Sunday, February 9, 2020

नैसर्गिक मित्रता को पुख्ता करता रूस


हमें भारत की नीतियों पर षक नहीं जिन्हें है, वे कष्मीर का दौरा करें। उक्त वक्तव्य रूस की ओर से तब आया है जब पाकिस्तान चीन के जरिये कष्मीर मुद्दे को संयुक्त राश्ट्र में उठाने की लगातार कोषिष में है और कई इसे लेकर भारत की नीतियों पर प्रहार कर रहे हैं। गौरतलब है कि बीते 17 जनवरी को रूस के उपराजदूत से जब यह पूछा गया कि क्या वह कष्मीर की यात्रा करना चाहेंगे तो उन्होंने कहा कि दोस्त के तौर पर आमंत्रित करेंगे तो निष्चित तौर पर जायेंगे मगर बिना गये भी भारत की कष्मीर नीति का हम समर्थन करते हैं। यह उन लोगों को कड़ा संदेष हो सकता है जो भारत के इस फैसले को संदेह से देखते हैं। रूस का यह बयान भारत की नैसर्गिक मित्रता को एक बार फिर चमकदार बना देता है। वैसे इस मामले में दुनिया अब यह जान गयी है कि भारत का आंतरिक मामला है और इससे दूर ही रहना चाहिए। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी यह मान लिया है कि कष्मीर मामले पर उनके साथ कोई नहीं है। बावजूद इसके वे खाड़ी देषों से लेकर कईयों से अपने पक्ष की अपेक्षा कर रहे थे। साथ न मिलने के चलते हताषा भरे एक बयान में इमरान खान ने पष्चिमी देषों पर व्यावसायिक हितों को महत्व देने का आरोप मढ़ दिया। गौरतलब है कि भारत की अन्तर्राश्ट्रीय कूटनीति बीते कुछ वर्शों से फलक पर है और पाकिस्तान इस मामले में फर्ष पर है। इसके पीछे एक बड़ी वजह उसके देष के भीतर आतंकी नेटवर्क का होना है। दो टूक यह है कि जिस आतंकवाद को पालने-पोसने में अपनी जमा पूंजी पाकिस्तान ने लुटा दिया आज उसी के चलते वह न केवल बदनाम हैं बल्कि आर्थिक संकट से भी जूझ रहा है। अनुच्छेद 370 की 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कष्मीर से समाप्ति के बाद पाकिस्तान ने इसके खिलाफ दुनिया में गोलबंदी करने का प्रयास किया पर वो पूरी तरह विफल रहा। भारत का आंतरिक मामला बताते हुए किसी ने पाकिस्तान का साथ नहीं दिया। हालांकि कुछ देष पाकिस्तान के साथ खड़े दिखाई दिये मसलन चीन और मलेषिया जैसे देष। चीन इस मामले में खुलकर नहीं बोला और अक्टूबर में भारत के महाबलिपुरम् में चीनी राश्ट्रपति षी जिनपिंग की यात्रा अनुच्छेद 370 से दूर ही रही। जाहिर है चीन की यह चुप्पी पाकिस्तान को मनोवैज्ञानिक लाभ नहीं दिया और ऐसा भारत की मजबूत विदेष नीति के कारण हुआ।
भारत और रूस के बीच सम्बंध भरोसे और एक-दूसरे के विष्वास का है जो बीते 70 सालों में कभी डगमगाया नहीं। अनुच्छेद 370 पर साथ खड़ा होने वाला रूस कल भी भारत के साथ था और आज भी है। दुनिया की परवाह किये बिना रूस अन्तर्राश्ट्रीय मंच पर भारत की दोस्ती निभाता रहा। संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् में रूस (सोवियत संघ) ने 22 जून 1962 को अपने 100वें वीटो का इस्तेमाल कर कष्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थन किया था। दरअसल सुरक्षा परिशद् में आयरलैण्ड ने कष्मीर मसले को लेकर भारत के खिलाफ एक प्रस्ताव पेष किया था जिसका अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन जो सुरक्षा परिशद् के स्थायी सदस्य थे के अलावा चिली समेत वेनेजुएला ने इसका समर्थन किया था। तब भारत की कूटनीति वैष्विक फलक पर उड़ान नहीं ले पायी थी। इस प्रस्ताव के पीछे पष्चिमी देषों की भारत के खिलाफ साजिष थी जिसमें चीन बराबर का हकदार था। सभी इस मंषा से सराबोर थे कि कष्मीर को भारत से छीना जाये और पाकिस्तान को थमा दिया जाये। लेकिन नैसर्गिक मित्र रूस के रहते इसकी कोई सम्भावना नहीं थी साजिष नाकाम हुई और यहां रूस की भारत के पक्ष में सषक्त भूमिका देखी जा सकती है। इतना ही नहीं इसके पहले 1961 में रूस ने अपने 99वें वीटो का प्रयोग करते हुए गोवा मामले में भारत का साथ दिया था। गौरतलब है कि जब भी भारत पर कोई भी समस्या आयी सुरक्षा परिशद् में माॅस्को ने दिल्ली का साथ दिया और