Thursday, July 23, 2020

कोरोना युद्ध के बीच जीवन संघर्ष

दो दषक पहले सिविल सेवा मुख्य परीक्षा के निबंध प्रष्न पत्र में एक सवाल यह भी था कि “सत्य जिया जाता है, सत्य सिखाया नहीं जाता।” जाहिर है जीवन के सबक न तो प्रयोगषाला में और न ही किसी विष्वविद्यालय में उपलब्ध है। दूसरे षब्दों में कहा जाय तो किसी वृक्ष को यह बताने की जरूरत नहीं कि उसे क्या फल देना है। दो टूक यह भी है कि आज के जीवन में आभासी और वास्तविक के बीच भी युद्ध छिड़ा है और इसी में कोरोना की एंट्री ने एक खतरनाक मोड़ पर सभ्यता को खड़ा कर दिया है। प्रषासनिक चिंतक डाॅनहम ने कहा है कि यदि हमारी सभ्यता नश्ट होती है तो ऐसा प्रषासन के कारण होगा मगर यह किसी ने नहीं बताया कि यदि षासन-प्रषासन के बूते से बाहर कोरोना जैसी समस्याएं विस्तार लें ले तो सभ्यता बचाने के लिए जनता को कितना तैयार रहना चाहिए और यदि ऐसा नहीं होता है तो आखिरकार जिम्मेदार कौन होगा। इस समय भारत कोरोना की चपेट में आर्थिक, सामाजिक, मानसिक, षिक्षा, स्वास्थ सहित तमाम मामलों में पटरी से उतर चुका है। हालांकि सरकार अपने संसाधनों की सीमा में सब कुछ पहले जैसा करने की फिराक में है पर मुसीबत के आगे नियोजन और क्रियान्वयन उस गति को प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। देखा जाय तो कोरोना युद्ध के बीच जीवन एक नये संघर्श से जूझ रहा है जिसमें न केवल जीवन मूल्य को चुनौती मिल रही है बल्कि अस्तित्व भी खतरे में है और अब पुरानी चुनौती बढ़ी बेरोज़गारी के अलावा अवसाद और आत्महत्या का पर्दापण भी तेजी से हो रहा है। दार्षनिक लहज़े में कहें तो वर्तमान दौर जीवन संघर्श का एक ऐसा आयाम लेकर आया है जिसमें सभी जीवन जीने की नई कला अपनाने की फिराक में लगे हैं। 
संयुक्त राश्ट्र की एक एजेन्सी के अनुसार कोरोना वायरस की महामारी के कारण दुनिया भर में ढ़ाई करोड़ नौकरियां खत्म हो सकती हैं। मगर सन्दर्भ यह भी है कि अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर समन्वित नीतिगत कार्यवाहियों के जरिये वैष्विक बेरोज़गारी पर कोरोना के प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है। इन दिनों दुनिया कोविड-19 के अलावा बेरोज़गारी, अवसाद और आत्महत्या की चुनौती का भी सामना कर रही है। जिस तरह तेजी से कोरोना ने दुनिया समेत भारत को अपनी जकड़ में लिया वह सभी समस्याओं को एक साथ उत्पन्न कर दिया। जीवन बचाने की फिराक में देष बंदी की गयी परन्तु इसका भी साइड इफेक्ट देखने को मिला। गौरतलब है देष व्यापी लाॅकडाउन के दौरान मानसिक अवसाद भी तेजी से बढ़ने लगे और कमोबेष अब तो आत्महत्या की खबरे भी आने लगी हैं। इस वायरस के डर के चलते लोग अवसाद और घबराहट का अभी भी षिकार हो रहे हैं। अपनी परिवार की सेहत की चिंता को लेकर व स्वयं को संक्रमित होने की डर से कुछ ने अपनी नींद भी उड़ा ली है। ऐसा नहीं है कि यह समस्या भारत में ही है। इसका उदाहरण पूरी दुनिया हो गयी है। एषियन जर्नल और सायकाइट्री में छपी एक रिसर्च के अनुसार 40 फीसदी भारतीय इस महामारी के बारे में सोचते हैं तो उनका दिमाग अस्थिर हो जाता है जबकि अमेरिका में केजर फैमिली फाउंडेषन के जरिये ये पता चलता है कि 45 फीसदी अमेरिकी लोगों ने यह माना है कि उनकी मानसिक स्थिति को नुकसान हुआ है। ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी आॅफ षेफील्ड और अल्सटर यूनिवर्सिटी की स्टडी के मुताबिक लाॅकडाउन के बाद 38 फीसदी लोग डिप्रेषन यानि अवसाद में चले गये। यह कुछ भारी-भरकम और मजबूत आर्थिक संरचना वाले देषों के बारे में है। जबकि दुनिया के बाकी देष जहां-जहां कोरोना ने करामात किया है वहां भी ऐसी स्थितियों से वे मुक्त नहीं हैं। 
