Thursday, September 6, 2018

कई उम्मीदों पर टिका टू प्लस टू वार्ता

इसमें कोई दुविधा नहीं कि मौजूदा समय में भारत और अमेरिका के बीच सम्बंध कहीं अधिक प्रगाढ़ हैं। दोनों देषों के बी टू प्लस टू वार्ता से इसे और बल मिलेगा। इतना ही नहीं भारत और पाकिस्तान के भावी दिषा को भी यह तय कर सकता है। 6 सितम्बर को दिल्ली में षुरू टू प्लस टू वार्ता दोनों देषों के लिये एक षुभ संकेत है। राजनीतिक लिहाज़ से यह काफी अहम इसलिये है क्योंकि दोनों देषों के दो बड़े महत्वपूर्ण मंत्री रणनीतिक और सामरिक हितों के मुद्दों के साथ द्विपक्षीय सम्बंधों को तुलनात्मक अधिक मजबूती देने पर चर्चा कर रहे हैं। अमेरिका की ओर से विदेष मंत्री माइक पाॅम्निपयो और रक्षा मंत्री जिम मैटिस तो भारत की तरफ से विदेष मंत्री सुशमा स्वराज और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण हिस्सा ले रही हैं। खास यह भी है कि दो बार स्थगित होने के बाद इस वार्ता को तवज्जो मिला इसे अमेरिका के साथ इस साल का सबसे अधिक राजनीतिक और कूटनीतिक संवाद के रूप में भी देखा जा रहा है। गौरतलब है कि भारत से अमेरिका का सम्बंध बेहतर है पर दुनिया के कई देष ऐसे हैं जहां भारत के सम्बंध तो बेहतर है पर उन्हीं से अमेरिका का सम्बंध अच्छा नहीं है। ईरान और रूस के मामले में उक्त बात बिल्कुल उचित है। अमेरिका का ईरान पर हालिया प्रतिबंध और बारबार धौंस दिखाना साथ ही रूस से उसकी खटपट भी देखी जा सकती है जबकि भारत इन दोनों के कहीं अधिक समीप है रूस से तो भारत की नैसर्गिक मित्रता है। उम्मीद की जा सकती है कि टू प्लस टू वार्ता न केवल सामरिक सम्बंध गहरा करेगी बल्कि रूस और ईरान से जुड़े मतभेदों को भी हल करने में मदद कर सकती है। आतंकवाद, रक्षा सहयोग और व्यापार पर बातचीत के अलावा पाकिस्तान की नई सरकार पर राय, एच-1बी वीज़ा पर बदलाव जैसे मुद्दे हो सकते हैं। इसके अलावा भी कई मामलों में एकमत हुआ जा सकता है।
दुनिया जानती है कि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा सैन्य उपकरण आपूर्तिकत्र्ता है। पिछले एक दषक में अमेरिका ने भारत को करीब 15 अरब डाॅलर की कीमत के सैन्य उपकरणों की बिक्री की है जो रूस के बाद दूसरा ऐसा देष है जो सबसे बड़ा हथियार आपूर्ति भारत को करता रहा है। वैसे जिस तर्ज पर सरकारों की कूटनीति रही है और दुनिया से सम्बंध कायम हुए हैं उनमें काफी हद तक स्थायित्व का आभाव मिलता है। नेहरूकाल में किये गये कई समझौतों को आज भी आलोचना की जाती है और अमेरिका के मामले में कई पाॅलिसी सटीक नहीं मानी गयी है। अमेरिका एक चालाक देष है और अवसर के हिसाब से देष पर अपनी धाक जमाता रहा है। दुनिया का कोई ऐसा कोना नहीं जहां उसकी धमक न हो और दुनिया का षायद ही कोई देष हो जो उससे प्रगाढ़ मित्रता करना न चाहा हो। अमेरिका और सोवियत संघ के बीच पांच दषक तक षीत युद्ध चला कमोबेष अब वही स्थिति रूस के साथ अनवरत् है। सालों तक उत्तर कोरिया और अमेरिका एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं भा रहे थे यहां भी मामला पटरी पर लगभग आ गया था। साम्यवादी देष चीन के मामले में भी चीन अक्सर चाल चलता रहा फिलहाल इन दिनों दोनों के बीच व्यापार वाॅर जारी है। हालांकि चीन भी चोरी वाली चाल चलने से बाज नहीं आता पड़ोसी देषों से खुन्नस निकालना उनकी जमीन हड़पना और षातिर अंदाज में कूटनीतिक संतुलन के लिये पाक जैसे देषों की मदद करके भारत के विरूद्ध नीतियां अपनाना उसकी आदत रही है। गौरतलब है कि चीन के 14 पड़ोसी देष से झगड़ा है इतना ही नहीं श्रीलंका से लेकर म्यांमार तक और नेपाल समेत बांग्लादेष व भूटान पर उसकी तिरछी नज़र रहती है ऐसा इसलिए कि भारत उससे आगे न निकल पाये। भारत अमेरिका से दोस्ती प्रगाढ़ करके समय-समय पर चीन को भी संतुलित करता रहा है और षायद इसकी जरूरत आगे भी पड़ती रहेगी। 
