Wednesday, October 24, 2018

पुरानी है "अमेरिका फ़र्स्ट" की पॉलिसी

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल को अभी दो साल नहीं हुए हैं जबकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चैथी बार इस पद के लिए इसी वर्श फिर चुने गये। डोनाल्ड ट्रम्प ने जनवरी 2017 में जब व्ह्ाइट हाउस में प्रवेष किया था तब उन्होंने यह विष्वास जगाया था कि रूस के साथ भी उनका रवैया उदार रहेगा। तब उन दिनों कईयों को यह बात गले नहीं उतरी थी क्योंकि सभी अमेरिका और रूस के बीच दषकों के षीत युद्ध को अच्छी तरह जानते और पहचानते थे। फिलहाल अब उसका साइड इफेक्ट भी दिखने लगा है। ईरान-अमेरिका परमाणु संधि, ट्रांस पेसिफिक पार्टनरषिप और पेरिस जलवायु समझौता जैसे से पहले ही डील तोड़ चुके इस मामले के माहिर अमेरिका ने एक और कदम उठाते हुए रूस के साथ षीत युद्ध के समय हुए 1987 के षस्त्र नियंत्रण संधि (आईएनएफ) से भी कदम पीछे खींच लिया है। स्पश्ट है अमेरिका अपनी पुरानी नीति ‘अमेरिका फस्र्ट‘ का कड़ाई से पालन कर रहा है। षीत युद्ध में तत्कालीन अमेरिकी राश्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और सोवियत संघ के मिखाइल गोर्बाचोव के बीच आईएनएफ सन्धि हुई थी जिससे अमेरिका पीछे हट रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प ने खुल्लमखुल्ला चेतावनी दी है कि जब तक रूस और चीन को होष नहीं आ जाता तब तक अमेरिका भी परमाणु हथियारों को बढ़ाता रहेगा। पड़ताल बताती है कि पहली बार 2008 में अमेरिका ने रूस पर इस संधि के उल्लंघन का आरोप लगाया था तब रूस ने एसएससी-8 मिसाइल का परीक्षण किया था। साल 2014 और 2017 में भी एसएस-24 और आरएस-26 जैसी मिसाइलों के परीक्षण के लिए अमेरिका की ओर से रूस पर इस संधि के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था जिसके जवाब में रूस ने अमेरिका को पोलैंड और रोमानिया में मध्यम रेंज की मिसाइल टाॅमहाॅक के बेस बनाने का आरोप लगाया। फिलहाल इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच अमेरिका बीते 20 अक्टूबर को इस संधि से स्वयं को अलग कर लिया है। गौरतलब है कि साल 2002 में भी एक रक्षा संधि से वह अलग हुआ था।
देखा जाय तो अमेरिका दुनिया के बदलते आयाम को समझते हुए एक बार फिर ‘अमेरिका फस्र्ट‘ की पाॅलिसी पर काम कर रहा है। दो टूक यह भी है कि दुनिया में बदलते षक्ति समीकरण और उभरती आर्थिक ताकतों के बीच वह कमजोर नहीं पड़ना चाहता। यही कारण है कि जो सन्धियां या समझौते उसे आगे बढ़ने में रोक रहे हैं उसे वो कुचलना चाहता है। हालांकि वह उसकी आंतरिक कूटनीति है मगर अमेरिका दुनिया में कुछ करे और बाकी देष प्रभावित न हो ऐसा षायद ही हुआ हो। गौरतलब है कि व्यापार और सियासी कटुता के बीच इन दिनों अमेरिका और चीन के रिष्ते भी सबसे खराब दौर में है जबकि रूस से लगातार खराब हो रहे रिष्ते इस मोड़ पर आकर खड़े हो गये हैं कि दोनों के बीच की सन्धि ध्वस्त हो गयी। वाजिब सवाल यह रहेगा कि अमेरिका ने जो चेतावनी इन्हें चेताने के लिए दिया है क्या उसका असर पूरी दुनिया पर नहीं होगा। हथियारों की होड़ में अमेरिका जाने की बात कह रहा है। गौरतलब है कि अमेरिका दुनिया में एकाधिकार के लिए जाना जाता रहा है। द्वितीय विष्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ का एक ध्रुव के रूप में उभरने से दुनिया दो ध्रुवीय हो गयी। समय के साथ आर्थिक विकास में बढ़ोत्तरी के चलते कई देष न केवल कई मामलों में साधन-सम्पन्न हुए बल्कि परमाणु सम्पन्न भी होते चले गये जिसमें भारत, चीन, जापान इंग्लैण्ड व फ्रांस समेत कई षामिल हैं। हालांकि इसकी फहरिस्त में ईरान, पाकिस्तान व उत्तर कोरिया जैसे देष भी देखे जा सकते हैं। स्पश्ट है ज्यों-ज्यों सम्पन्नता बढ़ी देषों के बीच हथियारों की होड़ भी बढ़ी। सभी जानते हैं कि अमेरिका और रूस हथियारों की बिक्री में सबसे आगे हैं और इनका दबदबा भी बाकायदा बरकरार है लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि दुनिया पर एकाधिकार रखने और धौंस जमाने वाला अमेरिका को अब कई देष चुनौती भी दे रहे हैं। षायद इसमें से एक वजह ये भी है कि अमेरिका अपनी पुरानी व्यवस्था को पाने के लिए संधि और समझौतों को ठोकर मार रहा है साथ ही सबक सिखाने की बात भी कह रहा है।
