Monday, July 10, 2017

जी-20 सम्मेलन समाप्त पर सवाल सुलगते रहे

जब भी भारत का विष्व के साथ आर्थिक सम्बंधों की विवेचना होती है तो जी-20 जैसे सम्मेलनों की प्रासंगिकता और उभर जाती है। दो टूक यह है कि जी-20 ने अन्तर्राश्ट्रीय वित्तीय संरचना को सषक्त और आर्थिक विकास को धारणीय बनाने में मदद पहुंचायी है। मंदी के दौर से गुजर रही अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी कमोबेष ऊर्जा देने का काफी हद तक इस संगठन ने काम किया है। यह एक ऐसा अन्तर्राश्ट्रीय मंच है जहां दुनिया के मजबूत देष इकट्ठा होते हैं साथ ही न केवल हित साधने का निर्वहन करते हैं बल्कि संसार के सुलगते सवालों के परख भी करते हैं पर क्या ऐसे सवालों को वाजिब जवाब मिल पाया है। जर्मनी के हैम्बर्ग में बीते दिन सम्पन्न हुए जी-20 सम्मेलन में षामिल 19 देषों के नेताओं ने एक बार फिर जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के प्रति अपनी निश्ठा जाहिर करके इसकी गरिमा को उच्चस्थता दे दी है। गौरतलब है कि अमेरिका इस समझौते से अपने को बीते माह अलग-थलग कर लिया था। राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका को पेरिस जलवायु समझौते से बाहर करने के फैसले को अन्य देषों की प्रतिबद्धता कम किये बिना मंजूरी दे दी गयी जो अपने आप में बड़ी बात है क्योंकि यह डर था कि अमेरिका के हटने से अन्य देषों पर इसका असर पड़ सकता है। फिलहाल बीते 8 जुलाई को जी-20 के 12वें षिखर सम्मेलन की समाप्ति तक पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते को लेकर अमेरिका टस से मस नहीं हुआ पर बिना किसी टकराव के और पेरिस करार में अमेरिका के लिए खुला दरवाजा रखना भी इस सम्मेलन की बड़ी कामयाबी है। बावजूद इसके एक सवाल यह भी फलक पर उतरा गया कि पृथ्वी बचाने की जिम्मेदारी से भागने वाले अमेरिका के पास आखिर क्या संकल्प और किस प्रकार का विकल्प है। इस सवाल का जवाब षायद अमेरिका के पास भी नहीं है। बड़ा सच यह है कि बीते 20 जनवरी से डोनाल्ड ट्रंप सार्वजनिक एजेण्डे के बजाय अपने निजी एजेण्डे पर काम कर रहे हैं। इस बात का पुख्ता सबूत यह है कि पेरिस समझौते से हटते समय उन्होंने कहा था कि मैं अमेरिका का नेतृत्व करता हूं पेरिस का नहीं। सवाल तो यह भी है कि दुनिया के ताकतवर देष के कदम ही यदि पृथ्वी बचाने के मामले में पीछे रहेंगे तो दूसरों से उम्मीद करना कितना मुनासिब होगा। समझने वाली बात यह भी है कि जब इस समझौते से अमेरिका हट रहा था तो भारत व चीन समेत कुछ देषों को इसमें दी जाने वाली अतिरिक्त सुविधा पर एतराज जताया था। 
दुनिया ने यह भी देखा कि हैम्बर्ग में जी-20 सम्मेलन से पहले षहर हिंसक रूप ले लिया था और यह सम्मेलन के साथ जारी रहा। राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि वे अमेरिका के कोयला उद्योग को वे पुर्नजीवित करेंगे। ऐसे में वे पेरिस समझौते को अमेरिका हितों की अनदेखी मान रहे हैं। जर्मनी ने ट्रंप की निंदा करते हुए कहा कि दुर्भाग्यवष अमेरिका पेरिस समझौते के खिलाफ खड़ा है परन्तु हम सभी सन्तुश्ट हैं। गौरतलब है कि पूर्व अमेरिकी राश्ट्रपति बराक ओबामा नवम्बर, 2016 में ही कह चुके हैं कि पेरिस समझौते से हटना अमेरिका के हित में नहीं होगा पर ट्रंप ने उनके इस सुझाव की भी अनदेखी की है। जी-20 षिखर सम्मेलन में दुनिया के 19 विकसित और विकासषील देष एवं यूरोपीय संघ भी षामिल होता है जहां संसार के कायाकल्प करने का संकल्प लिया जाता है परन्तु जिस प्रकार दुनिया उथल-पुथल से गुजर रही है और कूटनीतिक फलक पर अपने हिस्से का फायदा सभी खोज रहे हैं उससे तो यही लगता है कि यह सम्मेलन कारोबारियों का एक अड्डा मात्र बनकर रह गया है। कभी-कभी तो ऐसा भी प्रतीत होता है कि अन्तर्राश्ट्रीय मंचों पर जो वायदे-इरादे जताये जाते हैं उसे जमीन पर उतार पाने में ये बड़े देष नाकाम ही रहे हैं। आतंकवाद पर काबू न पा पाना इसकी पुख्ता नजीर है। गौरतलब है प्रधानमंत्री मोदी पहली बार ब्रिसबेन आॅस्ट्रेलिया में हुए नवम्बर, 2014 के सम्मेलन में षामिल हुए थे। जहां उन्होंने आतंकवाद और काले धन पर दुनिया का ध्यान आकर्शित किया था। इस मामले में काफी हद तक सफलता भी मिली थी। तब से अब तक चार जी-20 की बैठक हो चुकी है पर आतंकवाद को लेकर सवाल अभी भी सुलग रहा है। काले धन के मामले में राय षुमारी भी पुख्ता नहीं हो पाई है और एक नई समस्या पेरिस जलवायु समझौते की अलग से पैदा हुई है। स्पश्ट है कि देष कितना भी मजबूत हो नफे और नुकासन के तराजू पर हमेषा वह अपना ही फायदा देखता है। 
