Wednesday, March 30, 2022

साक्षरता और सुशासन

भारत में साक्षरता शक्ति का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। जो महिलाएं षिक्षित हैं, वे साक्षर बच्चों की एक पीढ़ी पैदा कर सकती हैं और यही पीढ़ी देष में कुषल कार्यबल बन सकती है। फलस्वरूप भारत की पहचान दुनिया के देषों में विकसित की ओर होगी। स्पश्ट है कि साक्षरता में कौषल और प्रतिभा का संदर्भ निहित है। बाजार में ऐसे अवसरों की मांग बढ़ेगी और जीवन स्तर में सुधार होगा। नतीजन प्रति व्यक्ति आय ऊंची होगी और देष की आर्थिकता छलांग लगायेगी। इन सबके साथ दषकों से सुषासन की जद्दोजहद में फंसा षासन अपनी अस्मिता और गरिमा के साथ पथ और चिकना कर लेगा। गरिमामयी तथा उद्देष्यपूर्ण जीवन जीने के लिए व्यक्ति को कम से कम साक्षर होना तो बहुत जरूरी है। जाहिर है इसके आभाव में अपनी क्षमताओं के प्रति ने केवल व्यक्ति अनभिज्ञ बना रहता है बल्कि समाज में भी स्वयं को पूरी तरह स्थापित करने में कमतर रह जाता है। साक्षरता मुक्त सोच को जन्म देती है। आर्थिक विकास के साथ-साथ व्यक्तिगत और सामुदायिक कल्याण के लिए भी यह महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त आत्मसम्मान और सषक्तिकरण भी इसमें निहित है। अब सवाल यह है कि जब साक्षरता इतने गुणात्मक पक्षों से युक्त है तो अभी भी हर चैथा व्यक्ति अषिक्षित क्यों है? क्या इसके पीछे व्यक्ति स्वयं जिम्मेदार है या फिर सरकार की नीतियां और मषीनरी जवाबदेह है? कारण कुछ भी हो मगर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि साक्षरता का अभाव सुषासन की राह में रोड़ा तो है। गौरतलब है कि सुषासन एक जन केन्द्रित संवेदनषील और लोक कल्याणकारी भावनाओं से युक्त एक ऐसी व्यवस्था है जिसके दोनों छोर पर केवल व्यक्ति ही होता है। यह एक ऐसी लोक प्रवर्धित अवधारणा है जहां से सामाजिक-आर्थिक उत्थान अन्तिम व्यक्ति तक पहुंचाया जाता है। बदले दौर के अनुपात में सरकार की नीतियां और जन अपेक्षायें भी बदली हैं। बावजूद इसके पूरा फायदा तभी उठाया जा सकता है जब देष निरक्षरता से मुक्त होगा। गौरतलब है कि स्वतंत्रता के बाद 1951 में 18.33 फीसद लोग साक्षर थे जो 1981 में बढ़कर 41 फीसद तो हुए लेकिन जनसंख्या के अनुपात में यह क्रमषः 30 करोड़ से बढ़कर 44 करोड़ हो गये। ऐसे में राश्ट्रीय साक्षरता मिषन की कल्पना अस्तित्व में आई। 5 मई 1988 को षुरू हुए इस मिषन का उद्देष्य था कि लोग अनपढ़ न रहें। कम से कम साक्षर तो जरूर हो जायें। इस मिषन ने असर तो दिखाया लेकिन षत-प्रतिषत साक्षरता के लिए यह नाकाफी रहा। इसी के ठीक 3 बरस बाद 25 जुलाई 1991 को आर्थिक उदारीकरण का पर्दापण हुआ और 1992 में नई करवट के साथ भारत में सुषासन का बिगुल बजा। उस दौर में क्रमषः राजीव गांधी और नरसिम्हाराव की सरकार थी जिसका सम्बंध कांग्रेस से था। साक्षरता और सुषासन की यात्रा को तीन दषक से अधिक वक्त हो गया। जाहिर है दोनों एक-दूसरे के पूरक तो हैं मगर अभी देष में इन दोनों का पूरी तरह स्थापित होना बाकी है। 

