Wednesday, October 10, 2018

अमेरिका, चीन व पाक को आईना दिखाता भारत

यह बात तार्किक है कि यदि भारत की सामरिक ताकत बढ़ेगी तो चीन और पाकिस्तान की पेषानी पर बल पड़ेगा पर अमेरिका भी बेचैन हो जाय ऐसा कम ही रहा है। अरबों डाॅलर के रक्षा सौदे को लेकर भारत और रूस इन दिनों फलक पर हैं जबकि अमेरिका के साथ चीन और पाकिस्तान की बौखलाहट साफ देखी जा सकती है। गौरतलब है कि भारत अमेरिकी प्रतिबंधों का जोखिम उठाते हुए एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम रूस से खरीद रहा है जिसे लेकर भारत को तकरीबन 5 अरब डाॅलर खर्च करने पड़ेंगे। रूस से खरीदे जाने वाले इस डिफेन्स सिस्टम को लेकर अमेरिका की भंवे क्यों तनी हैं और भारत पर प्रतिबंध की तलवार क्यों लटक रही है इसे भी समझा जाना जरूरी है। स्पश्ट कर दें कि अमेरिका ने अपने दुष्मन देषों को प्रतिबंधों के जरिये दण्डित करने के लिए एक कानून काउंटरिंग अमेरिकन एडवर्सरीज थ्रू सैंकषन्स एक्ट बनाया है जिसे संक्षिप्त में काटसा कहा जाता है इन देषों के साथ अर्थात् अमेरिका के घोशित दुष्मन देषों के साथ यदि कोई देष सौदा करता है तो उस पर यह कानून लागू होता है। गौरतलब है कि रूस अमेरिका के दुष्मन देषों में षुमार है जाहिर है भारत को इसकी चिंता कुछ हद तक सता रही थी पर भारत ने यह तय कर लिया है कि भले ही अमेरिका आंखे दिखाए पर यह समझौता उसकी अपनी रक्षा के लिए जरूरी है। हालांकि भारत रूस से एस-400 खरीदने के मामले में काटसा कानून से अपने रियायत चाहता था जिसे अमेरिका खारिज कर चुका है। जाहिर है भारत को अपनी रक्षा सोचनी है ऐसे में अमेरिका को लेकर आखिर फिक्र क्यों? दो टूक यह भी है कि चीन और पाकिस्तान के सम्भावित खतरे को देखते हुए एस-400 सिस्टम कहीं अधिक जरूरी है। सामरिक दृश्टि से भी भारत को ताकतवर होना समय की मांग है ऐसे में दुनिया का कोई देष धौंस नहीं दिखा सकता। इसमें कोई दुविधा नहीं कि फ्रांस से खरीदे जा रहे 36 राफेल फाइटर विमान और रूस से एस-400 को लेकर हुए ताजा समझौते से देष की सैन्य क्षमता मजबूत होगी। 
अमेरिका दुनिया का एक ऐसा देष है जो जोर-जबरदस्ती के लिए भी जाना जाता है हालांकि इस मामले में पड़ोसी चीन भी कम नहीं है। रही बात पाकिस्तान की तो वह आंतरिक मुफलिसी के बावजूद भारत से दो-चार करने को आमादा रहता है। बीते कई सालों से अमेरिका कई देषों को रूस और ईरान के साथ समझौता करने पर प्रतिबंधों और तमाम तरह की धमकियां देता रहा। इन सबके बीच पीएम मोदी और रूसी राश्ट्रपति पुतिन ने एस-400 डील पर मोहर लगाकर अमेरिका समेत दुनिया को यह संकेत दे दिया कि वह अमेरिका पर निर्भर जरूर है परन्तु रणनीतिक तौर पर वह पूरी तरह स्वतंत्र है। हालांकि धमकाने वाला अमेरिका भारत-रूस के बीच हुए रक्षा सौदे के तत्काल बाद अपने तेवर में कुछ नरमी ला ली है। उसने कहा कि उसकी ओर से लगाये जाने वाले प्रतिबंध वास्तव में रूस को दण्डित करने के लिए हैं साथ ही अमेरिका दूतावास से जारी बयान यह भी था कि अमेरिकी प्रतिबंधों का मकसद सहयोगी देषों की सैन्य क्षमताओं को नुकसान पहुंचाना कत्तई नहीं है। तो क्या यह मान लिया जाय कि अमेरिका ने जिस तर्ज पर काटसा कानून के सहारे इस रक्षा सौदे को लेकर भारत को दबाव में लेने की कोषिष कर रहा था उससे अब वह पीछे हट गया है। अमेरिका भली-भाँति जानता है कि भारत एक ताकतवर देष है और उसके बीच कई मामलों में सम्बंध अन्य देषों की तुलना में कहीं अधिक प्रगाढ़ भी हैं। भारत के पड़ोसी चीन से अमेरिका की निरंतर मतभेद चलते रहते है। इन दिनों तो दोनों के बीच ट्रेड वाॅर भी चल रहा है। इतना ही नहीं भारत के दूसरे पड़ोसी पाकिस्तान पर वह कई आर्थिक प्रतिबंध पहले लगा चुका है और वहां के भीतर पनपे आतंकवाद को लेकर उसे निस्तोनाबूत करने तक की धमकी दे चुका है। ऐसे में यदि भारत पर भी वह नजर टेढ़ी करता है तो उसी का नुकसान होगा। अमेरिका को भी मालूम है कि चीन को संतुलित करने के लिए भारत से द्विपक्षीय सम्बंध मधुर रखने होंगे और पाकिस्तान को कहीं से बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। भारत का ही प्रयास है कि इन दिनों पाकिस्तान आतंकवाद के चलते ग्रे लिस्ट में षामिल है। 
