Monday, February 17, 2020

भारत के लिए बेहद अहम ट्रम्प की यात्रा

आगामी 24 से 26 फरवरी के बीच दुनिया के सबसे ताकतवर देष अमेरिका के राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत में द्विपक्षीय सम्बंध मजबूत करते दिखेंगे। अहमदाबाद क्रिकेट स्टेडियम में लाख से अधिक जनमानस को सम्बोधित भी करेंगे। इसके अलावा कई कार्यक्रमों के साथ वह दो दिन भारत की आबोहवा को महसूस करेंगे। जाहिर है फरवरी का माह बेहद खास होने वाला है। ट्रम्प का यह दौरा जहां अमेरिका में होने वाले चुनाव में भारतीयों की भागीदारी को लेकर अहम है वहीं दक्षिण एषिया के लिए भी खास बन जाता है। पाकिस्तान को इससे जोड़े ंतो इसकी अहमियत कहीं और अधिक बढ़ जाती है। चूंकि ट्रम्प भारत आयेंगे मगर पाकिस्तान नहीं जायेंगे इस बात से पाकिस्तान की स्थिति क्या हो सकती है सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। इमरान खान तीन बार ट्रम्प से मिले हैं और हर बार कष्मीर का मुद्दा उठाया है। ग्रे लिस्ट में सूचीबद्ध पाकिस्तान पर इन दिनों काली सूची में जाने का खतरा भी मंडरा रहा है। आर्थिक स्थिति बदहाल है पर आतंक को लेकर रवैया में कोई परिवर्तन नहीं दिखता है। ट्रम्प की यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब मध्य एषिया तनाव से गुजर रहा है। चीन कोरोना वायरस से बुरी तरह प्रभावित है और पाकिस्तान के साथ भारत का सम्बंध सबसे खराब दौर में है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि दोनों देषों के द्विपक्षीय सम्बंध मजबूत होंगे साथ ही दुनिया को एक मजबूत भारत भी दिखेगा। हालांकि डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा से पहले कुछ अमेरिकी सीनेटरों ने कष्मीर में मानवाधिकार की स्थिति और देष में धार्मिक स्वतंत्रता का आंकलन करने की मांग की है जो सीनेटर यह मुद्दा उठा रहे हैं वह स्वयं को भारत का पुराना मित्र भी करार दे रहे हैं। उनकी चिंता लाज़मी है पर वे षायद भारत की वास्तविकता से पूरी तरह परिचित नहीं है।
इसमें कोई दुविधा नहीं कि डोनाल्ड ट्रम्प कई इच्छाओं के साथ भारत में प्रकट हो रहे होंगे जिसमें कारोबारी मुनाफा सबसे ऊपर होगा। भारत के साथ अमेरिका का द्विपक्षीय सम्बंध मोदी षासनकाल में कहीं अधिक बेहतर स्थिति में है। फलक पर वैदेषिक नीति को देखते हुए यह समझा जा सकता है कि ट्रम्प और मोदी की भारत में मुलाकात कूटनीतिक और आर्थिक दृश्टि से जहां समूचित होगी वहीं दुनिया के अन्य देषों के संदर्भ में भारत सषक्तिकरण का स्वरूप भी ग्रहण करेगा। ट्रम्प की यात्रा से कारोबारी जगत में भी उम्मीदें जगी हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देष है कृशि और पोल्ट्री फार्म जैसे कार्यों में 8 करोड़ से अधिक की आजीविका सुरक्षित है। जाहिर है यहां अमेरिका के लिए प्रवेष सीमित रहेगा मगर दोनों देष व्यापक व्यापार समझौता करना चाहेंगे। भारत जब अमेरिका चिकित्सा उपकरणों पर प्रतिबंध लगा दिया था तो ट्रम्प ने भी 1970 से चले आ रहे विषेश व्यापार दर्जा से भी पिछले साल भारत को बाहर कर दिया था जो कारोबारी सम्बंध की दृश्टि से एक कड़वाहट है। जाहिर है इस कड़वाहट को दूर करने का प्रयास किया जायेगा। गौरतलब है कि भारत के साथ द्विपक्षीय कारोबार के मामले में अमेरिका दूसरे स्थान पर है जबकि सबसे ज्यादा द्विपक्षीय कारोबार भारत चीन के साथ करता है। डोनाल्ड ट्रम्प कारोबारियों से भी मिलेंगे और उन्हें अमेरिका में निवेष के लिए जरूर प्रोत्साहित करेंगे। भारत में ऊर्जा की पूर्ति बहुतायत मात्रा में मध्य एषियाई देषों से होती है। पिछले साल 2 मई से अमेरिका के दबाव में ही भारत ईरान से कच्चा तेल न लेकर अन्यों पर निर्भरता बढ़ा लिया है जबकि ईरान से सब कुछ सही और सस्ता भी चल रहा था। गौरतलब है कि अमेरिका और ईरान के बीच इन दिनों स्थिति युद्ध के कगार पर पहुंचते-पहुंचते रूकी है। रोचक यह है कि अमेरिका किसी का भी दुष्मन हो पर भारत सभी का दोस्त रहता है। फिलहाल ऊर्जा के मामले में अमेरिका भारत की जरूरत के अनुसार तेल और गैस सप्लाई करने के लिए भी तैयार है। उक्त से यह लगता है कि डोनाल्ड ट्रम्प बड़े कारोबार का मनोदषा बनाकर भारत के साथ द्विपक्षीय फाइलों का आदान-प्रदान करेंगे।
