Monday, July 17, 2017

मानसून सत्र और हमारे माननीय

जब भी सत्र की शुरुआत  होती है तब इस बात की सुगबुगाहट भी जोर पकड़ती है कि क्या देष के नागरिकों की उम्मीदों पर हमारे माननीय खरे उतरेंगे। यह बात इसलिए क्योंकि बीते कई सत्रों का हाल खराब रहा है जहां महीनों खर्च करने के बावजूद कुछ घण्टों और कुछ अधिनियमों तक ही मामला रह जाता है और जनता बड़े फैसले की बाट जोहती रहती है। हालांकि इसी साल दो भागों में चलने वाले बजट सत्र का कामकाज तुलनात्मक बेहतर रहा है जिसमें लोकसभा की उत्पादकता 108 फीसदी और राज्यसभा की 86 फीसदी थी जबकि इसके पहले षीत सत्र में 92 घण्टे बर्बाद हुए थे जबकि 21 दिनों तक चलने वाले सत्र में लोकसभा में महज़ 19 घण्टे और राज्यसभा में 22 घण्टे काम हुआ था। इसी प्रकार के उदाहरण कुछ अन्य सत्रों के भी सूचीबद्ध किये जा सकते हैं। उपरोक्त से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सत्र के दौरान होने वाले हो-हंगामे से सत्ता कितनी बौनी रह जाती है और विपक्ष हंगामा काटने में कितना अव्वल रहता है। इतना ही नहीं इन सबके बीच जनता कितनी ठगी जाती है। वर्श 2015 के षीत सत्र के दौरान एक अखबार के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने यह साफ किया था कि लोकतंत्र किसी की मर्जी और पसंद के अनुसार कार्य नहीं कर सकता। जाहिर है कि सत्र में काम न होने की वजह से मोदी परेषान थे। गौरतलब है कि उन दिनों असहिश्णुता का मुद्दा गरम होने के कारण षीत सत्र कई बाधाओं से गुजरा था और नतीजे ढाक के तीन पात रहे। ऐसा देखा गया है कि जब कभी विकास की नई प्रगति होती है तो कुछ अंधेरे भी परिलक्षित होते हैं जिसका सीधा असर जन जीवन पर पड़ता है पर यह अंधेरा स्थायी रूप से जीवन में बना रहे तो विकास का मोल गिरावट की ओर चला जाता है। दो टूक यह भी है कि प्रगति थमनी नहीं चाहिए पर नतीजे इससे उलट इसलिए हैं क्योंकि हमारे माननीय काफी हद तक इससे बेफिक्र हैं और इनकी बेफिक्री का पूरा लेखा-जोखा मोदी षासनकाल के अब तक के सत्रों की पड़ताल में देखी जा सकती है।
मई, 2014 से मोदी सरकार का षासन चल रहा है बजट, मानसून और षीत सत्र समेत बीते तीन वर्शों में लगभग दर्जन भर सत्र हो चुके हैं जिसमें इस बार का मानसून सत्र सरकार के लिहाज़ से चैथा है पर सफलता की दर उच्च होगी यह कहना बहुत कठिन है और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सत्र में  हो-हंगामा नहीं होगा। सोमवार से षुरू हुए मानसून सत्र के दौरान क्या-क्या चुनौतियां होंगी इस पर भी सरकार की पैनी नज़र होगी। पहले दिन की खास बात में देखें तो राश्ट्रपति पद के चुनाव के साथ ही संसद के मानसून सत्र की षुरूआत हुई। लोकसभा के वर्तमान सदस्य विनोद खन्ना समेत कुछ दिवंगत सदस्यों को श्रृद्धांजली देने के बाद लोकसभा की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी गयी। 17 जुलाई से 11 अगस्त के बीच तीन सप्ताह से अधिक चलने वाला मानसून सत्र कई उम्मीदों से पटा है। कई विधेयकों को न केवल अधिनियमित किये जाने की चुनौती है बल्कि लोकसभा में 21 और राज्यसभा में 42 विधेयक पहले से ही जो लम्बित पड़े हैं इन्हें भी रास्ता देना है। सब कुछ अनुकूल रहा तभी नतीजे उम्मीद से अधिक आयेंगे अन्यथा मानसून की मूसलाधार बारिष में यह सत्र भी धुल जायेगा। प्रत्येक सत्र में यह रहा है कि विपक्ष सत्ता को घेरने के लिए पहले से ही कसरत किये रहता है। जाहिर है सत्ता को हाषिये पर धकेलने के लिए विपक्ष के तरकष में इस बार भी कई तीर हैं। मसलन कष्मीर में अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा व्यवस्था में हुई चूक, चीन से मौजूदा समय में जारी सीमा विवाद, गौरक्षकों द्वारा लगातार जारी गुण्डागर्दी। इसके अलावा भी कई मुद्दे हैं। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कह दिया है कि गौरक्षा पर गुंडई बर्दाष्त नहीं है। संसद के मानसून सत्र की पूर्व संध्या पर सरकार द्वारा बुलाई गयी सर्वदलीय बैठक के दौरान मोदी ने कहा गौरक्षा को राजनीतिक और साम्प्रदायिक रंग देकर राजनीतिक लाभ उठाने की होड़ मची है। इससे देष को कोई फायदा नहीं होगा।
