Wednesday, October 10, 2018

विकास व बेरोजगारी के बीच महिला संसार

दुनिया में बढ़ रहे आॅटोमेषन और नई प्रौद्योगिकी के चलते फिलहाल करोड़ों महिलाओं के रोज़गार पर तलवार लटक रही है। अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश (आईएमएफ) ने बीते 9 अक्टूबर को एक ऐसी चेतावनी जारी की जिसमें स्पश्ट किया गया है कि नई प्रौद्योगिकी के चलते विष्व स्तर पर महिलाओं से जुड़ी 18 करोड़ नौकरियां जोखिम में हैं। इस संस्था ने इस बात के लिए भी निवेदन किया है कि दुनिया भर के नेता महिलाओं को जरूरी कौषल प्रदान करें और ऊँचे पदों पर लैंगिक अन्तर को भी कम करें। इतना ही नहीं डिजिटल अंतर को पाटने को लेकर भी काम करने की बात कही गयी। गौरतलब है कि आईएमएफ और विष्व बैंक की बाली में हुई सालाना बैठक में यह विष्लेशण सामने आया कि महिलाओं की नौकरी खतरे में है इसमें 30 देषों का विष्लेशण षामिल था। दुनिया में दो देष चीन और भारत ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या मिला दी जाय तो संसार की कुल एक तिहाई जनसंख्या से अधिक है। साफ है कि इन देषों को चोट अधिक लग सकती है। दुनिया में इस बात का भी डंका बज रहा है कि महिलाओं की भागीदारी से विकास की रफ्तार बढ़ेगी परन्तु वहीं रोज़गार की घटती सम्भावनाओं को देखते हुए तरक्की और विकास के बीच महिलाओं से भरी आधी दुनिया जूझते दिख रही है। जहां एक ओर अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश ने चालू वित्त वर्श में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 7.3 फीसद और आगामी वित्त वर्श में 7.4 फीसद रहने का अनुमान जताया है जो चीन से भी तेज है। वहीं कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की चुनौती बनी हुई है। गौरतलब है कि कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से भारत जैसे देषों में उत्पादकता में वृद्धि को बल मिलने का अनुमान है और यह तभी सम्भव है जब नये कौषल को प्रमुखता दिया जाय। हालांकि आईएमएफ ने यह भी स्पश्ट किया है कि पिछले दो दषक से महिला कर्मचारियों की संख्या तेजी से बढ़ी है लेकिन जिस तरह नई-नई व्याख्याएं यह आ रही हैं कि आॅटोमेषन और नई तकनीक के बदलते स्वरूप में इन्हें बेरोजगारी के कतार में खड़ा कर सकता है वह बड़ी चिंता का विशय है। 
वर्तमान में आर्थिक उदारवाद, ज्ञान के प्रसार और तकनीकी विकास के साथ संचार माध्यमों के चलते तरक्की के लक्ष्य और अर्थ दोनों बदल गये। महिलाओं के हाथ में भारत की तरक्की की चाबी की बात विष्व बैंक पहले ही कह चुका है। विष्व बैंक इसी साल मार्च में कहा था कि अगर भारत दो अंकों वाली आर्थिक वृद्धि चाहता है तो उसे नौकरियों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ानी होगी पर हालिया रिपोर्ट यह कहता है कि भारत में केवल 27 फीसदी औरते या तो काम कर रही हैं या सक्रिय रूप से नौकरी तलाष रही हैं जबकि बंग्लादेष में यह आंकड़ा 41 प्रतिषत है और इंण्डोनषिया और ब्राजील में 25 प्रतिषत है। साल 2007 के बाद भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या घटने के संकेत मिले हैं मुख्यतः ग्रामीण इलाकों में। आंकड़ों की समीक्षा यह इषारा करती है कि 34 प्रतिषत काॅलेज ग्रेजुएट महिलाएं ही कामकाजी हैं जाहिर है आर्थिक विकास को दहाई रखने के इरादे तब तक अधूरे रहेंगे जब तक तरक्की में महिलाएं की भागदारी को लेकर संजीदगी नहीं बढ़ेगी। आईएमएफ ने भी माना है कि महिला कर्मचारियों की संख्या बढ़ी है मगर यह वृद्धि पुरूशों की तुलना में कहीं अधिक असमान है। आईएमएफ की हालिया रिपोर्ट की नई प्रौद्योगिकी नौकरियों को कम कर सकती हैं यह दुनिया के किसी भी देष के लिए अच्छी खबर नहीं है। भारत जैसे देषों समेत महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से उत्पादकता में वृद्धि को गति मिलने का अनुमान है। गौरतलब है कि अगले दो दषक में नई तकनीक के चलते उक्त 30 देषों के कुल साढ़े पांच करोड़ श्रमिकों में 10 फीसदी महिलाएं और पुरूश श्रमिकों की नौकरी पर सबसे ज्यादा खतरा होगा जबकि पूरी दुनिया के 18 करोड़ महिलाओं की नौकरी खतरे की जद्द में है। 
