Thursday, July 12, 2018

उछाल भरी अर्थव्यवस्था कितनी समवेशी!

फ्रांस को पछाड़ते हुए भारत विष्व की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। विष्व बैंक का 2017 का आंकड़ा तो यही कहता है कि भारत की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद पिछले साल के अंत में 2.597 खरब डाॅलर था जो फ्रांस की अर्थव्यवस्था 2.582 खरब डाॅलर से थोड़ अधिक है। इस ताजा रिपोर्ट से जो आंकलन दिखता है उससे लाजमी है भारत की रैंकिंग बढ़ी है और इसका मतलब है कि देष में कारोबार और निवेष का बेहतर माहौल होना चाहिए। गौरतलब है कि दुनिया के निवेषक अच्छी रैंकिंग वाले देषों में अपने पैसा लगाते हैं। जाहिर है जब विदेषी निवेष बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था की लम्बाई-चैड़ाई भी बढ़ेगी तो रोज़गार भी विस्तार लेगा। यह बात इसलिए भी जरूरी है क्योंकि देष 65 फीसदी युवाओं से भरा है जहां बेरोजगारी की लम्बी कतार है। आंकड़े के लिहाज़ से देखें तो भले ही भारत फ्रांस से आगे हो पर प्रति व्यक्ति आय में वह कई गुना पीछे है। हालांकि भारत की आबादी सवा सौ करोड़ से अधिक है जबकि फ्रांस की जनसंख्या 6 करोड़ से थोड़ी ही ज्यादा है। देष की जीडीपी बढ़ने से प्रति व्यक्ति आय में भी बढ़ोत्तरी होती है। इससे व्यय करने की क्षमता भी बढ़ती है और अन्ततः भारत में खरीदारी क्षमता की रैंकिंग भी बढ़ेगी। मांग बढ़ेगी तो वस्तुओं का निर्माण बढ़ेगा, आयात भी बढ़ सकता है और हो सकता है कि मेक इन इण्डिया को भी इसके माध्यम से बल मिले जिसके लिये बीते चार साल से प्रयास जारी है। दुनिया की छठी अर्थव्यवस्था बन चुका भारत इस मामले में तसल्ली कर सकता है कि उसकी अर्थव्यवस्था में उछाल है पर इस यथार्थ पर भी गौर करने की जरूरत है कि बुनियादी विकास और समावेषी अर्थव्यवस्था की क्या अवस्था है। जब अर्थव्यवस्था का मुंह चैड़ा होता है तो बुनियादी समस्याएं मसलन गरीबी, बेरोज़गारी, स्वास्थ व भुखमरी जैसी समस्या से देष को छुटकारा मिल जाना चाहिए पर भारत में ऐसा है नहीं।
पड़ताल बताती है कि दुनिया में अमेरिका सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देष है उसके बाद बारी चीन की आती है। जापान और जर्मनी क्रमषः तीसरे और चैथे नम्बर पर हैं और ब्रिटेन भारत से एक पायदान ऊपर पांचवें नम्बर पर है। इस लिहाज से फ्रांस के स्थान को भारत ने ले लिया और ब्रिटेन के समीप पहुंच गया। लंदन स्थित कन्सलटेन्सी फर्म सेंटर फाॅर इकोनोमिक्स एण्ड बिजनेस रिसर्च ने पिछले साल के आखिर में ही कहा था कि भारत जल्द ही जीडीपी के मामले में फ्रांस और ब्रिटेन दोनों को पीछे छोड़ देगा। मौजूदा समय में फ्रांस को पीछे धकेल दिया है। गौरतलब है कि ब्रिटेन की कुल जीडीपी 2.622 खरब डाॅलर है जो भारत से थोड़े ही ज्यादा है। इतना ही नहीं 2025 तक यह अनुमान है कि भारत की जीडीपी दोगुनी हो जायेगी। यदि ऐसा हुआ तो एषिया में एक बड़ी ताकत वाले देष के तौर पर उभार होगा। हालांकि पड़ोसी चीन के मुकाबले भारत की अर्थव्यवस्था कहीं अधिक पीछे है। चीन का जीडीपी 12.237 खरब डाॅलर है साफ है कि भारत अभी इससे मीलों दूर है। विष्व बैंक पहले यह उल्लेख किया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था नोटबंदी और जीएसटी के प्रभाव से उभर चुकी है और 2018 में विकास दर 7.3 रहने की उम्मीद है जो बिल्कुल उचित भी प्रतीत होता है। अंतर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश भी कह चुका है कि भारत साल 2018-19 में सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में उभरेगा। इस वर्श जीडीपी 7.8 फीसदी रहने की उम्मीद है। उपरोक्त परिप्रेक्ष्य यह दर्षाते हैं कि दुनिया में विकास दर से लेकर आर्थिक उत्थान की होड़ लगी हुई है पर यथार्थ यह भी है कि खुली और उछली अर्थव्यवस्था में किसका कितना आकर्शण है। भारत में विदेषी निवेष को लेकर मन माफिक परिणाम नहीं मिले। इसी वर्श फरवरी में मोदी भारत-दक्षिण कोरिया समिट में विदेषी निवेष का आह्वान करते हुए कहा था कि भारत विष्व की सबसे खुली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और दुनिया के साथ कारोबार करने के लिए तैयार है। यह बात इसलिए बार-बार कही जा रही है क्योंकि भारत में निवेष की गुंजाइष भी है और जरूरत भी है। निवेष के चलते यहां समोवषी विकास की अवधारणा को भी बल मिलेगा तब कहीं जाकर उछाल भरी अर्थव्यवस्था का पूरा अर्थ निकलेगा। 
