इमरान के साथ सेना खड़ी है और इमरान खान बरसों से नवाज़ षरीफ की सत्ता उखाड़ने के लिये इस्लामाबाद की सड़कों पर कई बार ताण्डव कर चुके हैं। इमरान ने षरीफ का जितना लानत-मलानत किया षायद ही किसी और ने ऐसा किया हो। देखा जाय तो दोनों के बीच सियासी दुष्मनी बरसों पुरानी है और इस बार के चुनाव में टक्कर इन्हीं के बीच मानी जा रही है। हालांकि प्रत्यक्ष रूप से नवाज़ षरीफ चुनाव में उपलब्ध नहीं है पर उनके भाई षहबाज़ षरीफ ताल ठोंक रहे हैं। गौरतलब है कि चुनाव से ठीक पहले इंग्लैण्ड से सजायाफ्ता नवाज़ षरीफ ने एंट्री मारकर इमरान का खेल भी काफी बिगाड़ दिया है अन्यथा इमरान की गद्दी लगभग तय थी। 
पाकिस्तान में सम्पन्न चुनाव को लेकर अटकलों का बाजार इसलिए भी गरम है क्योंकि इस सियासत का पाक के अंदर और बाहर कई मायने हैं। एक तरफ पाकिस्तान के भीतर बेलगाम आतंक को समाप्त करना नई सरकार की चुनौती होगी तो दूसरी तरफ भारत के साथ नये सिरे से कूटनीति भी करवट लेगी। हालांकि इस मामले में भारत का उत्साह फीका है क्योंकि पाकिस्तान की लगभग सरकारों ने नाउम्मीदी ही दी है। अमेरिका का दबाव पाकिस्तान पर इन दिनों दो तरफा है एक आतंक के खात्मे को लेकर तो दूसरे आर्थिक प्रतिबंध के चलते उसकी समस्या गहरा गयी है। पाकिस्तान में गरीबी, बेरोज़गारी और बीमारी का खुल्लम-खुल्ला खेल देखा जा सकता है। भारत से दुष्मनी निभाने की फिराक में पाकिस्तान अपने को सदियों पीछे धकेल चुका है। इतना ही नहीं बीते तीन दषकों से पाक अधिकृत कष्मीर समेत करांची और लाहौर में तो आतंकियों के बड़े-बड़े विष्वविद्यालय खोल दिये गये। आन्तरिक कलह से भी वह इतना जूझ रहा है कि ब्लूचिस्तान अलगाव की कगार पर है जबकि पाक अधिकृत कष्मीर में इस्लामाबाद के नारे लगते हैं और वे भी पाक की जलालत से मुक्ति चाहते हैं। मौजूदा स्थिति में तो पाकिस्तान तीन धड़ों में बंटा दिखता है। चीन का व्यापक पैमाने पर कर्जदार बना पाकिस्तान इन दिनों तो मानो पूरी दुनिया से ही कटा हो। हालांकि इस मामले में मौजूदा भारत सरकार की बड़ी भूमिका है। दुनिया के मंचों पर प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान में पनपे और पोशित किये गये आतंकवाद को लेकर जो आवाज उठायी उसका खामियाजा भी पाकिस्तान भुगत रहा है। बावजूद इसके भारत से छद्म युद्ध करने से वह बाज नहीं आ रहा है। बेहिसाब समस्याओं से ग्रस्त पाकिस्तान भारत को आंख दिखाता है जबकि पाक नागरिकों की हालत इतनी बद्तर है कि वहां बुनियादी समस्याओं से एक बड़ी जनसंख्या जूझ रही है। 10 करोड़ से अधिक मतदाता वाले पाकिस्तान में भले ही नई सरकार का आगाज हो रहा हो पर उसकी तकदीर तभी बदलेगी जब जब बदले की भावना और आतंक से विमुख होकर पाकिस्तान राह चुनेगा। षहबाज़ षरीफ कह रहे हैं वे भारत से अच्छा पाकिस्तान बनायेंगे यह बात अभी तक समझ में नहीं आयी कि ऐसा वे क्यों बोल रहे हैं। दो टूक यह भी है कि सरकार चाहे षरीफ घराने में जाये या इमरान के साथ हो या फिर गठबंधन की हो जिस मोड़ पर भारत-पाक रिष्ते हैं उसमें सुधार की गुंजाइष बहुत कम दिखाई देती है।
