भारतीय समाज अधिकांषतः एक पिछड़ा समाज है गरीबी, भुखमरी, कुपोशण, बेरोज़गारी, अषिक्षा, बीमारी, सामाजिक-आर्थिक असमानता, साम्प्रदायिकता आदि विकराल समस्याओं से देष जूझता रहा है और 2022 में भी ये समस्याएं नहीं बने रहने की कोई वजह दिखाई नहीं देती। इन समस्याओं का सामना और समाधान लोकनीति के माध्यम से ही किया जा सकता है। स्वतंत्रता से लेकर अब तक तमाम समस्याओं का हल ऐसी ही नीतियों से सम्भव हुआ है। बीते 2 वर्श से महामारी जारी है और इसके साथ ही कई अन्य समस्याओं का विकास हो गया है। साल 2022, 365 दिन का एक ऐसा समय है जो तुलनात्मक अधिक संवेदनषील माना जा सकता है। इस एक वर्श के भीतर तमाम नियोजन और विकास की अवधारणा के साथ उत्पन्न कठिनाईयों से निपटने के लिए राह खोजी जायेगी। हमें उम्मीद अच्छी रखने से गुरेज नहीं करना चाहिए मगर मुगालते भी नहीं पालने चाहिए।
जब दौर आपदा का हो तब सामाजिक प्रषासन की अवधारणा मुखर हो जाती है। जहां तक सामाजिक प्रषासन का स्वतंत्र षाखा के रूप में अस्तित्व का सवाल है तो इसके षुरूआती दौर 20वीं सदी के प्रारम्भ से देखा जा सकता है। इस सदी का दूसरा दषक महामारी से तो सरकार के साथ जनहित से जुड़ी संस्थाएं बड़े इम्तिहान से गुजरी थी। गौरतलब है कि भारत में उन दिनों आंदोलन का दौर था और देष औपनिवेषिक सत्ता के अधीन था। 21वीं सदी के दूसरे दषक के अंतिम दो साल भी कोविड-19 के चलते बहुत बड़ी परीक्षा से गुजरा है और यह सिलसिला अभी थमा नहीं है। गौरतलब है कि पिछले दो वर्शों से दुनिया बेहद अनिष्चित दौर से गुजर रही है जिसमें भारत ने भी बड़ी कीमत चुकाई है। आपदा और महामारी की मार से उबरने के सारे हथकंडे मानो विफल हो गये हों। बचाव और राहत के सभी उपाय आजमाये जा रहे हैं मगर कोरोना नित नये प्रारूप से अपनी जकड़ बनाये हुए है। 2021 के अंतिम दिनों में अमेरिका में पहली बार कोरोना पीड़ितों की संख्या एक दिन में 5 लाख से अधिक होना इस बात को पुख्ता करता है। इसके अलावा यूरोपीय देष इंग्लैंड, फ्रांस और जर्मनी समेत कई देषों में कोरोना संक्रमितों के आंकड़े गगनचुंबी रूप ले चुके हैं। भारत में भी ओमिक्रोन दिन-प्रतिदिन की दर से तेजी लिए हुए है। उक्त से यह परिलक्षित हो रहा है कि 2022 का आगाज ओमिक्रोन से होगा। हालांकि नये वेरियंट ओमिक्रोन के अलावा पुराना वेरियंट डेल्टा भी रफ्तार लिए हुए है और भारत के लिए भी यह बेहद चिंता का विशय है। तीसरी लहर मुहाने पर है और 2022 नई उम्मीदों से लदा है। हालांकि यह उम्मीद पर कितना खरा उतरेगा यह तो आने वाला वक्त बतायेगा मगर 2021 की तमाम सम्भावनायें भी इस नये साल में भावनात्मक रूप से जुड़ी दिखाई देती हैं।
कोरोना के चलते स्वास्थ्य कहीं अधिक प्राथमिकता में है। देष की अर्थव्यवस्था में स्वास्थ्य बड़े क्षेत्रों में से एक बन गया है और 2022 तक इसके 372 अरब डाॅलर तक पहुंच जाने का अनुमान है। हालांकि नीति आयोग की यह रिपोर्ट मार्च 2021 की है तब देष में कोरोना की दूसरी लहर नहीं थी। अब हालात यह हैं कि 2022 तीसरी लहर पर खड़ा है ऐसे में यह उम्मीद बढ़ती है कि स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए धन की मात्रा में और बढ़ोत्तरी हो सकती है। विष्व बैंक ने भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को 2021 में 8.3 फीसद और 2022 के लिए 7.5 फीसद का अनुमान जताया था। कोरोना की दूसरी लहर के बाद अनुमान एक बार फिर खरे नहीं उतरे थे और वर्तमान में जो परिस्थितियां दिखती हैं उसे देखते हुए 2022 में भी इसकी सम्भावना कम ही दिखती हैं। हालांकि विष्व बैंक ने भी यह माना है कि महामारी की षुरूआत से किसी भी देष के मुकाबले सर्वाधिक भीशण लहर भारत में आयी और इससे आर्थिक पुनरूद्धार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। वैसे अनुमान तो यह भी है कि 2023 में भारत की वृद्धि दर 6.5 फीसद रहेगी। भरोसा किया जाना आषावादी दृश्टिकोण का परिचायक है मगर हालिया स्थिति को देखते हुए ये आंकड़े जमीन पर उतरेंगे भी इसके आसार कम ही हैं। 