Sunday, February 9, 2020

पड़ोसी भावना और भरोसे की खोज में एससीओ

वर्तमान में पाकिस्तान के साथ भारत के सम्बंध पटरी से उतरे हुए हैं। सीमा रेखा के अलावा पाकिस्तान से दोस्ती के कारण चीन के साथ भी कमोबेष भारत की तनातनी रहती है। हालांकि चीन के साथ द्विपक्षीय सम्बंध और संवाद बावजूद इसके रूके नहीं हैं। उक्त दोनों देष षंघाई को-आॅपरेषन आॅर्गनाइजेषन अर्थात एससीओ के पूर्ण सदस्य हैं जिसकी बैठक इसी वर्श पहली बार नई दिल्ली में आयोजित होगी। वैसे तो एससीओ में पूर्णकालिक सदस्यों की संख्या मौजूदा समय में भारत, रूस, कजाकिस्तान और किर्गिस्तान सहित 8 देष हैं। मगर पड़ताल बताती है कि आपसी भावना और भरोसे के मामले में यह संगठन भी उतना खरा नहीं है। साल 2001 से एससीओ की बैठकों का सिलसिला कई देषों से गुजरता हुआ फिलहाल अब भारत पहुंचा है जो गिनती की लिहाज़ से 20वां होगा। गौरतलब है कि एससीओ की पहली बैठक सितम्बर 2001 में कजाकिस्तान में आयोजित की गयी थी। तभी से यह प्रतिवर्श सदस्य देषों में आयोजित होता रहा है। इसमें अफगानिस्तान, ईरान, बेलारूस और मंगोलिया जैसे देष आॅबर्जवर के रूप में देखे जा सकते हैं। जाहिर है इस संगठन का सदस्य होने के नाते पाकिस्तान को भी न्यौता दिया जायेगा। देखने वाली बात यह होगी कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान बैठक में भाग लेते हैं या नहीं। फिलहाल ये निर्णय इस्लामाबाद को लेना है। गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान दोनों जून 2017 में एससीओ के पूर्ण सदस्य बने थे। 
एससीओ के लक्ष्य को देखने से इसकी प्रासंगिकता का पता चलता है। राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य मामलों में एक-दूसरे की मदद करना इसके मूल रूप में है। साथ ही आपसी भरोसा मजबूत करना और पड़ोसी भावनाओं को बढ़ावा देना इनके लक्ष्यों में षुमार है। इस संगठन में चीन और पाकिस्तान ऐसे पड़ोसी देष हैं जिनसे भारत व्यापक पैमाने पर परेषानी में रहा है। एक आतंकवाद का षरणगाह है तो दूसरा उसका समर्थन करता है। जाहिर है भावना और भरोसे के मामले में दोनों कभी भी खरे नहीं उतरे। ऐसे में यह संगठन कई विचारों में बंटा भी दिखाई देता है। षिक्षा, ऊर्जा, पर्यटन, पर्यावरण जैसे मुद्दों को लेकर आपसी सहयोग बढ़ाना साथ ही षान्ति, सुरक्षा और स्थिरता के मामले में पारस्परिक हिस्सेदारी एससीओ का कत्र्तव्य है। इसमें कोई दुविधा नहीं यह संगठन एक बेहतर उद्देष्य के लिए गढ़ा गया था और बादस्तूर बना हुआ है। एससीओ के सदस्य देषों में सबसे ज्यादा रूस और मध्य एषियाई देषों के साथ भारत का सम्बंध देखा जा सकता है। मध्य एषिया के लिए भारत की कनेक्ट सेंट्रल एषिया पाॅलिसी वाकई एक नई आवाज है। इसके अलावा रूस, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान को मिला दें तो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस और तेल का भण्डार का क्षेत्र बनता है। गौरतलब है कि तुर्कमेनिस्तान के पास संसार का पांचवा सबसे बड़ा और उज्बेकिस्तान के पास आठवां सबसे बड़ा गैस भण्डार है। कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के पास यूरेनियम भी है। यदि इनके बीच भारत का सकारात्मक द्विपक्षीय मजबूत करार सम्भव होता है तो कम कीमत में गैस और तेल की सप्लाई सम्भव है जिसके चलते सऊदी अरब समेत कई खाड़ी देषों पर से निर्भरता घटेगी।
