कोरोना वायरस का प्रभाव हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों पर न पड़े ऐसा कोई कारण नहीं दिखाई देता और न ही षिक्षा व्यवस्था के पहले जैसे होने की स्थिति दिखती है। बहुत से लोग जब पीछे मुड़कर देखेंगे तो पायेंगे कि उनके जीवन की कई चीजें बदल गयी हैं। बावजूद इसके यह गारंटी से कह पाना मुष्किल है कि वास्तविक जीवन से वे अनभिज्ञ नहीं रहेंगे। फिलहाल दुनिया की यह महामारी भारत के लिए भी लम्बे समय की चुनौती बन गयी है साथ ही भारतीय जीवन, समाज, और अर्थव्यवस्था सहित षिक्षा के क्षेत्र को बड़े बदलाव की ओर धकेल दिया है। गौरतलब है कि 1991 के उदारवादी अर्थव्यवस्था ने भारतीय जीवन में जो गुणात्मक परिवर्तन किया और जिस प्रकार तकनीक का बोलबाला हुआ जिसके फलस्वरूप षिक्षा में तकनीकी समावेष के साथ क्लासरूम टीचिंग कायम रही। 2020 में कोरोना ने सब कुछ तितर-बितर कर दिया। इसका प्रभाव चैतरफा है मगर षिक्षा के मूल चरित्र को तो मानो इसने बदल कर रख दिया हो। गौरतलब है कि भारत में 1970 में इलेक्ट्राॅनिक विभाग और 1977 में भारतीय सूचना केन्द्र स्थापित हुआ और 90 के दषक में कम्प्यूटर क्रान्ति आयी और 21वीं सदी की षुरूआत तक तकनीक का बोलबाला हो गया और वर्तमान तो डिजिटलीकरण का दौर है। ई-बाजार, ई-सुविधा, ई-सेवा, ई-समस्या सहित अब इन दिनों ई-षिक्षा पूरी तरह फैल गयी है।
गौरतलब है कि भारत समेत दुनिया के अनेक देष और जाने-माने षिक्षण संस्थायें, क्लासरूम टीचिंग से डिजिटल षिक्षा की ओर तेजी से कदम बढ़ा चुकी हैं। षिक्षा का यह नया वर्चुअल बदलाव कितना बेहतरी की ओर जायेगा अभी मात्र अंदाजा ही लगाया जा सकता है। कोविड-19 का प्रभाव षिक्षा पर खराब पड़ा है। कोविड-19 पेनडेमिक: षाॅक्स टू एजूकेषन एण्ड पाॅलिसी रिसपोन्सेस षीर्शक वाली एक रिपोर्ट से पता चलता है कि महामारी से पहले करीब 26 करोड़ बच्चे प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल से बाहर थे। स्थिति अब और बदत्तर होने की बात कही जा रही है। यूनेस्को की माने तो 14 अप्रैल 2020 तक कोरोना के कारण डेढ़ अरब से अधिक छात्र-छात्राओं की षिक्षा प्रभावित हो चुकी हैे। रूस, आॅस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन तथा ग्रीनलैण्ड सहित तमाम देषों के साथ भारत भी लाॅकडाउन के दौर में रहा है जो अभी भी अनलाॅक के साथ पूरी तरह खुला नहीं है। भारत की जनसंख्या दुनिया में दूसरे नम्बर पर है। ऐसे में 136 करोड़ की जनसंख्या रखने वाला भारत कोरोना प्रभाव के चलते षिक्षा की दुष्वारियों को झेल रहा है। लाॅकडाउन के चलते यहां 32 करोड़ छात्रों का पठन-पाठन प्रभावित हुआ। यूनेस्को के आंकड़े बताते हैं कि चीन में 28 करोड़, ईरान में लगभग 2 करोड़ और इटली में करीब एक करोड़ छात्र पर ऐसा ही प्रभाव पड़ा है। इसके अलावा अन्य देष भी कमोबेष जनसंख्या के अनुपात में प्रभावित हैं। मसलन 5 करोड़ की जनसंख्या वाला स्पेन में एक करोड़ छात्र इसकी चपेट में है।
षिक्षा की चुनौतियों से निपटने के लिए स्कूल, काॅलेज और विष्वविद्यालयों ने डिजिटल का रास्ता चुना यहां तक कि आॅनलाइन एग्ज़ाम को भी विकल्प के तौर पर देखा जाने लगा। यूजीसी ने ई-षिक्षा को लेकर विष्वविद्यालयों को गाइडलाइन भी जारी की। हालांकि ई-लर्निंग को स्कूली षिक्षा पर भी तेजी से थोपा जाना लगे। प्राथमिक षिक्षा लेने वाले बच्चों से लेकर विष्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों के लिए मोबाइल और लैपटाॅप के माध्यम से कक्षाएं आयोजित की जाने लगी। जिसे लेकर षैक्षणिक स्तर पर कितना फायदा हुआ इसका कोई हिसाब नहीं है मगर मुख्यतः स्कूली विद्यार्थियों को लेकर स्वास्थ की समस्या प्रकाष में आने लगी। सिर दर्द, आंखों में थकावट, चिड़़चिड़ापन और पढ़ाई से कन्नी काटना और किसी अनजाने डर और भय से नौनिहाल षिक्षा से ही मानो मुंह मोड़ने लगे। सवाल यह है कि क्या क्लासरूम षिक्षा का विकल्प डिजिटल षिक्षा प्रत्येेक के लिए मुनासिब है। दषकों पहले देष में दूरस्थ षिक्षा का प्रचलन था जो वर्तमान में भी है जिसमें षिक्षक तथा षिक्षा लेने वाले को एक समय विषेश पर मौजूद होने की आवष्यकता नहीं होती थी। यह प्रणाली अध्यापन तथा षिक्षण के तौर-तरीके तथा समय निर्धारण के साथ-साथ गुणवत्ता सम्बंधी अपेक्षाओं से समझौता किये बिना प्रवेष मापदण्डों में भी उदार है। भारत की मुक्त तथा दूरस्थ षिक्षा प्रणाली इस मामले में बहुत फलित हुई। इतिहास में देखें तो यूजीसी ने 1956-1960 की अपनी रिपोर्ट में सांयकालीन महाविद्यालय पत्राचार कार्यक्रम आदि षुरू करने का सुझाव दिया था और इसकी षुरूआत 1962 में दिल्ली विष्वविद्यालय में हुई। 