Monday, September 3, 2018

कितना असरदार पाक को वित्तीय झटका

आतंकवादियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने में नाकाम रहने के चलते पाकिस्तान को अमेरिका ने एक बार फिर आर्थिक मदद रद्द कर बड़ा झटका दे दिया है। जाहिर है कि अमेरिका के इस फैसले से द्विपक्षीय सम्बंध जो पहले से खराब चले आ रहे हैं और कमजोर होंगे। गौरतलब है कि अमेरिका ने बीते 1 सितम्बर को पाकिस्तान को दी जाने वाली 300 मिलियन डाॅलर अर्थात् 2130 करोड़ रूपए की धनराषि को रोक दिया है। आतंकवाद पर लगाम लगाने में असफल पाकिस्तान को अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इसके पहले कई बार धमकी दे चुके हैं और 255 मिलियन डाॅलर सहायता राषि पर इसी साल जनवरी के षुरू में भी रोक चुके हैं। ध्यानतव्य हो कि 1947 में पाकिस्तान को आजादी मिलने के बाद से वित्तीय सहायता प्रदान करने के मामले में अमेरिका इसके लिये एक अहम देष रहा है। आंकड़े बताते हैं कि साल 1951 से 2011 के बीच पाकिस्तान ने अमेरिका से 67 बिलियन डाॅलर की सहायता राषि प्राप्त की है। ट्रम्प को यह बात बहुत खली है कि बार-बार अमेरिकी सहायता लेने वाला पाकिस्तान आतंक के मामले में कोरी बकवास करता रहा और झूठ पर झूठ बोलता रहा। बीते जनवरी में डोनाल्ड ट्रम्प ने साफ षब्दों में कहा था कि पिछले 15 सालों से पाकिस्तान अमेरिका को बेवकूफ बनाकर 33 अरब डाॅलर की सहायता प्राप्त कर चुका है और इसके बदले में सिर्फ झूठ और धोखे के अलावा कुछ नहीं मिला। दुनिया जानती है कि पाक आतंक को पोसने वाला देष है और यहां की सरकारें सेना और आईएसआई की छत्र-छाया में अपना दिन काटती है। बीते 18 अगस्त को नई सरकार के रूप में षपथ ले चुके क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान को प्रधानमंत्री के तौर पर कहीं अधिक संदेह से भी देखा जा रहा है। ऐसा इसलिये क्योंकि अप्रत्यक्ष तौर पर इमरान की सत्ता पाकिस्तानी सेना के हाथ में मानी जा रही है। 
बड़ा और संवेदनषील सवाल यह है कि अमेरिका ने करोड़ों की मदद फिलहाल क्यों रोकी और अब आतंकियों को पाकिस्तान किस बूते पालेगा। इसके पीछे अमेरिका का तर्क है कि पाकिस्तान आतंकी समूहों के खिलाफ कार्यवाही करने में विफल रहा और उन आतंकी समूहों के लिये सुरक्षित जगह बना हुआ है जो पड़ोसी देष अफगानिस्तान में पिछले कई साल से जंग छेड़े हुए हैं। गौरतलब है कि बीते 17 सालों से अफगानिस्तान में अमन-चैन की कोषिष में अमेरिका ने करोड़ो डाॅलर खर्च कर दिये और अपनी सेना को वहां लगाये रखा। ऐसे में पाक में आतंक का बने रहना हर दृश्टि से खतरा है। देखा जाय तो अफगानिस्तान से भारत के सम्बंध बहुत अच्छे हैं। अफगानिस्तान में षान्ति अमेरिका और भारत दोनों के लिये सुखद है पर पाकिस्तान में जड़ जमा चुका आतंकवादी इसके बीच में बड़ा रोड़ा है। खास यह है कि पाकिस्तान पिछले कुछ सालों से आर्थिक तंगी से जूझ रहा है बावजूद इसके आतंकियों को लेकर ठोस कार्यवाहियों से वह बचता रहा और जब अमेरिका की धमकी मिलती थी तो वह कार्यवाही करने की रस्म अदायगी में जुट जाता था। एक तरफ भारत के भीतर पाक प्रायोजित आतंकवाद का सिलसिला नहीं थम रहा है और दूसरी तरफ अमेरिका से वह कार्यवाही के नाम पर झूठ बोलता रहा। मौजूदा कष्मीर आतंक की भट्टी में सुलग रही है। आॅप्रेषन आॅल आउट के तहत 250 से ज्यादा आतंकी मारे जा चुके हैं पर घाटी अभी भी अलगाववादियों और इस्लामाबाद के इषारे पर आतंक से कराह रही है। पाकिस्तान की जनता ने इमरान खान को सत्ता की चाबी दे दी है, इस चुनौती के साथ कि देष के भीतर मचे उथल-पुथल और बाहर के द्विपक्षीय रिष्ते वह ठीक करेंगे। मगर इमरान की सत्ता पर वहां की सेना का प्रतिबिंब है। जाहिर है कि यही सेना भारत और पाक के बीच दीवार भी है। अमेरिका का वित्तीय सहायता रद्द करने वाला हालिया कदम इमरान पर क्या असर डालेगा अभी कुछ कह पाना कठिन है। गौरतलब है पाकिस्तान चीन के दम पर उड़ता रहा है। चीन ने पाकिस्तान में बड़ा निवेष किया है और उसे वहां से बड़ी आर्थिक सहायता मिलती रही है। आतंकी संगठन जैष-ए-मोहम्मद के चीफ मसूद अजहर समेत लखवी जैसे आतंकियों को यूएनओ की सुरक्षा परिशद् में अन्तर्राश्ट्रीय आतंकवादी घोशित कराने की भारत की कोषिष को लगातार चीन बाधित करता रहा यह इस बात का सबूत है कि पाक से उसकी निकटता हर स्थिति में और प्रत्येक परिस्थिति में है। 
