Thursday, July 23, 2020

सीमा सड़क को लेकर कहाँ खड़ा है भारत

लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच भारत ने सीमा पर सड़कों के निर्माण में तेजी लाने का फैसला लिया है। सामरिक दृश्टि से यह सवाल वाजिब है कि भारत चीन के मुकाबले सीमा-सड़क के मामले में कहां खड़ा है। सीमा पर सड़क के मकड़जाल को लेकर जो काम चीन ने किया है उससे भारत अभी मीलों पीछे है। मगर ढ़ाई साल की तत्परता से अब यह बात पूरी तरह नहीं कही जा सकती। दरअसल सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने सीमा पर 2018 में सड़क निर्माण का कार्य षुरू किया था इस प्रोजेक्ट के तहत 5 साल में लगभग 3323 किमी लम्बी 272 सड़कों का निर्माण करना था मगर ढ़ाई साल में ही 2304 किमी सड़कों का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया। जिनमें से 61 सड़कें ऐसी हैं जो रणनीतिक दृश्टि से बड़ी अहम हैं। यही वजह है कि भारत के इस मामले में मजबूत होती स्थिति को देखते हुए चीन को कड़ी चुनौती का डर सताने लगा। और आरोप मढ़ दिया कि भारतीय सेना लद्दाख के पास चीन की सीमा स्थित बाइजिंग और लुजिन दुआन सेक्षन में अवैध रूप में प्रवेष किया है तथा अवैध निर्माण में लगी है। जबकि सड़क का निर्माण भारत द्वारा गलवान नदी के किनारे अपनी सीमा में किया जा रहा है। दारबुक-ष्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क को लेकर चीन को हमेषा दिक्कत रही है। मौजूदा विवाद भी गलवान नदी और पैंगोंग सो झील के आसपास के चार इलाकों में निर्माण को लेकर देखा जा सकता है। इसी विवाद के चलते हुई झड़प में भारत के 20 सैनिक षहीद हुए जबकि चीन के 40 से अधिक सैनिक मारे गये। गलवान क्षेत्र में मौजूदा समय में भी भारत और चीन की सेना तैनात है और तनाव बन हुआ है। देखा जाय तो दोनों देषों के बीच 3488 किमी लम्बी सीमा पर कई ऐसे बिन्दु हैं जिस पर चीन विवाद खड़ा करता रहता है। साल 1962 में दोनों देष दो अलग-अलग मोर्चों पर युद्ध लड़ चुके हैं। 1993 से 2014 के बीच आधा दर्जन से अधिक समझौते हो चुके हैं बावजूद इसके समस्या तनिक मात्र भी हल नहीं हुई है। दरअसल चीन की कम्यूनिस्ट सरकार भारत को सुपर पावर बनने से रोकना चाहती है और इसके लिए उसके पास सीमा विवाद के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।
बीते 17 जून को गृह मंत्रालय की बैठक में बीआरओ, आईटीबीपी, आर्मी, सीपीडब्ल्यूडी और गृह मंत्रालय के अधिकारी भी मौजूद थे जिसमें सड़क निर्माण के मामले में तेजी लाने का फैसला हुआ था। गौरतलब है कि केन्द्र सरकार जून 2017 में डोकलाम में पैदा हुई स्थिति को देखते हुए यह पहल पहले कर चुकी है। 44 सड़कों का निर्माण एक अहम फैसला उन दिनों था इसके अलावा पाकिस्तान से सटे पंजाब और राजस्थान के करीब 2100 किलोमीटर की मुख्य एवं सम्पर्क सड़कों का निर्माण भी षामिल था। केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) के जनवरी 2019 में जारी वार्शिक रिपोर्ट 2018-19 में भी स्पश्ट था कि भारत-चीन सीमा पर ये सड़कें निर्मित की जायेंगी ताकि संघर्श की स्थिति में सेना को तुरंत जुटाने में आसानी हो। गौरतलब है भारत एवं चीन के बीच साढ़े तीन हजार किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा जम्मू-कष्मीर अब केन्द्रषासित लद्दाख से लेकर अरूणाचल प्रदेष तक विस्तृत है। तीन साल पहले डोकलाम में चीन के सड़क बनाने का कार्य षुरू कराने के बाद भारत और चीन के सैनिकों के बीच गतिरोध पैदा हुआ था जो 73 दिनों तक चला। गतिरोध इतना बढ़ गया था कि चीन ने युद्ध तक कि धमकी दी पर भारत इसका कूटनीतिक हल निकालने में सफल रहा परन्तु समाधान पूरी तरह अभी भी नहीं हुआ है। 
