प्रासंगिक परिप्रेक्ष्य यह है कि रोज़गार की राह कभी भी समतल नहीं रही और इसे बढ़ाने को लेकर हमेषा चिंता प्रकट की जाती रही है। तमाम कोषिषों के बावजूद रोज़गार के मोर्चे पर खरे उतरने की चुनौती मौजूदा सरकार के सामने बड़े पैमाने पर व्याप्त है। नये बजट में रोज़गार के नये प्रारूप सुझाये गये हैं जिससे आषायें जगती हैं परन्तु सफलता दर को लेकर निष्चिंत नहीं हुआ जा सकता। किसी भी देष के विकास की सैद्धान्तिक और व्यावहारिक स्थिति को यदि समझना है तो वहां के युवाओं के भीतर के कौषल और रोजगार देखना चाहिए। भारत इन दिनों रोजगार के मामले में तेजी से पिछड़ रहा है जाहिर है इसे लेकर नीतियों और योजनाओं की सख्त आवष्यकता है। ताजा बजट यह इषारा करता है कि रोजगार को लेकर नये आयाम गढ़ने का प्रयास किया गया है। बजट में स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसर निर्मित करने से लेकर प्रषिक्षण देने तक तथा विदेष में रोजगार उपलब्ध कराने आदि के प्रावधान निहित हैं। स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाली स्टार्टअप कम्पनियों को भी कर के मामले में छूट दी जा रही है ताकि क्षेत्र व्यापक बने। सरकारी हो या सार्वजनिक क्षेत्र अराजपत्रित कर्मचारियों की नियुक्ति में भी बड़े सुधार की बात बजट में की गयी है। परीक्षा का आयोजन आॅनलाइन किया जायेगा और इसके लिए हर जिले में टेस्ट सेन्टर होंगे जिसमें 112 जिले प्राथमिकता में रहेंगे जो देष में सबसे पिछड़े हैं। बजट के कई प्रावधानों में एक यह भी है कि कई पाठ्यक्रमों को रोजगारपरक बनाया जायेगा। कुछ कोर्सों को उद्योगों के कार्यक्रम से जोड़ा जायेगा। जाहिर है इससे कौषल विकास सामने आयेगा और रोज़गार के रास्ते भी चैड़े होंगे। वैसे रोज़गार के मुद्दे पर विपक्ष के निषाने पर मोदी सरकार खूब रही है। गौरतलब है स्वरोजगार की दिषा में स्टार्टअप से लेकर मुद्रा योजना को बढ़ावा दिया गया। मगर सूरत फिर भी नहीं बदली है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि सभी को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती। ऐसे में स्वरोजगार भी एक विकल्प बन जाता है साथ ही निजी क्षेत्र में रोजगार की तलाष व्यापक पैमाने पर किया जाना भी लाज़मी है। युवाओं के लिए रोज़गार का विषेश प्रावधान सरकारों की चिंता रही है मगर कोई भी सरकार इस पर खरी नहीं उतरी है। आर्थिक सर्वेक्षण यह बताते हैं कि साल 2011-12 से 2017-18 के बीच 2.62 करोड़ को नौकरी मिली है जो संगठित क्षेत्र से सम्बंधित है। मौजूदा समय में सरकार की प्रक्रियाएं बेषक नागरिकों पर केन्द्रित हो पर नये डिजायन और संस्कृति वाली मोदी सरकार रोज़गार के मामले में कमजोर रही है। स्वरोेज़गार देने के लिए षुरू की गयी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मुद्रा योजना को इस बजट में 500 करोड़ रूपया प्रदान किया गया जो कि इसके ठीक पहले बजट में भी यही आंकड़ा था। रोचक यह है कि 12 करोड़ रोज़गार का आंकड़ा इसी योजना से सरकार बताती रही है जबकि ताजा बजट में इसमें धन की मात्रा बढ़ाना उचित नहीं समझा। प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम को बजट में 25 सौ करोड़ रूपया प्रदान किया गया जो पिछले बजट की तुलना में 36 करोड़ अधिक है। गौरतलब है कि बेरोज़गारी की दर बीते 45 वर्श की तुलना में सबसे कमजोर स्थिति में है। अर्थव्यवस्था की गति बरकरार रखने और रोज़गार के मोर्चे पर खरे उतरने की चुनौती सरकार के लिए पहले भी थी और अभी भी बरकरार है।
