Monday, October 8, 2018

चुनौती तो एएमयू को धरातल पर उतारने की है

ठीक एक महीने बाद उत्तराखण्ड को बने 18 साल पूरे हो जायेंगे। पड़ताल बताती है कि सामाजिक-आर्थिक विकास को लेकर जो कोषिषें यहां साल 2000 से जारी हैं उसमें सफलता के कषीदे कहीं अधिक गढ़े गये जबकि विफलता की कहानी भी उससे कहीं अधिक प्रतीत होती है। उत्साह और उल्लास से भरे उत्तराखण्ड और यहां की सरकार ने बीते 7 और 8 अक्टूबर को इन्वेसटर्स समिट का आयोजन किया जिसमें यह दावा है कि 80 हजार करोड़ के आसपास के एएमयू पर हस्ताक्षर हुए हैं जबकि षुरूआत में सरकार ने समिट के माध्यम से 40 हजार करोड़ के निवेष का लक्ष्य तय किया था लेकिन यह आंकड़ा अब दोगुना हो चुका है। दो दिनी इस समिट में जिस तर्ज पर हजारों उद्यमियों को पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड में आमंत्रित किया गया और प्रधानमंत्री मोदी की जिस प्रकार की भूमिका थी उसे देखते हुए आयोजन के सफल होने की पूरी गुंजाइष दिखती है पर पूरी तरह सफलता तब मानी जायेगी जब यह धरातल पर उतरे। गौरतलब है कि हजारों करोड़ के निवेष के एएमयू पर हस्ताक्षर तो होते हैं पर इसकी जमीनी हकीकत वक्त के साथ कुछ और देखने को मिलती है। इसके पहले इसी साल के फरवरी माह में लखनऊ में इन्वेसटर्स समिट आयोजित हो चुका है जहां 4 लाख करोड़ से अधिक के निवेष पर निवेषकों ने एएमयू पर हस्ताक्षर किये थे। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने साल 2003 में पहली बार वाइब्रेंट गुजरात का आयोजन किया जो इन्वेसटर्स समिट का ही रूप था तब से प्रति 2 वर्श पर यह सिलसिला बना रहा। 2015 में यह बहुत व्यापक पैमाने पर आयोजित किया गया था। इसमें कोई दुविधा नहीं कि प्रदेष को इससे फायदा होता है। गुजरात के कई उद्योग ऐसे समिट के चलते पनपे हैं। उत्तर प्रदेष में भी यह सिलसिला आगे बढ़ चला है इसी क्रम में अब उत्तराखण्ड की बारी है। मगर यह सवाल जिंदा है कि समावेषी विकास से लेकर दीर्घकालिक विकास तक क्या यह उसी तरह से बने रहते हैं जैसा एएमयू हस्ताक्षर के समय रहता है।
18 साल के उत्तराखण्ड ने कुछ पाया है तो कुछ खोया भी है। आज भी तमाम सेक्टर ऐसे हैं जो विकास की बाट जोह रहे हैं। 45 हजार करोड़ रूपए के कर्ज में डूबे इस प्रदेष का वार्शिक बजट भी इसी राषि के इर्द-गिर्द है। यहां की कुल आमदनी का तीन चैथाई रकम नाॅन प्लान पर खर्च हो रहा है। वेतन देने के लिए कभी-कभी कर्ज का सहारा लिया जाता है जबकि प्रति व्यक्ति आय यहां डेढ़ लाख से ऊपर चली गयी है। मौजूदा सरकार प्रचण्ड बहुमत की है 70 के मुकाबले 57 सीट जो 18 सालों में कभी नहीं हुआ। सामाजिक विकास में यह देष में चैथे नम्बर पर है मगर रोजगार से लेकर समावेषी विकास तक इसकी यात्रा अभी बहुत अधूरी है। षिक्षा, चिकित्सा समेत कई आधारभूत संरचनाएं अभी यहां आधी-अधूरी हैं। इन सबके बीच पलायन यहां की सबसे बड़ी विकट समस्या है। 70 फीसदी वन क्षेत्र रखने वाला उत्तराखण्ड भारत ही नहीं दुनिया को पर्यावरण की रक्षा में सहयोग कर रहा है पर यहां के पहाड़ी बाषिन्दे पीने के पानी, सड़क नेटवर्क, बेहतर चिकित्सा और रोजी-रोटी समेत कई समस्याओं के चलते असुरक्षित हैं। पलायन से गांव खाली हो गये। रोचक यह है कि उत्तराखण्ड की तुलना स्विटजरलैण्ड से होती है, यहां पर्यटन के विकास की अपार सम्भावनायें हैं। चारधाम यात्रा दुनिया के लिए आकर्शण का केन्द्र है पर उत्तराखण्ड के भीतर और अंदर माली हालत जस की तस बनी हुई है। इन्वेसटर्स समिट के माध्यम से सरकार न केवल जनता को लुभाने की कोषिष कर रही है बल्कि यह भी संदेष दे रही है कि पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड के विकास के प्रति वह गंभीर है। 17 सौ से अधिक इन्वेसटर्स इस दो दिनी समिट में देखे गये जिसमें देषी और विदेषी दोनों षामिल हैं। यदि निवेष के बताये गये आंकड़े वाकई में सही है और धरातल पर इस पैसे का विस्तार होता है तो यकीनन उत्तराखण्ड की न केवल सूरत बदलेगी बल्कि सीरत भी बदल जायेगी। आषा की जा रही है कि इसके षुरूआती चरण में ही 20 हजार रोजगार मिलेंगे। यदि बताने के हिसाब से हुआ तो युवाओं के चेहरे भी चमक जायेंगे। 