पाकिस्तान समेत चीन को उसकी हैसियत समझाता रहा। देखा जाये तो रूस ने परमाणु और अंतरिक्ष कार्यक्रम से लेकर विकास के अनेकों कार्य में भारत का अक्सर साथ दिया है। भले ही षीत युद्ध की समाप्ति के बाद दुनिया में बदलाव आया हो पर 1990 से पहले और बाद दोनों परिस्थितियों में आपसी सम्बंध बने रहे। गौरतलब है कि भारत और रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) की दोस्ती की कहानी 13 अप्रैल 1947 को तब षुरू हुई जब भारत ने आधिकारिक तौर पर दिल्ली और माॅस्को में मिषन स्थापित करने का फैसला किया था। भले ही मौजूदा समय में भारत की अमेरिका से नजदीकी हो लेकिन रूस से तनिक मात्र भी दूरी नहीं बढ़ी। 
कष्मीर में यूरोपीय सांसदों की एक टीम अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद दौरा किया था। विष्लेशणात्मक पक्ष यह कहता है कि भारत सरकार ने इन्हें आमंत्रित करके अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी है। जाहिर है भारत को यह विष्वास दिलाने की कत्तई जरूरत नहीं थी कि अनुच्छेद 370 की मुक्ति के बाद वहां मानवाधिकार और आम जिन्दगी का क्या हाल है। यह निहायत भारत का आंतरिक मामला था और इसका समाधान केवल अपनी नीतियों से ही तय करना था। यह समझ से परे है कि यूरोपीय संघ के 23 सांसदों के प्रतिनिधमण्डलों के कष्मीर दौरे का क्या पैगाम है। जाहिर है जो विष्वास करते हैं वे सीमा पार रहकर भी भरोसा करेंगे और जिन्हें संदेह है वो कष्मीर में घूमकर भी छीटाकसी करेंगे। अमेरिका का कहना था कि भारत सरकार ने अमेरिका सरकार को कष्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बारे में न तो पहले कोई चर्चा की और न ही पहले कुछ बताया। हालांकि बाद में अमेरिका ने आंतरिक मामला कह कर पल्ला झाड़ लिया। इसमें कोई दुविधा नहीं कि कष्मीर को विषेश दर्जे से हटाना वैष्विक फलक पर सुगबुगाहट तो खूब हुई पर भारत के अन्तर्राश्ट्रीय नीति के प्रभाव के चलते किसी ने खुलकर जुबान नहीं खोली। यदि यह मामला संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् तक जाता भी है तो अब केवल 7 दषकों का मित्र रूस ही नहीं ब्रिटेन, फ्रांस के साथ अमेरिका का भी साथ मिल सकता है। चीन अच्छी तरह जानता है कि पाकिस्तान के आतंकियों के समर्थन में जितना बचाव व वीटो करना था अब वह कर चुका है। उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि पुलवामा घटना के बाद अज़हर मसूद के मामले में चीन को कैसे किनारे लगाते हुए अन्य स्थायी सदस्यों ने मसूद को अन्तर्राश्ट्रीय आतंकी घोशित किया था।
अनुच्छेद 370 और जम्मू-कष्मीर का नाता 7 दषक पुराना है जो एक अस्थायी प्रावधान था। जिसे समय के साथ हटाना ही था और वह समय 5 अगस्त, 2019 में आया। कष्मीर को अन्तर्राश्ट्रीयकरण करने वाला पाकिस्तान यह अच्छी तरह जान गया है कि अब उसके हाथ कुछ नहीं लगना है। दक्षिण एषिया से आसियान तक अगर चीन जैसे देषों की आर्थिक और व्यापारिक पैठ है तो भारत के पास व्यापारिक और आर्थिक के अलावा सांस्कृतिक और सद्भावना से भरा दृश्टिकोण है जो चीन को संतुलित करने के काम आया है। मगर जिस कद के साथ चीन यहां अपना विस्तार ले चुका है वह भारत के लिए चुनौती है। रक्षा के मामले में भारत पहले जैसा नहीं है। देखा जाय तो फ्रांस से राफेल और रूस से एस-400 की खरीदारी न केवल द्विपक्षीय सम्बंधों के लिए फायदेमंद है बल्कि चीन और पाकिस्तान की चुनौती को भी टक्कर देने में दो कदम आगे रहेगा। फिलहाल भारत और रूस के सम्बंध की सारगर्भिता को केवल कष्मीर मामले से ही आंकना सही नहीं होगा। भारत के औद्योगीकरण में योगदान, अंतरिक्ष और सैन्य सहयोग और सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत के प्रति न बदलने वाले मिजाज समेत कई मापदण्ड इसमें समावेष लिए हुए हैं जो आज भी नैसर्गिक मित्रता की अभिव्यक्ति बने हुए हैं। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

No comments:

Post a Comment