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद बरसों से चला आ रहा है। दोनों देष वास्तविक सीमा रेखा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण और एक-दूसरे की परियोजना को संदेह की दृश्टि से देखते रहे हैं। सड़कों, पुलों, रेल लिंक, हवाई अड्डा आदि को लेकर दोनों ने ताकत झोंकी है। चीन भारत से सटे तिब्बत क्षेत्र में कई एयरबेस ही नहीं बल्कि 5 हजार किलोमीटर रेल नेटवर्क और 50 हजार से अधिक लम्बी सड़कों का निर्माण कर चुका है। फिलहाल चीन की तुलना में भारत काफी पीछे है। इतना ही नहीं भारत के साथ सटी सीमा पर चीन के 15 हवाई अड्डे हैं जबकि 27 छोटी हवाई पट्टी का भी निर्माण वह कर चुका है। तिब्बत के गोंकर हवाई अड्डा किसी भी मौसम में वह उपयोग करता है। जहां लड़ाकू विमानों की तैनाती की गयी है। तिब्बत और यूनान प्रान्त ने वृहद् मात्रा पर सड़क और रेल नेटवर्क का सीधा तात्पर्य है कि चीनी सेना केवल 48 घण्टे में भारत-चीन सीमा पर आसानी से पहुंच सकती है। हालांकि भारत भी लद्दाख से जुड़ी चीनी सीमा पर विमान उतरने की व्यवस्था, पुल निर्माण और मजबूत सड़क बनाने का काम कर रहा है। जिसके चलते अब भारतीय सेना 8 घण्टे के भीरत सीमा पर पहुंच सकती है। जाहिर है कि चीन को भारत की यही सकारात्मकता पच नहीं रही है। गौरतलब है कि भारत डेढ़ साल पहले केवल 981 किमी. सड़क निर्माण करने में कामयाबी पायी है। इसे एक धीमी प्रगति की संज्ञा दिया जाना वाजिब होगा। यही वजह है कि भारत-चीन सीमा सड़क परियोजना जिसकी मूल समय सीमा 2012 थी उसे बढ़ा कर 2022 की गयी है। चीन की सीमा व्यापक पैमाने पर भारत को छूती है और अरूणाचल प्रदेष पर चीन की कुदृश्टि है अब यही कुदृश्टि लद्दाख पर भी है। दो बरस पहले सड़कों की स्थिति को देखें तो चीन की सीमा को छूने वाली सड़कें 27 सड़कें अरूणाचल प्रदेष में, 5 सड़कें हिमाचल में जबकि जम्मू-कष्मीर में 12 सड़कें और 14 सड़कें उत्तराखण्ड समेत 3 सिक्किम में हैं। हालांकि नेपाल में भी सड़क निर्माण को लेकर कालापानी और लिपुलेख में नेपाल ने एक नई मुसीबत खड़ी कर रखी है। यहां 80 किमी के भारतीय क्षेत्र को नेपाल अपनी सीमा में षामिल करने पर आमादा है।
गौरतलब है भारत और चीन के बीच आवागमन सदियों पुराना है। दूसरी षताब्दी में चीन ने भारत, फारस (वर्तमान ईरान) और रोमन साम्राज्य को जोड़ने के लिए सिल्क मार्ग बनाया था। उस दौर में रेषम समेत कई चीजों का इस मार्ग से व्यापार होता था। अब वन बेल्ट वन रोड़ इसी तर्ज पर बनाया जा रहा है जो दो हिस्सों में निर्मित होगा। पहला जमीन पर बनने वाला सिल्क मार्ग, दूसरा समुद्र से गुजरना वाला मेरीटाइमन सिल्क रोड़ षामिल है। सिल्क रोड़ इकोनोमिक बेल्ट एषिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ेगा। इसके माध्यम से बीजिंग को तुर्की से जोड़ने का भी प्रस्ताव है और रूस-ईरान-ईराक को भी यह कवर करेगा। इतना ही नहीं वन बेल्ट, वन रोड़ के तहत चीन आधारभूत संरचना परिवहन और ऊर्जा में निवेष कर रहा है। इसके तहत पाकिस्तान में गैस पाइपलाइन, हंगरी में एक हाईवे और थाईलैण्ड में हाइस्पीड एक लिंक रोड़ भी बनाया जा रहा है। तथ्य यहीं समाप्त नहीं होते चीन से पोलैण्ड तक 9800 किमी रेल लाइन भी बिछाने का प्रस्ताव है। चीन का सड़क और रेल नेटवर्क भारत के लिए खतरा साबित हो रहा है जहां वन बेल्ट, वन रोड जहां वाणिज्यिक दृश्टि से भारत के लिए समस्या पैदा करेगा वहीं पीओके से इसका गुजरना भारत की सम्प्रभुता का भी उल्लंघन है। इस योजना का 60 देषों तक सीधी पहुंच होना और इनके जरिये भारत को घेरने की कोषिष चिंता का विशय है। जाहिर है सड़क निर्माण में तेजी लाना, सीमा पर रेल लाइन व हवाई पट्टी समेत कई परियोजनाओं को विस्तारित करना भारत के लिए अनिवार्य हो गया है। भारत की सुरक्षा सीमा के मामले में कई गुने बढ़ाने की जरूरत भी बढ़ते दिखाई दे रही है। इसके लिए बड़े धन की आवष्यकता होगी। भारत जैसे विकासषील देष की जीडीपी भले ही चीन की तुलना में 4 गुना कम है मगर अनिवार्य खर्च तो करना ही पड़ेगा। 

डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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