जब प्रष्न आर्थिक होते हैं तो वे गम्भीर होते हैं ऐसा इसलिए क्योंकि सामाजिक उत्थान और विकास के लिए इस पहलू को सषक्त करना ही होता है। बीते कुछ वर्शों से आर्थिक वृद्धि को लेकर तरह-तरह की कोषिषें की जा रही हैं मसलन काले धन पर चोट, नोटबंदी और जीएसटी जैसे संदर्भ फलक पर देखे जा सकते हैं। कहां कितनी सफलता मिली बड़ा सवाल उठ सकता है पर विष्व बैंक की माने तो भारत इससे उभर चुका है। भारत के सामने चुनौतियां कई हैं एक तरफ दुनिया से आर्थिक होड़ लेना है तो दूसरी तरफ देष के भीतर बढ़ रही गरीबी, बेरोजगारी और बेहिसाब बीमारी से निपटना है। इसके अलावा भी षिक्षा समेत कई बुनियादी तत्व इसी धारा में षामिल है। जिसके चलते देष की अर्थव्यवस्था की राह कठिन भी हो जाती है और चुनौतीपूर्ण भी। डाॅलर के मुकाबले रूपया रिकाॅर्ड स्तर को पार कर गया है जबकि कच्चे तेल के बढ़ते दाम ने देष के चालू खाता घाटा को बढ़ा दिया है और अर्थव्यवस्था पर साईड इफैक्ट डाल रहा है। समावेषी अर्थव्यवस्था के लक्षण में बड़ी चुनौती किसानों की ओर से है कि उनकी फसलों की सही कीमत कैसे मिले। हालांकि सरकार ने बीते 4 जुलाई को 14 खरीफ की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य वृद्धि की घोशणा की है पर सवाल यह बने हुए हैं कि यह कितने वाजिब हैं। समर्थन मूल्य को लेकर सरकार पर स्वामीनाथन रिपोर्ट के आधार पर डेढ़ गुना की मांग पुरानी है और मोदी सरकार के सामने यह चुनौती अभी भी बाकी है। फसलों के उचित दाम न मिलने और अनाज का उचित प्रबंधन न हो पाना भी बड़ी चुनौती है। भारतीय बैंकों की हालत भी काफी खराब है और वे खराब कर्ज से दबे जा रहे हैं। मार्च 2018 तक खराब कर्ज का आंकड़ा सवा दस लाख करोड़ रूपये पहुंच गया। ज्वलंत प्रष्न यह है कि यदि बैंकों की हालत खराब होती गयी तो सरकार उसकी भरपायी टैक्स की रकम से करेगी जो कई अन्य प्रकार के विकास को चरमरा सकता है। 
विष्व बैंक की रिपोर्ट तो यह भी कह रही है कि जलवायु परिवर्तन भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ सकती है और इसके चलते जीडीपी को नुकसान हो सकता है। जलवायु परिवर्तन का यह बदलाव 2050 तक भारत की आधी आबादी के जीवन स्तर को प्रभावित कर देगा। भले ही अर्थव्यवस्था उछाल ले ले या कहीं अधिक खुली हो जाय पर यदि वह आस पास के चुनौतियों से मुक्त नहीं होती है तो कठिनाई जस की तस रह सकती है। फ्रांस से बेहतर अर्थव्यवस्था हो गयी है पर क्या मानव विकास सूचकांक में भी यही बात कह सकते हैं और बुनियादी विकास में भी क्या हम उतना उछाल ले चुके हैं। सम्भव है कि इसका जवाब न में ही मिलेगा। आर्थिक आंकड़े विकास का जरिया हो सकते हैं पर केवल आंकड़ों के आदर्षवाद से काम नहीं चलता है। जमीनी हकीकत यह है कि बढ़े विकास दर और दुनिया के मुकाबले आसमान छूती अर्थव्यवस्था का लाभ अभी जनता को मिलना बाकी है। 8वीं पंचवर्शीय योजना उदारीकरण के बाद की पहली योजना थी जिसका समावेषी रूप-रंग था। सभी में परिवर्तन भरने की षुभ इच्छा लिये यह पांच साल चली। कुछ हद तक  परिवर्तन भी किया होगा पर मंजिल पूरी तरह मिली नहीं है। कह सकते हैं कि अभी भी होमवर्क अधूरा है और जनता की प्यास भी बुझी नहीं है। हालांकि मोदी सरकार एड़ी-चोटी का जोर लगाये हुए है। भारत की अर्थव्यवस्था को वैष्विक एजेंसियों ने आये दिन मजबूत करार दिया है इस आधार पर आषा कर सकते हैं कि ये देष के जनमानस को भी मजबूत करने के काम आयेगी। 



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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