Friday, October 19, 2018

जिनकी उपस्थिति सियासत का रुख मोड़ दे

बीते दो महीने के दरमियान देश ने तीन बड़े नेताओं को खोया जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और दक्षिण भारत के राजनीति के पुरोधा और तमिलनाडु के कई बार मुख्यमंत्री रहे एम करूणानिधि और अब एनडी तिवारी को। स्वतंत्रता सेनानी, आजाद भारत में राजनीति के युग के साथ यात्रा षुरू करने वाले दो-दो राज्यों के मुख्यमंत्री रहे एक मात्र राजनेता एनडी तिवारी उसी दिन दुनिया से विदाई ली जिस दिन वो यहां आये थे। 18 अक्टूबर, 1925 से 18 अक्टूबर, 2018 के बीच में अगर कुछ भी बदला है तो सिर्फ 1925 और 2018 का फर्क जबकि तिथि और माह वहीं की वहीं स्थिर रहे। 93 साल की उम्र में निधन हुआ जिसमें 65 साल की राजनीतिक यात्रा का बड़ा इतिहास छुपा हुआ है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि एनडी तिवारी जैसे नेता युग प्रवर्तक होते हैं। वर्तमान के साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का काम करते हैं। भारतीय राजनीति के क्षितिज में ऐसा कई राजनेताओं के साथ है जो डूब कर भी रोषनी बिखरने में कभी कमतर न थे। एनडी तिवारी का नाम ऐसे ही नेताओं में षुमार है। पहली बार 1976 में उत्तर प्रदेष के मुख्यमंत्री बने जबकि 1952 के पहले आम चुनाव में ही उन्होंने विधानसभा की यात्रा तय कर ली थी। यह भी सही है कि एनडी तिवारी के साथ राजनीति और विवाद दोनों यात्रा कर रहे थे। वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता तिवारी का विवादों से चोली-दामन का नाता रहा। आन्ध्र प्रदेष में राज्यपाल रहते हुए जैविक पुत्र का मामला चाहे प्रकाष में आया हो या फिर राजभवन में लगे अरोप ही क्यों न रहे हों। एनडी तिवारी ने उथल-पुथल के दौरान भी लाइफ मैनेजमेंट को संवारने की दिषा में प्रयासरत रहे। हतप्रभ करने वाली बात यह है कि जीवन के किसी भी मोड़ पर उन्हें सियासत ने कभी पीछा नहीं छोड़ा या फिर सियासत को उन्होंने नहीं छोड़ा। रोहित षेखर का मसला पिता-पुत्र में तब्दील हो गया और एक अच्छी बात यह रही कि आखरी क्षणों में इन सबका सुख भी उन्हें मिल सका।
1942 में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले एनडी तिवारी का जीवन भले ही पहाड़ी विधाओं से युक्त था पर विकास पुरूश के तौर पर उनका लोहा पूरा भारत मानता है। तीन बार उत्तर प्रदेष के मुख्यमंत्री और एक बार उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री साथ ही राज्यपाल जैसे तमाम पदों के अलावा 9 बार वित्त मंत्री के तौर पर बजट पेष करने का अनुभव का श्रेय भी एनडी तिवारी को ही जाता है। इतना ही नहीं पेट्रोलियम मंत्रालय, उद्योग आदि समेत समय-समय पर केन्द्र में कई विभागों में मंत्री रहे। षुरूआती दिनों में वे कांग्रेस के नेता तो नहीं थे पर बाद में वे कांग्रेसी ही बन कर पूरा जीवन खपाया। इन्दिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक एनडी तिवारी होने का मतलब सभी समझते थे। एक ऐसा भी दौर आया जब कांग्रेस की राजनीति षून्य की ओर चली गयी थी और समय था 21 मई 1991 का। इसी दिन राजीव गांधी की हत्या हो गयी थी और दौर चुनाव का था। सोनिया गांधी दुःख के गर्त में थी, राहुल गांधी समेत अन्य उत्तराधिकारी सियासत से अछूते थे और उम्र भी इतनी नहीं थी। तब यह बात आम हो गयी कि कांग्रेस का नेतृत्व कौन करेगा। चुनाव के बीच में हुई पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या पूरे भारत को झकझोर दिया था। बचे हुए चुनावी चरण में कांग्रेस को सहानुभूति का फायदा मिला और वह सत्ता के समीप पहुंची। कुल आंकड़े में केवल 4 सदस्यों की घटोत्तरी थी उन दिनों कांग्रेस 267 सीटे जीती थी लेकिन इसी समय एक हैरत भरी घटना यह हुई कि नेतृत्व की भरपाई करने वाले एनडी तिवारी नैनीताल सीट से लोकसभा चुनाव हार गये। वो भी महज 800 वोटों के अंतर से। यदि भारतीय राजनीति में किसी की खराब किस्मत कही जाय तो इस दौर में एनडी तिवारी बाकी के दौर में अगर अच्छी किस्मत भी कही जाय तब भी बात एनडी तिवारी की ही बात होगी। इस बात को सभी मानते हैं यदि एनडी तिवारी लोकसभा की सीट जीतने में सफल होते तो 1991 में देष का प्रधानमंत्री पी0वी0 नरसिम्हा राव नहीं केवल और केवल एनडी तिवारी होते ये ऐसी चूक थी जिसकी भरपाई ताउम्र स्वयं एनडी तिवारी भी नहीं कर सकते थे। 
