Sunday, February 9, 2020

किसान की कमाई हर बार कागज़ों में

इस बार के बजट में खेत-खलिहान और गांव के लिए 2.83 लाख करोड़ रूपए का प्रावधान दिखता है। कृशि और किसानों के हालात को देखते हुए यह बजट कितना वाजिब है इसका अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। बजट में ज्यादातर योजनाएं पुरानी हैं जो कृशि में सुषासन के बड़े दावे का पोल खोलती है। लाख टके का सवाल यह है कि जब देष की अर्थव्यवस्था रफ्तार में है ही नहीं, तो गांव स्पीड कैसे पकड़ेंगे। इस बार जो गांव को दिया गया वह पिछले बजट की तुलना में महज तीन फीसदी ही अधिक है जबकि महंगाई इसकी तुलना में कई गुना हो गयी है। यदि प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना में सरकार दोगुना या तीन गुना तक का इजाफा करती है तो अच्छा कदम कहा जा सकता है। मनरेगा में भी बजट का इजाफा होना चाहिए था पर इसमें कुछ भी नहीं हुआ। अनुमानतः यह 70 हजार करोड़ तक की कीमत तो रखता ही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 16 सूत्रीय कार्यक्रमों से गांव का कायाकल्प करने की बात कह रही हैं और इसी से किसानों की आय दोगुनी करने की अवधारणा भी पेष कर रही हैं। गौरतलब है कि इन्दिरा गांधी के षासनकाल में भी कुछ ऐसे ही बीस सूत्रीय कार्यक्रम देखने को मिले थे। उर्वरक का संतुलित प्रयोग सौर उर्जा से लेकर सोलर पम्प आदि तमाम बातें नई नहीं हैं। कह सकते हैं कि नई सरकार पुराने ढ़र्रे पर चल रही है। पड़ताल बताती है कि अभी तक किसानों के कल्याण के लिए जो वायदे, योजनाएं और राहतें दी जाती रहीं हैं उनमें नजरिया वोट बैंक का अधिक रहा है। इस बार के बजट में भी कृशि और किसानों को रिझाने के लिए पूरी ताकत लगायी गयी है पर इसके समेत ग्रामीण विकास को जितना धन चाहिए वह कम ही कहा जायेगा है।
2016 का बजट पेष करते हुए तत्कालीन वित्तमंत्री अरूण जेटली ने किसानों का इस बात के लिए आभार प्रकट किया था कि वे देष की खाद्य सुरक्षा की रीढ़ है। हालांकि किसान युगों से ऐसी ही रीढ़ है यदि समझने में किसी ने भूल की है तो वह समाज और सरकार है। देखा जाय तो हर साल के बजट में किसानों को राहत मिलती रही है पर उनकी स्थिति जस की तस बनी रहती है। क्या इसके पीछे किसान जिम्मेदार है या फिर सरकार। बहुत पहले यह कहा जाता रहा कि किसानों के लिए अलग से बजट का प्रावधान हो, कृशि और किसान समेत ग्रामीण विकास के लिए अलग नीति साथ ही अलग थिंक टैंक हो। स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को अमली जामा पहनाकर इनकी बेपटरी जिन्दगी को समुचित किया जाये। मगर मोदी सरकार दषकों पुरानी इस रिपोर्ट से बचती रही। वर्श 2016-2017 में जिस कृशि का विकास स्तर 6.3 था मौजूदा समय में वह 2.9 पर कराह रही है। इसके पीछे कौन जिम्मेदार है वे किसान जो तमाम मषक्कत के बाद उत्पादन तो देते हैं पर उन्हें न तो कीमत मिल रही है और न ही सुरक्षित जिन्दगी या फिर वे सरकारें जो किसानों की आय बढ़ाने के लिए थोक में नीतियों की घोशणा करते हैं और स्वयं अवरोधक बने हुए हैं। पर्याप्त भण्डारण की व्यवस्था नहीं होने से किसानों की उपज का मोल गिर रहा है। गौरतलब है कि देष में अभी 162 मिलियन मैट्रिक टन खाद्यान्न के भण्डारण की व्यवस्था है जबकि आवष्यकता इससे अधिक की है। किसानों के लिए अपने उत्पादों को बेचना बड़ी समस्या रही है कृशि, सिंचाई व अन्य गतिविधियों के लिए 1.60 लाख करोड़ और ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज हेतु 1.23 लाख करोड़ रूपए की व्यवस्था की है। जाहिर है 16 सूत्री कृशि सुधार के कार्यक्रम कृशि और किसान को आत्मनिर्भरता की ओर ले जायेंगे पर यह कितना सफल होगा कहना कठिन है। 
