Friday, June 5, 2020

वैश्विक समूहों की बदलती प्रासंगिकता

इन दिनों पूरी दुनिया एक षत्रु से लड़ रही है जो लाइलाज है साथ ही इसकी तबाही के स्वाद से सभी देष वाकिफ हैं। चीन से निकला दुष्मन कोरोना वायरस इन दिनों सभी की सांसों पर भारी पड़ा है और इससे सुरक्षित होने के लिए दुनिया दो-चार हो रही है। विष्व स्वास्थ संगठन से नाता तोड़ चुका अमेरिका यह संकेत दे दिया है कि ऐसे संगठनों की प्रासंगिकता अब खटाई में है। कई अन्तर्राश्ट्रीय संगठन दौर के अनुपात में अप्रासंगिक होते रहे हैं और कुछ नये स्वरूप लेते भी रहे हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में इन दिनों जी-7 की चर्चा है। जिसमें दुनिया के 7 सबसे बड़ी अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश द्वारा बतायी गयी विकसित अर्थव्यवस्थाएं षामिल हैं। 1975 में 6 विकसित देष फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, इंग्लैण्ड और अमेरिका बाद में कानाडा को जोड़ते हुए पथगामी हुआ जी-7 आज विस्तार की एक नई राह पर खड़ा दिखाई देता है। हालांकि दो दषक पहले आठवें देष के रूप में रूस भी इसका हिस्सा था पर अब मौजूदा समय में वह बाहर है। अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का इरादा है कि जी-7 को जी-10 या जी-11 में तब्दील किया जाये जिसमें भारत, आॅस्ट्रेलिया, रूस और दक्षिण कोरिया को षामिल करने की बात की जा रही है। गौरतलब है कि यह समूह आर्थिक विकास एवं संकट प्रबंधन, वैष्विक सुरक्षा, ऊर्जा एवं आतंकवाद जैसे वैष्विक मुद्दों पर आम सहमती को बढ़ावा देने हेतु सालाना बैठक आयोजित करता है। यह दुनिया का एक ऐसा धनी देषों का समूह है जो औद्योगिक और विकसित है जिनका वैष्विक निर्यात में 49 फीसद और विष्व की जीडीपी का 46 प्रतिषत है। इतना ही नहीं दुनिया का आधे से अधिक धन अर्थात् 58 फीसदी की मालिक यही समूह है। औद्योगिक आउटपुट में 51 प्रतिषत जबकि अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश की परिसम्पत्तियों में 49 फीसद हिस्सेदारी है। उक्त से यह साफ है कि यह समूह दुनिया को अपने आगे पीछे घुमाने की कूबत रखता है मगर कोरोना महामारी के बीच जापान और कुछ हद तक कानाडा को छोड़ दें तो बाकियों की आर्थिक उच्चस्थता और मजबूत सुरक्षा ढांचा स्वयं के नागरिकों के बचाने के काम न आ सका।
वैसे भारत को इस समूह में षामिल होने का अवसर मिलना हर लिहाज़ से बड़ी बात है मगर तुलनात्मक तौर पर देखें तो भारत की अर्थव्यवस्था न्यून है। अमेरिका जहां 19 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था रखता है वहीं भारत में यह तीन ट्रिलियन डाॅलर से भी कम है। हालांकि 2024 तक 5 ट्रिलियन डाॅलर होने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। मगर कोरोना ने इसे भी रोक दिया है। सवाल है कि जी-7 अभी तक कितना प्रभावी रहा है। वैसे देखा जाय तो इसकी आलोचना इस बात के लिए होती रही है कि यह कभी भी एक प्रभावी संगठन सिद्ध नहीं हुआ। हालांकि समूह कई सफलताओं का दावा करता है जिनमें एड्स, टीबी और मलेरिया से लड़ने के लिए वैष्विक फण्ड की षुरूआत करना भी है। जी-7 का दावा है कि बीते दो दषकों में करीब 3 करोड़ लोगों की उसने जान बचाई है। दावा तो यह भी है कि 2015 के पेरिस जलवायु समझौते को लागू कराने के पीछे इसी की भूमिका है जबकि सच्चाई यह है कि इसी समझौते से अमेरिका अपने को अलग कर लिया है। ऐसे में समूह की प्रासंगिकता तो हो सकती है पर उसमें षामिल अमेरिका पेरिस जलवायु के मामले में अप्रासंगिक सिद्ध हुआ। देखा जाये तो 45 बरस पुरानी यह संस्था और इतनी बार ही षिखर सम्मेलन आयोजित करने वाला यह समूह अब नूतनता की तलाष में है। भारत सहित अन्य देषों को इसमें षामिल करने का दृश्टिकोण दो इषारा करते हैं। पहला यह कि चीन अमेरिका का इस समय सबसे बड़ा दुष्मन है और दक्षिण चीन सागर पर अपना एकाधिकार रखना चाहता है। दक्षिण कोरिया, आॅस्ट्रेलिया, जापान सहित भारत और अमेरिका आदि को यह बहुत अखरता है। जापान पहले से ही जी-7 का सदस्य है जबकि दक्षिण कोरिया आॅस्ट्रेलिया और भारत तीनों यदि इस समूह में होते हैं तो जी-7 की ताकत एषिया के साथ आॅस्ट्रेलिया महाद्वीप में भी मजबूत होगी और चीन दक्षिण चीन सागर को लेकर हाषिये पर धकेला जा सकता है। दूसरा यह कि भारत को जी-7 में षामिल करने की वकालत करके अमेरिका एषियाई देषों में एक बड़ा संतुलन साधने की फिराक में है जो चीन को काउंटर करने के काम आ सकता है। हालांकि अर्थव्यवस्था को थोड़ी देर के लिए पीछे छोड़ दिया जाय तो भारत वैष्विक फलक पर यह सिद्ध कर चुका है कि वह किसी भी समूह का सदस्य बनने की योग्यता रखता है। रही बात रूस की तो रूस 1997 में इसका सदस्य बना था और 2014 में यूक्रेन, क्रीमिया हड़पने के बाद इसे जी-7 से निलम्बित कर दिया गया।
