Thursday, March 3, 2022

युद्ध की आंच से गरम होती महंगाई

वैष्विक बाजार में क्रूड आॅयल की आसमान छूती कीमतें यह इषारा कर रही हैं कि आम जनता को महंगे पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के लिए तैयार रहना चाहिए। दुनिया भले ही सभ्यता की गगनचुम्बी मुकाम पर हो मगर रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग को देखते हुए यह स्पश्ट हो चला है कि युद्ध और विध्वंस का विचार कहीं गया नहीं है। भले ही यह युद्ध दो देषों के बीच हो लेकिन दुनिया कई धड़ों में वैचारिक रूप से बंट चुकी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि मौजूदा हालात आम जीवन के लिए एक कठिन राह विकसित करेगा। इसी में एक महंगाई है वैसे सामान्य धारणा है कि जंग कोई भी जीते या हारे कीमत सभी को चुकानी पड़ती है। मौजूदा स्थिति को देखें तो मार चैतरफा है मगर क्रूड आॅयल की स्थिति यह बता रही है कि आने वाले कुछ समय में आम लोगों को महंगाई से दो-चार होना पड़ेगा। कच्चे तेल की कीमतें उछाल ले रही हैं जो बीते 8 सालों की तुलना में सर्वाधिक है। गौरतलब है रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध से दुनिया भर में कच्चे तेल की सप्लाई पर असर पड़ा है। युद्ध से पहले क्रूड आॅयल 97 डाॅलर प्रति बैरल था जो मौजूदा समय में सवा सौ डाॅलर के इर्द-गिर्द है। रूस से तेल की आपूर्ति में व्यवधान की आषंका से अंतर्राश्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल का दाम इतने बड़े उछाल पर है। माना जा रहा है कि 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव अगले सप्ताह में सम्पन्न होने के साथ ही पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ेंगे जिसमें 15 से 20 रूपए प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी हो सकती है। जाहिर है क्रूड आॅयल जिस पैमाने पर महंगा हुआ है तेल की कीमतों में वृद्धि होना स्वाभाविक है। अब तेल कम्पनियों को यह तय करना है कि जनता पर सारा बोझ एक साथ डालेंगी या प्रतिदिन कुछ-कुछ कीमत बढ़ाई जायेगी। गौरतलब है कि भारत में 2 नवम्बर, 2021 से तेल में वृद्धि नहीं की गयी है। इसकी एक बड़ी वजह 5 राज्यों का चुनाव है। इस लिहाज़ से देखें तो तीन महीने से तेल स्थिर अवस्था में बना रहा। रूस-यूक्रेन संकट से अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर भले ही कच्चा तेल कीमत के मामले में आसमान छू रहा हो बावजूद इसके घरेलू स्तर पर इनकी कीमतों में अभी बदलाव नहीं हुआ है। फिलहाल दुनिया में सबसे सस्ता पेट्रोल वेनेजुएला में तो सबसे महंगा हांगकांग में बिकता है। 

भारत अपनी जरूरत का करीब 85 फीसद तेल आयात करता है। क्रूड आॅयल के दाम बढ़ने पर खुदरा बाजार में पेट्रोल-डीजल भी महंगा हो जाता है। ऐसा कई बार देखा गया है कि चुनाव के समय सरकार के दबाव में कम्पनियां तेल की कीमतें बढ़ाती नहीं हैं मगर उसके बाद बची हुई कोर-कसर भी उगाही में खर्च कर देती हैं। अनुमान है कि इस बार भी 10 मार्च को 5 विधानसभाओं के चुनाव परिणाम घोशित होने के बाद दाम अचानक बढ़ सकते हैं। जाहिर है आम आदमी एक बार फिर महंगाई की चपेट में हो सकता है। जिस पैमाने पर कच्चा तेल बढ़त बनाये हुए है और लगातार इसमें उछाल जारी है इसे देखते हुए सरकार और कम्पनियां दोनों ही महंगे क्रूड का ज्यादा बोझ सहने की स्थिति में तो नहीं होंगे। एक ओर जहां कोरोना से अर्थव्यवस्था बेपटरी हुई और उसे समुचित करने का प्रयास जारी है वहीं दूसरी ओर क्रूड आॅयल की कीमतों में आया उछाल पहले से ही महंगाई की मार झेल रही आम जनता के सामने एक नई महंगाई मुंह बाये सामने खड़ी है। गौरतलब है कि डीजल महंगा होने का सीधा असर माल ढुलाई पर पड़ता है और खाने-पीने की चीजें महंगी हो जाती है। किसानों के ऊपर भी आर्थिक दबाव बढ़ जाता है। जाहिर है जुताई-बुआई से लेकर सिंचाई सभी महंगाई की चपेट में होती है। अनाजों की कीमत भी बढ़ जाती हैं। देखा जाये तो सब्जी, फल, अनाज, दूध, अण्डा जैसे तमाम वस्तुएं एक बड़े जनमानस की पहुंच से बाहर होने लगती हैं। दो टूक यह भी है कि क्रूड आॅयल का सीधा सम्बंध खाने के तेल से भी है। माल ढुलाई में खर्च डीजल से खाने का तेल महंगा होना भी लाज़मी है। यहां बताते चलें कि भारत खाने के तेल की कुल जरूरत का 60 फीसद आयात करता है। युद्ध पर इसका असर पड़ने से इसकी सप्लाई भी बाधित हो रही है जिसके चलते सूरजमुखी, सोयाबीन व पाॅल्म समेत कई प्रकार के खाद्य तेल और महंगे हो जायेंगे। स्पश्ट है कि थाली में जो भोजन आम से लेकर खास तक कि बुनियादी और मौलिक आवष्यकता है उस पर महंगाई की आंच और तपिष के साथ बढ़त ले सकती है। 