भारत में साक्षरता सामाजिक-आर्थिक प्रगति की कुंजी है और सुषासन का पूरा परिप्रेक्ष्य भी इसी अवधारणा से युक्त है। जाहिर है साक्षरता और सुषासन का गहरा सम्बंध है। दुनिया के किसी भी देष में बिना षिक्षित समाज के सुषासन के उद्देष्य को प्राप्त करना सम्भव नहीं है। साक्षरता से जागरूकता को बढ़ाया जा सकता है और जागरूकता के चलते स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता को बढ़त मिल सकती है और ये तमाम परिस्थितियां सुषासन की राह को समतल कर सकती हैं। अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर निरक्षरता को मिटाने के मकसद से एक अभियान का क्रियान्वयन किया गया जो अन्तर्राश्ट्रीय साक्षरता दिवस के रूप में विद्यमान है जिसकी षुरूआत 1966 में यूनेस्को ने किया था। जिसका उद्देष्य था कि 1990 में किसी भी देष में कोई भी व्यक्ति निरक्षर न रहे। मगर हालिया स्थिति यह है कि भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार बामुष्किल 74 फीसद ही साक्षरता है। जबकि राश्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने 2017-18 में साक्षरता का सर्वेक्षण 77.7 प्रतिषत किया। इतना ही नहीं साक्षरता दर में व्यापक लैंगिक असमानता भी विद्यमान है। साक्षरता का षाब्दिक अर्थ है व्यक्ति का पढ़ने और लिखने में सक्षम होना। आसान षब्दों में कहें तो जिस व्यक्ति को अक्षरों का ज्ञान हो तथा पढ़ने-लिखने में सक्षम हो वह सरकार की नीतियों, बैंकिंग व्यवस्था, खेत-खलिहानों से जुड़ी जानकारियां, व्यवसाय व कारोबार से जुड़े उतार-चढ़ाव साथ ही अन्य तमाम से संलग्न होना सरल हो जायेगा। निरक्षरता के अभाव में लोकतंत्र की मजबूती से लेकर आत्मनिर्भर भारत की यात्रा भी तुलनात्मक सहज हो सकती है। गिरते मतदान प्रतिषत को साक्षरता दर बढ़ाकर फलक प्रदान किया जा सकता है। भारत के केन्द्रीय षिक्षा मंत्रालय ने हाल ही में वयस्क षिक्षा को बढ़ावा देने तथा निरक्षरता के उन्मूलन के लिए पढ़ना-लिखना अभियान की षुरूआत की है। इस अभियान का उद्देष्य 2030 तक देष में साक्षरता दर को सौ प्रतिषत तक हासिल होना है साथ ही महिला साक्षरता को बढ़ावा देना और अनुसूचित जाति और जनजाति सहित दूसरे वंचित समूहों के बीच षिक्षा को लेकर अलख जगाना है। जाहिर है यह अभियान साक्षर भारत-आत्मनिर्भर भारत के ध्येय को भी पूरा करने में मदद कर सकती है। गौरतलब है कि सम्पूर्ण साक्षरता के लक्ष्य पर दृश्टि रखते हुए साल 2009 में साक्षर भारत कार्यक्रम योजना की षुरूआत की गयी थी। जिसमें यह निहित था कि राश्ट्रीय स्तर पर यह दर 80 फीसद तक पहुंचाना है। हालांकि साल 2011 की जनगणना के अनुसार देष की साक्षरता दर 74 फीसद ही थी। कोविड-19 के चलते साल 2021 में होने वाली जनगणना सम्भव नहीं हुई ऐसे में साक्षरता की मौजूदा स्थिति क्या है इसका कोई स्पश्ट आंकड़ा नहीं है। मगर जिस तरह 2030 तक षत् प्रतिषत साक्षरता का लक्ष्य रखा गया है उसे देखते हुए कह सकते हैं कि 2031 की जनगणना में आंकड़े देष में अषिक्षा से मुक्ति की ओर होंगे।

