Monday, July 17, 2017

रेस रायसीना की पर परिणाम तय!

विदित है कि वर्तमान राष्ट्रपति  प्रणव मुखर्जी का कार्यकाल आगामी 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है। समय और संवैधानिक मापदण्डों को देखते हुए इस तिथि से पहले नये राष्ट्रपति का चुनाव किया जाना लाज़मी है। इसी संदर्भ को देखते हुए बीते 17 जुलाई को राश्ट्रपति चुनाव के लिए वोट डाले गये जिसकी गिनती 20 जुलाई को दिल्ली में होगी और तब यह बिल्कुल साफ हो जायेगा कि देष का 15वां राश्ट्रपति कौन होगा। हालांकि संख्याबल के मामले में एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का पलड़ा भारी है। ऐसे में चुनाव के नतीजे क्या होंगे इसका अंदाजा लगाना आसान है। विरोधी दलों की ओर से रायसीना की रेस में पूर्व स्पीकर मीरा कुमार हैं। वोटों के प्रतिषत को देखते हुए यहां यह कहना सहज है कि 50 फीसदी से अधिक के आंकड़े से यह काफी पीछे हैं। साफ है कि मीरा कुमार मुकाबले में हैं पर राश्ट्रपति के मुकाम पर पहुंचेगी ऐसा होता दिखाई नहीं देता। राश्ट्रपति चुनाव के परिप्रेक्ष्य और दृश्टिकोण को परिश्कृत भाव से परखा जाय तो कुल 32 मतदान केन्द्रों पर 776 सांसद और 4120 विधायक मतदान देने में षामिल हैं। इस चुनाव की कुछ खास बाते यह भी हैं कि मध्य प्रदेष के बीजेपी विधायक नरोत्तम मिश्रा को अयोग्य ठहराये जाने के चलते कुल वोटरों की संख्या में एक की कमी हुई है। जबकि त्रिपुरा में 6 तृणमूल कांग्रेस के विधायकों का एनडीए के उम्मीदवार को वोट देना उम्मीद से अधिक प्रतिषत का बढ़ना आंका जा सकता है जबकि टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी मीरा कुमार के समर्थन में हैं। कमोबेष यही स्थिति उत्तर प्रदेष की समाजवादी पार्टी का भी है। अखिलेष से विलग षिवपाल यादव ने भी रामनाथ कोविंद के पक्ष में मतदान किया और उनका मानना है कि 12 से 15 वोट समाजवादी विधायकों का एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में दिये गये हैं जबकि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेष यादव यूपीए के साथ हैं। इसी तर्ज पर बिहार में भी सियासत उथल-पुथल में रही है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीष कुमार की पार्टी जेडीयू ने जहां एनडीए का साथ दिया है तो वहीं महागठबंधन में षामिल लालू प्रसाद की राजद मीरा कुमार के साथ है। हालांकि नीतीष कुमार बिहार के राज्यपाल से राश्ट्रपति की रेस में आये रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार घोशित होने के साथ समर्थन की बात कह दी थी। देखा जाय तो राश्ट्रपति चुनाव के इस चुनावी महोत्सव में कई राजनीतिक दल व गठबंधन एकजुट नहीं रह पाये हैं। पूरी तरह तो नहीं पर आम आदमी पार्टी भी इस डर से बेफिक्र नहीं थी कि क्राॅस वोटिंग में उसके विधायक भी रामनाथ कोविंद का साथ दे सकते हैं। गौरतलब है कि राश्ट्रपति चुनाव में कोई भी दल व्हिप जारी नहीं कर सकता है। ऐसे में क्राॅस वोटिंग की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। 
 राश्ट्रपति चुनाव में कुल पड़ने वाले वोटों को अनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर देखें तो कुल मतों की संख्या 11 लाख के आस-पास होती है जिसका 63 फीसदी एनडीए के उम्मीदवार के पक्ष में साफ-साफ दिखाई देता है। यदि क्राॅस वोटिंग का अनुपात एनडीए के पक्ष में बढ़ता है तो यह प्रतिषत तुलनात्मक ऊपर जायेगा। भारत का राश्ट्रपति देष का सबसे सर्वोच्च पद धारक और तीनों भारतीय सेनाओं का प्रमुख होता है। देष के इस प्रथम नागरिक को हिन्दी में राश्ट्रपति और संस्कृत में राज्य का भगवान कहते हैं जिसके चुनने वालों में संसद और राज्य विधानमण्डल में चुने हुए प्रतिनिधि षामिल होते हैं। साफ है कि मनोनीत सदस्य इलेक्टोरल काॅलेज में षामिल नहीं होते। भारत की स्वतंत्रता से अब तक 14 राश्ट्रपति के चुनाव हुए जिसमें 13 व्यक्ति इस पद पर पहुंचे हैं साथ ही छोटे अंतराल के लिए ही सही तीन कार्यकारी राश्ट्रपति भी सूची में देखे जा सकते हैं। फिलहाल इस बार के चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार मीरा कुमार से राजग के प्रत्याषी का सीधा मुकाबला है पर नतीजे धुंधले नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने पहले ही अग्रिम बधाई रामनाथ कोविंद को दे चुके हैं। गौरतलब है कि राश्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान का समय सुबह 10 बजे से 5 बजे के बीच था। रोचक तथ्य यह है कि प्रधानमंत्री मोदी अपना मत देने के लिए समय से पहले मतदान केन्द्र पहुंच गये और उन्हें कुछ मिनट तक इंतजार करना पड़ा। हालांकि हल्के-फुल्के अंदाज में उन्होंने यह कह दिया कि स्कूल भी समय से पहले पहुंचता था। इसी संदर्भ को यदि थोड़ा परखने की कोषिष करें तो हमारे ही देष के परिपक्व लोकतंत्र के इस दौर में कई सांसद और विधायक ऐसे भी होंगे जो वोट देने के मामले में षायद ही इतने उतावले हों।
भारत में लोकतंत्र के कई प्रारूप हैं राश्ट्रपति का चुनाव इसी प्रारूप का एक आयाम है। इसमें जनता के चुने प्रतिनिधि भागीदारी करते हैं। कहा जाय तो प्रतिनिधियों के माध्यम से जनता अपने राश्ट्रपति को चुनती है। देष के 15वें राश्ट्रपति रामनाथ कोविंद होंगे या मीरा कुमार इसका फैसला 20 जुलाई को हो जायेगा। चूंकि पार्टियां इसमें व्हिप नहीं जारी कर सकती ऐसे में नतीजों को लेकर कुछ भी कहा जाना उचित नहीं होगा परन्तु जीत रामनाथ कोविंद की तय है। भाजपा, टीडीपी, षिवसेना तथा अन्य घटक समेत गैर एनडीए दलों का साथ मसलन अन्नाद्रमुक, बीजू जनता दल, टीआरएस व जदयू समेत कई के पक्ष में होने के कारण लगभग 11 लाख मत मूल्य की तुलना में साढ़े छः लाख से अधिक मत रामनाथ कोविंद को मिलेगा। इसी तर्ज पर यदि मीरा कुमार की स्थिति को आंका जाय तो कांग्रेस, तृणमूल, माकपा, बसपा, राजद तथा द्रमुक समेत आप व अन्य दलों का वोट बामुष्किल साढ़े तीन लाख के आसपास पहुंचता है। जाहिर है कि आंकड़े में मीरा कुमार मीलों पीछे हैं। ऐसे में चुनाव के नतीजे साफ हैं पर आधिकारिक तौर पर जब तक घोशणा न हो कुछ भी कहना सही नहीं है। यहां बताते चलें कि एक सांसद के मत का मूल्य 708 मत के बराबर है जबकि सबसे बड़े प्रदेष उत्तर प्रदेष में एक विधायक 208 मत के बराबर मूल्य रखता है। 
राश्ट्रपति चुनाव हेतु मतदान के बीच यह भी सुगबुगाहट जोर पकड़ा कि षहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू उपराश्ट्रपति होंगे। तथाकथित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी जिस भाव से संवैधानिक पदों पर भारत में समतामूलक संदर्भ विकसित करने की कोषिष में लगे हैं उसमें भी दूर की सियासत छिपी है। राश्ट्रपति के तौर पर रामनाथ कोविंद को लाकर उन्होंने राश्ट्रपति से अछूते सबसे बड़े प्रदेष उत्तर प्रदेष को यह अवसर दिया साथ ही दलित चेहरा सामने लाकर सियासत को भी साधने की चाल चली। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेष में रिकाॅर्ड तोड़ सीट के साथ भाजपा सरकार चल रही है और दलित वोट भी यहां बहुतायत में हैं। बड़ा तर्क यह भी है कि मोदी 2019 के लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत दोहराने की फिराक में है। ऐसे में कदम फूंक-फूंक कर रखना सियासत की मांग भी है और समय की चाल भी इसी को देखते हुए वेंकैया नायडू का नाम उपराश्ट्रपति के लिए आगे लाना भी हो सकता है। दरअसल वेंकैया नायडू दक्षिण भारत के आन्ध्र प्रदेष के नैल्लोर जिले से संबंधित हैं। यह बात भी बलपूर्वक कही जा सकेगी कि उत्तर से राश्ट्रपति तो दक्षिण से उपराश्ट्रपति को बनाकर एनडीए ने संतुलित राजनीति की है। इसके पीछे की बड़ी बात यह है कि एनडीए दक्षिण में अपनी सियासत को मजबूती से बढ़ाना चाहती है जिसका फायदा न केवल लोकसभा चुनाव में बल्कि वहां के राज्यों में भी सत्तासीन होकर लेना चाहती है। गौरतलब है कि कांग्रेस मुक्त मोदी के नारे की दिषा में यह भी एक कदम हो सकता है। फिलहाल संवैधानिक पदों को लेकर बीते कुछ महीनों से हो रही कसरत पर विराम लगने का दिन समीप है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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