Wednesday, July 12, 2017

दशकों के आतंक का लेखा परीक्षण कब!

पड़ताल बताती है कि अमरनाथ की यात्रा पर काफी हद तक आतंक का साया रहता है। बीते 10 जुलाई को जब इस यात्रा पर आतंकी हमला हुआ तो यह बात पूरी तरह पुख्ता हो गयी। गौरतलब है कि कश्मीर  में अमरनाथ यात्रियों पर घात लगाकर किया गया हमला पहली बार नहीं है। डेढ़ दषक में यह सबसे बड़ी घटना है। इसमें कोई षक नहीं कि हमला सुरक्षातंत्र के चूक का नतीजा है। हैरत इस बात की है कि हजारों-लाखों में सुरक्षाकर्मियों एवं अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती के बावजूद आतंकी अपने मनसूबों में कैसे कामयाब हो जाते हैं। यह बात भी कचोटती है कि जिस मनोविज्ञान के साथ अमरनाथ यात्री तीर्थाटन करते हैं उसमें जब आतंकियों की घुसपैठ होती है तो उससे यह भी इंगित होता है कि भारत को आतंकियों के रास्ते पाकिस्तान से बड़ी चुनौती मिल रही है। दुनिया में कोई ऐसा देष नहीं जो पड़ोस की इतनी बर्बरता सहता हो। ताजा घटनाक्रम में जम्मू-कष्मीर के अनंतनाग में यात्रियों की बस पर हुए आतंकी हमले के मास्टरमाइंड लष्कर-ए-तैयबा का आतंकी इस्माइल है जिसका पालन-पोशण पाकिस्तान में होता है। आतंकियों ने घटना को अंजाम कैसे दिया, किस पैमाने पर गोली बरसाई, कैसे बच निकले और किस कीमत पर यात्रियों को जान गवानी पड़ी ऐसी तमाम बातों का उभरना तब-तब रहा है जब-जब ऐसी घटनाएं घटी हैं। सब्र तब जवाब दे जाता है और सरकार की लानत-मलानत करने का विचार तब पनप जाता है जब चंद षब्दों के सहारे घटना को सरकारें इतिश्री की ओर ले जाने की कोषिष करती हैं। इन सबके बीच एक सवाल यह भी उठ खड़ा होता है कि आखिर पुख्ता सुरक्षा का इंतजाम करने वाली सरकारें आतंकियों के किस तरकष से अनभिज्ञ रह जाती हैं। सभी जानते हैं कि कष्मीर बरसों से जल रहा है। हालात अच्छे नहीं है और अलगाववादियों के मनसूबे जिस पराकाश्ठा तक पहुंच गये है मानो वहां अमन-चैन की उम्मीद करना अब बेमानी है। गौरतलब है कि बुरहान वानी कष्मीर की फिज़ा में वह तैरता हुआ दहषतगर्द का नाम है जिसकी गर्मी से आज भी कष्मीर की बर्फ पिघल रही है। एक साल का वक्त बीत चुका है पर बुरहान का नाम अभी भी वादियों में गूंजता है।
देष की सरकार न तो कष्मीर में सुरक्षा देने में कामयाब होते दिख रही है और न ही सुलगते कष्मीर को वाजिब हल दे पाई है। हैरत इस बात की है कि जिस जम्मू-कष्मीर में बरसों से अंदर-बाहर की बर्बरता चल रही है, वहीं भाजपा के समर्थन से सरकार चल रही है जबकि नतीजे ढाक के तीन पात हैं। यह बात भी तार्किक है कि जब-जब सिद्धान्त से समझौता करोगे। जमीन पर हकीकत कुछ होगी और दिमाग में कुछ और उपजेगा। उक्त कथन भाजपा और पीडीएफ के बेमेल गठबंधन पर सटीक बैठती है। बीते तीन साल के कार्यकाल में और ढ़ाई साल के जम्मू-कष्मीर के षासनकाल में भाजपा यह समझ ही नहीं पाई कि अलगाववाद और आतंकवाद पर उसकी यांत्रिक चेतना क्या हो और निपटने की तकनीक क्या अपनाई जाय? भारत में कब-कब आतंकी हमला हुआ इसकी फहरिस्त बनाई जाय तो किसी भी सभ्य व्यक्ति का सब्र डोल सकता है। जिस कीमत पर सीमा की रखवाली सैनिकों द्वारा की जाती है उसकी पीड़ा से षायद ही हमारे देष के राजनेता भिज्ञ हों। सख्त सुरक्षा बंदोबस्त के बावजूद आतंकियों ने अमरनाथ यात्रियों को जिस तरह निषाना बनाया उसे देखते हुए अब आतंकवाद को कुचलने के लिए कठोर कार्रवाई करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं दिखाई देता पर देखने वाली बात तो यह होगी कि सरकार इसे लेकर कितनी संवेदनषील है। गौरतलब है कि आतंकी घटना के पीछे पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी आईएसआई, वहां की सरकार और उसके सैनिकों का समर्थन रहता है। सब कुछ जानने के बावजूद कार्रवाई के मामले में हम मीलों पीछे छूट जाते हैं। मुम्बई आतंकी हमले से