Thursday, July 6, 2017

दुनिया ने देखी हिंदी और हिब्रू की मुलाकात

इतिहास पढ़ने का एक लाभ यह है कि हमें अतीत की घटनाओं को समझने-बूझने का न केवल अवसर मिलता है बल्कि उन परम्पराओं, संस्कृतियों और सभ्यताओं की भी जानकारी मिलती है जो सदियों पहले इसी धरातल पर किसी न किसी रूप में उपस्थित थी। दो टूक यह भी है कि सदियों से इतिहास के बनने-बिगड़ने की परंपरा भी इसी धरती पर रही और सभी के लिए अवसर भी कमोबेष यहां घटते-बढ़ते देखे गये। ऐसे ही एक ऐतिहासिक घटना तब घटी जब प्रधानमंत्री मोदी ने इज़राइल दौरा किया। दोनों देषों के बीच रिष्तों की जो तुरपाई हुई उसे दुनिया ने खुली आंखों से देखा। मोदी की इज़राइल यात्रा बीते 4 से 6 जुलाई के बीच सम्पन्न हुई। खास यह है कि जिस षिद्दत के साथ मोदी का इज़राइल में स्वागत हुआ और जिस प्रकार तीन दिन तक मोदी ने देषाटन और तीर्थाटन किया वह भी गौर करने वाली है। मित्रता की प्यास से अभिभूत इज़राइल भारत का बीते सात दषकों से इंतजार कर रहा था। बेषक चार दषकों तक दोनों के बीच कोई राजनयिक सम्बंध नहीं था पर बीते ढ़ाई दषकों से कूटनीतिक सम्बंध कायम रहे और अब मुलाकात पक्की दोस्ती में तब्दील हो गयी। हिन्दी और हिब्रू के बीच की यह मुलाकात इतिहास के पन्नों में जरूर दर्ज की होगी। गौरतलब है इज़राइल यहूदी धर्म की मान्यता से पोशित है और हिब्रू भाशा का पोशक है। हालांकि दोनों देषों के बीच मुलाकात पहले हुए हैं पर कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री इज़राइल नहीं गया था। कहा जाता है कि जब मन अपना भी हो और फायदा भी दिखता हो तो रिष्ता बनाने में पीछे क्यों रहें और वह भी तब जब मौजूदा समय में चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों से हमारा सम्बंध छत्तीस के आंकड़ें को भी पार कर चुका हो। दोनों पड़ोसी की तानाषाही और जुर्रत को देखते हुए इज़राइल में भारत के मोदी का प्रवेष बिल्कुल सही लगता है। जाहिर है सुरक्षा के लिए हथियार और मनोबल बढ़ाने के लिए धरातल पर एक और मित्र तैयार करना हर हाल में राश्ट्र के लिए षुभ ही है। 
मोदी बीते तीन वर्शों में 65 से अधिक देषों की यात्रा कर चुके हैं। चीन और पाकिस्तान को छोड़ दिया जाय तो किसी से हमारी कूटनीति असंतुलित नहीं प्रतीत होती। गौरतलब है इतिहास रचने और जोखिम लेने में मोदी काफी आगे रहे हैं। इसी तर्ज पर इज़राइल की यात्रा भी देखी जा सकती है। इस यात्रा के बाद सम्भव है कि वैष्विक कूटनीति भी बदलेगी और देष की रक्षात्मक तकनीक भी सुधरेगी। बीते 5 जुलाई को मोदी ने अपने समकक्ष बेंजमिन नेतन्याहू से सात द्विपक्षीय समझौते किये जिसमें 40 मिलियन डाॅलर के भारत-इज़राइल इण्डस्ट्रीयल एण्ड टैक्नोलाॅजिकल इनवेंषन फण्ड भी षामिल है। स्पश्ट है कि दोनों देष इस फण्ड के माध्यम से उक्त क्षेत्र में व्यापक सुधार को प्राप्त कर सकेंगे। इज़राइल दौरे की खासियत यह रही कि जो समझौते हुए वे भारत के लिए मौजूदा समय में कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। मसलन जल संरक्षण, जल प्रबंधन, गंगा नदी की सफाई, कृशि के क्षेत्र में विकास समेत छोटे सेटेलाइट को बिजली के लिए प्रयुक्त करने आदि। गौरतलब है कि इज़राइल 13 ऐसे मुस्लिम देषों से घिरा है जो उसके कट्टर दुष्मन हैं और बरसों से इनसे लोहा लेते-लेते तकनीकी रूप से न केवल दक्ष होता गया बल्कि सभी सात युद्धों में वह सफल भी रहा। मोदी इज़राइल के जिस सुइट में ठहरे थे वह दुनिया का सबसे सुरक्षित ठिकाना माना जाता है। इस पर बमों की बरसात, रासायनिक हमला या किसी भी प्रकार मानवजनित या प्राकृतिक आपदा हो पर उस पर कोई असर नहीं होता। जाहिर है यह इज़राइल की सुरक्षित और पुख्ता ताकत ही है। इज़राइल की तकनीक इतनी दक्ष है कि आतंकी भी इसकी तरफ देखना पसंद नहीं करते। 
