Thursday, July 12, 2018

परस्पर लाभ मे भारत और दक्षिण कोरिया

दक्षिण कोरिया के राश्ट्रपति मून बीते 9 जुलाई से चार दिन के लिये भारत की यात्रा पर थे। देखा जाय तो दोनों देषों के बीच आर्थिक क्षेत्र में द्विपक्षीय भागीदारी पहले से ही है और अब इस यात्रा से इसके बढ़ने की गुंजाइष और बढ़ गयी है। दिल्ली से सटे नोएडा में दुनिया के सबसे बड़े मोबाइल फोन फैक्ट्री का उद्घाटन दक्षिण कोरियाई राश्ट्रपति मून और भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति में हुआ। यह कारखाना साल में 12 करोड़ मोबाइल फोन का निर्माण करेगी। पिछले वर्श जून में कम्पनी ने नोएडा प्लांट का विस्तार और उत्पादन दोगुना करने के लिये 5 हजार करोड़ के निवेष की घोशणा की थी। जाहिर है सैमसंग दक्षिण कोरिया की कम्पनी है जो मोबाइल बनाने के मामले में अग्रणी मानी जाती है। प्रधानमंत्री मोदी की मेक इन इण्डिया की नीति के अन्तर्गत भी इसे देखे तो यह उसी दिषा में एक कदम है। फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी और दक्षिण कोरियाई राश्ट्रपति मून सामरिक सम्बंधों को और मजबूत बनाने पर जोर देते दिखाई दिये जिसे लेकर कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। कारोबार उपचार के विशय पर भी सहमति बनी भविश्य की रणनीति सम्बंधी समूह ‘फ्यूचर स्ट्रैटेजी ग्रुप‘ पर भी दोनों नेता सहमत देखे गये। भारत और कोरिया ने सांस्कृतिक सम्बंधों को गहरा बनाने और सम्पर्क बढ़ाने के उद्देष्य से 2018-22 तक के लिये सांस्कृतिक आदान-प्रदान के मसौदे पर भी हस्ताक्षर किये हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कोरियाई प्रायद्वीप में षान्ति प्रक्रिया का भारत पक्षधर है और इसके लिये हमारा योगदान जारी रहेगा। जाहिर है दक्षिण कोरिया से भारत के रिष्ते सीमित और सधे हुए तो हमेषा से रहे हैं परन्तु अब इसका व्यापक रूप सामने देखने को मिल सकता है। 
रोचक यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी का कार्यकाल मई 2019 में पूरा हो रहा है और उन्हें 2020 में दक्षिण कोरिया जाने का निमंत्रण है। दरअसल राश्ट्रपति मून ने नरेन्द्र मोदी के साथ संयुक्त घोशणा में कहा कि 2020 में प्रधानमंत्री की कोरिया यात्रा का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। उक्त से स्पश्ट है कि मून मानते हैं कि 2019 का चुनाव भी मोदी के पक्ष में रहेगा और वे सत्ता में लौटेंगे। हालांकि ऐसी मान्यता चीन की भी है कि मोदी आगे भी प्रधानमंत्री बने रहेंगे। इतना ही नहीं अमेरिकी अखबार न्यूयाॅर्क टाइम्स में भी यह खबर छप चुकी है कि मोदी अगला चुनाव जीतेंगे। फिलहाल ये तो भविश्य में ही तय होगा कि आने वाला चुनाव किस करवट बैठेगा। रही बात दक्षिण कोरिया से प्रगाढ़ता की तो यह दषकों से कमोबेष बना हुआ है मगर गति बहुत धीमी थी। दोनों देषों के बीच दूतावासी सम्बंधों की स्थापना साल 1962 में हुई जबकि राजनयिक सम्बंध 1973 से देखे जा सकते हैं। राजनीतिक, आर्थिक, सामरिक तथा आपसी हितों के मुद्दे पर विचार विमर्ष करने के लिये दोनों देषों में संयुक्त आयोग भी गठित किये जा चुके हैं। साल 2004 में दक्षिण कोरिया के तत्कालीन राश्ट्रपति रोह मू ह्युन भारत की यात्रा कर चुके हैं जबकि 2006 में तत्कालीन भारतीय राश्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम की दक्षिण कोरिया की यात्रा के चलते सम्बंधों को बेहतर बनाने का मार्ग प्रषस्त हुआ। यद्यपि व्यापार संवर्द्धन तथा आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग पर समझौते 1974 में हुए मगर सम्बंधों में तेजी 90 के दषक में भारत में उदारीकरण के बाद आयी। इस दौरान द्विपक्षीय व्यापार केवल 530 मिलियन डाॅलर था जो 2005 आते-आते तुलनात्मक 40 प्रतिषत की वृद्धि किया। पिछले साल यह आंकड़ा 20 अरब अमेरिकी डाॅलर को भी पार कर दिया और अब दोनों देषों ने इसे 40 अरब डाॅलर तक का लक्ष्य निर्धारित कर दिया है। यह बात दुविधा से परे है कि भारत के लिये दक्षिण कोरिया चैकाने वाला परिवर्तन दे सकता है। इसकी बड़ी वजह दक्षिण कोरिया की उसकी विष्वस्तरीय बुनियादी ढांचे में अग्रणी राश्ट्रों में गिनती का होना है। 