लेकर पठानकोट तक यही हुआ है। रही बात कष्मीर और अमरनाथ यात्रा की तो यहां की सूची भी कम लम्बी नहीं है। हालांकि सितम्बर 2016 में उड़ी की घटना के बाद पाक अधिकृत कष्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक की गयी थी, 40 से अधिक आतंकियों को ढ़ेर किया गया था और उनके लांचिंग पैड को नश्ट किया गया था फिर भी आतंकी हमलों का सिलसिला रूका नहीं। सरकार के पास हमलों के लेखा का मोटा कच्चा चिट्ठा है पर इसका लेखा परीक्षण कब होगा इस सवाल का उठना लाज़मी है। जाहिर है लेखा परीक्षण से ही यह साफ होगा कि आतंकियों की मार सहने में भारत अव्वल रहा है। 
इस तथ्य को गैरवाजिब नहीं कहा जायेगा कि आतंकी संगठनों की दिन दूनी, रात चैगुनी की तर्ज पर विकास हुआ है। संयुक्त अरब अमीरात ने भी 83 आतंकी संगठनों की सूची जारी की थी और ऐसी ही सूची अमेरिका भी जारी कर चुका है। देखा जाय तो भारत की जुबान पर भी दर्जनों ऐसे आतंकी संगठनों का नाम दर्ज है जिसके चलते वह दषकों से लहुलुहान होता रहा है। जद्दोजहद का विशय यह है कि इतनी बड़ी संख्या में पनप रहे आतंकियों को खाद-पानी कौन दे रहा है। जाहिर है दर्जनों संगठनों की सिंचाई तो पाकिस्तान ही कर रहा है और खून-खराबा के लिए भारत की जमीन पर इन्हें उतारता रहा है। आतंकवाद पर आन्तरिक और बाह्य विमर्ष भी समय के साथ हुए है। आतंकवाद से लड़ने वाला हमारा कानून अभी भी इतना सख्त नहीं है जितना कि अमेरिका और इंग्लैण्ड का है। सभी जानते हैं कि अमेरिका में वर्श 2001 में एक आतंकी हमला हुआ था जिसे 9/11 की संज्ञा दी जाती है। इस हमले के मास्टरमाइंड अलकायदा का ओसामा बिन लादेन था जिसके खात्मे के लिए अमेरिका ने न केवल अफगानिस्तान की पूरी जमीन खोद डाली बल्कि उसे ढूंढने का सिलसिला तब तक जारी रखा जब तक उसका खात्मा नहीं कर दिया। गौरतलब है कि पाकिस्तान के एटबाबाद में छावनी इलाके के पास ओसामा बिन लादेन को 2011 में अमेरिका ने निस्तानाबूत किया था और इसे समाप्त करने में अमेरिका का इतना धन व्यय हुआ था जितना कि भारत का एक वर्श का बजट होता है।
बीते 7 से 8 जुलाई के बीच जर्मनी हैम्बर्ग में जी-20 की बैठक हुई जिसमें आतंक का मुद्दा भी छाया रहा इसके समाप्ति के महज़ दो दिन ही बीते थे कि भारत इसकी जद में आ गया। अमरनाथ यात्रा पर हुए आतंकी हमले से यह भी साफ हो गया कि सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम में मनमानी नहीं चलेगी। कहा तो यह भी जा रहा है कि हमले की षिकार बस यात्रा के लिए पंजीकृत नहीं थी पर सवाल यह भी है कि तमाम चैक पोस्टों को पार कर बस दर्षन स्थल तक कैसे पहुंच गयी। फिलहाल बहस इस बात की होनी चाहिए कि बरसों से आतंक सहने वाला भारत महज़ लेखा प्रपत्र ही तैयार करेगा या इसकी आॅडिटिंग भी करेगा। जाहिर है आतंकी घटनाओं की फहरिस्त से ही काम नहीं चलेगा। पाकिस्तान की हिमाकत पर इस प्रकार की सादगी वाली परत चढ़ा देने से भी काम नहीं चलेगा। आतकी घटनाओं का लेखा भी हो और इसका परीक्षण भी होना चाहिए। पाकिस्तान और आतंकवाद का रिष्ता पाकिस्तान जितना ही पुराना है। कष्मीर में पाकिस्तानी घुसपैठ के मामले 1948 से बादस्तूर अब तक जारी है। आतंक के दर्द के चलते ही 75 हजार से अधिक कष्मीरी पण्डित परिवारों को घाटी से विस्थापित होना पड़ा और 70 हजार लोग ढ़ाई दषकों में आतंकियों की भेंट चढ़ गये। आंकड़े यह बताते हैं कि 21 हजार से अधिक आतंकी इतने ही समय में सुरक्षाकर्मियों के हाथों मारे गये हैं जबकि 5 हजार से अधिक सुरक्षाकर्मी भी षहीद हुए। दो टूक तो यह भी है कि आतंक की अपनी एक प्रवृत्ति होती है जिसमें बंदूक हर प्रष्न पर होती है तो उत्तर भी उसी प्रष्न के अनुपात में होना चाहिए इससे कम कुछ नहीं।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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