इन दिनों देष अभूतपूर्व आर्थिक चुनौती का सामना कर रहा है। सभी प्रकार के काम पटरी से उतरे हैं और अर्थव्यवस्था की गाड़ी डगमगा गयी है। मगर एक सुखद पहलू यह है कि कोरोना की बड़ी मार के बाद भी भारत का विदेषी मुद्रा भण्डार बढ़ रहा है। देष में चैतरफा निराषाजनक स्थिति है और मानो उदासीनता के वातावरण से सभी जकड़े हुए हों। बावजूद इसके विदेषी मुद्रा भण्डार बढ़कर 50 हजार करोड़ के लगभग पहुंच जाना एक सुखद आष्चर्य ही कहा जायेगा। गौरतलब है कि मई में विदेषी मुद्रा भण्डार में 1,240 करोड़ डाॅलर का उछाल आया और माह के अन्त तक यह लगभग 50 हजार करोड़ डाॅलर के पास पहुंच गया। रूपए में इसे लगभग 37 लाख करोड़ रूपए से अधिक कह सकते हैं। सभी में यह दुविधा पनप सकती है कि जब देष की माली हालत सबसे बड़े आर्थिक गिरावट में है उद्योग धन्धे तथा सेवा क्षेत्र समेत छोटी-बड़ी इकाईयां कोरोना की चपेट में है तो ऐसे में भारत का विदेषी मुद्रा भण्डारण क्यों और कैसे बढ़ रहा है। जाहिर है इसका कोई आर्थिक कारण तो होगा। वैसे यह भी बताते चलें कि विदेषी मुद्रा भण्डारण की बढ़त में भारत ही नहीं बल्कि कोरोना का जन्मदाता चीन भी इस मामले में सुखद स्थिति में है। गौरतलब है कि मई में चीन के विदेषी मुद्रा भण्डार के जारी आंकड़े से पता चलता है कि माह के अन्त तक यहां विदेषी मुद्रा भण्डार 31 खरब अमेरिकी डाॅलर तक पहुंच गया है जो अप्रैल की तुलना में 0.3 फीसदी की बढ़त लिये हुए है। हालांकि इन दिनों चीन कोरोना से राहत में है और भारत कोरोना के बीच उलझा हुआ है। ऐसे में भले ही चीन बढ़त हो पर भारत में मिल रही बढ़त उसकी बेहतरी की सूचक है।
यह समझना युक्तियुक्त होगा कि विदेषी मुद्रा भण्डार बढ़ने का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव होगा। इसके बढ़ने से सरकार ही नहीं आरबीआई भी देष के बाह्य और आंतरिक आर्थिक मुद्दे के मामले में कहीं अधिक प्रबंधकीय कुषलता को हासिल करने में सक्षम हो जाती है। जाहिर है विदेषी मुद्रा भण्डार वर्तमान आर्थिक चोट में राहत का काम करेगी। संदर्भ यह भी है कि वर्तमान में विदेषी मुद्रा भण्डार आगामी एक वर्श के आयात बिल के लिए षुभ संकेत दे रहा है। साथ ही इसकी बढ़त से यह भी इषारा मिलता है कि डाॅलर की तुलना में रूपया मजबूत होगा और भुगतान संतुलन के मामले में सकारात्मकता आयेगी। भारत की जीडीपी भारत के विकास का जरिया है और यहां की कुल जीडीपी में 15 प्रतिषत विदेषी मुद्रा भण्डार है। इस मामले में यदि संतुलन बरकरार रहता है तो 15 फीसदी वाला हिस्सा मजबूत रहेगा लेकिन बाकी का 85 फीसदी के लिए सरकार को एड़ी-चोटी का जोर तो लगाना ही होगा। विदेषी मुद्रा भण्डार की बढ़त सभी समस्याओं का हल नहीं है लेकिन बढ़त ले चुकी समस्याओं का आनुपातिक हल जरूर है। अर्थव्यवस्था में सुस्ती के बावजूद विदेषी मुद्रा भण्डारण का बढ़ने का प्रमुख कारण भारतीय षेयरों में विदेषी निवेष साथ ही प्रत्यक्ष विदेषी निवेष माना जा रहा है। गौरतलब है कि विदेषी निवेषकों द्वारा अप्रैल और मई माह में कई भारतीय कम्पनियों में रकम लगायी गयी जो इसकी बढ़त का एक बड़ा कारण है साथ ही भारतीय कम्पनियों पर इस कदम से विष्वास भी बढ़ता दिखाई देता है। वर्तमान में विदेषी मुद्रा भण्डार बढ़कर के करीब 500 अरब डाॅलर के रिकाॅर्ड स्तर पर पहुंच गया है जो धूल चाट रही अर्थव्यवस्था के लिए उम्मीद की बड़ी किरण है।
