Thursday, February 24, 2022

आखिर सरकारी नौकरियां गई कहां!

हर साल देष में एक करोड़ 80 लाख भारतीय 18 वर्श के हो जाते हैं जाहिर है एक बड़ी संख्या कार्यबल के रूप में तैयार होती है। भारत में लगभग 10 करोड़ लोग ऐसे भी हैं जो कृशि में घटती उत्पादकता और कम मुनाफे के चलते बाहर निकल जाते हैं। देष की जनसंख्या जिस आंकड़े के साथ दिनों-दिन बढ़ रही है उसे देखते हुए देष में बेरोज़गारी का अम्बार लगना कोई अप्रत्याषित घटना नहीं है। इतना ही नहीं कौषल विकास के मामले में जिस पैमाने पर व्यवस्थायें हैं वे न तो परिपूर्ण हैं और न ही सक्षम बनाने में कामयाब हैं। गौरतलब है कि भारत में महज 25 हजार ही कौषल विकास केन्द्र हैं और वो भी कोरेाना के दौर में किस अवस्था में है इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है जबकि चीन में 5 लाख और दक्षिण कोरिया जैसे छोटे देषों में ऐसे केन्द्र एक लाख से अधिक है। समय के साथ डिग्री धारियों की संख्या में भी तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। प्रत्येक वर्श लगभग 4 करोड़ स्नातक और 60 लाख से अधिक डिग्री धारक रोज़गार की लाइन में होते हैं। मगर एक ओर जहां कौषल में भारी कमी तो वहीं दूसरी ओर रिक्तियों की कमी की संख्या में या तो ठहराव होना या कमी का होना स्थिति को एक नई समस्या की ओर धकेल देता है। अन्तर्राश्ट्रीय श्रम संगठन का एक अध्ययन यह कह चुका है कि आने वाले सालो में भारत में कौषल की कमी होगी और साल 2030 तक लगभग 3 करोड़ नौकरियां ऐसी होंगी जो समुचित कौषल के आभाव में काम नहीं आयेंगी। इस बात से सभी वाकिफ हैं कि कोरोना काल में बेरोज़गारी ने सारे रिकाॅर्ड तोड़ दिये।

इस बात से भ्भी कोई अनभिज्ञ नहीं है कि सभी को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती मगर रोज़गार के अवसर को ही खतरा पैदा हो जाये तो पानी सर के ऊपर बहने से रोका भी नहीं जा सकता। रोज़गार को श्रेणीबद्ध किया जाये तो पता चलता है कि संगठित क्षेत्र में रोज़गार बहुत कम है। देष में असंगठित क्षेत्र 93 फीसद हैं और बचा हुआ हिस्सा संगठित क्षेत्र में आता है। इसमें भी कुछ फीसद घरेलू सेक्टर में काम कर रहे हैं। पड़ताल बताती है कि 1 मार्च 2016 तक केन्द्र सरकार में 4 लाख से अधिक पद खाली थे जिसमें सबसे ज्यादा रिक्तता ग्रुप-सी में थी। हाल ही में देखने को मिला था कि बेरोज़गारी से पीड़ित रेलवे और एनटीपीसी से जुड़े अभ्यर्थी एक व्यापक आंदोलन की राह पकड़ ली थी। हालांकि अब आंदोलन तो नहीं है पर जो बेरोज़गारी के चलते युवाओं की छाती में सवाल सुलग रहे हैं उसका जवाब अभी भी पूरी तरह तो मिला नहीं है। जाहिर है रोज़गार के बगैर यह सब बेमानी है। षिक्षा, पुलिस, न्यायपालिका, डाक विभाग, स्वास्थ्य सेवा आदि समेत कई क्षेत्रों में पदों की रिक्तता बाकायदा देखी जा सकती है। सिविल सेवा परीक्षा में भी बढ़ते आवेदकों की संख्या के अनुपात में रिक्तियों की सख्या कम ही कही जायेगी। कर्मचारी चयन आयोग जैसी संस्थायें भर्ती के मामले में विगत् कई वर्शों से ढुलमुल रवैया अपनाये हुए है। दुविधा तब बढ़ जाती है जब सालों-साल पढ़े-लिखे युवाओं को आवेदन करने का अवसर तक नहीं मिलता। सरकारी नौकरी को लेकर मध्यम वर्ग में कहीं अधिक आकर्शण बना रहता है। इसके पीछे अच्छा और हर महीने मिलने वाला वेतन है। वर्तमान में तो पेंषन प्रणाली को पुर्नजीवित करने का प्रयास किया जा रहा है। राजस्थान सरकार ने तो इसकी घोशणा भी कर दी है। उत्तर प्रदेष के चुनावी समर ने समाजवादी पार्टी ने तो सरकार आने की स्थिति में पेंषन बहाली की बात कही है। उत्तराखण्ड में भी कांग्रेस ने आह्वान किया है कि सरकार बनी तो वह भी ऐसा ही करेंगे। जाहिर है सरकारी नौकरी के प्रति पेंषन के चलते जो थोड़ा-मोड़ा आकर्शण घटा था वह भी फिर एक बार अपनी जगह ले लेगा। 