जैसे रोज़गार सभी समस्याओं का हल है वैसे ही बेरोज़गारी केवल समस्या नहीं बल्कि यह कई समस्याओं की जड़ है। इसके अंदर जा कर देखें तो अवसाद और घबराहट जैसी बीमारियां भरी हुई हैं। 12 फीसदी भारतीयों को भी कोरोना के डर से नींद नहीं आती है जो अपने आप में कई अवसाद को जन्म दे सकता है। एक महीना पहले जब दुनिया कोरोना महामारी के बड़ी तबाही से गुजर रही थी हालांकि अभी भी यह तबाही का मीटर बढ़ता जा रहा है तब संयुक्त राश्ट्र महासचिव एंटेनियो गुटरस पूरी दुनिया को मानसिक स्वास्थ को लेकर आगाह कर रहे थे। उन्होंने सभी देषों की सरकारों, नागरिक समूहों और स्वास्थ अधिकारियों से मानसिक स्वास्थ से भरे मसलों पर गम्भीरता से ध्यान देने की अपील की। कोविड-19 के कारण जो समस्याएं आर्थिक के अलावा संरचनात्मक एवं प्रत्यक्ष सेहत से जुड़ी हैं उसको समझना षायद मुष्किल नहीं है मगर जो अवसाद और मानसिक समस्या की बढ़ती तादाद है वह प्रत्यक्ष कुछ और, अप्रत्यक्ष कुछ और हो सकती है। वल्र्ड हेल्थ आॅरगेनाइजेषन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट को देखें तो 7 फीसद से अधिक भारतीयों को किसी न किसी तरह का मानसिक रोग है और इनमें से 70 फीसदी का इलाज मिल पाता है। इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि 2020 में भारत की 20 प्रतिषत जनसंख्या का मानसिक स्वास्थ ठीक नहीं रहेगा। जाहिर है महज 4 हजार विषेशज्ञों के लिहाज से यह संख्या बहुत ज्यादा है। अमेरिका में कोरोना वायरस से हुई मौत का बाकियों पर बहुत आघात पहुंचा है। केजर फैमिली फाउंडेषन के सर्वे यह बता ही चुके हैं कि यहां 50 फीसद लोग मान गये हैं कि उनके दिमागी संतुलन को कोरोना खराब कर रहा है। ब्रिटेन ने भी इन दिनों डिप्रेषन की मात्रा तेजी से बढ़ रही है। चैकाने वाली बात यह है कि ब्रिटेन में लाॅकडाउन की घोशणा से एक दिन पहले अवसाद के मामले 16 फीसद और घबराहट के 17 फीसद ही थे। अब तो यह दोगुने से भी अधिक है। 
कोरोना संकट के बीच अब भारत में बेरोज़गारी मुखर हो रही है। देष में बेरोज़गारी बढ़ी है, काम-धंधे बुरी तरह चैपट हुए हैं। केवल असंगठित नहीं बल्कि संगठित क्षेत्र में भी ऐसे खतरे देखे जा सकते हैं। सेंटर फाॅर माॅनिटरिंग इण्डियन इकोनाॅमी की रिपोर्ट में साफ है कि अप्रैल में मासिक बेरोज़गारी दर करीब 24 प्रतिषत दर्ज की गयी जो मार्च में 8 प्रतिषत से नीचे थे। इसमें कोई दुविधा नहीं कि लाॅकडाउन में लोगों के हाथों से रोज़गार फिसलते रहे। मुम्बई स्थित थिंक टैंक ने कहा है कि बेरोज़गारी की दर षहरी क्षेत्रों में सबसे अधिक 29 फीसदी से अधिक रही जबकि कोविड-19 के कारण अधिक प्रभावित इलाकों में रेड जोन अधिक रहा। ग्रामीण क्षेत्रों में भी बेरोज़गारी 27 फीसदी पहुंचने की बात कही गयी है। ये आंकड़े थोड़े पुराने हैं हालात जिस तरीके से अभी भी बने हुए हैं इस प्रतिषत का पिरामिड बड़ा हो रहा है। वैसे राज्यवार अप्रैल माह में ही देखें तो पुदुचेरी में बेरोज़गारी 75 फीसदी के पार चली गयी जबकि तमिलनाडु में 50 फीसद, बिहरी और झारखण्ड में 47, हरियाणा में 43 और कर्नाटक में 30 जबकि उत्तर प्रदेष में यह आंकड़ा 21 फीसदी से अधिक है और कमोबेष यही स्थिति महाराश्ट्र की भी है। पहाड़ी राज्यों में बेरोज़गारी दर मैदान की तुलना में उतनी बढ़त नहीं ली मगर परेषानी मानो बराबर की बनी हुई है। आंकड़ों की राह पर थोड़ी देर सफर करें तो पता चलता है कि लोग कोरोना से ग्रस्त होते गये और देष दुनिया तबाह होती गयी। भारत में बेरोज़गारी की दर मई में अप्रैल जैसी ही रही। जाहिर है अब यह आंकड़ा बढ़ा होगा। लाॅकडाउन में ढ़ील दिये जाने या अनलाॅक के बावजूद रोज़गार को लेकर कोई खास परिवर्तन नहीं दिखा। बेरोज़गारी के मामले में यह अब तक का सबसे चरम है। चेहरे मुरझाये हैं और होठों पर एक आभासी मुस्कान जो वास्तव में वास्तविक नहीं है।  


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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