विष्व में सर्वाधिक विदेषी मुद्रा भण्डार वाले देषों की सूची में भारत 5वें स्थान पर है और इसी सूची में चीन पहले स्थान पर। कोरोना संकट से उपजी समस्या के चलते कई यूरोपीय और अमेरिकन कम्पनियां चीन से विस्थापित होने का मन बना चुकी हैं और प्राथमिकता में भारत को भी देखा जा सकता है। ऐसे में भारत की स्थिति तुलनात्मक सुदृढ़ होनी चाहिए। अमेरिका 19 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था के साथ पहले तो चीन 13 ट्रिलियन के साथ दूसरे नम्बर पर है। भारत लगभग 3 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था रखता है जो 2024 तक 5 ट्रिलियन डाॅलर के मसौदे पर आगे बढ़ रहा था मगर बीते एक तिमाही में सारे प्रयासों पर पानी फिर गया है। हालांकि कोरोना महामारी से पहले भी भारत की अर्थव्यवस्था लम्बे समय से सुस्ती और मन्दी की षिकार चल रही थी और बेरोजगारी की दर 45 साल के रिकाॅर्ड स्तर पर पहुंच चुकी है और अब तो यह बद से बदत्तर हो गयी है। मूडीज़ की रिपोर्ट ने भी भारत की आर्थिक वृद्धि अनुमान को घटाकर 0.2 फीसद कर दिया है। इतना ही नहीं विकास दर को मौजूदा स्थिति के अन्तर्गत ऋणात्मक होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। हालांकि मूडीज़ की रिपोर्ट भी यह भी कहती है कि 2021 में भारत की वृद्धि दर 6.2 फीसद होगी। यह तो आने वाला समय बतायेगा पर आरबीआई का संदर्भ भी विकास दर के मामले में कहीं अधिक गिरावट से युक्त देखा जा सकता है।
कोरोना का मीटर इन दिनों भारत में तेजी लिए हुए है और लाॅकडाउन को लगभग समाप्त कर अनलाॅक को सिलसिलेवार तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है। सम्भव है कि सरकार यह जानती है कि देष में अनलाॅक के चलते कोरोना से पीड़ितों की तादाद बढ़ेगी पर अर्थव्यवस्था बचाने के लिए यह जोखिम वह ले चुकी है। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार जुलाई तक दिल्ली के भीतर साढ़े पांच लाख कोरोना पीड़ितों की तादाद बता रही है। ऐसे में देष की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है। फिलहाल विदेषी मुद्रा भण्डार उखड़ती अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा मरहम है। स्पश्ट है कि विदेषी मुद्रा भण्डार सोने और अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश के विषेश आहरण अधिकार अर्थात् एसडीआर समेत विदेषी मुद्रा परिसम्पत्तियों हेतु भारत द्वारा संचित व आरबीआई द्वारा नियंत्रित की जाने वाली बाहरी सम्पत्ति है। गौरतलब है कि देष के विदेषी मुद्रा भण्डार में अधिकांष हिस्सेदारी विदेषी मुद्रा सम्पत्तियों की ही है। जब संकट का समय आता है और उधार लेने की क्षमता घटने लगती है तो विदेषी मुद्रा आर्थिक तरलता को बनाये रखने में मददगार होती है। ऐसे में भुगतान संतुलन से लेकर कई आर्थिक संतुलन डगमगाने से पहले संभल जाते हैं। फिलहाल विदेषी मुद्रा भण्डार की बढ़त के बीच भारत का बचा हुआ विकास दर यदि षीघ्र पटरी पर नहीं आता है तो बढ़त ले चुकी आर्थिक चुनौतियों देष में नाउम्मीदी का वातावरण बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगी।
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
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