अमेरिकी राश्ट्रपति की यात्रा व्यापार सहयोग के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने के मामले में भी अहम रहेगा। अमेरिका का चीन के साथ चल रहे ट्रेड वार के दौरान ही भारत से आने वाले कुछ निष्चित स्टील और एल्युमिनियम उत्पादों पर भी भारी षुल्क थोप दिया गया था। इतना ही नहीं जीएसपी के तहत कुछ खास उत्पादों को मिलने वाली टेरिफ छूट को भी खत्म कर दिया गया था। भारत चाहता है कि अमेरिका इन दोनों निर्णयों को बदले। भारत कृशि, आॅटो मोबाइल, वाहनों के पुर्जे व इंजीनियरिंग इत्यादी से जुड़े अपने उत्पादों के लिए अमेरिका से अपने यहां दरवाजा खोलने की उम्मीद रखता है। जबकि अमेरिका का दबाव भारत पर कृशि मैन्यूफैक्चरिंग से लेकर डेरी उत्पाद और चिकित्सा उपकरणों के लिए बाजार खोलने का देखा जा सकता है। देखा जाय तो भारत के साथ व्यापार घाटे को लेकर अमेरिका अपनी चिंता पहले जता चुका है। भारत की मुष्किल यह है कि यहां जनसंख्या का दबाव अत्यधिक है। 65 फीसदी युवा के हाथ काम तलाष रहे हैं और बेरोजगारी दर 45 बरस का रिकाॅर्ड तोड़ चुकी है। सरकारी नौकरियां तुलनात्मक कम हो चुकी हैं, निजी सेक्टर आर्थिक मन्दी के चलते कई कठिनाईयों से जूझ रहे हैं। भारत किसानों का भी देष है यहां की हालत अच्छी नहीं है। यदि कई मामलों में अमेरिका, भारत से अपेक्षा पालता है तो वह नाजायज नहीं होगा मगर भारत तभी उसके उत्पाद के लिए बाजार दे सकता है जब स्वयं के उत्पाद को कोई खतरा न हो। यह देखा गया है कि कई नियम कानूनों में बदलाव के कारण देष में बेरोजगारी और आर्थिक समस्याएं तेजी से बढ़ी हैं। भारत चाहेगा कि अमेरिका उसके लिए उपजी समस्याओं को कम करने हेतु अनुकूल वातावरण दे। ऐसे में उसे कारोबार की दृश्टि से अमेरिका से अधिक अपेक्षा होगी। जाहिर है अमेरिका और भारत के घनिश्ठ सम्बंधों में चाषनी कितनी भी क्यों न घुली हो पर कारोबारी दृश्टि से असंतुलन कोई नहीं चाहेगा।
भारत और अमेरिका के बीच सम्बंध लगातार वृद्धि करते रहे हैं। दोनों देषों के बीच टू-प्लस-टू वार्ता समेत कई द्विपक्षीय सम्बंध इस बात को पुख्ता करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी और और अमेरिकी राश्ट्रपति ट्रम्प की केमिस्ट्री पिछले साल सितम्बर में ह्यूस्टन के हाउडी मोदी में देखी गयी अब इसी तर्ज पर अहमदाबाद में केमछो ट्रम्प में यही केमिस्ट्री फरवरी के अन्तिम दिनों में देखने को मिलेगी। फिलहाल भारत और अमेरिका रक्षा कारोबार भी इस मुलाकात की पटकथा का एक हिस्सा रहेगा। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन यह उम्मीद जता चुका है कि दोनों देषों का रक्षा कारोबार 18 अरब डाॅलर को पार करेगा। भारत अमेरिका से हथियार खरीदता है और इस मामले में भी कुछ समझौते होने तय हैं। कारोबार, विनिर्माण, विकास और रोजगार के साथ रक्षा और सुरक्षा के मसले को लेकर समझौते होने तय माने जा रहे हैं। पड़ताल बताती है कि सबसे पहले भारत में पहला अमेरिकी राश्ट्रपति आइजनहावर 1959 में आये थे उसके बाद 1969 में निक्सन, 1978 में जिमी कार्टर का दौरा हुआ, तत्पष्चात् 22 वर्श के अंतराल के बाद मार्च 2000 में बिल क्लिंटन का भारत आगमन हुआ। गौरतलब है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका का रूख भारत की ओर नरम हो गया था। उसके एक दषक बाद लागातार अमेरिकी राश्ट्रपतियों का भारत दौरा द्विपक्षीय सम्बंधों को और मजबूती देता रहा। बिल क्लिंटन के बाद जाॅर्ज डब्ल्यू बुष, बराक ओबामा और अब डोनाल्ड ट्रम्प का भारत दौरा मित्रता और द्विपक्षीय सम्बंध को और पुख्ता करेगा। सब के बावजूद अमेरिका दुनिया के बदलते आयाम को समझने वाला देष है और हो न हो अमेरिका फस्र्ट की पाॅलिसी पर काम करता है। बदलते षक्ति समीकरण और उभरती आर्थिक ताकतों के बीच अमेरिका की उपादेयता कहीं अधिक सटीक रहती है। संधियां और समझौते उसके लिए तभी तक अहमियत रखते हैं जब तक उसके काम के होते हैं। उक्त से यह तात्पर्य है कि भारत को अमेरिका के साथ द्विपक्षीय सम्बंध अपने हितों की श्रेश्ठता को विकसित करते हुए बेहतरीन सम्बंध की ओर ले जाना चाहिए।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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