इसमें कोई दो राय नहीं कि तकनीकी विकास ने परम्परागत षिक्षा को पिछाड़ दिया और आने वाले दिनों में नौकरी षुदा लोगों को भी बेरोज़गार करेगा जैसा कि रिपोर्ट बता रही है। अब विकट स्थिति यह है कि कौषल की कूबत किस तरह बढ़ाई जाय जबकि भारत में इसे लेकर एक मंत्रालय कार्य कर रहा है। बदलती स्थितियां यह आगाह कर रही हैं कि पुराने ढ़र्रे अर्थहीन और अप्रासंगिक हो रहे हैं और इसमे सबसे ज्यादा चोट स्त्रियों पर है। जाहिर है यदि तकनीकी और रोज़गारपरक षिक्षा से महिलाएं दूर रहेंगी तो न केवल उनमें बेरोज़गारी व्याप्त होगी बल्कि एक बड़ा मानव श्रम का लाभ लेने से देष दुनिया वंचित भी हो जायेगी। महिला सषक्तीकरण और दुनिया का विकास एक-दूसरे के पूरक हैं । भारत की दृश्टि से देखें तो आंकड़े स्पश्ट करते हैं कि यदि देष की 70 फीसदी महिला श्रम का इस्तेमाल किया जाय तो जीडीपी में साढ़े चार प्रतिषत की वृद्धि हो सकती है। अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की बेटी एवं व्हाइट हाउस में सलाहकार इवांका ट्रम्प ने इसी साल के षुरू में भारत की उपलब्धियों की तारीफ करते हुए महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत बतायी। अगर सब कुछ सामान्य रहे तो आगामी 2025 तक भारत की अनुमानित जीडीपी दोगुनी हो सकती है। अभी भी इसमें महिलाओं की भागीदारी सबसे कम है जो महज़ 17 फीसदी है जबकि चीन में 41 फीसदी, दक्षिण अमेरिका में 33 फीसदी और पूरी दुनिया का औसत में महिलाओं की भूमिका जीडीपी के मामले में 37 फीसदी है। विवेचनात्मक पक्ष यह है कि भारत में महिला श्रम का भरपूर प्रयोग नहीं हो पा रहा है। षायद यही वजह है कि तमाम कोषिषों के बावजूद मन चाहा आर्थिक विकास नहीं मिल पा रहा। 
आईएमएफ ने महिलाओं के समावेष के आर्थिक लाभ: नये तंत्र, नये प्रमाण में कहा कि महिलाओं के साथ कार्यस्थलों पर नये कौषल भी आते हैं जाहिर है यह विकास की सम्भावनाओं को बढ़ाते हैं। तुलनात्मक वृद्धि दर को देखा जाय तो यह भी पता चलता है कि भारत दुनिया में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की ओर है हालांकि कई मामलों में दूसरे देषों से यह कहीं पीछे भी है। मानव विकास सूचकांक में भारत सषक्त के बजाय कहीं अधिक संघर्श करता दिख रहा है जबकि पड़ोसी चीन दुनिया के सबसे तेज आर्थिक वृद्धि वाली अर्थव्यवस्था 2017 में चीन था तब यह भारत से महज 0.2 फीसदी ही आगे था मगर वहां का संरचनात्मक विकास कहीं अधिक मजबूत और विस्तृत है। इस दुविधा से परे कि संरचनात्मक तौर पर जो राश्ट्र जितना अधिक विकसित होगा उसके विकास की सम्भावनाएं उतनी ही अधिक होंगी। कहा तो यह भी गया है कि महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से भारत की अर्थव्यवस्था तीन साल में 150 अरब डाॅलर से ज्यादा बढ़ सकती है और महिला-पुरूश उद्यमियों की भागीदारी बराबर होने पर जीडीपी दो प्रतिषत से ज्यादा बढ़ सकती है। दुनिया में महिलाओं को लेकर किस प्रकार की अवधारणा है इस पर राय अलग-अलग हो सकती है पर यह तथ्य निविर्वाद रूप से सत्य है कि भारतीय समाज में महिलाओं की उपेक्षा की जाती है। महिलाओं की साक्षरता, षिक्षा, उद्यमिता से लेकर कौषल विकास एवं नियोजन आदि में भूमिका चैगुनी की जा सकती है। झकझोरने वाला सवाल तो यह भी है कि क्या कभी किसी ने इस बात पर गौर किया कि दुनिया में सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था भारत के हालात में चमत्कारिक परिवर्तन क्यों नहीं कर पायी। इसका उत्तर मात्र एक है महिलाओं की सक्रिय भागीदारी का आभाव। दुनिया के जिन देषों में विकास और इनमें निहित रोजगार के संतुलन को बरकरार रखा है वे तरक्की कर रहे हैं। आईएमएफ के हालिया रिपोर्ट के मद्देनजर विष्व में 18 करोड़ की नौकरियों पर खतरा है इस समस्या को लेकर सभी अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने को आगे आये।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

No comments:

Post a Comment