Monday, October 29, 2018

स्टिक एंड कैरेट थ्योरी की राह पर जीएसटी

इंग्लैण्ड के दार्षनिक जेरेमी बेंथम ने अभिप्रेरणा के अन्तर्गत स्टिक एण्ड कैरेट थ्योरी को प्रतिबिम्बित किया जिसका एक अर्थ सख्त तरीका तो दूसरा पुचकारना है। इसी सिद्धांत का डगलस मैकग्रेगर ने आगे चलकर एक्स और वाई के रूप में प्रयोग किया। अब इसी तर्ज पर मोदी सरकार जीएसटी कर संग्रह बढ़ाने का मन बना रही है। हालांकि इसके लिए उन्होंने चार श्रेणियां बनाई हैं जिसमें सख्त तरीका से लेकर नरम रूख तक षामिल है। जीएसटी को लेकर समय-समय पर सरकार रणनीति बदलती रही पर ऐसा अभी तक नहीं हुआ कि खजाना भरने में वह खरा उतरा हो। गौरतलब है कि जब से गुड्स एण्ड सर्विसेज़ टैक्स (जीएसटी) आया है तब से जीएसटी परिशद् की 30 बैठकें हई हैं जिसमें 918 फैसले किये गये। यह इस बात की तस्तीक है कि यह कानून इतने सपाट रास्ते पर नहीं है जितना षायद सरकार समझती थी। जीएसटी परिशद् की बैठेकों में नई कर व्यवस्था से जुड़े कानूनी, नियम और कर दरों सम्बन्धित कई निर्णय समय-समय पर लिये जाते रहे और ऐसा करने के पीछे बड़ी वजह सरकारी खजाना भरने की ही रही है। ध्यानतव्य हो कि जीएसटी के तहत राज्यों को 5 साल तक मुआवजे देने की गारण्टी, राजकोशीय जैसे घाटों के बढ़ने के चलते सरकार की चिंता इन दिनों बढ़ी है। इतना ही नहीं राजनीतिक लाभ और चुनावी सोच के चलते कई ऐसे कदम भी सरकार ने उठाए हैं जिससे उन्हें पीछे भी हटना पड़ा। जीएसटी परिशद् ने 300 से ज्यादा बड़े उत्पादों पर बीते महीनों में कर भी घटाया है इससे भी कर संग्रह घटा है लिहाजा टैक्स वसूली बढ़ाने के नये तरीके खोजे जा रहे हैं। लगभग दो माह के आस-पास इस बात को भी हो चुके हैं कि 20 लाख रूपए से कम के व्यवसायी जीएसटी की अनिवार्यता और उसके कर से बाहर होंगे। जाहिर है टैक्स वसूली का स्तर अभी और गिरेगा। मजे की बात यह है कि जीएसटी काउंसिल ने इसका निर्णय ले लिया है जबकि राज्य सरकारों के पास इसकी औपचारिक सूचना नहीं है जिसके कारण जो उद्यमी जीएसटी की इस व्यवस्था में राहत पा सकते हैं वे अभी भी मजबूरन इसमें बने हुए हैं जबकि सरकारें अखबारों में यह विज्ञापन छाप कर कि लोगों को राहत दी गयी की वाहवही लूट रही हैं। 
जीएसटी को लागू हुए सवा साल हो गये हैं पर संषोधनों का सिलसिला रूका नहीं है। प्रति माह कर जमा करने की प्रथा जब अगस्त 2017 में षुरू हुई तो जुलाई माह की जीएसटी की राषि खजाने में 95 हजार करोड़ थी। सिलसिलेवार तरीके से देखें तो अगस्त में यह राषि 91 हजार करोड़ के आसपास रही लगातार गिरावट के साथ दिसम्बर आते-आते यह 80 हजार करोड़ पर सिमट गई। हालांकि इसी दौरान 10 नवम्बर 2017 को जीएसटी काउंसिल की गोवा में हुए बैठक के दौरान 28 फीसदी वाले कर में कुछ संषोधन किया था और डेढ़ करोड़ की राषि वालों के लिए रिटर्न त्रिमासिक किया था। गुजरात चुनाव को देखते हुए लेट फीस को भी वापस करने का काम भी इस दौरान हुआ था। सरकार का आंकलन था कि एक साल में जीएसटी से 13 लाख करोड़ रूपए खजाने में आयेगा जो हर माह एक लाख करोड़ से अधिक होता है पर अब तक के आंकलन में यह 90 से 92 हजार करोड़ रूपए के औसत पर जाकर ठहरता है। हालांकि अप्रैल 2018 में जीएसटी का कलेक्षन एक लाख करोड़ से अधिक बताया जाता है। गौरतलब है कि 52 हजार करोड़ रूपए से अधिक का मुआवजा राज्यों को जीएसटी के तहत देना पड़ता है जाहिर है सरकार लगातार घाटे का सामना कर रही है जिससे राजकोशीय घाटा भी बढ़ने का खतरा मंडरा रहा है। वर्तमान में यह घाटा 3.3 फीसदी तक है। जिस तरह फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य को डेढ़ गुना और किसानों की आय को दोगुना किये जाने की कसम सरकार ने खाई और निभाने की कोषिष कर रही हैं उसे लेकर भी कर वसूली बढ़ाने की रणनीति में बदलाव लाना उसकी मजबूरी है। मौजूदा स्थिति में रणनीति बहुत सफल नहीं दिखाई दे रही फलस्वरूप राजकोशीय घाटा बढ़ने का  डर सरकार में है यदि ऐसा हुआ तो बजटीय घाटा बढ़ना लाज़मी है। ऐसे में बोझ आखिरकार करदाताओं पर ही पड़ना है जिसे लेकर सरकार सख्त तरीका अख्तियार कर सकती है। मगर 2019 के लोकसभा के चुनाव को देखते हुए करदाताओं को निराष और नाराज करने से भी सरकार बाज आयेगी। 
