Thursday, July 23, 2020

लॉक व अनलॉक की प्रयोगशाला बनता देश

जब 24 मार्च की षाम प्रधानमंत्री मोदी ने सम्पूर्ण देष में लाॅकडाउन होने की मुनादी की तब पूरे देष में कोरोना के बामुष्किल 5 सौ मामले थे। यह उम्मीद की गयी थी कि भारत का यह कदम दुनिया के लिए नजीर बनेगा और कोरोना औंधे मुंह गिरेगा। मगर जुलाई के पहले पखवाड़े तक तस्वीर बिल्कुल बदली है। प्रतिदिन 25 हजार एवं इससे अधिक कोरोना पीड़ितों की संख्या का बढ़ना और सैकड़ों की तादाद में मरने का आंकड़ा यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर लाॅकडाउन से क्या उम्मीद थी और क्या नतीजे हैं। इतना ही नहीं कोरोना जब देष में भीशण तरीके से अपना नेटवर्क फैला रहा था तब उसी दौरान सरकार जून की षुरूआत से ही अनलाॅक का मनसूबा पाल रही थी नतीजन देष लाॅकडाउन से उबर कर अनलाॅक में चला गया और यहीं से कोरोना के प्रवाह के साथ हो चला। पहले चिंता थी कोरोना से हर एक को बचाना बाद में यही चिंता इस चिंतन में बदल गयी कि भले ही भारत में कोरोना बड़े तादाद में बढ़ रहा हो पर मौत का आंकड़ा तुलनात्मक बहुत कम है। लाॅकडाउन के लाभ को अभी तक समझा नहीं जा सका है मगर नुकसान सभी का पसीना निकाल रहा है। कारोबार बंद है कुछ को छोड़कर साथ ही हाॅस्पिटल कोरोना मरीजों से पटे हैं। अमिताभ बच्चन से लेकर अनुपम खेर और कई जानी-मानी हस्तियों के घरों तक इसकी दस्तक हो चुकी है। महाराश्ट्र में तो मानो राजभवन ही क्वारंटीन है और मुम्बई इस मकड़जाल से मुक्त ही नहीं हो पा रही है वहां लाॅकडाउन जैसी स्थिति बरकरार है। कोरोना के मामले में उत्तर प्रदेष सहित बिहार आंकड़े के लिहाज़ से समतल राह पर तो दिखते हैं मगर अनलाॅक के चलते हुई लापरवाही ने यहां भी भीशण तबाही का राह बना दिया। लिहाजा उत्तर प्रदेष की सरकार ने प्रत्येक षनिवार और रविवार को पूर्ण लाॅकडाउन का प्रयोग षुरू किया जबकि बिहार 16 से 31 जुलाई तक लाॅकडाउन तक लाॅकडाउन में चला गया। इतना ही नहीं देष के कई क्षेत्रों में कमोबेष इसी तरीके के प्रयोग करते देखे जा सकते हैं। 
भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण कब उतार पर होगा अंदाजा लगाना सरकार के बूते की भी बात नहीं है। कोरोना मामले में हर नये दिन नये रिकाॅर्ड बनना और इसका विकराल रूप सरकारी तंत्र का भी होष पख्ता कर दिया है इसी के चलते कई राज्यों में मिनी लाॅकडाउन लागू किये जा रहे हैं। उत्तर प्रदेष में षनिवार और रविवार का लाॅकडाउन के पहले 10 से 13 जुलाई तीन दिनी मिनी लाॅकडाउन किया जा चुका है। पंजाब में थोड़ी-मोड़ी जो छूट चल रही थी बढ़े हुए आंकड़े ने उसे फिर वहीं खड़ा कर दिया। गौरतलब है पंजाब ऐसा राज्य है जहां लाॅकडाउन के नियमों में और भी सख्ती कर दी गयी है यहां पैदल गैदरिंग को भी पूरी तरह रोक लगा दी गयी है। मास्क दफ्तरों में पहनना भी जरूरी है यहां आंकड़ा 8 हजार पार कर रहा है। झारखण्ड में भी कोरोना रूक नहीं रहा है। हालांकि यहां सम्पूर्ण लाॅकडाउन नहीं है मगर कुछ जिलों में लाॅकडाउन जैसी पाबंदियां हैं। महाराश्ट्र के पुणे में 23 जुलाई तक लाॅकडाउन किया गया है आगे क्या होगा, पता नहीं। तकनीकी कारोबार के लिए जाना जाने वाला बंगलुरू 14 से 22 जुलाई तक षहर और ग्रामीण सभी जगहों पर पूरी तरह लाॅकडाउन कर दिया गया। ऐसी ही स्थितियां गुवाहाटी, नागालैंड और षिलांग में भी कमोबेष देखी जा सकती है। एक प्रकार से ये छोटे-छोटे स्तर के लाॅकडाउन यह इषारा कर रहे हैं कि या तो जब देष लाॅकडाउन में था तब यहां उदासीनता बरती गयी या फिर लोगों ने कोरोना को हल्के में लिया। मिषन बिगिन अगेन अर्थात् लाॅकडाउन अगेन ये महाराश्ट्र का तो मानो ष्लोगन ही बन गया है। गौरतलब है कि महाराश्ट्र देष का सबसे कोरोना पीड़ित राज्य है और मुम्बई सबसे बड़ा षहर। ऐसे में नाप-तौल कर भी देखा जाय तो कोरोना का पलड़ा किसी भी लाॅकडाउन को लांघने में संकोच नहीं कर रहा है। 