कोरोना महामारी के बाद बेरोज़गारी का प्रभाव अलग-अलग सेक्टर में भिन्न-भिन्न रूपों में देखने को मिला। साल 2020-21 में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी की मार असंगठित क्षेत्र के हाॅकर और रेड़ी-पटरी पर सामान बेचने वालों पर पड़ी। केवल कृशि ऐसा क्षेत्र था जहां रोज़गार की स्थिति सही करार दी जा सकती है। बेरोज़गारी दर जिस कदर बढ़त बनाये हुए है वह काफी निराष करने वाला है। पड़ताल बताती है कि दिसम्बर 2021 में यह दर रिकाॅर्ड 7.91 पर पहुंची। हालांकि मई 2021 में दूसरी लहर के दौरान सबसे ज्यादा बेरोज़गारी दर 11.84 फीसद देखी जा सकती है। 2019 में बेरोज़गारों का आंकड़ा 18.6 करोड़ था तब से लेकर 2022 तक इसमें 11 फीसद की बढ़ोत्तरी के साथ दो करोड़ से अधिक के इजाफे की सम्भावना व्याप्त है। देष में बेरोज़गारी बीते तीन दषक की तुलना में सर्वोच्चता लिए हुए है। भारत में करीब 47 करोड़ लोग किसी न किसी तरह की नौकरी करते हैं। इनमें से लगभग 3 फीसद ही सरकारी नौकरियों में है जबकि इसका सपना आंखों में बोने वाले करोड़ों की तादाद में है। इस आंकड़े से बात समझना और आसान हो जायेगा कि साल 2019 में रेलवे में 90 हजार पद की भर्ती होनी थी जिसमें ढ़ाई करोड़ से ज्यादा लोगों ने आवेदन किया था। आंकड़ा इस बात की बानगी है कि देष में बेरोज़गारी की कतार कितनी बड़ी है और सरकारी नौकरी के प्रति चाहत बेषुमार है। सवाल यह है कि जब हर साल लोग सेवानिवृत्त होते हैं तो रिक्त पदों की भर्ती समय से क्यों नहीं की जाती और यदि इस दिषा में पहल होती भी है तो सालो-साल इस प्रक्रिया में ही खर्च कर दिये जाते हैं। एक उदाहरण और देते हैं उत्तराखण्ड को बने 22 साल हो गये जिसमें महज 6 बार पीसीएस की भर्ती हुई है और सातवीं भर्ती प्रक्रिया में है। साल 2016 के बाद यहां ऐसे पदों के लिए आवेदन 2021 में निकाला गया। उक्त से यह स्पश्ट है कि भर्ती को लेकर सरकारें न केवल ढुलमुल रवैया रख रही हैं बल्कि उदासीनता का भी परिचय दे रही हैं। 

सर्वाधिक नौकरियां देने वाले रेल विभाग में कर्मचारियों की संख्या मानो स्थिर हो गयी हैं। रेल विभाग में कर्मचारियों की संख्या 2019 में जितनी थी वह मार्च 2021 में भी उतने के ही अनुमान देखने को मिला। वक्त लम्बा बीत गया मगर नौकरी की संख्या बढ़ते हुए नहीं दिख रही है। जाहिर है युवाओं की संख्या बढ़ रही है मगर रिक्तियां सीमित हो रही हैं। डाक विभाग ने सर्वाधिक नौकरियां देने वालों में से एक है। यहां भी आंकड़े बढ़ते हुए दिषा में नहीं दिखाई देते। मार्च 2020 और मार्च 2021 के बीच लगभग स्थिति एक जैसी प्रतीत हुई। हमारी सरकारें चुनाव से पहले रोज़गार को लेकर बड़ा आष्वासन देती हैं। इस बार के बजट में आगामी 5 साल में 60 लाख नौकरी की बात भी कही गयी। फिलहाल यह सवाल कहीं नहीं गया है कि आखिर सरकारी नौकरियां गयी कहां। 

  दिनांक : 24/02/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

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