सर्वदलीय बैठक के माध्यम से प्रधानमंत्री ने गौरक्षा के मामले में अपना पक्ष स्पश्ट करके विरोधियों के वार को थोड़ा कुंद करने की कोषिष की है। गौरतलब है कि बीते कुछ वर्शों से गौरक्षा के नाम पर कईयों को मानो कानून हाथ में लेने का अधिकार मिल गया हो और जिस प्रकार सोषल मीडिया में ताण्डव देखने को मिला वो रोंगटे खड़े करने वाले थे। तथाकथित गौरक्षकों ने अपनी इन करतूतों से भले ही अपनी पीठ थपथपा रहे हों पर देखा जाय तो इन्होंने कानून व्यवस्था के साथ खिलवाड़ ही किया है। सुनिष्चित मापदण्डों में देखें तो विगत् वर्शों से किसानों की समस्या एक ऐसी अटल सत्य बन गयी है जो किसी भी सरकार से हल नहीं हो रही। सरकार को घेरने में यह मुद्दा भी विरोधियों के लिए अभी भी जिन्दा है। दो टूक यह भी है कि पष्चिम बंगाल की कानून व्यवस्था पटरी से उतर गयी है। बड़ी-बड़ी बात करने वाली ममता बनर्जी समस्या को काबू पाने में बौनी सिद्ध हुई है। इतना ही नहीं राजभवन से उनका तकरार भी जग जाहिर हुआ है। जिस तर्ज पर पष्चिम बंगाल हिंसा में लिप्त हुआ उसके लिए विरोधी तृणमूल कांग्रेस को भी कुछ जवाब तैयार कर लेने चाहिए। सभी के लिए केन्द्र सरकार को ही सवालों के घेरे में नहीं खड़ा कर सकते। विरोधी भी गिरेबान में झांके कि मामले नाक के ऊपर क्यों जा रहे हैं। हालांकि उत्तर प्रदेष के मामले में भी यह पूछा जाना चाहिए कि विधानसभा में विस्फोटक सामग्री कैसे पहुंची और इतनी बड़ी चूक क्यों हुई पर मुख्य विरोधी कांग्रेस पर भी यह सवाल खड़ा होता है कि क्या विपक्ष का मतलब हर हाल में सरकार के विरूद्ध खड़ा होना ही है। बड़ी सच्चाई यह है कि कांग्रेस कभी भी मोदी सरकार की एक भी नीति का समर्थन नहीं किया है। 
एक जुलाई से पूरे देष में जीएसटी लागू हुआ। जम्मू एवं कष्मीर अभी इससे अछूता है। मानसून सत्र के दौरान 16 नये विधेयक पेष किये जाने की सम्भावना है जिसमें जम्मू-कष्मीर वस्तु एवं सेवा कर विधेयक तथा नागरिकता संषोधन विधेयक षामिल है। नागरिकता संषोधन विधेयक के चलते सरकार अवैध रूप से भारत में प्रवेष करने वाले विदेषी नागरिकों के एक खास वर्ग को नागरिकता देना चाहती है। चूंकि कुछ विधेयक पहले से लम्बित है सम्भव है कि उनमें से भी कईयों को कानूनी रूप दिये जाने की बात आयेगी। फिलहाल मानसून सत्र के दौरान समावेषी राजनीति कितनी होगी इस पर दृश्टि रहेगी। सहभागी राजनीति की पड़ताल की जाय तो दायित्व आभाव में कई माननीय आ सकते हैं। कमोबेष कईयों की बड़ी विफलतायें भी रही हैं। जिस दषा में सत्र का आना होता है और जिस पैमाने पर सर्वदलीय बैठक में साथ लेने और देने की बात होती है क्या वाकई में वह जमीन पर उतरता है। पुराने अनुभव तो कहानी कुछ और ही बयां करते हैं। सियासतदानों को अपनी रोटी तो सेकनी ही होती है। चाहे सत्ता हो या विपक्ष राजनीतिक घाटा कोई नहीं सह सकता पर जीवन मूल्य की कसौटी पर आम नागरिक आये दिन पिसता रहता है। फिलहाल साल भर में होने वाले तीन सत्रों का सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है। इस बार के मानसून सत्र से उम्मीद है कि अच्छी बारिष होगी, देष को अच्छे कानून मिलेंगे और नागरिकों को मुख्यतः किसानों व गरीब तबकों को राहत मिलेगी। चुनौती यह भी रहेगी कि जब 11 अगस्त को यह सत्र समाप्त हो तो इसका लेखा परीक्षण बजट सत्र से भी बेहतर निकले ताकी देष की पंचायत में बैठे माननीय पर विष्वास बढ़ सके।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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