खास यह भी है कि वांषिंगटन डीसी से पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य सहायता पर रोक कोई नई बात नहीं है। यह सिलसिला दषकों पुराना है जबकि पाकिस्तान अरबों रूपया अमेरिका का निगलने के बावजूद जहर उगलना बंद नहीं किया। 1965 में पाकिस्तान के भारत के साथ तनाव षुरू होने के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य सहायता पर पहली बार रोक लगायी थी। सैन्य सहायता पर लगा यह प्रतिबंध अगले 15 सालों तक जारी रहा। साल 1979 में सीआईए ने पाकिस्तान के परमाणु संवर्द्धन पुश्टि के पष्चात् तत्कालीन राश्ट्रपति जिमी कार्टर ने खाद्य सहायता को छोड़कर सभी सहायता निलंबित कर दी जबकि 1980 के प्रारम्भ में अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के आक्रमण के चलते एक बार फिर से पाकिस्तान को अमेरिका द्वारा दी जाने वाली सैन्य सहायता राषि में बढ़ोत्तरी कर दी गयी। यहां अमेरिका ने कूटनीतिक संतुलन को ध्यान में रख कर कदम उठाया था। वक्त बीतता गया पाकिस्तान अमेरिका के पैसे पर पलता रहा और धीरे-धीरे लोकतंत्र को अपाहिज बनाने में लगा रहा। हालांकि पाकिस्तान का लोकतंत्र षुरू से ही अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाया और अब तो उसकी कई बैसाखी है जिसमें आतंकी संगठन आईएसआई और सेना षामिल है। जब अमेरिका के राश्ट्रपति जाॅर्ज डब्ल्यू. बुष थे तो यह साबित करने में विफल रहे कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार नहीं है, तब 1990 के दौरान सहायता राषि पर एक बार फिर रोक लगायी गयी थी। सिलसिले यहीं नहीं थमे साल 1993 में 8 सालों के लिये भी रोक लगायी गयी। 1998 में जब भारत के पोखरण-2 के बाद पाकिस्तान ने मई के आखिर में परमाणु परीक्षण किया तब अमेरिका ने दी जाने वाली सहायता राषि की कटौती की। फिलहाल ट्रम्प जनवरी 2017 से अपने अब तक के कार्यकाल में दुनिया के तमाम देषों को लेकर कई कठोर कदम उठा चुके हैं इसी क्रम में पाकिस्तान को दी जाने वाली वित्तीय सहायता की रोक भी देखी जा सकतीहै। 
डोनाल्ड ट्रम्प की जो ताजा आर्थिक चोट पाकिस्तान को मिली है उससे उसके होष उड़ सकते हैं पर सोचने वाली बात यह है कि बीते कई दषकों से पाकिस्तान तमाम उलटफेर के बाद अमेरिका से सहायता प्राप्त करने में सफल रहा है। वैसे आतंकवाद पाकिस्तान की जड़ में है और अमेरिका की वित्तीय सहायता भी कुछ हद तक इस मामले में मददगार कहा जा सकता है जबकि चीन तो इसके लिये सदैव तैयार है क्योंकि चीन पाकिस्तान के रास्ते भारत को संतुलित करने की फिराक में रहता है जबकि भारत ठोस रणनीति, बाजार और व्यापार और द्विपक्षीय सम्बंधों के तहत संतुलन प्राप्त करना चाहता है। चीन पाकिस्तान का अवसरवादी मित्र है जबकि भारत के लिये न वह मित्र है और न ही दुष्मन की संज्ञा में। ट्रम्प के सख्त रूख के चलते ऐसी स्थिति भी हो सकती है कि चीन पाकिस्तान के बलिदान की दुहाई देकर कि उसकी कोषिषों को अमेरिका ने नजरअंदाज किया और वह उसके प्रति कहीं अधिक सहानुभूति और वित्तीय सहायता का रूख अख्तियार करे। फिलहाल अमेरिका की तरफ से जो एक्षन हुआ है अभी उस पर कई रिएक्षन देखने बाकी हैं पर नई सत्तासीन इमरान सरकार को सावधान रहने के लिये यह झटका काफी होना चाहिए। हालांकि इसे लेकर प्रतिबिंब आने वाले दिनों में उभरेगा पर यह साफ है कि पाक के लिये भीतर और बाहर दोनों वातावरण तब सही होंगे जब वह आतंक से पाक को मुक्त कर देगा। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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