कमबख्त अंतर्राष्ट्रीए परिस्थितियां देश की जनता से पता नहीं किस जनम का बदला ले रही हैं। कि न डाॅलर की हैसियत गिर रही है और न ही तेल की कीमत आसमान से जमीन पर आने का नाम ले रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने बिल्कुल ठीक कहा है कि विपक्ष फेल हो गया है इसका मतलब साफ है उनकी सरकार पास हो गयी है। बीजेपी के अध्यक्ष अमित षाह पहले ही कह चुके हैं कि भाजपा की 50 साल अर्थात् 2069 तक सरकार रहेगी। हो सकता है कि तब तक ही कुछ भला हो जाय वैसे पेट्रोल, डीजल महंगा होने, डाॅलर के मुकाबले रूपए के धूल चाटने और नौकरियों के घोर आभाव के बाद भी यदि भाजपा को जनता का अपार समर्थन मिल रहा है तो किसी के पेट में मरोड़ क्यों हो रहा है। सबके लिये यह बात समझना सही रहेगा कि इस देष में 1969 में पहली बार विपक्ष का अवतार हुआ था। तब से लेकर अब तक सरकार के किसी भी ऐसे नियोजन जिससे जनता पीड़ित हुई है या कठिनाई में गयी हो मसलन महंगाई, गरीबी, बीमारी, बेरोज़गारी इत्यादि पर विपक्ष ने जोर-जोर से आवाज़ लगायी है। सभी जानते हैं 1975 में अषान्ति को आधार बनाकर देष में जब राश्ट्रीय आपात थोपा गया तब कांग्रेस की चूल्हें 1977 के चुनाव में हिल गयी थीं। पहली बार गठबंधन की ही सही और अल्प समय के लिये ही सही मोरारजी देसाई के नेतृत्व में कांग्रेस के विरूद्ध एक सरकार बनी थी। 1989 में भी इसी प्रकार का एक इतिहास दोहराया गया। यह सिलसिला 2004 अटल बिहारी वाजपेयी तक जारी रहा। हालांकि 1991 से 1996 के बीच कांग्रेस की सरकार आयी थी और मोदी सरकार से ठीक पहले 2004 से 2014 तक भी गठजोड़ की ही सही मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। कांग्रेस के विरूद्ध लामबद्ध होने वाले आज मोदी सरकार के विरूद्ध लामबद्ध हो रहे हैं। यह इस बात का द्योतक है कि देष की बहुत मजबूत सरकारों में लोकतांत्रिक विधा के अन्तर्गत रहते हुए सुविधा के साथ कई दुविधायें भी पैदा करने के जिम्मेदार रहे हैं। मोदी सरकार भी एक मजबूत सत्ता का द्योतक है और ऐसी सत्ताओं ने समय-समय पर क्या किया है यह पन्ना पलट कर आप देख सकते हैं और इनके सामने विपक्ष का फेल होने का भी इतिहास कमोबेष देखा जा सकता है। प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू विपक्ष के लिये तरसते रहे और मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस विहीन भारत चाहते हैं। दूसरे अर्थों में षायद विपक्ष विहीन सत्ता चाहते हैं। तेल की मार और डाॅलर के मुकाबले गिरते रूपए को लेकर भारत बंद करने वाले विपक्षी कांग्रेस समेत बीस पार्टियां कहां गयी जबकि तेल आसमान छू रहा है और डाॅलर के मुकाबले रूपया कीचड़ में धसा जा रहा है। साफ है विपक्ष फेल हो गया है।
जब तेल की बात आती है तो सरकार इससे पल्ला झाड़ लेती है और रूपया जब डाॅलर के सामने धूल चाटता है तब भी सरकार बाहरी दबाव बता कर दरकिनार हो जाती है। आखिर बदहवास स्थिति में हो चुके इन दोनों परिस्थितियों को कौन काबू करेगा। पेट्रोल, डीजल के दाम रोज़ बढ़ रहे हैं। मुम्बई जैसे महानगरों में यह 90 पार करके षतक के फिराक में है। मुम्बई समेत दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और देष के सभी छोटे-बड़े षहरों में पेट्रोल और डीजल आसमान छूने के कगार पर है। दो जून की रोटी कमाने वाले टैम्पो या आॅटो चलाने वाले की पीड़ा भी सड़कों पर ही रौंधी जा रही है। रोजमर्रा की जिन्दगी में चीजें उथल-पुथल में गयी हैं जबकि रूपया की बिगड़ती हालत के चलते बदल रही आर्थिक स्थिति लोगों के स्नायु तंतुओं को सिकोड़ कर रख दिया है। सवाल है कि डाॅलर के मुकाबले रूपया क्यों गिरता जा रहा है। रूपया 72 के पार चला गया है। वैसे घबराने की कोई बात नहीं है एक केन्द्रीय मंत्री ने कहा था कि यदि यह 80 तक भी चला जाय तब भी कोई दिक्कत नहीं है। कमोबेष यह भविश्यवाणी भी सही साबित हो रही है। विपक्ष के भारत बंद होने के बाद भी रूपए का गिरना बंद नहीं हुआ और पेट्रोल डीजल के दाम का चढ़ना बंद नहीं हुआ। गौरतलब है कि भारत का रूपया इस साल के 9 महीने में 12 प्रतिषत गिर चुका है और यह सिलसिला अभी भी जारी है। 