रिपोर्ट भी बताती है कि साल 2027 तक भारत सर्वाधिक श्रमबल वाला देष होगा और इनकी सही खपत के लिए बड़े नियोजन की दरकार होगी। बजट में इस बात का ध्यान है कि युवाओं को विदेष में रोज़गार के लिए तैयार किया जाये। चूंकि रोज़गार के अपने मानक होते हैं ऐसे यदि इन्हें प्रषिक्षित और उनके अनुरूप तैयार किया जाय तो सम्भावनाएं प्रबल होंगी। वित्त मंत्री का भी इषारा कुछ ऐसा ही है। 2025 तक 4 करोड़ बेहतर सैलेरी वाली नौकरियां उपलब्ध कराने का लक्ष्य तभी पूरा होगा जब रोज़गार के मुताबिक कौषल विकास होगा। सरकार ने मनरेगा परियोजना को इस बार के बजट में तवज्जो नहीं दिया सम्भव है कि ग्रामीण रोज़गार पर इसका असर पड़ेगा। सर्वे कहते हैं कि नवम्बर 2019 तक लगभग 70 लाख लोगों को प्रधानमंत्री कौषल विकास योजना के तहत प्रषिक्षण दिया गया जो 65 फीसदी युवा के अनुपात में मामूली ही कही जायेगी। देष में 75 करोड़ से अधिक युवा हैं तुलना में नौकरियां निहायत मामूली हैं। एनएसएसओ की रिपोर्ट भी यह कहती है कि 2017-18 में देष में बेरोज़गारी 6.1 फीसद रही जो 1972-73 के आंकड़े के बराबर है। अन्तर्राश्ट्रीय श्रम संगठन ने भी जनवरी 2018 में कहा था कि भारत में बेरोजगारी की दर बढ़ेगी और यह कई वर्शों के लिए था।
विकसित और विकासषील देषों का पुल कहा जाने वाला ब्रिक्स जिसमें पांच देष हैं उसकी तुलना में भारत बेरोज़गारी के मामले में दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील के बाद आता है। रोज़गार के मसले में चीन बेहतर देष है। षायद यही कारण है कि सरकार 2030 तक साढ़े आठ करोड़ रोज़गार चीनी माॅडल पर असेम्बलिंग सिस्टम से विकसित करना चाहती है। बजट में षिक्षा पर लगभग एक लाख करोड़ रूपए खर्च करने की बात कही गयी है जबकि कौषल विकास के लिए महज 3 हजार करोड़ की बात की गयी है जो रोज़गार की दृश्टि से मामूली है। रोज़गार कैसे बढ़े इसे लेकर बजट तो बढ़ाने ही पड़ेंगे साथ ही युवाओं को भी यह समझना होगा कि केवल डिग्री रोज़गार का मानक नहीं है। मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर में आयी गिरावट को दुरूस्त किये बिना रोज़गार नहीं बढ़ पायेगा। 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य भी रोज़गार सृजन के साथ ही हासिल होगा। सषक्त समाज आर्थिक सुदृढ़ता के बगैर सम्भव नहीं है। इस हेतु रोज़गार जरूरी है। बागवानी, पषुपालन एवं डेरी, मत्स्य पालन आदि के चलते भी ग्रामीण रोज़गार को बढ़त इस बजट से मिल सकती है। विष्व बैंक का एक पुराना आंकड़ा है कि यदि भारत में पढ़ी-लिखी महिलाएं और ग्रामीण क्षेत्रों में वहां के वातावरण के हिसाब से कार्य को बड़ा किया जाय तो जीडीपी में 4 फीसदी की बढ़त हो जायेगी। वर्श 2020-21 के बजट में निहित भाव रोज़गार को लेकर कहीं खुले तो कहीं छुपे दिखाई देते हैं। जाहिर है मन्दी के इस दौर में अर्थव्यवस्था तीव्र नहीं है ऐसे में निवेष और बाजार भी कमजोर है। रोज़गार को मजबूत करना है तो संतुलित नीति के साथ धन और अच्छे मन का परिप्रेक्ष्य प्रकट करना ही होगा।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
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देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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