90 के दषक आते-आते इससे जुड़ी आधा दर्जन से अधिक विष्वविद्यालय देखे जा सकते हैं मगर जब इग्नू 1985 में अवतरित हुआ तो देष और दुनिया में मील का पत्थर गाढ़ा। आज देष में सर्वाधिक छात्रों की संख्या इसी विष्वविद्यालय में है। स्टडी मटीरियल समय-समय पर कक्षाओं का आयोजन और गुणवत्ता से भरी पढ़ाई इसकी पहचान रही है। भारत में दूरस्थ षिक्षा के कई लाभ देखे जा सकते हैं जो न केवल यहां के युवाओं को अवसर दिया बल्कि मनौवैज्ञानिक अनुषासन का भी लाभ मिला। गांधी जी का मानना था कि एक व्यक्ति को प्रारम्भिक स्तर पर सभी प्रकार की षिक्षा मिलनी चाहिए उसमें किसानी से लेकर लकड़ी तक काम करने तक सभी प्रकार का अनुभव होना चाहिए। यह कहीं न कहीं आत्मनिर्भर भारत का दर्षन है। गांधी जी सदैव कहते रहे कि भारत के गांव के अपनी बुनियादी आवष्यकता के लिए आत्मनिर्भर होना चाहिए। गांव को एक गणराज्य के रूप में विकसित करने पर भी जोर देते थे। कोरोना के कारण जहां एक ओर कल-कारखाने पूरी तरह से बंद हो गये हैं वहीं षिक्षण संस्थानों पर भी महीनों से ताला लटका हुआ है। जिस तरह षहरी जीवन से गांव की ओर है लोगों ने रूख किया है उससे तो यही लगता है कि 1922 की गांधी की ग्राम स्वराज की अवधारणा 2022 तक जरूर पूरी हो जायेगी। बुनियादी षिक्षा और आॅनलाइन षिक्षा का षायद यही फर्क है कि एक को ग्रहण करते समय लिबास धूल में सन जाते हैं पर मन बौद्धिक हो जाता है और दूसरी षिक्षा को साफ लिबास में ग्रहण करने के बावजूद बौद्धिकता किताबी ही रह जाती है।
फिलहाल कोरोना के इस दौर में डिजिटल षिक्षा क्या पत्राचार की षिक्षा के अनुपात में हित पोशित कर सकती है। यहां ई-लर्निंग और डिस्टेंस एजूकेषन की तुलना स्वाभाविक है। डिस्टेंस एजूकेषन पुस्तकीय अध्ययन है जबकि ई-लर्निंग इंटरनेट और मोबाइल, कम्प्यूटर या लैपटाॅप आदि से युक्त विधा है। भारत एक विकासषील देष है यहां साइबरी जाल अभी न पूरी तरह है और न सबकी पहुंच में है। ग्रामीण इलाके में यह निहायत खराब अवस्था में है ऐसे में ई-लर्निंग बड़े और मझोले षहरों तक ही सीमित षिक्षा और कुछ हद तक इंटरनेट युक्त गांव तक ही पहुंच हो सकती है जबकि पत्राचार षिक्षा किसी तकनीक की मोहताज नहीं है और इससे न ही किसी प्रकार की स्वास्थ समस्या हो सकती है। गौरतलब है कि वर्श 2025 तक भारत में इंटरनेट उपयोगकत्र्ताओं की संख्या 90 करोड़ पहुंचने की उम्मीद है और इस क्षेत्र में 2016 से अब तक 8 गुना बाजार भी बढ़ चुका है। बावजूद इसके स्कूली षिक्षा और दूरस्थ षिक्षा का सम्पूर्ण विकल्प षायद ही ई-षिक्षा हो पाये। वैसे अमेरिका देषों में डेढ़ दषक पहले ही उच्च षिक्षा में ई का प्रवेष तेजी से हुआ और 2014 तक कई गुने की बढ़त ले लिया। कोरोना की चपेट में अमेरिका की षिक्षण संस्थाएं साल भर के लिए बंद कर दी गयी हैं ऐसे में यहां की ई-षिक्षा यहां के विकसित साइबरी जाल के चलते अधिक विस्तारवादी हो सकती है। फिलहाल विष्वविद्यालयी या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में भले ही ई-लर्निंग एक मजबूत वातावरण दे रहा हो मगर जो षरीर बाल्यावस्था में है उसे रेडियोधर्मिता से भी जकड़ रहा है। मसलन ई-षिक्षा सबके लिए विकल्प उस पैमाने पर नहीं है जैसे अन्य पद्धतियां हैं। इसमें कोई दुविधा नहीं कि कोरोना के चलते ई-षिक्षा एक महत्वपूर्ण विकल्प है मगर इसके लाभ-हानि के साथ व्याप्त चुनौती को नजरअंदाज करना उचित न होगा।
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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