Thursday, September 6, 2018

भूख और बीमारी पर दुनिया की ताज़ी सूरत

बड़े मुद्दे क्या होते हैं और उनके आगे सत्तासीन भी बहुत कुछ करने में षायद सफल नहीं हो पाते। अगर इसे ठीक से समझना है तो दुनिया में बढ़ रही भुखमरी और बीमार होते लोगों की गति को जांचा परखा जा सकता है मौजूदा विष्व की दो समस्याओं में यदि एक जलवायु परिवर्तन तो दूसरा आतंकवाद है। मगर इसी दुनिया की दो पुरातन समस्याओं पर नजर गड़ायी जाये जो वर्तमान में भी बड़े रूप में विद्यमान है जिसमें एक भूख है तो दूसरी बीमारी है। दुनिया की लगभग साढ़े सात अरब की जनसंख्या में करीब सवा अरब भुखमरी से जूझ रही है। भारत, चीन के बाद जनसंख्या के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देष है और यहां भी हर चैथा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है और इतने ही अषिक्षित है। भारत से भुखमरी भी पूरी तरह कहीं गयी नहीं है और बीमारी भी कहीं अधिक प्रवाहषील है। भारत में भुखमरी की स्थिति फिलहाल गम्भीर रूप लेती जा रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अन्तर्राश्ट्रीय खाद्य नीति संस्थान के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत साल 2017 में 100वें स्थान पर पहुंच गया था जबकि 2016 में यह 97वें स्थान पर था। वैष्विक भुखमरी सूचकांक 2016 और 2017 के मद्देनजर दुनिया के देषों के चित्र कम ही बदल पाये हैं। खास यह भी है कि चीन, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका और बांग्लादेष जैसे सभी पड़ोसी देषों की स्थिति भारत की तुलना में कहीं अधिक बेहतर है पिछले साल के आंकड़े के हिसाब से पाकिस्तान 107 स्थान के साथ भारत से कहीं अधिक पीछे है, अफगानिस्तान की स्थिति 111वें स्थान के साथ काफी खराब अवस्था में है। 
बीते 5 सितम्बर को डब्ल्यू.एच.ओ. की ताजी रिपोर्ट भी आ चुकी है जो कुछ कई मामलों में चैकाती है। दुनिया में कई देष ऐसे हैं जो पैसों के मामले में तो अमीर है पर सेहत को लेकर उतने ही गरीब भी। डब्ल्यूएचओ के अध्ययन से यह तथ्य सामने आया कि जो देष सम्पन्नता में आगे जा रहे हैं वे षारीरिक श्रम करने में कहीं अधिक पीछे छूट रहे हैं। चैकाने वाला तथ्य यह है कि अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश की रैंकिंग में 9वें स्थान पर कुवैत है। गौरतलब है यह वही कुवैत है जिस पर इराक के तत्कालीन राश्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने 1990 में कब्जा किया था जिसे लेकर 17 जनवरी 1991 में अमेरिका ने इराक पर हमला किया था और फरवरी के अंत में इसे इराक से मुक्ति मिली थी। यहां अमीरी है पर यहां कि 67 फीसदी आबादी षारीरिक श्रम को बिलकुल तवज्जो नहीं देती। आंकड़े हतप्रभ करने वाले ही कहे जायेंगे कि सऊदी अरब की 50 फीसदी जनसंख्या आराम तलब है। वैसे अमीर देषों में सिंगापुर का नाम भी चैथे नम्बर पर है और आराम तलबी में यह भी अव्वल है। खास यह भी है कि वैष्विक स्तर पर 2001 से षारीरिक गतिविधियों के स्तर पर कोई सुधार नहीं बताया गया है। आंकड़े इस बात को तस्तीख कर रहे हैं कि दुनिया भर में प्रत्येक तीन में से एक महिला और हर चार में से एक पुरूश स्वस्थ रहने के मामले में सक्रिय नहीं रहते। उक्त परिप्रेक्ष्य इस बात को संकेत कर रहे हैं कि जितनी कमायी, उतने आलसी देष। आलस्य के चलते ही एक-तिहाई भारतीय बीमार हैं। सुखद यह है कि महिलायें पुरूशों से पीछे हैं ऐसे में घरेलू कामकाज उनकी सक्रियता की वजह से उतने प्रभावित नहीं हुए। 168 देषों में कराये गये सर्वे के दौरान उक्त आंकड़ों को पाया गया। भारत में पांच बीमारियों को लेकर खतरा बड़ा बताया गया है जिसमें दिल का दौरा, मोटापा, उच्च रक्तचाप, कैंसर और डायबिटीज षामिल है।