अब तक अमेरिका द्वारा तोड़ी गयी सभी सन्धियां खासा महत्व रखती हैं। रोचक यह भी है कि तमाम समझौतों की ट्रम्प ने पहले की सरकारों और राश्ट्रपतियों को सीधे तौर पर दोशी ठहराया। मात्र दो साल के कार्यकाल के भीतर ताबड़तोड़ समझौतों को तोड़ना, उनसे पीछे हटना कहीं न कहीं ट्रम्प की छवि को कुछ और ही दर्षा रहा है। द्विपक्षीय समझौते के तहत 1987 में यह सन्धि अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों की सुरक्षा सुनिष्चित करती है। इसमें यह निहित है कि दोनों देष सतह से दागी जाने वाली 500 से 5500 किलोमीटर रेंज वाली मिसाइलों का निर्माण या परीक्षण नहीं कर सकते मगर कुछ साल पहले रूस ने नोवाटर मिसाइल लाॅन्च की थी जिसे लेकर अमेरिका खफा है कि उसने प्रतिबंधित रेंज की मिसाइल लाॅन्च की है। हालंाकि रूस ने इसका खण्डन किया पर बात नहीं बनी। अमेरिका रूस की एसएस-20 की यूरोप में तैनाती से भी नाराज़ है। अमेरिका को डर है कि इस मिसाइल के जरिये नाटो देषों पर वह तत्काल परमाणु हमला कर सकता है। संधि लागू होने के बाद 1991 तक करीब 27 सौ मिसाइलों को नश्ट किया चुका था। खास यह भी है कि दोनों देष एक-दूसरे के मिसाइलों के परीक्षण और तैनाती पर नजर रखने की अनुमति भी देते हैं। गौरतलब है कि इस संधि से रूस और अमेरिका षायद दोनों घुटन महसूस कर रहे थे। साल 2007 में रूसी राश्ट्रपति पुतिन ने कहा था कि इस संधि से उसके हितों को कोई फायदा नहीं हो रहा है। वैसे रूस के उपविदेष मंत्री ने संधि से हटने को खतरनाक माना है। माना तो यह भी जा रहा है कि अमेरिका पष्चिमी प्रषान्त में चीन की बढ़ती मौजूदगी को देखते हुए इस सन्धि से बाहर निकलने का विचार कर रहा था जिसका मौका उसे मिल गया है। ट्रम्प ने कहा है कि जब तक रूस और चीन एक नये समझौते पर सहमत नहीं होते तब तक हम समझौते को खत्म कर रहे हैं और फिर हथियार विकसित करने जा रहे हैं। 
वैसे 2014 में तत्कालीन राश्ट्रपति बराक ओबामा के समय एक क्रूज मिसाइल के परीक्षण के बाद आईएनएफ संधि का उल्लंघन हुआ था तब ओबामा ने यूरोपीय नेताओं के दबाव में इस संधि केा नहीं तोड़ने का फैसला किया था। यूरोप का मानना है कि इस संधि के खत्म होने से परमाणु हथियारों की होड़ षुरू हो जायेगी। आईएनएफ समझौते के चलते रूस और अमेरिका मिसाइल परीक्षण के मामले में बंधे थे जबकि चीन इंटरमीडिएट रेंज की परमाणु मिसाइल बनाने और उसकी तैनती को लेकर स्वतंत्र है। ट्रंप को लगता है कि आईएनएफ संधि उसका हाथ बांधे हुए है जबकि चीन वह सारा काम कर रहा है जो अमेरिका संधि के कारण नहीं कर पा रहा है। अमेरिका का संधि से हटने के पीछे रूस एक कारण है पर उससे बड़ा कारण चीन है। चीन की बढ़ती परमाणु और आर्थिक षक्ति अमेरिका को रास नहीं आ रहा। दो टूक यह भी है कि भारत के लिए भी चीन की यह ताकत कहीं न कहीं घातक है क्योंकि प्रत्यक्ष एवं परोक्ष उसकी ताकत का फायदा न केवल पाकिस्तान को मिलेगा बल्कि उसका बेजा इस्तेमाल चीन तमाम पड़ोसी समेत भारत पर कर सकता है। अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच भले ही बातचीत हो गयी हो पर अभी भरोसा बढ़ा नहीं है। चीन, उत्तर कोरिया का सबसे बड़ा षुभ चिंतक है इसे देखते हुए भी अमेरिका को काफी कुछ समझना, सोचना पड़ रहा है। ऐसे में अमेरिका की चिंता लाज़मी प्रतीत होती है पर यदि वह दुनिया पर प्रभुत्व जमाने की फिराक में यह सब कर रहा है तो उसे भी सही करार नहीं दिया जा सकता। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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