सामरिक दृश्टि से देखा जाय तो भारत के लिए हथियार इसलिए भी जरूरी है क्योंकि चीन की नीयत पर भरोसा नहीं किया जा सकता और पाकिस्तान की न नीति है और नीयत। चीन पड़ोसी हो सकता है पर बेहतर मित्र नहीं जबकि पाकिस्तान तो पड़ोसी होने लायक ही नहीं है। चीन ऐसा पहला देष है जिसने गर्वनमेन्ट-टू-गर्वनमेन्ट डील के अन्तर्गत 2014 में रूस से एस-400 डिफेन्स सिस्टम को खरीदा था और रूस इसकी आपूर्ति भी कर चुका है पर संख्या कितनी है स्पश्ट नहीं है। हालांकि स्पश्ट कर दें कि भारत के अलावा रूस कतर को भी यह मिसाइल सिस्टम बेचने की बात कर रहा है। पड़ोसियों की ताकत को कमजोर करने के लिए भारत को यह कदम उठाना ही था। चीन से भारत की 4 हजार किलोमीटर की सीमा लगती है। वायु रक्षा प्रणाली मजबूत करने के लिए एस-400 कहीं अधिक जरूरी है। इस सुरक्षा प्रणाली की मदद से तिब्बत में होने वाली चीनी सेना की गतिविधियों पर नजर रखने में आसानी होगी और हिन्द महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को भी कम करने में यह मददगार होगा। चीन पिछले साल जिबूती में अपना पहला विदेषी सैन्य अड्डा बनाया। वहीं भारत इण्डोनेषिया, ईरान, ओमान और सेषेल्स में नौसैनिक सुविधाओं तक पहुंच बना ली है। एस-400 भारत के लिए बहुत अहम होने वाला है। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि जब सीरिया युद्ध के दौरान तुर्की के लड़ाकू विमानों ने वहां तैनात रूस के फाइटर जैट एसयू-24 को भी मार गिराया था। स्थिति को देखते हुए रूस ने सीरिया बाॅर्डर पर एस-400 तैनात किया इसके बाद ही नाटो समर्थित तुर्की के लड़ाकू विमान सीरिया के हवाई सीमा से मीलों दूर चले गये। एस-400 की मारक क्षमता के दायरे में पूरा पाकिस्तान आयेगा। स्पश्ट है कि पाकिस्तान के सभी लड़ाकू विमान इसके निषाने पर होंगे जाहिर है पाकिस्तान का एक गलत कदम उसे तबाह कर देगा जबकि सामरिक दृश्टि से मजबूत चीन को भी संतुलित करने में एस-400 कहीं अधिक मददगार सिद्ध होगा। 
फिलहाल एस-400 को लेकर अमेरिका कितना परेषान है और आगे क्या सोचता है इसका फैसला उसी को लेना है। मगर पड़ोसी चीन और पाकिस्तान पर नजर गड़ाई जाय तो यहां की सूरत-ए-हाल कुछ और दिखेगी। दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार एस-400 खरीदने का सौदा करके भारत ने दोनों पड़ोसियों की फिलहाल नींद तो उड़ा दी है। इस डील से पाकिस्तान बहुत परेषान है और सूचना यह है कि वह चीन से 48 ड्रोन खरीद रहा है। यह उसकी बौखलाहट ही कही जायेगी कि आर्थिक रूप से अपाहिज हो चुका पाकिस्तान एस-400 के मुकाबले ड्रोन से भड़ास निकाल रहा है वह भी जिससे आर्थिक गुलामी झेल रहा है। गौरतलब है कि चीन से पाकिस्तान अरबों के कर्ज में डूबा है और उसकी माली हालत बहुत बुरे दौर से गुजर रही है। सेना और आतंक पर पैसा लुटाने वाला पाक अब चीन के गुलामी के कगार पर है गौरतलब है कुल धन का 40 फीसदी यहां सेना और आतंकवादियों पर लुटाया जाता है जबकि यहां कि आम जनता बेरोज़गारी, बीमारी और बदहाली से दो-चार हो रही है। सेना की बैसाखी वाली नई इमरान सरकार आर्थिक दुविधा को समझते हुए कुछ सोच तो रही है पर भारत से तुलना करने में ये भी बाज नहीं आ रहे हैं। फिलहाल भारत और रूस के बीच हुए एस-400 को लेकर अमेरिका के लिए भी संदेष छुपा है और पड़ोसी चीन और पाकिस्तान के लिए भी। जाहिर है परिपक्वता दिखाने का जिम्मा इन्हीं पर है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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