 सर्वे भी यह बता चुके हैं कि पूर्ण बहुमत की स्थिति से पाकिस्तान की सरकार दूर हैं। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ षरीफ को वहां की उच्चत्तम न्यायालय ने पार्टी और पद दोनों से बेदखल कर दिया है फिर भी यहां पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ (पीएमएलएन) को नवाज़ षरीफ की पार्टी के रूप में सम्बोधित करते हुए बात आगे कहने का प्रयास है कि तहरीक-ए-इंसाफ के अलावा बिलावल भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) भी पूरी ताकत लगाये हुए है। इतना ही नहीं आतंकी हाफिज़ सईद ने मिल्ली मुस्लिम लीग पार्टी बनाकर जिन लोगों को चुनाव के लिये संगठित किया था उन्हें पार्टी का रजिस्ट्रेषन न होने की स्थिति में अल्लाहो अकबर तहरीक (एएटी) से मैदान में उतार दिया। इसके अलावा पाकिस्तान के कई छोटे-मोटे राजनीतिक दल मसलन तहरीक-ए-लब्बैक पाक, अल्लाह-ए-सुन्नत, मजलिस-ए-अमल आदि भी चुनावी मैदान में है। ये सभी पार्टियां धार्मिक हैं जिनके आपसी टकराव के चलते चुनाव परिणाम आने तक स्थिति संवेदनषील रह सकती है। पूरे देष में 85 हजार मतदाता केन्द्र में लगभग 4 लाख सैनिक तैनात किये गये। यह पाकिस्तान के चुनाव के बीच हिंसा के डर से यह सब किया गया। पिछले 2013 के आम चुनाव में नवाज़ षरीफ की पीएमएल (एन) 126 सीटों के साथ सत्ता में आयी थी जबकि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी 31 स्थानों पर चुनाव जीता था और इमरान खान की पार्टी उम्मीद से कहीं अधिक पीछे थी। पाकिस्तान की नेषनल असेम्बली 342 सदस्यीय है हालांकि सीधे चुनाव 272 सीटों के लिये होता है जिसमें बहुमत का आंकड़ा 137 है। बाकी 70 सीटें महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिये आरक्षित की गयी हैं। खास यह भी है कि पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि जब किसी दल ने कार्यकाल पूरा किया। पाकिस्तान में एक बात यह भी रही है कि जो पंजाब जीतता है वही सत्ता में आता है। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस बार करांची से भी चैंकाने वाले नतीजे आ सकते हैं। हालांकि ब्लूचिस्तान, खैबर पख्तुनख्वा और सिंध के वोटरों में बेहद उत्साह की कमी भी देखी गयी। 
सवाल है कि पाक में नई सरकार की ताजपोषी के बाद क्या भारत से वह रिष्ता सही रखेगा। गौरतलब है कि मई 2014 में मौजूदा मोदी सरकार जब अपने षपथ ग्रहण के समय सार्क देषों के सभी प्रधानमंत्रियों को आमंत्रित किया था जिसमें नवाज़ षरीफ की उपस्थिति दिल्ली में थी। गौरतलब है कि जब नई सत्ता देष में आती है तो पड़ोसी देषों को भी बेहतर सम्बंध की उम्मीद होती है। भारत बीते चार सालों में पड़ोसियों की उम्मीदों पर पूरी तरह खरा उतरा पर पाकिस्तान इस मामले में फिसड्डी सिद्ध हुआ है। हद तो तब हो गयी जब 25 दिसम्बर 2015 को बिना किसी नियोजन के मोदी षरीफ से मिलने लाहौर गये और 1 जनवरी 2016 को पठानकोट में पाक प्रायोजित आतंकवादियों ने हमला कर दिया। यह कैसा सम्बंध है जब-जब भारत पाक पर भरोसा किया तब-तब उसे धोखा मिला। तीन दषकों का इतिहास ऐसे ही धोखाधड़ी से भरा है कभी सेना तो कभी आतंकियों के दबाव से युक्त पाक की सरकारें भारत के लिये जहर बोती रही और भारत बार-बार उम्मीद करता रहा। षायद यही वजह है कि सीमा के पार नई सरकार के गठन की कवायद चल रही है और भारत के भीतर उसे लेकर कोई खास चर्चा नहीं है। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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