उत्तराखण्ड की उम्मीदों को देष-दुनिया के तमाम निवेषकों ने पंख लगा दिये हैं। दर्जन भर से अधिक क्षेत्रों में निवेष करने की बात कहीं गयी। कई चीजों के लिए खजाना उत्तराखण्ड, कई निवेषकों के लिए चाहत का केन्द्र भी रहा है। चेक गणराज्य के राजदूत ने माना उत्तराखण्ड निवेष के लिए अनुकूल है। बायोमास, सोलर एनर्जी और आॅटोमोबाइल के क्षेत्र में इनकी रूचि दिखी। जापान के राजदूत का मानना है कि जापान और भारत के बीच अच्छे सम्बंध रहे हैं। उत्तराखण्ड में निवेष को जापान सहयोग देगा। सेनिटेषन और एग्रीकल्चर में निवेष का इन्होंने इरादा जताया साथ ही प्रधानमंत्री मोदी को जापान आने का निमंत्रण दिया। वैसे यह सही है कि समिट पर सवाल नहीं उठा सकते निवेषकों द्वारा एएमयू पर जो हस्ताक्षर हुए उस पर भी अभी सवाल नहीं दागे जा सकते जब तक कि इसकी जमीनी हकीकत को न देख लिया जाए। वैसे उद्योगों का लगना किसी भी प्रदेष के लिए सुखद है तो उनका पलायन करना नुकसानदेह साबित होता है। राज्य छोटा हो तो यह चिंता और बढ़ जाती है। उत्तराखण्ड पर यह पूरी तरह लागू होता है। पीएचडी चैम्बर आॅफ काॅमर्स ने दो साल पहले ही सरकार को चेताया था कि उत्तराखण्ड की कई कम्पनियों का उत्पादन तेजी से घट रहा है। 2015 में ईज आॅफ डूइंग बिजनेस में जब उत्तराखण्ड 23वें नम्बर पर था तभी यह साफ था कि राज्य से कुछ उद्योग पलायन करेंगे। हालांकि पलायन का सिलसिला तब षुरू हुआ जब 2009 में विषेश औद्योगिक पैकेज के समाप्त होने की बात आयी। इसकी चलते नया निवेष प्रभावित हुआ पर अगले दस साल तक टैक्स लाभ को देखते हुए कई उद्योगों ने फिलहाल प्रदेष से बाहर की ओर रूख नहीं किया। उत्तराखण्ड में 2003 में नई औद्योगिक नीति आयी थी सस्ती जमीन, सस्ती बिजली, पानी और यहां तक कि इकाई स्थापित करने वालों के लिए टैक्स में छूट दी गयी कईयों ने इसका फायदा उठाया और छूट समाप्त होने के साथ पलायन किया। अब नये सिरे से एक बार फिर विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगपतियों को आकर्शित किया जा रहा है चिंता वही है कि क्या 80 हजार करोड़ से अधिक का निवेष जमीन पर उतरेगा यदि उतरेगा तो टिकाऊ कितना होगा। इतना ही नहीं उत्तराखण्ड जिस लाभ को ध्यान में रखकर निवेषकों को गले लगा रहा है क्या उसे रोजी, रोजगार और विकास आदि आने वाले समय में तुलनात्मक बेहतर मिलेगा। 
असल चुनौती तो अब सरकार के सामने पेष आयेगी वह यह कि हजारों करोड़ के निवेष को पूरी तरह धरातल पर भी उतारना होगा। पिछले 18 वर्शों में राज्य में जितने भी उद्योग स्थापित हुए वे लगभग सभी देहरादून, हरिद्वार व उधमसिंहनगर तक ही सीमित रहे जो प्रदेष के मैदानी जिले हैं। पहाड़ी जिलों में उद्योगों की स्थापना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। यदि उद्योगों को पहाड़ चढ़ाने को लेकर निवेषकों को राजी कर भी लिया गया है तो फिर भी सरकार दो-चार नहीं अनगिनत चुनौतियों से जूझेगी। वन-भूमि का हस्तांतरण मुख्य मुद्दा होगा। पारदर्षिता और सुषासन, विद्युत की आपूर्ति, एकल खिड़की की व्यवस्था साथ ही उद्योग और पर्यावरण के बीच सामंजस्य रखने की चुनौती अलग से रहेगी। फिलहाल उत्तराखण्ड में एक नये अध्याय की षुरूआत कर सरकार ने प्रदेष का कायाकल्प करने का मंसूबा दिखाया है। केन्द्र और राज्य दोनों सरकारें दो इंजन की तरह हैं जैसा कि मोदी कहते हैं। यदि निवेषकों के माध्यम से यहां ईंधन भरा गया तो जो उत्तराखण्ड को पंख लगे हैं वह उड़ान भर सकते हैं मगर इस सवाल के साथ कि क्या हकीकत में हस्ताक्षर हुए एएमयू भविश्य में धरातल पर हूबहू उतरेगा।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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