देखा जाय तो प्रत्येक दौरे की अपनी सूझबूझ होती है इज़राइल दौरा भी इससे अलग नहीं है। भारत ने जिस प्रकार इज़राइल से प्रगाढ़ता दिखाई है जाहिर है उसका असर अमेरिका जैसे मजबूत देष को सकारात्मक महसूस हुआ होगा जबकि पाकिस्तान तथा चीन को यह कहीं अधिक चुभा होगा। गौरतलब है कि इन दिनों सिक्किम के डोकलाम को लेकर चीन भारत को आंख दिखा रहा है, 1962 की याद दिला रहा है। हर वह हथकण्डे अपनाने की फिराक में है जिससे भारत को मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर किया जा सके। 6 जुलाई को चीन की ओर से यह भी कह दिया गया कि 7-8 जुलाई को जर्मनी में होने वाले जी-20 के सम्मेलन में जिनपिंग और मोदी की मुलाकात नहीं होगी। इतना ही नहीं चीन 51 सौ मीटर ऊंचे पहाड़ी पर टैंक युद्धाभ्यास करके भारत को दबाव में लेने की कोषिष भी कर रहा है। चीन की इस कलाबाजी से फिलहाल भारत वाकिफ है। ऐसे में भारत का इज़राइल में प्रवेष किया जाना कूटनीतिक और रक्षात्मक दृश्टि से बिल्कुल उचित है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि चीन, पाकिस्तान व फिलीस्तीन समेत कुछ खाड़ी देष इस बात से चिंतित हो रहे होंगे कि भारत, अमेरिका और इज़राइल तीनों मिलकर दुनिया में एक मजबूत ध्रुव बन सकते हैं। गौरतलब है कि अमेरिका दुनिया का षक्तिषाली देष, इज़राइल सर्वाधिक तकनीकी हथियारों से युक्त देष जबकि भारत न केवल उभरती बड़ी अर्थव्यवस्था बल्कि बड़े बाजार का मालिक भी है। चीन अच्छी तरह जानता है कि उसका भी बाजार भारत के बगैर पूरा नहीं होता परन्तु विवाद और बाजार दोनों पर चीन एकतरफा नीति अपनाना चाहता है। 
इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी का इज़राइल वाला मास्टर स्ट्रोक इज़राइल को तो मनोवैज्ञानिक बढ़त दे ही रहा है परस्पर ऊर्जा भारत को भी मिल रही है। विष्व के बीस देष 12वें जी-20 सम्मेलन में इकट्ठे हो रहे हैं। इस बार विष्व में जहां अषान्ति, राजनीतिक उथल-पुथल और व्यापारिक मतभेद चल रहे हैं वहीं कूटनीतिक समीकरण भी बदले हैं। जाहिर है जी-20 पर कई समस्याओं का साया रहेगा। जिनपिंग और मोदी के दूर-दूर रहने से यह और गाढ़ा होगा। चीन की मनमानी भारत बर्दाष्त नहीं करेगा और चीन अपनी ताकत पर घमण्ड करना नहीं छोड़ेगा। निदान क्या है आगे की नीति और कूटनीति के बाद ही पता चलेगा। फिलहाल यही कहा जा सकता है कि विष्व में बह रही धारा प्रवाह कूटनीति में कभी न कभी ऐसी धारा फूटेगी जो सभी को षान्त और साझीदार बना देगी। जिस तर्ज पर भारत और इज़राइल ने ऐतिहासिक साझेदारी की है यदि उसका क्रियान्वयन उचित मार्ग से चला तो भारत, पाकिस्तान और चीन को संतुलित करने में काफी हद तक सफल होगा। क्षेत्रफल में भारत के मिजोरम प्रान्त के लगभग बराबर और जनसंख्या में मात्र 83 लाख वाला इज़राइल ने जिस कदर दुष्मनों से लोहा लिया और जिस रूप में अपना सुरक्षा कवच तैयार किया है वह भी भारत को बहुत कुछ सिखाता है। ध्यान्तव्य हो कि भारत ने इज़राइल को 1950 में मान्यता दी थी परन्तु राजनयिक सम्बंध नहीं कायम किये। इसका प्रमुख कारण भारत द्वारा फिलीस्तीनियों को दिया जाने वाला समर्थन है। इसके पीछे भारत की कुछ प्रतिबद्धताएं भी थीं। भारत यद्यपि तटस्थ देष है फिर भी उसका झुकाव सोवियत रूस की ओर था जबकि इज़राइल अमेरिका की ओर झुका था बावजूद इसके सम्बंध बने रहे साथ ही आतंक से जूझने वाले भारत को इज़राइल का साथ मिलता रहा अब तो सम्बंध परवान चढ़ने से आतंकियों का षरणगाह पाकिस्तान भी छटपटा रहा होगा। पाकिस्तानी मीडिया की भी मोदी और बेंजमिन की मुलाकात पसीने छुड़ा रही है। इसके अलावा दुनिया के अन्य टीवी चैनलों और अखबारों में भारत और इज़राइल की मुलाकात को अलग-अलग दृश्टिकोणों से न केवल देखा जा रहा है बल्कि आगे की राह क्या होगी इस पर भी चर्चा जोरों पर है।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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