आर्थिक मंदी की आषंकाओं और जलवायु परिवर्तन की मार से इतर आर्थिक सर्वेक्षण में कृशि क्षेत्र के लिए षुभ संकेत निहित था। सरकार पर्याप्त भण्डारण व्यवस्था को लेकर पीपीपी माॅडल की बात कह रही है। कृशि व ग्रामीण विकास के लिए बजट के माध्यम से जो धन मिला है उसमें नये प्रयोगों का साहस तो दिखता है मगर पिछले अनुप्रयोगों के नतीजे आषानुरूप नहीं रहे हैं। पैदावार के प्रबंधन को जब तक सक्षम नहीं बनाया जायेगा तब तक आमदनी नहीं बढ़ेगी। एनएसएसओ के आंकड़े बताते हैं कि साल 2001 से 2011 के दषक के दौरान किसानों की आमदनी महज डेढ़ फीसद ही बढ़ाया जा सका। इस आंकड़े से यह कयास लगाना आसान है कि किसान भूखे क्यों मर रहे हैं और हमारी नीतियां क्यों सूखी हुई हैं। नीति आयोग ने मार्च 2017 में डबलिंग फार्मस इनकम रेषनल स्ट्रैटजी प्रोस्पेक्टस एण्ड एक्षन प्लान जारी किया था। सरकार भी कुछ एक्षन मोड में दिखती है जिसके तहत एग्री मार्केट को उदार बनाना देखा जा सकता है। देष के सौ जिलों में सिंचाई की सुविधा को बेहतरी हेतु योजना समेत किसान रेल और कृशि उड़ान इस बार के बजट के कुछ नूतन पहल है। कृशि उड़ान के तहत राश्ट्रीय और अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर फल-सब्जी समेत डेरी व अन्य उत्पादों को पहुंचाना आसान होगा इसके अलावा पहली बार किसान रेल चलायी जायेगी जिसमें दूध, मांस-मछली समेत षीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं को पहुंचाने के लिए मालगाड़ियों में वातानुकूलित कोच भी लगेंगे। जाहिर है इससे पूर्वोत्तर भारत को भी लाभ होगा। 2022-23 तक मछली उत्पादन को 2 लाख टन करने और दुग्ध उत्पादन को 2025 तक दोगुना करने का लक्ष्य है। जबकि किसानों की आय 2022 में दोगुना करने का लक्ष्य पीछे से चला आ रहा है। योजनाएं कागजों पर जितनी खूबसूरत दिखती हैं वाकई में यदि इन्हें जमीन मिल जाये तो किसान की जिन्दगी संवर जाये। 
दो-तीन पहलू और समझना जरूरी है। देष के किसान तीन लाख करोड़ रूपए के कर्ज में डूबे हैं जिसे लेकर बजट में कोई चर्चा नहीं है। विष्व कृशि बाजार में भारत के किसान कैसे मुकाबला करेंगे इसका भी रोड़ मैप पूरी तरह नहीं दिखता है। ब्रिक्स देषों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। गौरतलब है कि इसमें रूस, चीन, भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील षामिल है। जिसकी पांच प्राथमिकताएं हैं खाद्य सुरक्षा और पोशण के लिए कृशि विकास में तेजी लाना, मजबूत कृशि, आधुनिक कृशि, सुरक्षित कृशि व्यापार और सूचनाओं का बेहतर आदान-प्रदान। ब्रिक्स का उद्देष्य विकसित और विकासषील देषों में पुल का काम करना रहा है। भारत की आधी से अधिक आबादी कृशि पर निर्भर है। चावल उत्पाद में भारत दूसरे पायदान पर है। गेहूं की उम्दा पैदावार कर दुनिया को रोटी उपलब्ध कराने की सक्षमता रखता है साथ ही फल और सब्जी के मामले में यह षीर्श पर है। अनुमान सहज है कि किसानों में कोई कमी नहीं है। यदि कृशि को सैद्धान्तिक और व्यावहारिक उड़ान देना है तो नीति और धन के साथ साफ-सुथरे मन की आवष्यकता पड़ेगी और इसका काम सरकार को करना होगा। इस बार का बजट ठोस कदम का संकेत देता है पर पहले के बजट से बहुत अलग नहीं है। वित्त मंत्री ने किसानों को तकनीकी तौर पर उन्नत बनाकर उनकी कमाई बढ़ाने पर जोर तो दिया है पर यह भी ध्यान रखना है कि इनकी कमाई केवल कागजी न रह जाये। सरकार गरीब के हाथ में रूपया पहुंचाने का भी पूरा इंतजाम रखे। यह बजट बेषक कृशि और किसान के लिए फायदेमंद रहेगा मगर पूरी तरह कायाकल्प करेगा ऐसा कहना जल्दबाजी होगा। कृशि पर निर्धारित बजट को लेकर मिलीजुली राय है स्थिति को देखते हुए ग्रामीण विकास के लिए इसे विस्तृत योजना के लिए जाना जाता है।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेश  ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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