इसके अलावा आगे की कई चुनौतियों जो भारत को कई मोर्चे पर बीमार और कमजोर दोनों कर सकती हैं। आंकड़े के मुताबिक साल 2045 तक 15 करोड़ से अधिक लोग डायबिटीज़ से पीड़ित होंगे, साल 2025 तक पौने दो करोड़ बच्चों में मोटापा का खतरा बढ़ जायेगा जबकि 40 प्रतिषत की दर से बढ़ रही उच्च रक्तचाप की समस्या कई कामकाजी लोगों के लिये अड़चन बनी हुई है। इतना ही नहीं 34 प्रतिषत दिल की बीमारी के मामले पिछले 25 सालों में बढ़े हैं। महिलाओं में बढ़ता स्तन कैंसर और भयावह होगा 2020 तक यह आंकड़ा 18 लाख से अधिक होने का है। एषिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कई देष भुखमरी और बीमारी के मुहाने पर बरसों से खड़े हैं। जाहिर है इनसे कई बीमारियां भी उपजी हैं। अफ्रीका महाद्वीप का नाइजीरिया में 8 लाख लोग भुखमरी के कगार पर हैं। पिछले 11 महीनों से यहां बच्चे गम्भीर कुपोशण की समस्या से जूझ रहे हैं। इतना ही नहीं मध्य अफ्रीकी गणराज्य चाण्ड और जाम्बिया में भूख का स्तर उच्चत्तम है। हालांकि म्यांमार, रवाण्डा और कम्बोडिया जैसे देष भुखमरी स्तर में सर्वाधिक कमी करने वालों में षुमार है। फिर भी दुनिया का चित्र इस दिषा में कहीं अधिक भयावह है। वैष्विक भुखमरी सूचकांक स्तर पर भुखमरी में कमी लाने हेतु किये गये प्रयासों की सफलता, असफलता को देखें तो साफ है कि भुखमरी ने बीमारी को बढ़ावा दिया है जबकि वल्र्ड हैल्थ आॅर्गेनाइजेषन की हालिया रिपोर्ट को बारीकी से समझा जाये तो अमीरी ने भी बीमारी को बढ़ा दिया है। लाख टके का सवाल यह है कि बीमारी दोनों परिस्थितियों में बढ़ रही है पर अंतर केवल बीमारी के स्वरूप में है। यह बात तो बिल्कुल आसानी से समझ में आने वाली है कि गरीब देष बीमार क्यों हो रहे हैं पर यह बात गले नहीं उतर रही है कि सम्पन्नता से लबालब देष भी बीमारी को दावत दे रहे हैं। इसमें कोई दुविधा नहीं जीवन में जो संतुलन का सिद्धांत प्रकृति से मिलता है उसका किसी भी स्थिति में लोप होना परेषानी का सबब बनेगा। दुनिया में जनसंख्या के चलते संसाधनों का उपयोग भी बढ़ा है और खाने-पीने की चीजों की बर्बादी भी। इतना ही नहीं नये खान-पान के स्तर के चलते भी षरीर पर अत्याचार हुआ है जिसकी कीमत आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी चुका रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी पिछले महीने दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स देषों की बैठक से पहले युगाण्डा गये थे। युगाण्डा अफ्रीका का मझोले किस्म का गरीब देष है पर दुनिया के सबसे मेहनती लोग यहीं पाये जाते हैं। इसके अलावा मोजाम्बिक, लिसोथो समेत जाॅर्डन, नेपाल तथा कम्बोडिया भी कमोबेष मेहनत करने वाले देषों में अव्वल हैं। कुछ गम्भीर बीमारी वाले देष बनते जा रहे हैं तो कुछ गरीबी के बावजूद तन्दुरूस्त देष हो रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक 38 फीसदी अमेरिकी मोटापे के षिकार हैं और 31 फीसदी से ज्यादा यहां के बच्चों में मोटापे की आषंका बढ़ी हुई है। यदि समय रहते स्वास्थ पर बेहतर होमवर्क नहीं हुआ तो भारत ही नहीं पूरी दुनिया में इससे जुड़ी समस्या विकराल रूप लेगी। डायबिटीज़ वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। दुनिया में 42 करोड़ से अधिक लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। चिंता का विशय यह है कि 2030 तक षीर्श 7 मौत के कारणों में डायबिटीज सबसे अव्वल बताया जा रहा है। भारत में कई बीमारियां जड़ जमा चुकी हैं तो कई कगार पर खड़ी हैं। बचपन में यह हमेषा सुनने को मिला है कि आलस्य इंसान का सबसे बड़ा दुष्मन है और इस दुष्मनी को सबने निभाया है पर जब यही जन पर पड़ जाय तो सबक ले लेना चाहिये। अलग-अलग आयु में भिन्न-भिन्न षारीरिक समस्याएं हैं समय, परिस्थिति और आयु के अनुपात में सभी को इससे जुड़े अभ्यास करने होंगे। डब्ल्यूएओ की रिपोर्ट केवल जानकारी के लिये प्रकाषित नहीं हुई बल्कि सावधानी का भी यह एक सूचनापत्र है। दुनिया, देष और लोग तीनों को यह समझना है कि किस हिस्से से इसके खिलाफ लड़ाई लड़नी है। भूख ने बीमारी बढ़ाई तो अमीरी ने भी वही चुनौती खड़ी कर दी। समय रहते दोनों को इससे निपटना है यही इस रिपोर्ट का अर्थ व तात्पर्य निकलता है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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