Monday, July 31, 2017

भारत की मुसीबत दो पड़ोसी

यह बात भारत कैसे पचा सकता है कि पाकिस्तान से आतंकवाद और चीन से सीमा विवाद को लेकर वह हमेषा आशंकित रहे। देश में हजारों-लाखों में समस्याएं व्याप्त हैं गरीबी, बीमारी, बेरोजगारी, शिक्षा  एवं चिकित्सा समेत लोक कल्याण के अनेकों काज सरकार को करने होते हैं। इन सबके अलावा चीन और पाकिस्तान जैसे कुदृश्टि रखने वाले पड़ोसी देषों से भी निपटना सरकार की जिम्मेदारी है। गौरतलब है कि पाकिस्तान और चीन द्वारा भारत में अस्थिरता पैदा करने की चेश्ट करना और उसके उत्थान एवं विकास को लेकर रोड़े अटकाना उनका मुख्य एजेण्डा है। इसमें कोई षक नहीं कि भारत अपनी उदारता और बंद नीतियों के चलते कभी इनके विरूद्ध खुलकर कूटनीतिक चाल नहीं चली जिसका खामियाजा है कि भारत पड़ोसियों से उपहार में मिली समस्या से जूझता रहा। औपनिवेषिक काल में यह बात अक्सर पढ़ने को मिलती रही है कि उत्तरदायी षासन के आभाव में भारतीय अंग्रेजों द्वारा षोशण के षिकार होते थे। इसी तर्ज पर बात आगे बढ़ाये तो चीन और पाकिस्तान का भारत के प्रति अनुत्तरदायी तरीका और निहायत निजी महत्वाकांक्षा के चलते मुसीबत के सबब बने हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राश्ट्रपति जिनपिंग की आपसी मुलाकात पांच बार हो चुकी है। नवाज़ षरीफ जो अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नहीं हैं उनसे भी मुलाकात का सिलसिला दहाई की ओर झुका हुआ है। भारत के सामने हाथ मिलाने की रस्म अदायगी चीन और पाकिस्तान करते रहे और पीठ पीछे वार करने में पीछे भी नहीं रहे। पाकिस्तान सीमा पर सीज़ फायर का उल्लंघन प्रति वर्श की दर से सैकड़ों की मात्रा करता है, आतंकियों के सहारे कष्मीर में अस्थिरता पैदा करता है जिसे लेकर आज भी भारत दो-चार हो रहा है जबकि चीन डोकलाम का ताजा विवाद करके अनाप-षनाप पर उतारू है। गौरतलब है कि सितम्बर, 2016 में हुए उरी घटना के 10 दिन के भीतर पीओके में भारतीय सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक किया गया था। बावजूद इसके सैनिकों के षहीद होने के सिलसिले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। जिस तर्ज पर पाकिस्तान आतंकियों के सहारे अपने मंसूबे पूरे करता है उससे भी साफ है कि भारत को अस्थिर करना उसकी पुरानी बदनीयति में षुमार है और इसमें खाद-पानी देने का काम चीन भी करता है। मसलन संयुक्त राश्ट्र संघ के सुरक्षा परिशद् में जब पाक आतंकियों को अंतर्राश्ट्रीय आतंकी घोशित करने की बात होती है तो चीन वीटो करके ऐसा करने से रोक देता है। लखवी से लेकर अजहर मसूद तक इसके उदाहरण हैं। 
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ षरीफ अब प्रधानमंत्री नहीं हैं क्योंकि पनामा पेपर्स लीक मामले में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट द्वारा वे अयोग्य करार दिये जाने तत्पष्चात् पद से इस्तीफा दे चुके हैं। जाहिर है पाकिस्तान में इस पद की रिक्तता आई जिसकी भरपाई हेतु फिलहाल अन्तरिम प्रधानमंत्री के रूप में षाहिद खाकन अब्बासी को नामित कर दिया गया है। बाद में इस पद पर नवाज़ षरीफ के भाई षाहबाज़ षरीफ काबिज होंगे। सभी जानते हैं कि पाकिस्तान के सत्ताधारक राजनीति के प्रतीक नहीं बल्कि ये शड़यंत्र, भ्रश्टाचार और आतंकियों को पालने-पोसने वाले भी होते हैं। पाकिस्तान लोकतंत्र का दम भरता है पर यहां का लोकतंत्र सेना द्वारा अक्सर कुचला जाता रहा है। बात यहीं तक नहीं है आईएसआई और आतंकी संगठन भी सरकार की नीतियों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दखल रखते हैं। उपरोक्त बातें पाकिस्तान की सीमा तक ही हों तो हमें कोई तकलीफ नहीं है पर यही जब भारत पर बुरी नजर डालते हैं तो समस्या मुखर हो जाती है। पाकिस्तान का एक इतिहास भ्रश्टाचार का भी है। यहां के प्रधानमंत्री बिना भ्रश्टाचार से नहाये षुद्ध नहीं होते हैं। नवाज़ षरीफ ने जब कहा कि क्या पाकिस्तान में सब लोग षरीफ हैं तो मलाल बाहर आ गया। आय से अधिक सम्पत्ति रखने वाले षरीफ हमेषा भारत से अच्छे सम्बंध की दुहाई देते रहे। विष्व के मंचों पर आतंकियों से निपटने और भारत के खिलाफ इसके प्रयोग को रोकने को लेकर छाती पीटते रहे पर किया इसके उलट। जाहिर है षरीफ की षराफत उनके नाम के हिसाब से कभी उनके साथ नहीं रही। अब सत्ता बदल गयी है तो सवाल स्वाभाविक हो जाता है कि क्या भारत पर कुदृश्टि रखने वाला पाकिस्तान इससे बाज़ आयेगा। इसकी सम्भावना भारत ने करे तो ही ठीक रहेगा। षरीफ सत्ता से बाहर हैं पर अभी अब्बासी और बाद में दूसरे षरीफ के माध्यम से खुद की कुरीतियों को आगे नहीं बढ़ायेंगे इसकी क्या गारंटी है।
आषंका तो यह भी जाहिर की जा रही है कि पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन का फायदा सीधे यहां की सेना उठा सकती है और इसका सीधा नुकसान भारत को उठाना पड़ सकता है। पाकिस्तान मंे फिलहाल इन दिनों लोकतंत्र की तस्वीर जो धुंधली हुई है इसके अंधेरे में आतंकवाद का इस्तेमाल और आक्रामक हो सकता है। यह बात इसलिए क्योंकि कभी भी पाकिस्तान की सेना भारत के साथ बेहतर सम्बंध की कोषिष नहीं की है। ऐसे में जब सत्ता अस्थिरता के दौर में हो तो सेना हावी हो सकती है। पाकिस्तान के इतिहास में लोकतंत्र और सेना का दबदबा समान रूप से साथ चलें हैं और हद तब हुई है जब सेना ने दुस्साहस करते हुए न केवल सत्ता उखाड़ी है बल्कि सत्ताधारकों को मौत की सजा भी दी है। नवाज़ षरीफ को यह नहीं भूलना चाहिए कि जब वर्श 1999 में परवेज़ मुषर्रफ ने उन्हें सत्ता से बेदखल किया था तथा जान के लाले पड़े थे फिलहाल राजनीतिक सौदेबाजी के चलते उनकी जान तो बच गयी थी परन्तु उन्हें बरसों तक निर्वासित जीवन जीना पड़ा था। गौरतलब है कि पाक की सेना वहां की सरकार भी निगलती है। इसकी परिभाशा और व्याख्या से षरीफ बाखूबी वाकिफ हैं। यदि उनके उत्तराधिकारियों ने सेना को मजबूत होने का अवसर दिया तो यह पाकिस्तान की ही गले की हड्डी बन जायेंगे। पाकिस्तानी सेना आतंकवादियों के साथ मिलकर भारत को कश्ट देने में कभी पीछे नहीं रही और इनके आगे पाकिस्तानी सत्ताधारक भी मानो भीगी बिल्ली बने रहते हैं।
भारत में सीमा विवाद उत्पन्न करने वाला दूसरा और सबसे विवादित पड़ोसी इन दिनों चीन भी खूब चुनौती दे रहा है और यह बता रहा है कि उसकी सेना हर जंग के लिए तैयार है। बीते रविवार को चीनी राश्ट्रपति षी जिनपिंग जब चीन की पीपुल्स लिबरेषन आर्मी के 90वें स्थापना दिवस पर परेड़ का निरीक्षण कर रहे थे तब चीनी सेना को हर जंग के लिए तैयार और सभी हमलावर दुष्मनों को हराने में सक्षम की बात कह रहे थे। खुली जीप में सैनिक की वर्दी में मिलिट्री परेड का मुआयना करते जिनपिंग ने 23 लाख चीनी सेनाओं में जो बातें कूट-कूटकर भरी उससे स्पश्ट है कि चीन भारत को मनोवैज्ञानिक दबाव में लेना चाहता हैं। हालांकि जिनपिंग के पूरे 10 मिनट के भाशण में मौजूदा विवाद डोकलाम को लेकर कोई चर्चा नहीं थी। तिब्बत, ताइवान और डोकलाम के रास्ते भूटान पर कुदृश्टि रखने वाले चीन की जबरदस्ती जारी है। सोचने वाली बात यह है कि चीनी विदेष एवं रक्षा मंत्रालय तथा चीन के मीडिया का यह आरोप कि भारत डोकलाम में अतिक्रमण कर रहा है। जबकि जिनपिंग इस विवाद को अपने भाशण से अलग रख रहे हैं। इसका आषय यह हो सकता है कि चीन की सैन्य अभ्यास और धमकाने के अंदाज में आई बयानबाजियों से भारत का रूख और तीव्र होने से चीन अपनी रणनीति बदल रहा हो। यह चीन की नई चाल भी हो सकती है फिलहाल भारत को चैकन्ना रहना होगा। पाक से सटी सीमा और चीन से अटी हजारों किलोमीटर की सीमा इन दोनों देषों के छल का कभी भी षिकार हो सकती है। ऐसे में रणनीतिक तौर पर भारत को ढीला नहीं पड़ना चाहिए। दो टूक यह भी है कि भारत को खुली नीति और कोठरी में बंद कूटनीति को फलक पर लाकर खिलाफ खड़े पड़ोसियों को मजबूती के साथ आईना दिखाना ही होगा। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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