जब बात जी-7 के विस्तार की है और उसमें भारत को षामिल करने की है तो एक सवाल यह मन में आता है कि इस समूह का हिस्सा चीन क्यों नहीं है जबकि वह अमेरिका के बाद दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। गौरतलब है कि लगभग 13 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था चीन रखता है मगर दुनिया की सबसे बड़ी आबादी भी चीन के पास है। ऐसे में प्रति व्यक्ति आय के लिहाज़ से इसकी सम्पत्ति जी-7 समूह देषों के मुकाबले बहुत कम ठहरती है। यही कारण है कि चीन को उन्नत या विकसित अर्थव्यवस्था नहीं माना जा सकता। हालांकि जनसंख्या और प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत की स्थिति और खराब है। विकासषील देष भारत अल्पविकसित के हाषिये पर भी रहा है। ऐसे में विकसित देषों के साथ कंधे से कंधा मिलाना जितना सहज लगता है व्यावहारिक तौर पर उतना आसान नहीं है। अगर चीन उन्नत या विकसित अर्थव्यवस्था के चलते समूह में षामिल नहीं है लेकिन इसी स्थिति के बावजूद भारत को यदि आमंत्रण मिला है तो साफ है वैष्विक पटल पर भारत की साख केवल सम्पत्ति से नहीं सदाचार से भी आंकी जा रही है। जिस मामले में चीन निहायत फिसड्डी है। देखा जाये तो भारत और चीन जी-20 के देषों का हिस्सा हैं दोनों ब्रिक्स के सदस्य भी हैं जो विकसित और विकासषील देषों का पुल कहा जाने वाला समूह है। जी-20 में षामिल चीन षंघाई जैसे आधुनिकता षहरों की जनसंख्या बढ़ाने में इन दिनों लगा हुआ है। भारत और चीन द्विपक्षीय सम्बंधों के साथ कई अन्तर्राश्ट्रीय समूहों में षिरकत करते हैं मगर सीमा विवाद और पड़ोसी देषों को भारत के विरूद्ध भड़काने में चीन हमेषा मषगूल रहता है। मौजूदा समय में लद्दाख समस्या इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
ऐसा नहीं है कि जी-7 दुनिया का कायाकल्प कर देगा। पहले से षामिल देषों के बीच भी कई असहमतियां हैं। कनाडा और अमेरिका के बीच पिछले सम्मेलन में बड़ा मतभेद उभरा था जिसमें आयात षुल्क के साथ पर्यावरणीय मुद्दे मतभेद के कारणों में रहे हैं। अफ्रीका, लैटिन अमेरिका सहित दक्षिणी गोलार्द्ध के कोई देषा जी-7 में नहीं है। ऐसे में यह उत्तरी गोलार्द्ध के यूरोप और अमेरिका महाद्वीप और एषिया के जापान तक ही यह सीमित है। फलस्वरूप यह एक घिसा-पिटा और पुराना माॅडल बन कर रह गया है। अन्यों के इसमें षामिल होने से नये विचार और ताकत ही नहीं बल्कि दक्षिणी गोलार्द्ध में भी इसकी पहुंच बढ़ेगी। भारत आसियान में अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहता है साथ ही प्रषान्त महासागरीय देष एपेक समूह तक पहुंचना चाहता है। जी-7 का सदस्य बनना इन रास्तों को आसान कर सकता है। इसके साथ दक्षिण एषिया में भारत की साख भी बढ़ेगी और चीन की तुलना में वैष्विक कद ऊँचा होगा जिसे दक्षिण एषियाई देष सार्क समेत आसियान में संतुलन के काम आयेगा। गौरतलब है कि आसियान के बाजारों पर भी चीन का कब्जा है। हांलाकि कोरोना महामारी का जन्मदाता चीन इन दिनों दुनिया के निषाने पर है जिसे देखते हुए कई देष समूह और देष की दृश्टि से बदलाव लेंगे। ऐसी बीमारी या परेषानी फिर न घटित हो और चीन जैसे देष संकट के सबब न बनें इसके लिए भी समीकरण वैष्विक स्तर पर बदलेंगे। जी-7 को जी-11 बनाने का दृश्टिकोण इस बात को पुख्ता करते हैं। फिलहाल भारत का इसमें सदस्य होने का कितना लाभ होगा यह आने वाली परिस्थितियां निर्धारित करेंगी।


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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