Wednesday, March 30, 2022

भारत और भारतीयता का सारगर्भित अवलोकन

समाज और संस्कृति को समझना साथ ही उसे जन-जन तक पहुंचाना भारत बोध की अवधारणा का ही एक अध्याय है। अनेक बाधाओं और उपलब्धियों के बावजूद भारतवासियों ने देष को सषक्त, समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई अतुल्य और सफल गाथा लिखी। एक लेखक व षिक्षाविद् के रूप में मैंने भी पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से कई ऐसे संदर्भों की रोपाई की है और उसे अन्यों तक पहुंचाने का प्रयास रहा ताकि संवाद का कोई कोना अधूरा न रहे। भारत बोध का नया समय नामक यह पुस्तक जब कई दिनों तक पढ़ा तो मन में कई सवाल आये भी और कई सवालों के समाधान मिले भी। वाकई में इस पुस्तक के माध्यम से लेखक, पत्रकार और प्राध्यापक तथा वर्तमान में भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली के महानिदेषक प्रोफेसर संजय द्विवेदी ने एक साथ कई बात कहने का प्रयास किया है। पुर्नजागरण की राह को चिकना बनाने से लेकर षिक्षा और जागरूकता की तमाम यात्रा इस पुस्तक में निहित है। एक ओर जहां स्वतंत्रता आंदोलन और पत्रकारिता का ताना-बाना है तो वहीं मौजूदा समय में इसके नैतिकता को लेकर भी उद्बोधन इसमें झलकता है। पुस्तक के माध्यम से प्रोफेसर द्विवेदी ने प्रेरक व्यक्तित्व को एक बार फिर उद्घाटित किया मसलन हिंद स्वराज के बहाने गांधी की याद और युवा षक्ति में जोष भरने को लेकर विवेकानंद को तरो-ताजा करते दिखते हैं। वैसे पुस्तकें किसी दस्तावेज से कम नहीं होती और यह युगों का चित्रण करती हैं साथ ही आने वाली पीढ़ियों के लिए युग दृश्टा का काम करती हैं। प्रधानमंत्री मोदी पिछले कई बरसों से रेडियो के माध्यम से मन की बात करते हैं। मन की बात में जो मर्म और मार्ग छिपा है उसका भी चेहरा इस पुस्तक के आईने में परिलक्षित होता है। नये भारत में कितनी चुनौती है यह इसके नये पन में ही झलकता है। प्रोफेसर द्विवेदी ने नया भारत बनाने की चुनौती को लेकर अपने विचार को उद्घाटित किया है। मिषन कर्मयोगी, स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत व बेटा-बेटी एक समान जैसे तमाम प्रसंग को इस पुस्तक में बड़े षालीनता से वाक्य विन्यास दिया है। 

वैचारिकी का अपना एक आयाम होता है। देष कभी अनिष्चितताओं में नहीं जीता है और देष के लोग चुनौतीविहीन नहीं होते। अध्यात्म से जुड़ी चेतना हो या जड़वादी विचारधारा को ध्यान में रखकर बात कहने की हो इस पुस्तक में ऐसी कोषिष भी की गयी है कि जन सरोकारों और देष के विचारों मंे एकत्व रूप दिया जाये। चूंकि लेखक स्वयं पत्रकारिता और षिक्षा जगत से है ऐसे में उनका झुकाव ऐसे विशयों की ओर होना लाज़मी है। पुस्तक में सामायिकता का पर्याप्त पुट भी दिखाई देता है। निबंधात्मक षैली में लिखी गयी यह पुस्तक कोरोना की भीशण तबाही को भी उद्घाटित करती है जिसमें सामुहिक प्रयत्नों से कोरोना की लड़ाई जीतने का ताना-बाना निहित है। इसमें कोई दुविधा नहीं की राश्ट्र निर्माण में देष की सबसे बड़ी पंचायत संसद की सबसे बड़ी भूमिका है। आजादी का अमृत महोत्सव के इस पावन अवसर पर चुप्पियों को तोड़ने और कुछ हद तक चुप रहने का वक्त भी हो सकता है। लेखक ने यहां चुनी हुई चुप्पियों का समय को लेकर एक बेहतरीन प्रसंग प्रकट किया है और भारत की संसद की उपादेयता और भूमिका का भी बाकायदा जिक्र किया है। 

भारत बोध का नया समय यह षीर्शक अपने आप में एक नयी दिषा देता है। एक पुस्तक में एक साथ कई विचारों को समेटना लेखक की क्षमता को भी दर्षाता है। भाशा और लेखन षैली साथ ही प्रस्तुत करने का तरीका इसके प्रति एक अच्छे आकर्शण का संकेत है। जो मुद्दे पुस्तक में निहित हैं वे काफी हद तक मौजूदा वक्त की आवष्यकता हैं साथ ही इसकी खासियत यह भी है कि यह कहीं पर संवाद विहीन नहीं होने देती है। रटे रटाये पैटर्न से बाहर निकलते हुए इसमें अनुप्रयोगिक और व्यावहारिक बातों का उल्लेख है। कहा जाये तो युग समावेषी है और सतत् प्रक्रिया से गुजर रहा है ऐसे में विचारों के गुलदस्ता से भरा भारत बोध का नया समय नामक पुस्तक एक सारगर्भित भारत अवलोकन है। 

 दिनांक : 17/03/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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