वैसे एक रोचक संदर्भ यह भी है कि तेल और तेल की धार जीवन की वह धारा रही है जो कभी चर्चे से बाहर रही ही नहीं। देष में नये तरीके का हाहाकार मचाने में इसका बड़ा योगदान रहा है। तेल ने आम जीवन का खेल भी बिगाड़ता रहा है और जेब पर भी भारी पड़ता रहा है। दो टूक यह भी है कि क्रूड आॅयल का दाम चाहे आसमान पर हो या जमीन पर जनता को सस्ता तेल नहीं मिल पाता है। मौजूदा समय में क्रूड आॅयल बीते 8 वर्शों की तुलना में सबसे अधिक महंगा है मगर जब यही अप्रैल 2020 में अपने सबसे निम्न स्तर पर था तब भी जनता को तेल सस्ता नहीं मिला था और सस्ते की इस गुंजाइष को सरकार ने डीजल पर 13 रूपए तो पेट्रोल पर 10 रूपए प्रति लीटर एक्साइज़ ड्यूटी बढ़ा कर 5 मई 2020 को सस्ते होने की गुंजाइष को खत्म कर दिया था। गौरतलब है उन दिनों कच्चा तेल 20 डाॅलर प्रति बैरल पर था। युद्ध की विभीशिका से उबरना अपने आप में एक चुनौती होती है। डाॅलर के मुकाबले कमजोर होता रूपया भी महंगाई पर असर डालता है। भारत का रूपया डाॅलर के मुकाबले बहुत आषातीत प्रदर्षन नहीं कर पाता है। देखा जाये तो इन दिनों रूस की करेंसी रूबल डाॅलर के मुकाबले कहीं अधिक गिरावट ले चुकी है। जब क्रूड आॅयल महंगे होते हैं तो सरकार को अधिक धन खर्च करना पड़ता है और ऐसे में जब रूपया भी डाॅलर के मुकाबले कमजोर हो तो इसकी मात्रा और बढ़ जाती है। अनुमान यह रहा है कि 2021-22 में सरकार को क्रूड आयात पर सौ अरब डाॅलर खर्च करने होंगे जिससे चालू खाते का घाटा बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। मौजूदा क्रूड आॅयल की स्थिति को देखकर यह स्पश्ट है कि घाटे में और इजाफा लाज़मी है जिसका असर विकासदर पर भी पड़ता है। तेल जब पहुंच में नहीं होता है तो जन-जीवन छूटने लगता है। सफर महंगा हो जाता है और ईंधन की खपत बढ़ने से वाहनों की बिक्री पर भी असर पड़ सकता है। कहा जाये तो अर्थव्यवस्था पर चारों तरफ से पड़ने वाली मार से भी इंकार नहीं किया जा सकता। 

तेल की कीमत और इससे जुड़ी आवाज में गूंज तो होती है पर इसका इलाज एक सीमा के बाद सरकार और कम्पनियां दोनों नहीं कर पाती हैं। तेल के मामले में आत्मनिर्भर होना भारत के लिए फिलहाल दूर की कौड़ी है। नवरत्नों में षुमार ओएनजीसी जैसी इकाईयां भी इस मामले में कमजोर सिद्ध हो रही हैं। भारत में तेल के कुंए कैसे बढ़े यह चिंता भी स्वाभाविक है। फिलहाल मौजूदा स्थिति महंगाई की ओर इषारा कर रही है और इसके लिए जनता को तैयार होना ही पड़ेगा। 



  दिनांक : 2/03/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

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