Wednesday, August 2, 2017

आतंक पर भारी ऑपरेशन ऑल आउट

जिस प्रारूप पर आतंकियों के सफाये को लेकर इन दिनों घाटी में आपरेषन आॅल आउट कामयाबी की ओर है उससे तो यही लगता है कि वर्शों से हिंसा के शिकार कश्मीर घाटी अमन की ओर जा रही है। हालांकि ऐसा दावा करना अभी पूरी तरह पुख्ता नहीं है फिर भी जिस तरह टेरर फण्डिंग पर षिकंजा कसा गया है और जिस तरह लोगों को भड़काने से हुर्रियत नेता अब बाज आ रहे हैं साथ ही जिस भांति पत्थरबाजों की संख्या में कमी आई है उसे देखते हुए तो यही लगता है। सेना द्वारा 2 माह पहले षुरू आॅपरेषन आॅल आउट लगभग आधा रास्ता तय कर चुका है। चिन्ह्ति 258 दुर्दान्त आतंकियों में से 120 का सफाया फिलहाल किया जा चुका है। बीते 1 अगस्त को सुरक्षा बलों को 12 से अधिक बार चकमा दे चुका लष्कर का षीर्श कमाण्डर अबु दुजाना भी मुठभेड़ में मारा गया। जाहिर है भारतीय सेना के हाथ एक बड़ी कामयाबी लगी है और पाकिस्तान के आतंकियों को बड़ा मनोवैज्ञानिक झटका हालांकि आतंकी नेटवर्क इतना बड़ा है कि इकाई-दहाई की सफलता से बात नहीं बनेगी बल्कि सैकड़ों-हजारों की तादाद में आतंकियों के सफाये की जरूरत है। 15 लाख का इनामी यह मोस्ट वांटेड पाकिस्तानी आतंकी भारत के लिए बरसों से सिरदर्द बना हुआ था। सोचने वाली बात यह भी है कि कष्मीर के अमन-चैन के साथ जिस तरह से अलगाववादियों ने बेइमानी की है उसे पचाना फिलहाल बहुत मुष्किल है। आधा दर्जन से ज्यादा हुर्रियत नेता हवालात में ठूसे जा चुके हैं जाहिर है इनके मनोबल पर दोहरी मार तो पड़ी है। दो टूक यह भी है कि सुरक्षा बलों को जिस तरह की समस्या झेलनी पड़ी है उसे षब्दों में बयान करना कठिन है। पत्थरबाजी के चलते घाटी के हालात का बेकाबू होना षिक्षा, स्वास्थ, चिकित्सा समेत वहां की कानून-व्यवस्था के चरमराने जैसे कई घटनायें घाटी के दर्द को बयान करती हैं। अब लड़ाई आतंक के खिलाफ तो बड़ी प्रतीत होती है पर जब तक पाक अधिकृत कष्मीर से आतंकियों का नामोनिषान नहीं मिट जाता तब तक बात अधूरी ही रहेगी। 
सुखद यह भी है कि इस साल अब तक सौ से ज्यादा आतंकी मारे जा चुके हैं जिसमें कई षीर्श कमाण्डर भी षामिल हैं जिसमें सब्जार भट्ट, जुनैद मट्टू तथा बसीर लष्करी षामिल है। निहित भाव यह भी है कि पाकिस्तान में इज्जतदार नागरिक की जिन्दगी जीने वाला जमात-उद-दावा का मुखिया हाफिज़ सईद की नज़रबन्दी की अवधि दो महीने के लिए और बढ़ा दी गई। गौरतलब है कि इसी वर्श 20 जनवरी से अमेरिका में सत्ता परिवर्तन हुआ। बराक ओबामा की जगह डोनाल्ड ट्रंप राश्ट्रपति बने जिन्होंने षपथ के एक हफ्ते की भीतर ही सात मुस्लिम देषों पर अमेरिका में प्रवेष पर बैन लगा दिया। अमेरिका के इस कदम से पाकिस्तान भी सकपका गया और उसके भी खूब पसीने छूटे। मामले की गम्भीरता को देखते हुए हाफिज़ सईद को 31 जनवरी से नज़रबंद करने का फरमान पाकिस्तान ने जारी किया गया जिसकी अवधि अब बढ़ा दी गयी है। अमेरिका की पाकिस्तान पर आतंक को लेकर टेड़ी हुई नज़र भारत को बल प्रदान करने में सहायक तो है पर पाकिस्तान के बढ़ते करतूतों से तो यही लगता है कि उसे कोई बड़ा भय षायद ही सता रहा हो। इसके पीछे एक बड़ी वजह चीन का उसे प्राप्त हो रहा समर्थन है। पाकिस्तान जानता है कि चीन की सरपरस्ती में भारत के साथ छद्म युद्ध बरसों तक बनाये रखा जा सकता है। जिस तरह सिल्क मार्ग व वन बेल्ट, वन रोड के माध्यम से चीन पाकिस्तान को अपना उपनिवेष बना रहा है और जिस तरह का लोभ पाकिस्तान को दिखा रहा है उस चकाचैंध में पाकिस्तान अपनी गुलामी को न्यौता दे बैठा है। पाकिस्तान यह नहीं जानता कि तिब्बत से लेकर ताइवान और अब भूटान पर कुदृश्टि रखने वाला चीन कब आर्थिक प्रभाव दिखा कर बीजिंग और इस्लामाबाद के फासले को खत्म कर देगा इसका उसे पता ही नहीं चलेगा। गौरतलब है कि पाक अधिकृत कष्मीर में चीन का वन बेल्ट, वन रोड परियोजना का भारत विरोधी है। हैरत इस बात की है कि भारत और चीन के बीच सिक्किम सैक्टर में जारी सैन्य तनाव के बीच 25 जुलाई को दो सौ चीनी सैनिक उत्तराखण्ड की सीमा में एक किमी अंदर घुसपैठ किये। हालांकि बीते कुछ वर्शों से चीन उत्तराखण्ड की सीमा पर अपनी कुदृश्टि डाले हुए है उत्तराखण्ड समेत भारत सरकार को इस मामले में तुलनात्मक अधिक चैकन्ना रहने की जरूरत तो है।
