Monday, September 17, 2018

स्वच्छता का पूरक समवेशी विकास

देश में स्वच्छता को लेकर जो आंकड़े गिनाये गये हैं उससे पता चलता है कि साल 2014 में जो साफ-सफाई और स्वच्छता कवरेज 40 फीसदी पर थी वह अब 90 फीसदी हो चुकी है और पूरे देष में 9 करोड़ शौचालय  बन चुके हैं। मौजूदा सरकार इसे लेकर सजग भी है और इतरा भी रही है। इसमें कोई षक नहीं कि स्वच्छता से सेहत में सुधार हुआ होगा और हो रहा है साथ ही आर्थिक पहलू भी मजबूत होंगे मगर इससे जुड़े कई और सामाजिक दक्षता तब तक अधूरी कही जायेगी जब तक स्वच्छता व समावेषी विकास का तारतम्य विकसित नहीं होता। स्वस्थ नागरिक देष के उत्पादन में वृद्धि कर सकता है, यहां के समावेषी विकास की अवधारणा को पुख्ता बना सकता है बषर्ते रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ, षिक्षा, चिकित्सा जैसे तमाम बुनियादी आवष्यकताएं पूरी होती हों। जाहिर है इनकी कमी के चलते स्वच्छता भी हाषिये पर रहता है। कह सकते हैं कि स्वच्छता और समावेषी विकास एक-दूसरे के पूरक हैं। चार साल पहले 2 अक्टूबर, 2014 को प्रधानमंत्री मोदी ने जिस स्वच्छता और साफ-सफाई की मुहिम चलायी थी वह कमोबेष एक आंदोलन का रूप लिया जरूर पर मन माफिक षायद ही रहा हो। हालांकि स्वच्छता सर्वेक्षण यह जता रहे हैं कि देष की तस्वीर बदली है। देष का सबसे स्वच्छ षहर एक बार फिर इंदौर घोशित हुआ जबकि मध्य प्रदेष की राजधानी भोपाल इस मामले में दूसरे नम्बर पर है और चण्डीगढ़ तीसरे नम्बर पर। स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 में झारखण्ड को सर्वश्रेश्ठ प्रदर्षन करने वाला राज्य चुना गया फिर महाराश्ट्र और छत्तीसगढ़ का स्थान आता है। गौरतलब है कि देष के सभी 4200 षहरों में सफाई की स्थिति का इस सर्वेक्षण में आंकलन किया गया। पिछले साल केवल 434 षहरों को इसमें षुमार किया गया था जबकि साल 2016 में यह आंकड़ा 73 तक ही सिमटा हुआ था। देखा जाये तो अब तक े तीन सर्वेक्षण आ चुके हैं और साफ-सफाई के मामले में देष की स्वच्छता दर में दोगुनी से अधिक वृद्धि हुई है। सर्वेक्षण से यह भी पता चल रहा है कि कौन षहर सबसे साफ है और कौन सबसे गंदा। उत्तर प्रदेष का गोंडा और महाराश्ट्र का भुसावल सबसे गंदे षहरों में षामिल किये गये।
साफ सफाई के मामले में पूरब और पष्चिम के तमाम देष ऐसे मिल जायेंगे जहां गंदगी का कोई नामोनिषान नहीं है। जापान इस मामले में कहीं अधिक दीवानगी से भरा देष है। यहां रेस्तरां में जाने से पहले पहनने के हाथ पोशाक और चप्पलें दी जाती हैं। यूरोप में साफ-सफाई के मायने भी काफी अलग हैं। विष्व स्वास्थ संगठन और यूनिसेफ समेत कुछ एजेंसियों का ताजा-तरीन आंकड़ा यह है कि दुनिया के 2 अरब 30 करोड़ से अधिक लोगों को साफ-सफाई की मूलभूत सुविधायें मुहैया नहीं हैं। इनमें से करीब 90 करोड़ खुले में षौच जाते हैं। भारत में भी इस प्रकार की व्यवस्था पहले की तुलना में घटी है। दो टूक यह है कि भारत की 60 फीसदी से अधिक आबादी गांव में रहती है। स्वच्छता अभियान बीते 4 सालों में आंदोलित हुआ है पर जिस देष में हर चैथा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे और इतने ही अषिक्षित हों और जहां भारी पैमाने पर भोजन लोगों की मुख्य समस्या हो वहां स्वच्छता को सभी प्राथमिकता में ला पायें इसकी सम्भावना कम ही है। यही कारण है कि एक बार फिर मोदी को झाड़ू उठाना पड़ा। भारत में 93 फीसदी सैप्टिक टैंकों को कभी खाली नहीं किया गया। देष के 112 जिले के सर्वे यह बताते हैं कि खुले षौच में 10 फीसदी की वृद्धि होने से बच्चों का विकास 0.7 फीसदी अधिक अवरूद्ध होता है। देष में डायरिया के मामले में 30 फीसदी की कमी आने का अनुमान भी इन दिनों बताया जा रहा है। गंदगी और प्रदूशण से होने वाली मौतों में 3 लाख की कमी की बात हो रही है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि साफ-सफाई और स्वच्छता स्वास्थ का बड़ा हथियार है जिस मामले में भारत बरसों से फिसड्डी रहा है। इसी को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी इसे 4 साल पहले एक अभियान का रूप दिया। बीते 15 सितम्बर को एक बार फिर 2 अक्टूबर गांधी जयंती को ध्यान में रखते हुए स्वच्छता ही सेवा मिषन को गति देने का प्रयास किया। स्वच्छता को लेकर मोदी के उठाये गये इस कदम की टाइमिंग को लेकर कई सवाल उठा रहे हैं कि पेट्रोल और डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी साथ ही आसमान पर पहुंच रहे डाॅलर के मुताबिक रूपये को देखते हुए मुद्दे से लोगों का ध्यान हटाने के लिये इस अभियान को अंजाम दिया गया। गौरतलब है कि इन दिनों पेट्रोलियम पदार्थ बहुत महंगे हैं और सरकार इसे बाहरी प्रभाव बताकर पल्ला झाड़ रही है। एक डाॅलर के मुकाबले रूपया भी 72 पार कर गया है जो अब तक के सबसे भीशण रूप अख्तियार कर चुका है। 
षोध यह इषारा कर रहे हैं कि भारत में स्वच्छता एक बड़े बाजार की सम्भावना समेटे हुए है जो साल 2020 तक 152 अरब डाॅलर का हो सकता है। साफ-सफाई से जुड़े बाजार की सालाना वृद्धि इस वर्श में 15 अरब डाॅलर से अधिक हो सकती है। यह सही है कि साफ-सफाई के आभाव भारत में मरने वालों की संख्या अधिक है। गंदा पानी, रहन-सहन में प्रदूशण, षौचालयों इत्यादि समेत वातावरण में भी गंदगी का समावेष इसकी बड़ी वजह रही है। विष्व बैंक का षोध भी कहता है कि यदि षौचालय इस्तेमाल में वृद्धि किया जाय, साफ-सफाई और स्वच्छता को लेकर जागरूक हुआ जाय तो इसके असर को 45 प्रतिषत तक कम किया जा सकता है। इतना ही नहीं भारत करीब 33 अरब डाॅलर हर साल बचा सकता है जो देष के जीडीपी के एक बड़े हिस्से को प्रभावित कर सकती है। इतना ही नहीं प्रति व्यक्ति आय की मात्रा में भी 1321 रूपए की वृद्धि सुनिष्चित हो सकती है। गंदगी से क्या नुकसान हो सकते हैं इसका अंदाजा विष्व स्वास्थ संगठन के इस कथन से आंका जा सकता है जिसमें कहा गया कि माचिस की एक तीली जिस प्रकार सम्पूर्ण दुनिया को स्वाहा कर सकती है ठीक उसी तरह बहुत सूक्ष्म मात्रा की गंदगी भी महामारी फैला सकती है। 
स्वच्छता से किसी को गुरेज नहीं होना चाहिये प्रधानमंत्री के कहने का भी इंतजार नहीं करना चाहिए बल्कि षिक्षा से स्वच्छता की ओर चलना चाहिये। षहर के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में भी साफ-सफाई का मामला जोरो-षोरों पर है। सरकार 2 अक्टूबर, 2019 तक खुले में षौच मुक्त भारत को हासिल करने का लक्ष्य रखा है। गौरतलब है कि इस वर्श राश्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं वर्शगांठ होगी जिन्हें स्वच्छता का द्योतक माना जाता है। फिलहाल बीते 15 सितम्बर को स्वच्छता ही सेवा के पखवाड़े की षुरूआत प्रधानमंत्री मोदी ने कर दी है जो 2 अक्टूबर तक अनवरत् चलता रहेगा। गौरतलब है लगभग 2 घण्टे चले कार्यक्रम में मोदी ने देष के अंदर आये बदलाव का जिक्र किया। 20 राज्य और 450 से ज्यादा जिले खुले में षौच से मुक्त कहे जा रहे हैं। इसके महत्व को भी उन्होंने इस कार्यक्रम के माध्यम से उजागर किया। फिल्म स्टार अमिताभ बच्चन से लेकर रतन टाटा तक देष के कोने-कोने से कई साधु-संतों और संस्थाओं को कार्यक्रम से सीधे जोड़ा गया। इतना ही नहीं कार्यक्रम के बाद मोदी दिल्ली के पहाड़गंज स्थित बाबा साहेब अम्बेडकर हायर सेकेण्डरी स्कूल के परिसर में झाड़ू भी लगाया जिस पर सवाल भी उठे कि आखिर प्रधानमंत्री को एक बार फिर झाड़ू लगाने की आवष्यकता क्यों पड़ी। कहीं समावेषी विकास के आभाव में स्वच्छता के प्रति प्रेम का आभाव तो नहीं है यदि ऐसा है तो बुनियादी एवं नीतिगत प्रष्नों को हल देना ही होगा। हालंाकि स्वच्छता से समझौता नहीं किया जा सकता पर किसकी, क्या आवष्यकता है यह वह जरूर तय करेगा। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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