षंघाई सहयोग संगठन में कहीं अधिक महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला सदस्य चीन जहां पड़ोसी देषों के साथ मसलन म्यांमार, नेपाल, बांग्लादेष समेत श्रीलंका और मालदीव में अपनी दखल बढ़ाकर न केवल दक्षिण एषिया बल्कि आसियान देषों के साथ सामरिक और आर्थिक लड़ाई में भारत को पीछे धकेलने में लगा है वहीं भारत दक्षिण चीन सागर में अमेरिका और जापान के साथ मिलकर उसके प्रभाव को कम करने की फिराक में है। ताकि हिन्द महासागर में उसकी ताकत संतुलित कर सकें। ऐसा कम ही रहा है जब चीनी राश्ट्रपति का छोटे पड़ोसी देषों में आना-जाना रहा हो। अक्टूबर 2019 में नेपाल और अब म्यांमार में षी जिनपिंग का जाना भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है। चीन की महत्वाकांक्षी योजना वन बेल्ट, वन रोड़ पर जहां पड़ोसी देषों की सहमति है वहीं भारत का विरोध बना हुआ है। एक ओर पाकिस्तान की गतिविधियों पर चीन का मौन और समय पर साथ देना दूसरी तरफ अन्य पड़ोसियों पर कर्ज और आर्थिक समझौते के साथ दबाव में लेना दोनों ही तरीकों में झटका भारत को ही है। एससीओ की बैठक जब दिल्ली में होगी तब भारत यह नहीं भूलेगा कि चीन और पाकिस्तान किस भरोसे और किस भावना के देष हैं। एससीओ के अन्य सदस्य रूस सहित मध्य एषियाई देषों से भारत के सम्बंध अच्छे हैं। केवल व्यापार ही नहीं धर्म और संस्कृति का भी कनेक्षन यहां से देखा जा सकता है। नैसर्गिक मित्र रूस ने तो जम्मू-कष्मीर में धारा 370 हटाने पर स्पश्ट कह दिया है कि जिसे संदेह हो वह वहां जाये। जाहिर है कि षीत युद्ध के काल से साथ निभाने वाला सोवियत रूस आज रूस के तौर पर भारत से प्रगाढ़ सम्बंध बनाये हुए हैं। फिलहाल यह पाकिस्तान पर निर्भर है कि इमरान खान एससीओ समिट में आते हैं या फिर किसी प्रतिनिधि को भेजते हैं। जिस प्रकार 2019 के किर्गिस्तान समिट में पुलवामा हमले, जम्मू-कष्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद दोनों देषों के बीच चीजें गम्भीर हो चली थीं। इसे लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना खूब सुनाया था षायद यह बात पाकिस्तान नहीं भूला होगा। उन्होंने यह भी कहा था कि जो देष पाकिस्तान को मदद देते हैं, उसे प्रायोजित करते हैं, उनकी फण्डिंग करते हैं उनसे भी यह सवाल पूछा जाना चाहिए। जाहिर है यहां इषारा चीन की ओर था। 
इस बार दिल्ली में आयोजित एससीओ समिट का मेजबान भारत काफी दम-खम के साथ बात को रखने का प्रयास करेगा। हालांकि 2005 में पर्यवेक्षक के तौर पर भारत इसका हिस्सा बना था तब से इसकी उपस्थिति कमतर नहीं रही है और मोदी षासनकाल में तो यह और प्रभावी थी। चीन और रूस के बाद भारत इस संगठन का तीसरा सबसे बड़ा देष है और इन दिनों भारत का अन्तर्राश्ट्रीय कद भी बहुत बढ़त लिए हुए है। दुनिया में सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन एससीओ भारत के लिए कितना सफल होगा कयास लगाना मुष्किल नहीं है। आतंकवाद हो, ऊर्जा की आपूर्ति या प्रवासियों का मुद्दा हो ये सब अहम् रहेंगे। सम्भव है कि प्रधानमंत्री मोदी चीन और रूस के राश्ट्रपति से मिलेंगे मगर इमरान खान से कोई औपचारिक बातचीन नहीं करेंगे। हालांकि इमरान खान इस फिराक में काफी समय से है कि मोदी से बातचीत हो पर भारत का रूख साफ है कि पहले आतंकवाद खत्म करो फिर संवाद के रास्ते खुलेंगे। एससीओ का नई दिल्ली समिट एक नये तेवर और क्लेवर का होगा। चीन में मुख्यालय और 8 पूर्णकालिक सदस्यों, 4 आॅबर्जवर और आर्मेनिया, अजरबेजान, कम्बोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तुर्की समेत आधा दर्जन डायलाॅग सहयोगी के सहारे 2020 की बैठक अपेक्षा पर खरी उतरेगी ऐसी अपेक्षा की जा सकती है पर चीन और पाकिस्तान के मामले में भावना और भरोसा बढ़त लेंगे इसकी गुंजाइष कम ही है। 
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

No comments:

Post a Comment