अगर एक षब्दों में समझा जाय कि एनडी तिवारी का क्या मतलब तो इसका अर्थ है विजन, विजय और विकास पर कहावत है कि दुनिया जीतने वाले भी कभी कभी छोटी रियासतों से चकनाचूर हो जाते हैं। विजन, विजय और विकास के रथ पर सवार एनडी तिवारी 1991 में विजय प्राप्त नहीं कर पाये और पूरे देष में विजन के लिए जाने जाने वाले एनडी तिवारी कई विवादों के चक्रव्यूह में जिस तरह उलझे वहां भी लम्बे वक्त के बाद रास्ते बने और कुछ मामले में तो तमाम विजन के बावजूद रास्ते मरते दम तक बंद रहे। हैदराबाद राजभवन की घटना के बाद एनडी तिवारी हाषिए पर चले गये थे। कांग्रेस के नेताओं ने उनसे मुंह मोड़ लिया। सोनिया गांधी, राहुल गांधी जैसे नेता मानो उनको भुला ही दिया हालांकि इसकी वजह सियासी भी है। गौरतलब है कि एक दौर ऐसा भी था जब एनडी तिवारी कांग्रेस से बाहर और कांग्रेस के विरोध में थे। हालांकि सब कुछ ठीक हुआ पर षायद इसी को राजनीति कहते हैं कि जितना ठीक दिखता है असल में उतना होता नहीं। विकास पुरूश की राह में उनका पथ काफी चिकना था साल 2002 में उत्तराखण्ड में पहली बार जब विधानसभा का चुनाव हुआ तो वे मुख्यमंत्री बने। प्रदेष को औद्योगिक पैकेज समेत औद्योगिक नीतियों से सराबोर किया। इसमें कोई दो राय नहीं कि एनडी तिवारी के कार्यकाल में उत्तराखण्ड संरचनात्मक तौर से बहुत मजबूत हुआ था जिसका फायदा आने वाली सरकारों को भी मिला। खास यह भी है कि 18 साल के उत्तराखण्ड में 9 मुख्यमंत्री हो चुके हैं जिसमें 5 साल का कार्यकाल पूरा करने के लिए केवल और केवल एनडी तिवारी को जाना जाता है। 
सभी दलों में पैठ बनाने वाले एनडी तिवारी भले ही डूब कर रोषनी बिखरने वाले रहे हों पर आखरी दिनों में वे डूबते सूरज की ही तरह थे। राजनीति के सूरमा भी अच्छी तरह जानते हैं कि एनडी तिवारी की उपस्थिति मात्र से सियासत का रूख बदल जाता था। अच्छे दोस्त और कठोर नेतृत्व से युक्त एनडी तिवारी जरूरतमंदों के लिए बड़ा मन रखते थे। कहा तो यह भी जाता है कि सत्ता में रहते हुए विरोधियां का वह पहले सुनते थे कई तो यह भी मानते हैं कि उन्होंने विरोधी पनपने ही नहीं दिये। एनडी तिवारी भारतीय राजनीति में ऐसे षलाखा पुरूश थे जिनके सम्बंध दल से ही नहीं पीढ़ियों में बंध जाती थी। समकालीन राजनीतिक लोग जिन्हें एनडी तिवारी के साथ सियासत हांकने का अवसर मिला है वह अच्छी तरह जानते हैं कि रास्ता बनाना और दूसरे के साथ इस पर रेस लगाना तिवारी की अभूतपूर्व क्षमताओं में निहित था। हैदराबाद में लगे ग्रहण से वे कभी उभर नहीं पाये और 16 महीने से दिल्ली के मैक्स में रहते हुए तमाम जद्दोजहद के बाद आखिरकार उन्होंने विदाई ले ही ली। एनडी तिवारी जब 7 बरस के थे तब से मां का साया सर से उठा और पिता के साथ एक कोठरी में महीनों कैद रहे तब दौर औपनिवेषिक सत्ता का था और लड़ाई स्वाधीनता की थी। एक खूबसूरत कहावत है कि रास्तों की दिलकषी अपनी जगह है चलने वालों की भी मर्जी चाहिए पर यहां कह सकते हैं कि रास्ते चाहे दिलकष रहे हों या न रहे हों पर विजन, विजय और विकास के संकल्प के साथ एनडी तिवारी न केवल रास्ते को दिलकश बनाया बल्कि उस पर अन्तिम समय तक चलते रहे।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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