दो दिवसीय सम्पन्न जी-20 षिखर सम्मेलन में भारतीय पक्ष को परखा जाय तो आतंकवाद को रोकने और वैष्विक व्यापार पर निवेष को बढ़ावा देने में भारत के संकल्प को महत्वपूर्ण माना जा सकता है। षिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी का परिप्रेक्ष्य और दृश्टिकोण चीन जैसे देषों को छोड़ दिया जाय तो सभी के लिए आकर्शित करने वाला रहा है। गौरतलब है कि इन दिनों भारत और चीन के बीच सिक्किम के डोकलाम में तनातनी का माहौल बना हुआ है। चीन के सरकारी कार्यालय ने यह भी सूचना थी कि राश्ट्रपति जिनपिंग जर्मनी में हो रहे जी-20 सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात नहीं करेंगे। हालांकि ऐसा नहीं हुआ दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय बातचीत इस सम्मेलन में हुई है पर डोकलाम में जो सवाल चीन ने सुलगाया है क्या जी-20 में हुई मुलाकात बौछार का काम करेगी। चीन की आदत को देखते हुए उम्मीद करना बेमानी है। देखा जाय तो जी-20 का सम्मेलन देषों के बीच सद्भावना भर पाने में उतना कारगर नहीं रहा है। हालांकि चीन के साथ छत्तीस का आंकड़ा प्रधानमंत्री मोदी की इज़राइल यात्रा का परिणाम भी हो सकता है। जाहिर है चीन या पाकिस्तान को भारत की वैष्विक कूटनीति तनिक मात्र भी नहीं भाती साथ ही चीन भारत को उभरती अर्थव्यवस्था के तौर पर भी नहीं पचा पाता है। मुष्किल तब और बढ़ जाती है जब अमेरिका जैसे देषों से गाढ़ी दोस्ती कर बैठता है। फिलहाल देखा जाय तो दुनिया में दो समस्याएं आपे के बाहर हो रही हैं जिसके लिए प्रकृति नहीं कहीं-न-कहीं मानव ही जिम्मेदार है। एक जलवायु परिवर्तन तो दूसरा आतंकवाद। सवाल है कि जी-20 के सम्मेलन में क्या इस पर चिंता पुख्ता हुई है। पेरिस संधि से अमेरिका का हटना ऐसे मुद्दों से बेफिक्री का पुख्ता सबूत है। प्रधानमंत्री मोदी इस प्रकार की समस्याओं का जिक्र पहले की विदेष यात्राओं एवं अन्तर्राश्ट्रीय मंच पर कर चुके हैं। दुनिया के तमाम देष इससे निपटने के इरादे भी जता चुके हैं पर क्या इस पर काबू पाया जा चुका है। जाहिर है यह आज भी दूर की कौड़ी बना हुआ है।
सकारात्मक परिप्रेक्ष्य में जी-20 को भी याद किया जा सकता है। रूस के साथ रचनात्मक कार्य करने का ट्रंप का इरादा एक अच्छा संदेष है। भ्रश्टाचार से लड़ने के लिए भारत समेत जी-20 के अन्य देषों के लिए एक मजबूत प्रस्ताव भ्रश्टाचार रोधी कार्य योजना 2017-18 को स्वीकार किया जाना इस सम्मेलन की खासियत रही है। भारत की तरफ से सतत् व समावेषी विकास के लिए उठाये गये कदमों जैसे कारोबार सुगमता, स्आर्टअप फण्डिंग और श्रम सुधारों के लिए जी-20 सम्मेलन में सराहना की गयी। इसके अतिरिक्त कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को भी महत्ता की नजरों से देखा गया। जिस तर्ज पर भारत अन्तर्राश्ट्रीय मंचों पर बीते तीन वर्शोंे से कूटनीतिक बढ़त ले रहा है उससे साफ है कि दुनिया के देषों द्वारा भारत को दरकिनार किया जाना फिलहाल अब सम्भव नहीं है। अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का मोदी से स्वयं मिलने की पहल भी यह स्पश्ट करती है कि ऐसे मंचों पर भारत साख के मामले में समानता की पंक्ति में खड़ा है। ये बात और है कि सीरिया और यूक्रेन जैेसे मुद्दों को जी-20 में जगह मिलता रहा और यूक्रेन तो अमेरिका और रूस के बीच दूरी बढ़ाने का काम किया। रूसी राश्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के समक्ष इसकी जवाबदेही रही है पर इस बार वे भी काफी सहज महसूस किये होंगे। अमेरिका और चीन के बीच भी हाथ मिले हैं जबकि दक्षिणी चीन सागर में भारत, जापान और अमेरिका के नौसैनिकों का मिलकर किया गया अभ्यास चीन के लिए किरकिरी का काम किया था। फिलहाल 12वां जी-20 नरम-गरम मामलों के साथ समाप्त हो गया पर 2018 में अर्जेन्टीना में 13वें सम्मेलन के रूप में फिर परिलक्षित होगा। जाहिर है इसमें भी बदले हुए देषों की बदली हुई तस्वीर परिलक्षित होगी। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
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