टैक्स की वसूली बढ़ाने के मामले में सरकार आये दिन नये रास्ते खोजती है। अब सरकार ने इसकी चार श्रेणियां बनाने की बात कह रही है जिसमें उदासीन (डिसइंगेज्ड), अवरोधी (रिसिस्टर्स), उद्यमी (ट्रायर्स) और समर्थक (सपोर्टर्स) की संज्ञा दी जा रही है। वे जो कानून की अवहेलना कर जानबूझकर टैक्स नहीं चुकाते उन्हें उदासीन की श्रेणी में रखने की कवायद है जो कर व्यवस्था को दमनकारी मानते हैं लेकिन उन्हें कर चुकाने के लिए मनाया जा सकता है उन्हें अवरोधी की श्रेणी में रखा जायेगा तथा उन करदाताओं को जो कर चुकाना चाहते हैं पर कई कारणों से टैक्स नहीं चुका पाते उन्हें उद्यमी की श्रेणी में रखते हुए किस्तों मे कर चुकाने जैसे सहूलियते मुहैया करायी जायेंगी। अन्ततः ऐसे करदाता जो कानून का पूरी तरह पालन करते हुए समय पर कर चुकाते हैं और कर व्यवस्था से संतुश्ट भी हैं उनके प्रति सरकार नरमी बरतेगी और उनके सुझावों को भी प्राथमिकता देगी इन्हें सपोटर्स अर्थात् समर्थक की संज्ञा दी गयी है। कर चोरों से निपटने के लिए विषेश प्रकेाश्ठ व्यव्सथा की बात भी की जा रही है। गौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने जीएसटी इंटेलिजेंस डायरेक्टरेट जनरल नाम का विषेश प्रकोश्ठ भी गठित किया है जो जीएसटी कानून के तहत कर चोरी के मामले की जांच करने के अलावा छोपमारी और जब्ती की कार्यवाही करेगा। सरकार के इस प्रकार के निर्धारण से यह स्पश्ट है कि खजाने में आने वाले धन संग्रह हर हाल में होना है। इसके लिए कठोर कदम भी उठाने पड़े तो उठाये जायेंगे। गोरतलब है कि करदाताओं के टैक्स चुकाने के रूख के आधार पर उनके साथ अलग-अलग तरीका अपनाये जाने वाली भारत सरकार की यह नई नीति विदेषों में पुरानी है। ब्रिटेन, आॅस्ट्रेलिया और मैक्सिको जैसे देषों में ऐसे ही तरीके अपनाये जाते हैं और इससे कर वसूली बढ़ाने में कामयाबी भी मिली है। 
इसमें काई दुविधा नहीं कि 70 साल के इतिहास में जीएसटी कर की एक नई व्यवस्था ही नहीं एक नई अर्थव्यवस्था है। दुनिया के सैकड़ों देष अब तक जीएसटी को अपना चुके हैं। इस सूची में सवा साल से भारत भी षामिल हैं। आंकड़े यह भी बता रहे हैं कि बहुतायत की स्थिति षुरूआती दिनों में सुखद नहीं रही। यही बात भारत के लिए भी कहना सही होगा। एषिया के 19 देष इसी प्रकार के कर के प्रावधान में हैं जबकि यूरोप में 53 देष इसमें सूचीबद्ध हैं जबकि अफ्रीका में 44 और दक्षिण अमेरिका में 11 देषों में जीएसटी लागू है। भारत में लागू जीएसटी के 4 स्लैब है और 5 से लेकर 28 फीसदी तक कर अधिरोपिण है। हालांकि कर लागू करने के षुरूआत में 32 फीसदी का स्लैब भी था जिसे 28 फीसदी तक सीमित कर दिया गया। अन्य देषों में कर के एक ही स्लैब हैं जबकि भारत में इसके चार स्लैब देखे जा सकते हैं। हालांकि यहां के आर्थिक वातावरण में भी भिन्नता है पर सरकार को यह भी गम्भीरता से समझना चाहिए कि यहां बहुतायत में किसान जो बेकार हैं, युवा हैं जो बेरोजगार हैं जिससे गैर उत्पादकों की संख्या अधिक हो जाती है पर जिम्मेदारी सभी की सरकार को लेनी होती है। कर चुकाने वाले दस फीसदी भी नहीं हैं ऐसे में कड़े कानून औपनिवेषिक सत्ता की याद दिलाते हैं ऐसे में स्टिक एण्ड कैरेट थ्योरी में कैरेट का प्रयोग अधिक हो तो अच्छा रहेगा।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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