वैसे देखा जाय तो वैष्विक परिप्रेक्ष्य में आतंक को लेकर बड़े-बड़े मंचों से बड़ी-बड़ी बाते कही जा रही है। अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से लेकर रूसी राश्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तक दुनिया से आतंक के सफाये को लेकर एकजुटता की बात कर रहे हैं पर षायद वे अभी भी पूरी तरह भिज्ञ नहीं हैं कि इसकी षुरूआत पहले पाकिस्तान से ही होनी चाहिए और आतंकियों को समर्थन देने वाले चीन को भी कुछ सद्बुद्धि देनी चाहिए। सभी जानते हैं कि कष्मीर घाटी में पसरा आतंकवाद पाकिस्तान की सरपरस्ती में फलता-फूलता है और घाटी में रहने वाले अलगाववादी नेता मसलन हुर्रियत जैसे इसे खाद-पानी देने में कभी भी पीछे नहीं रहे। कष्मीर में आतंकवाद का जो प्रभाव बीते तीन दषकों से है और जिस तरह इसकी पैदावार प्रतिवर्श की दर से बढ़ी है उसे देखते हुए तुरंत निपट पाना तो सम्भव नहीं है पर सेना जिस तर्ज पर आॅपरेषन आॅल आउट के माध्यम से इनके सफाये में जुटी है उससे बड़ी उम्मीद बंधती है। निर्धारित रणनीति के अन्तर्गत इसे लेकर मीलों का सफर तय भी किया गया और नतीजे बेहतरी की ओर हैं। गौरतलब है कि जब इस प्रकार की गतिविधियों को सेना द्वारा अंजाम दिया जा रहा था तो इसी बीच टेरर फण्डिंग पर कसा गया षिकंजा कार्यवाही में मददगार सिद्ध हुआ। दो टूक यह भी है कि घाटी में अलगाववादियों ने आतंकियों के हिंसक मन में खूब पेट्रोल छिड़कने का काम किया है। इतना ही नहीं देष के प्रति जब भी कुछ बोला भारत के लिए भारी ही रहा है। स्पश्ट है कि कई महीनों से कष्मीर घाटी में पत्थरबाजी का परिदृष्य बना रहा जिसकी चपेट में सेना भी रही। ताण्डव इस प्रकार का फैला था कि मानो घाटी पर फैलती आग पर काबू पाना सम्भव ही नहीं है पर आॅपरेषन आॅल आउट के माध्यम से अमन का रास्ता थोड़ा चैड़ा होता दिखाई दे रहा है। 
घाटी में दो काम करना है एक आतंकियों के खात्मे को लेकर आॅपरेषन बनाये रखना दूसरा राजनीतिक बिसात पर पारदर्षिता को प्रतिस्थापित करके कष्मीरियों का दिल भारत के लिए धड़काना मुख्यतः यह बात उन पर लागू है जो अलगाववादियों की चपेट में है। पाकिस्तान की जमीन पर भारत को नश्ट करने का जो खाका खींचा जाता है उससे पूरी तरह निजात तभी मिलेगी जब पीओके से भी आतंकी और उनके लांचिंग पैड को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया जाय। सितम्बर 2016 में उरी घटना के 10 दिन के भीतर जब भारतीय सेना ने पीओके में 10 किमी अंदर घुस कर 40 से अधिक आतंकियों को मार गिराया और कई लांचिंग पैड नश्ट किये तो दुनिया ने भारत के साहस की तारीफ ही की थी और यह उम्मीद जगी थी कि पीओके रास्ते घाटी में अमन को निगलने वाले आतंकियों को सबक सिखाया जा सकता है। आॅपरेषन आॅल आउट के माध्यम से भारतीय सेना जिस कदर अपने मिषन में आगे बढ़ रही है उससे यह बल तो मिलता ही है कि आतंकियों समेत घाटी के भीतर के अलगाववादियों का मनोबल टूटेगा पर इस चिंता से पूरी तरह कैसे मुक्त हुआ जायेगा कि जम्मू एवं कष्मीर जो भारतीय संविधान के पहली सूची में उल्लेखित 15वां राज्य है वहां आम राज्यों की तरह वातावरण कायम होगा। फिलहाल आॅपरेषन आॅल आउट इन दिनों आतंकियों पर भारी है और घाटी इनके बोझ से मुक्त हो रही है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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