कोरियाई ब्राण्ड आज भारत के घर-घर में उपलब्ध है और कोरिया की कम्पनियां कहीं न कहीं मोदी के डिजिटल इण्डिया और मेक इन इण्डिया में योगदान दे रहे हैं। भारत के लिये यह सम्बंध पूरब की ओर देखो की अवधारणा को भी पूरा करती है। मोदी के ‘एक्ट ईस्ट8 और मून की नई ‘दक्षिण नीति‘ को इससे मजबूती मिलेगी। इसमें कोई दुविधा नहीं भारत को तेज विकास की आवष्यकता है और इसमें दक्षिण कोरिया एक महत्व का देष तो है। हालांकि इसी तरह का महत्व जापान का भी है। भारत की आबादी दक्षिण कोरिया से करीब 24 गुना अधिक है जबकि प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में यह महज़ सोलहवां हिस्सा ही है। दक्षिण कोरिया के पास उन्नत तकनीक और विषेशज्ञों के साथ पूंजी की मौजूदगी है जबकि भारत के पास बहुत बड़ा बाजार और व्यापक पैमाने पर कच्चा माल है। भारत बुनियादी तौर पर अभी बहुत पीछे है जिसे लेकर दक्षिण कोरिया काफी लाभकारी हो सकता है। आंकड़े तो यह भी जताते हैं कि दषकों से दक्षिण कोरिया को किये जाने वाले भारतीय निर्यातों में भारत की पारस्परिक वस्तुओं जैसे सूती वस्त्र, खली, कच्चा लोहा, लौह एवं इस्पात, जैविक-अजैविक रसायन, विद्युत मषीनरी एवं उपकरण आदि रहे हैं। देखा जाय तो पिछले कुछ वर्शों में दक्षिण कोरिया में भारतीय निर्यात का आकार बढ़ा है और भारत में उसका निवेष भी बढ़ा है। दोनों देष के बीच सम्बंधों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर उड़ीसा के पाराद्वीप में स्थापित किया जाने वाला पास्को समन्वित इस्पात संयंत्र है। मोदी से पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी दक्षिण कोरिया से व्यापारिक और आर्थिक साझेदारी पर समझौते कर चुके हैं। साल 2005 में आसियान सम्मेलन के दिषा निर्देेष के तहत एक बैठक तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और दक्षिण कोरिया के राश्ट्रपति रहे ह्युन के साथ समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। इतना ही नहीं भारत की तरह दक्षिण कोरिया भी अन्तर्राश्ट्रीय आतंकवाद तथा व्यापक नरसंहार की प्रौद्योगिकी की तस्करी के सम्बंध में एक समान दृश्टिकोण रखते हैं।
फिलहाल भारत और दक्षिण कोरिया के बीच एक मजबूत पहल इन दिनों हो चुकी है। दक्षिण कोरिया से प्रगाढ़ता का सीधा अर्थ है कि तकनीकी रूप से भारत उससे फायदा लेगा और वह उसे निवेष के लिये बाजार देगा। इससे चीन की बढ़ती स्थिति को थोड़ा हतोत्साहित करने में भी मदद मिल सकती है। तकनीकी मजबूती से भारत में बने उत्पाद यदि सस्ते होते हैं तो चीनी उत्पादों को जो भारत में जड़ जमा चुके हैं उससे पीछा छुड़ाना आसान होगा मुख्यतः इलेक्ट्रिाॅनिक क्षेत्र में। गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच 70 अरब डाॅलर का व्यापार होता है और सौ अरब का एएमयू पर हस्ताक्षर हो चुके हैं जिसमें एकतरफा फायदा चीन को ही होता है। मेक इन इण्डिया और डिजिटल इण्डिया को दक्षिण कोरिया के चलते फायदा होगा और दूसरे देषों को भी इससे प्रोत्साहन मिल सकता है। मून और मोदी के बीच कई समझौते पर हस्ताक्षर हुए जिसमें दोहरे कर से बचाव और आय पर करों के संदर्भ में कर चोरी निरोधक सन्धि, दोनों देषों के बीच राश्ट्रीय सुरक्षा परिशद को लेकर सहमति और जहाजरानी एवं परिवहन पर भी सहमति देखी जा सकती है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी और दक्षिण कोरियाई राश्ट्रपति मून की पहली मुलाकात हैम्पबर्ग में सम्पन्न जी-20 सम्मेलन में हुई थी और उसी समय उन्हें भारत आने का निमंत्रण मिला था। सबके बावजूद निहित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि भारत के साथ उसके सम्बंधों में मजबूती 1997 के पूर्वी एषियाई द्वितीय संकट के बाद दक्षिण कोरिया में हुए अभूतपूर्व विकास की वजह से पिछले दो दषकों के दौरान आयी परन्तु रफ्तार धीमी रही। आषा भरी दृश्टि यह है कि आने वाले दिनों में दोनों देषों के सम्बंध बड़े रूप में उभरेगें जिसका परस्पर लाभ दोनों को मिलेगा। 




सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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