2022 उम्मीदों से भरा हो सकता है बषर्ते बहुत कुछ कोरोना की स्थिति पर निर्भर करेगा। देखा जाये तो साल 2021 उपभोक्ताओं के लिहाज़ से बहुत खराब रहा है। बढ़ती कीमतों के अतिरिक्त लोगों की आय में गिरावट, रोज़गार में कमी और कारोबार को खासा नुकसान पहुंचा है। खाद्य तेल और पेट्रोल व डीजल समेत रसोई गैस ने लोगों की जेब पर डाका डाला। 2022 में यदि उम्मीदों के बोझ को थोड़ा कम करके नहीं देखा जायेगा तो दिल को धक्का जरूर पहुंचेगा क्योंकि 2020 के बीतने के साथ 2021 से जो उम्मीदें थी वह भी टूटी थीं और 2022 पर पूरा भरोसा करने में कई आंकड़े रोकते हैं। गोल्डमैन सैक्स ने भी वित्त वर्श 2022 के लिए भारत के विकास के अनुमान को घटा दिया है।
पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतों के बीच लोगों को आर्थिक झटका तो लगा है साथ ही प्रदूशण में भी वृद्धि जारी है। हालांकि मोदी सरकार वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतो को विस्तार देने पर काम कर रही है। इन्हीं के अन्तर्गत ग्रीन हाइड्रोजन का प्रोजेक्ट भी देखा जा सकता है। सम्भावना यह जतायी जा रही है कि षीघ्र ही भारत में ग्रीन हाइड्रोजन के ईंधन से कारे चलेंगी। जाहिर है कि कचरे और सोलिड वेस्ट से 2022 से कारे चलती हुईं देखी जा सकेंगी। जवाबदेही का सिद्धांत सभ्यता जितना ही पुराना है। सरकार के समूचे कामकाज के लिए 2022 एक मध्य वर्श के रूप में भी है। ध्यानतव्य हो कि मोदी सरकार 2019 में अपनी दूसरी पारी षुरू की थी। मानव विकास सूचकांक और ग्लोबल हंगर इंडेक्स में तुलनात्मक बेहतर छलांग की उम्मीद के अलावा समावेषी विकास और सतत् विकास को फलक पर लाना इस वर्श की उम्मीदें हैं। षिक्षा, चिकित्सा, बिजली, पानी, सड़क, सुरक्षा और महिला सषक्तिकरण समेत लोक विकास को बढ़ावा देने की सम्भावना भी इसमें षामिल है साथ ही बेरोज़गारी जो सभी समस्याओं की जड़ है इससे भी निपटने में 2022 का इम्तिहान होगा। ई-षासन में और बढ़त और ई-भागीदारी को तुलनात्मक मजबूती देना साथ ही ई-कनेक्टिविटी को पूरे भारत में पहुंचाना इस साल का कोर विशय हो सकता है। 2022 पहले से ही 2 करोड़ बेघर को छत देने और किसानों की आय दोगुनी करने के भाव से युक्त रहा है इसे पूरा होते हुए भी देखना इसी वर्श का चित्र है। साल 2024 तक 5 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था तक भारत को पहुंचाना यहां के विकास दर पर निर्भर करेगा। यदि 2022 इस पर खरा उतरता है तो इस क्षेत्र में भी सहायता मिलेगी। थोक महंगाई दर 2020 की तुलना में 2021 में गगनचुम्बी ऊंचाई लिए हुए थी 2022 में इसकी मुक्ति का मार्ग भी खोजना इस वर्श में षामिल रहेगा। जाहिर है महंगाई का ऐसा स्वरूप सरकार की जवाबदेही को बढ़ा देता है और सुषासन की हवा निकाल देता है। नये वर्श में जवाबदेही भी बेहतर होगी और सुषासन भी अप्रतिम ऐसी उम्मीद रखने में कोई हर्ज नहीं है। कोरोना ने अर्थव्यवस्था को बेपटरी किया और करोड़ों को गरीबी रेखा के नीचे खड़ा कर दिया जिसके चलते पनपी आर्थिक असमानता को समाप्त करने के लिए नये नियोजन की सम्भावना रहेगी। वैसे तो 2022 से बेइंतहा उम्मीदे हैं पर इसकी सुचिता और यह पूरी तरह खरा उतरे इसके लिए जरूरी है कि कोरोना की विदाई हो और आर्थिक दौर तेज हो।
दिनांक : 30 दिसम्बर, 2021
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
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