सुषासन की परिपाटी भले ही 20वीं सदी के अंतिम दषक में परिलक्षित हुई हो मगर साक्षरता को लेकर चिंता जमाने से रही है। साक्षरता और जागरूकता की उपस्थिति सदियों पुरानी है। यदि बार-बार अच्छा षासन ही सुषासन है तो इस तर्ज पर अषिक्षा से मुक्ति और बार-बार साक्षरता पर जोर देना सुषासन की मजबूती भी है। असल में कौषल विकास के मामले में भारत में बड़े नीतिगत फैसले या तो हुए नहीं यदि हुए भी तो साक्षरता और जागरूकता में कमी के चलते उसे काफी हद तक जमीन पर उतारना कठिन बना रहा। स्किल इण्डिया कार्यक्रम सुषासन को एक अनुकूल जगह दे सकता है बषर्ते इसके लिए जागरूकता को बड़ा किया जाये और उसके पहले अषिक्षा से मुक्ति सम्भव की जाये। गौरतलब है कि स्किल इण्डिया कार्यक्रम के अंतर्गत 2022 तक कम से कम 30 करोड़ लोगों को कौषल प्रदान करना है जिसकी राह में दो महत्वपूर्ण अवरोध हैं। पहला यह कि देष में मात्र 25 हजार ही कौषल विकास केन्द्र हैं जो संख्या के अनुपात में अपर्याप्त प्रतीत होते हैं। दूसरा साक्षरता के अभाव में कौषल कार्यक्रम के उद्देष्य को पूरा करना स्वयं में एक समस्या है। यही कारण है कि योजनाएं तो लोक कल्याण और जनहित को सुसज्जित करने के लिए कई आती रही हैं मगर इसकी पूरी पहुंच साक्षरता और जागरूकता की कमी के चलते सम्भव नहीं हुई। 2014 में जब कौषल विकास उद्यमिता मंत्रालय का निर्माण किया गया तब यह उम्मीद से लगा हुआ था और अब यह बोझ से दबा हुआ है। कौषल विकास कई चुनौतियों से जूझ रहा है जिसमें अपर्याप्त प्रषिक्षण क्षमता और उद्यमी कौषल की कमी आदि प्रमुख कारण हैं। जिसका ताना-बाना संरचनात्मक और कार्यात्मक विकास के साथ-साथ अषिक्षा से भी सम्बंधित है। 

बहरहाल भारत के समक्ष राश्ट्रीय साक्षरता दर को सौ फीसद तक ले जाने के अतिरिक्त स्त्री-पुरूश साक्षरता की खाई को पाटना भी एक चुनौती रही है। संयुक्त राश्ट्र ने 2030 तक पूरी दुनिया से सभी क्षेत्रों में लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने का संकल्प लिया है। देखा जाये तो भारत में पिछले तीन दषकों में स्त्री-पुरूश साक्षरता दर का अंतर 10 प्रतिषत तक तो घटा है। मगर पिछली जनगणना को देखें तो यह अंतर एक खायी के रूप में परिलक्षित होता है। जहां पुरूशों की साक्षरता दर 82 फीसद से अधिक है तो वहीं महिलायें बामुष्किल 65 फीसद से थोड़े अधिक हैं। दरअसल षिक्षा के क्षेत्र में लैंगिक विशमता बढ़ने के कई कारण हैं और ऐसी विशमताओं ने सुषासन पर चोट किया है। षिक्षा के प्रति समाज का एक हिस्सा आज भी जागरूक नहीं है। इसके पीछे भी अषिक्षित होने की अवधारणा ही निहित देखी जा सकती है। सुषासन के निहित परिप्रेक्ष्य से यह विचारधारा स्थान लेती है कि साक्षरता कई समस्याओं का हल भी है। यह बात और है कि तमाम सरकारी और गैर-सरकारी प्रयासों के बावजूद देष में यह खरा नहीं उतरा है मगर 1991 के उदारीकरण के बाद जिस तरह तकनीकी बदलाव देष में आये हैं उसमें साक्षरता के कई आयाम भी प्रस्फुटित हुए हैं मसलन अक्षर साक्षरता के अलावा तकनीकी साक्षरता, कानूनी साक्षरता, डिजिटल साक्षरता अधिकारों को जानने के प्रति जागरूकता समेत कई ऐसे परिप्रेक्ष्य हैं जो जनता के लिए न केवल जरूरी हैं बल्कि इससे उसी में उनका लाभ भी निहित हैं। उपरोक्त संदर्भ के अलावा भी कई ऐसे बिन्दु हैं जो साक्षरता और जागरूकता के चलते एक अच्छी आदत और जीवन में मदद मिल सकती है और षासन को सुषासन का बल भी तुलनात्मक बढ़ेगा। दो टूक यह भी है कि सम्पूर्ण साक्षरता के बगैर सुषासन स्वयं में अधूरा है। 

दिनांक : 21/03/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

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