भारत में जब लाॅकडाउन की घोशणा हुई तो यह चार चरणों से गुजरता हुआ कुल 69 दिन का था। भारत में कोरोना पीड़ितों की संख्या 9 लाख के आंकड़ों के आसपास है। चीन के वुहान की यह महामारी चीन में 76 दिन के लाॅकडाउन में उसे 84 हजार पीड़ित और 34 सौ की मौत के बदले मुक्ति दे दी परन्तु भारत समेत दुनिया के कई देष इस उधार की बीमारी की कीमत सूद समेत अभी भी चुका रहे हैं। भारत में मरने वालों का आंकड़ा 22 हजार से पार हो गया है जबकि अमेरिका इसी मामले में डेढ़ लाख के आसपास है। कोरोना कब खत्म होगा किसी के पास ठोस जवाब नहीं है। इटली 84 दिनों तक लाॅकडाउन में रहा। जहां 32 हजार लोग मरे और ढ़ाई लाख के आसपास संक्रमित हुए। सिंगापुर जैसे देष कोरोना बचने के लिए जाने जाते हैं पर इस समय वे भी तबाही में फंसे है। ब्रिटेन 71 दिन के लाॅकडाउन में रहा मगर 35 हजार लोगों की मौत यहां भी हुई और ढ़ाई लाख लोग प्रभावित हुए। स्पेन भी ब्रिटेन के बराबर ही लाॅकडाउन में रहा और यहां का डेटा मरने और प्रभावित दोनों के मामले में ब्रिटेन से थोड़ा कम है। सवाल खड़ा हो या लेटा पर उत्तर इस चाहत में है कि किस कीमत पर कोरोना से मुक्ति मिलेगी। भारत गांवों का देष है जो मजदूर या कामगार षहरों को छोड़कर गांव गये वहां उनके सामने अब दो समस्याएं हैं एक रोज़गार की दूसरे उन्हीं के द्वारा पहुंचे कोरोना की। हालांकि भारत में इसके चलते मृत्यु दर कम है और जनसंख्या के लिहाज़ से पीड़ितों की संख्या भी कम है मगर उस भय का क्या करेंगे जो 130 करोड़ लोगों में है। फिलहाल कोरोना से उपजी समस्या के चलते काम-धंधे, रोजी-रोज़गार और यहां तक की मन और विचार अवसाद की ओर चले गये हैं। 
कोरोना वायरस महामारी को रोकने के लिए दुनिया ने लाॅकडाउन का सहारा लिया और जब तक लाॅकडाउन चलता रहा यह उम्मीद रही कि इस पर विजय पायी जा सकेगी हालांकि इस दौर में भी संक्रमण विकराल रूप लिए हुए था। लाॅकडाउन में ढ़ील के बाद तो स्थिति कई गुने में परिवर्तित हो गयी हालांकि विषेशज्ञ लाॅकडाउन हटाने के बारे में अपने ढंग की चेतावनी भी दी थी। डब्ल्यूएचओ ने भी लाॅकडाउन खोलने का तरीका बताया था पर इस बीमारी ने किसी भी नियम को सफल नहीं होने दिया। अस्पताल, बैंक, किरानों की दुकान और अन्य वस्तुओं को छोड़कर सभी की अर्थव्यवस्था अभी भी हाषिये पर है। हालांकि हिम्मत करके कई अन्य क्षेत्रों में कदम उठाये जा चुके हैं मगर यह प्रयोग कितना सफल है अभी कहना कठिन है। महीनों पहले लाॅकडाउन के कई फायदे लोग गिनाते थे अब केवल नुकसान बताते हैं। देष में कोरोना इतने मजबूत लाॅकडाउन के बीच क्यों बढ़ गया इसके दो कारण हैं पहला लोगों की आर्थिक स्थिति ने बाहर निकलने के लिए मजबूर किया, दूसरा सरकार द्वारा किया गया अनलाॅक। फिलहाल षिक्षा चैपट है, परीक्षाएं खतरे में हैं मजदूरों के बाद अब मध्यम वर्ग की आर्थिक दषा टूट रही है और देष भी आर्थिक दृश्टि से अभी खड़ा नहीं हुआ है ऐसे में कई दुविधाओं से सरकार भी भरी है। क्या करें, क्या न करें असमंजस उसमें भी है। सरकार भी यह प्रयोग कर रही है कि कोरोना कैसे कम हो। यही कारण है कि आंषिक और मिनी लाॅकडाउन करके इसका रास्ता खोज रही है पर यह पुख्ता है दावे से वह भी नहीं कह सकती है।



डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेषशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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