2014 में कहा गया था कि एक डाॅलर 40 रूपया का हो जायेगा और कुछ ने यह भी कहा था कि पेट्रोल 35 रूपये लीटर हो जायेगा। मगर आसमान छूते तेल की हालत और डाॅलर की स्थिति को देखते हुए उनकी भी जबान को मानो जंग लग गया हो। यह बात पूरी तरह तार्किक कैसे माना जाय कि सरकार पर इसका कोई जोर नहीं। जो अर्थव्यवस्था को सही से नहीं जानते वे भविश्यवाणी कर रहे हैं और जो समझते हैं उनकी कोई सुन नहीं रहा। कई देषों की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है जिसके चलते निवेषक अपना पैसा निकालकर डाॅलर खरीद रहे हैं फलस्वरूप डाॅलर महंगा होता जा रहा है। भारत की तेल कंपनियां भी कच्चे तेल के दाम बढ़ने की आषंका से डाॅलर खरीद रही हैं। आर्थिक ज्ञान के अंतर्गत समझें तो साफ है कि नुकसान तो कुल मिलाकर रूपए का और रूपए वाले का ही हो रहा है। आखिर यह आषंका कहां से आयी ये अन्तर्राश्ट्रीय परिस्थितियां कब तक रहेंगी। देष की अर्थव्यवस्था देष के लोगों से चलती है और देष के लोग पीड़ा में हैं तो उम्मीद भी धुंधली होती है इतनी सी बात सरकार को षीघ्र समझ में क्यों नहीं आती। जिस तेल पर देष में राजनीतिक खेल होते रहे आज वही तेल लोगों के लिये मुसीबत का सबब बना हुआ है।
यह बात कितनी सहज है कि हर मोर्चे पर सरकार अपनी पीठ थपथपाये चाहे देष की जनता त्राहीमान-त्राहीमान ही क्यों न करती हो। बीते 4 साल में तेल पर मनमोहन सरकार की तुलना में दोगुना टैक्स लगाने वाली मोदी सरकार एक रूपया भी एक्साइज़ ड्यूटी घटाने के मूड में नहीं दिखती जबकि सच्चाई यह है कि 9 बार एक्साइज़ ड्यूटी बढ़ा चुकी है। बीते अप्रैल से ही कहा जा रहा है कि डीज़ल, पेट्रोल को जीएसटी के दायरे में लाया जायेगा। जीएसटी काउंसिल की बैठक में इसका फैसला होगा। जीएसटी काउंसिल की बैठकें चलती रहती हैं जबकि तेल दरकिनार बना रहता है। उत्पाद षुल्क घटाने का दबाव सरकार पर है पर वित्त मंत्रालय इसे लेकर कुछ भी सोचना नहीं चाहता। बजटीय घाटा नियंत्रित करने के लिये सरकार को राजकोश नियंत्रित करना ही होगा जिसके कारण भी यह सब सरकार के लिये करना सम्भव नहीं है। खास यह भी है कि एक लीटर तेल की कीमत यदि सरकार एक रूपया घटाती है तो 13 हजार करोड़ का घाटा तुरन्त हो जायेगा। सुहाने सपने दिखाने वाली सरकारें जनता को मुसीबत में डाल कर जब पलायन करती है तो लोकतंत्र हाषिये पर चला जाता है। मोदी सरकार हो सकता है कुछ अच्छा कर रही हो पर मौजूदा समय में जो दिख रहा है बात उस पर हो रही है। लोकतंत्र में लोककल्याण की बात होती है सत्ताधारकों को यह नहीं भूलना चाहिए कि जनता उनसे बेहतर जिन्दगी की उम्मीद रखती है। फिलहाल सरकार की बात तो सरकार जाने पर कुछ बात तो विपक्ष को भी समझनी होगी। मुख्य विपक्षी कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसके षासन काल में रसोई गैस, पेट्रोल और डीजल के दामों में जब-जब बढ़ोत्तरी हुई तब-तब जंतर-मंतर से लेकर इण्डिया गेट तक मौजूदा सत्तासीन भाजपाई विरोध का हथियार उठा लेते थे और कहीं न कहीं इसमें वे कामयाब भी रहते थे पर कांग्रेस को विपक्ष का कोई तजुर्बा नहीं। न तो सरकार की अतिवादिता से वह जनता को बचा सकती है और न ही महंगाई से निजात दिला सकती है। जितनी सरकार जिम्मेदार है उतना ही षायद विपक्ष भी।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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