Monday, July 23, 2018

फायदे में सरकार पर विपक्ष को क्या मिला !

बीते 20 जुलाई को 11 घण्टे की लम्बी गरमागरम बहस के बाद विपक्ष द्वारा लाया गया अविष्वास प्रस्ताव फिलहाल औंधे मुंह गिर गया। प्रस्ताव के पक्ष में 126 मत और विपक्ष में 325 मत पड़े। रोचक यह है कि परिणाम तय था पर सदन में मात्र एक जिद को पूरा करना था। आष्चर्य तो इस बात पर है कि विपक्ष को जब मालूम था कि उसकी संख्या बल सत्ता पक्ष के मुकाबले न्यून है तो फिर अविष्वास प्रस्ताव लाया ही क्यों गया। सम्भव है कि विरोधी इस बहाने 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर अपनी ताकत और एकजुटता दिखाना चाह रहा था लेकिन मात्र 126 की संख्या के साथ यहां भी वे उतने सफल नहीं दिख रहे हैं। बीजू जनता दल और टीआरएस (तेलंगाना राश्ट्र समिति) अविष्वास प्रस्ताव पर मतदान के दौरान अनुपस्थित रही जिससे परोक्ष रूप से सरकार को फायदा हुआ। हालांकि एनडीए के घटक षिवसेना का भी सदन में न होना सरकार से लम्बे समय से चल रही तल्खी बरकरार दिखाई देती है लेकिन सत्ता पक्ष को एआईडीएमके के 37 लोकसभा सदस्यों का साथ मिलने से राजनीतिक गणित कुछ और इषारा करने लगी है। गौरतलब है कि एआईडीएमके एनडीके का अंग नहीं है जबकि बीजद और टीएसआर दूरी बनाकर यह इषारा कर रहे हैं कि केन्द्र में सरकार किसी की हो बिगाड़ नहीं रखेंगे। 
वैसे अविष्वास प्रस्ताव पर दो टूक कहा जाय तो यह दिन में राहुल बनाम मोदी था जबकि रात में मोदी बनाम राहुल हो गया था। राहुल गांधी प्रधानमंत्री की फिराक में हैं इसमें कुछ गलत भी नहीं है इसे तो देष की जनता कोे तय करना है। अविष्वास प्रस्ताव के दिन भाशण देते समय राहुल का विष्वास बढ़ा हुआ दिखाई दिया था। बोलने वाले कई दलों से दर्जनों थे पर उन्होंने यह जताया कि मुख्य विपक्षी की भूमिका में कांग्रेस ही है। महागठबंधन के नेता राहुल होंगे। आनन-फानन में इसका निर्णय बीते 22 जुलाई को भी हो चुका है और साफ किया गया है कि कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री का चेहरा राहुल होंगे और समान विचारधारा वाले दलों से समझौता करके कांग्रेस चुनाव लड़ेगी। अब यह पुख्ता हो जाता है कि अविष्वास प्रस्ताव के बहाने राहुल गांधी को मोदी के मुकाबले पेष करना था। जाहिर है 2019 का चुनाव राहुल बनाम मोदी तो होगा पर फायदा राहुल गांधी को मिलेगा अभी कहना दूर की कौड़ी है। राहुल गांधी ने सदन में कई उम्दा मुद्दे उठाये जिसमें किसान, बेरोजगार, भागीदार, विकास और राफेल सहित कई संवेदनषील हैं। जिसे लेकर सरकार बच नहीं सकती पर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाशण में जिस तरह डेढ़ घण्टा बोले उससे यही लगा कि विपक्ष अपनी ही चाल में कुछ हद तक फंस गया। भारी-भरकम आंकड़ों के साथ मोदी ने अविष्वास प्रस्ताव के बहाने देष को एक बार फिर बता दिया कि देष को उनकी क्यों जरूरत है। जबकि राहुल गांधी द्वारा उठाये गये संवेदनषील मुद्दों के बावजूद पूरा मीडिया उनको मोदी के गले लगना और आंख वाली अदा पर केन्द्रित हो कर रह गया। हालांकि इससे मुद्दे मरते नहीं है पर जो फायदा राहुल गांधी को मिलना चाहिए षायद उसमें कुछ कमी तो रह गयी। 
गौरतलब है कि बीते मार्च में बजट सत्र के दूसरे चरण में आन्ध्र प्रदेष के विषेश राज्य के दर्जे को लेकर एनडीए के घटक टीडीपी ने नाता तोड़ लिया था और सरकार के खिलाफ अविष्वास प्रस्ताव लाने की जिद की थी जिसका समापन 20 जुलाई को हुआ। बहस के केन्द्र में राहुल रहे जिन्हें अपने हिस्से का फायदा उठाना था पर सर्जिकल स्ट्राइक को जुमला स्ट्राइक बोलकर अपनी मुसीबत बढ़ाई। राफेल के मामले में उनका दावा तब कमजोर हो गया जब फ्रांस ने उनके दावे पर अपनी प्रतिक्रिया दी। हालांकि मोदी के मुकाबले राहुल गांधी को स्वीकार किया जाना राहुल गांधी के लिये लाभ का सौदा है परन्तु यदि इसका फायदा लेने में वे नाकाम रहते हैं तो चुनावी बिसात में हश्र अविष्वास प्रस्ताव जैसा ही हो सकता है। विपक्ष के तमाम नेताओं के कहने का तरीका भले ही अलग रहा हो पर मुद्दे राहुल गांधी की तरह ही थे तो क्या यह मान लिया जाय कि 2019 में जो मुद्दे होंगे वो राहुल ने तय कर दिये हैं। फिलहाल अगले कुछ महीनों में राजस्थान, मध्य प्रदेष और छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में चुनाव होंगे जिसमें राहुल गांधी का कद एक बार फिर आंका जायेगा। हांलाकि आंकलन तो मोदी का भी होगा पर यह चुनाव यह भी तय करेगा कि राहुल गांधी को लेकर विपक्ष कांग्रेस के साथ किस मात्रा में होगा।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
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