टू प्लस टू वार्ता में आतंकवाद भी एक बड़ा मुद्दा है जो जगह घेर रहा है जिसे लेकर अमेरिकी विदेष मंत्री ने पांच सितम्बर को ही संकेत दे दिया था। जब उन्होंने पाकिस्तान में वहां के नागरिक और सैन्य नेतृत्व से क्षेत्रीय षान्ति के लिये खतरनाक आतंकवादी और उनके संगठनों के खिलाफ टिकाऊ और निर्णायक कार्यवाही की अपील की थी। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले वांषिंगटन में पाकिस्तान पर करारी चोट करते हुए 300 मिलियन डाॅलर की मदद रोक दी थी। ऐसा पाक पर संतोशजनक आतंक के विरूद्ध कार्यवाही न करने के चलते किया गया। हालांकि अमेरिका जनवरी में भी 255 मिलियन डाॅलर पहले भी रोक चुका है मगर पाकिस्तान इन सब से बेखबर अपनी गति में है। अमेरिका चाहता है कि भारत आतंकवाद विरोधी एक समूह का हिस्सा बने जिसमें सऊदी अरब समेत 49 सदस्य देष हों। फिलहाल अमेरिका भारत पर कुछ हद तक रूस को लेकर दबाव ही बना रहा है कि वह रूस से सरफेसएयर मिसाइल सिस्टम न खरीदे। अमेरिकी राश्ट्रपति रूस और ईरान के खिलाफ न केवल बड़े प्रतिबंध लगाये हैं बल्कि उन्हें भी धमकाया है जो इन दोनों देषों के साथ व्यापार करते हैं। भारत की समस्या यह है कि उसे कच्चा तेल चाहिये जबकि रूस से उसे सैन्य उपकरण चाहिए ऐसे में टू प्लस टू वार्ता से यह उम्मीद है कि इन दोनों मामलों में अमेरिका भारत को छूट देगा। गौरतलब है कि भारत रूस से खरीदने वाले इस उपकरण के मामले में समझौते को करीब-करीब अन्तिम रूप दे दिया है। अगले महीने रूसी राश्ट्रपति पुतिन भारत आ रहे हैं। उम्मीद है कि समझौते को अन्तिम रूप दे भी दिया जायेगा। भारत-अमेरिका के विदेष रक्षामंत्रियों के बीच हो रही टू प्लस टू वार्ता वाकई कहीं अधिक उत्पादकमूलक प्रतीत होती है। व्यापार से लेकर रक्षा क्षेत्र तक की दौड़ इस वार्ता में होगी। दो चरणों में होने वाली इस बैठक में कई रास्ते खुल सकते हैं। व्यापार का रास्ता तो खुलेगा ही साथ ही हिन्द प्रषान्त क्षेत्र को समावेषी, सुरक्षित, षान्तिपूर्ण एवं समान रूप से खुला बनाने की नये रोडमैप भी इसके हिस्से में हो सकते हैं। वार्ता चैतरफा दिषा दे सकती है। 
बैठक कई मुद्दों पर फोकस है यह दोनों देषों को पता है जिसका प्रभाव लम्बे समय तक रहेगा जिनमें एक भविश्य का रक्षा सौदा भी षामिल है। इस सवाल के साथ कि टू प्लस टू वार्ता क्या है असल में जब दो देष दो-दो मंत्रीस्तरीय वार्ता में षामिल होते हैं तो दोनों की तरफ से उनके विदेष और रक्षा मंत्री हिस्सा लेते हैं। गौरतलब है कि साल 2010 में भारत और जापान के बीच इस तरह की वार्ता पहले हो चुकी है। ऐसी वार्ता के फायदे अनेकों होते हैं जो कुछ तात्कालिक और कुछ भविश्य पर आधारित होते हैं। भारत बीते कई वर्शों से नवाचार की कोषिष में लगा हुआ है जिसकी पूर्ति वह मेक इन इण्डिया के माध्यम से करना भी चाह रहा है और कुछ हद तक कर भी रहा है। मौजूदा बैठक से रक्षा क्षेत्र में इस नवाचार और मेक इन इण्डिया के तहत भारत को कुछ सफलता जरूर मिलेगी। अमेरिका में हाल ही में डाटा सुरक्षा को लेकर भारत को चिंता से मुक्त रहने का आष्वासन दिया था। डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को मदद में कटौती करके आतंक के विरूद्ध लड़ाई को मजबूत करने का इरादा दिखा दिया है। पूर्व राश्ट्रपति बराक ओबामा राश्ट्रीय सुरक्षा परिशद् में भारत की स्थायी सदस्यता से लेकर न्यूक्लियर सप्लायर समूह में भारत के होने की कोषिष कर चुके हैं। इतना ही नहीं भारत कई मामले में संतुलित कूटनीति के साथ अमेरिका के समकक्ष भी स्वयं को खड़ा किया है। फिलहाल टू प्लस टू वार्ता से सम्भवनायें व्यापक हैं और सम्बंध प्रगाढ़ होने के बड़े आसार भी बढ़े हैं साथ ही पाकिस्तान और चीन को संतुलित करने के लिये भी असरकारी सिद्ध होगा। 



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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